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उत्तराखंड में बढ़ रहा गहत की दाल का उत्पादन, औषधीय गुणों से है भरपूर

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Published : Feb 13, 2020, 11:48 AM IST

Updated : Feb 13, 2020, 1:18 PM IST

उत्तराखंड की मशहूर गहत की दाल की पैदावार लगातार बढ़ रही है.प्रदेश में सबसे ज्यादा गहत दाल का उत्पादन टिहरी जनपद में होता है. वर्ष 2018-19 में 11 हजार 511 मीट्रिक टन इसका उत्पादन हुआ.

गहत दाल का उत्पादन,
गहत दाल का उत्पादन,

हल्द्वानीः देवभूमि के पर्वतीय अंचलों में ठंड के मौसम में गहत की दाल लजीज मानी जाती है. जिसकी तासीर गर्म और औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है. प्रोटीन तत्व की अधिकता से यह दाल शरीर को ऊर्जा देती है, साथ ही पथरी की बीमारी में लाभप्रद मानी जाती है.

गहत दाल की पैदावार बढ़ रही है.

सर्द मौसम में गहत की दाल का स्वाद हर किसी की जुबां पर आ ही जाता है. गहत पर्वतीय क्षेत्रों की दालों में अपना विशेष स्थान रखती है. गहत का वानस्पतिक नाम डौली कॉस बाईफ्लोरस है. सर्द मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों के हर घर में इस दाल को भोजन में प्रयोग किया जाता है. पहाड़ के सर्द मौसम में गहत की दाल लजीज दाल मानी जाती है. बात उत्पादन की करें तो पूरे उत्तराखंड में गहत की दाल की खेती करीब 13 हजार हेक्टेयर में की जाती है. वर्ष 2017-18 में जहां गहत की दाल का उत्पादन पूरे प्रदेश में 10 हजार 555 मीट्रिक टन था, जो बढ़कर 2018-19 में 11 हजार 511 मीट्रिक टन हो गया है.

संयुक्त कृषि निदेशक प्रदीप कुमार सिंह के अनुसार पहाड़ के काश्तकार अब अन्य फसलों के साथ-साथ पारंपरिक फसल मडुआ, गहत, राजमा, भट्ट की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. कृषि विभाग भी किसानों को सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करा रहा है.

मडुवे की खेती पूरे प्रदेश में करीब 91 हजार 937 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिसका उत्पादन करीब 1लाख 9 हजार 800 मीट्रिक टन है. आंकड़े की बात करें तो पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा गहत दाल का उत्पादन टिहरी जनपद में होता है, जहां 3,679 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है जबकि 6,491 मीट्रिक टन का उत्पादन भी है.

यह भी पढ़ेंः महाकुंभ 2021 में शंखनाद से बनेगा वर्ल्ड रिकॉर्ड, एक साथ गूंजेंगे 1001 शंख

आम तौर पर एक पहाड़ की सबसे पौष्टिक गहत जोकि पहाड़ के सबसे ऊंचाई और ठंड वाले इलाकों में पाई जाती है. बताया जाता है कि सबसे ज्यादा ठंड वाले इलाकों में पैदा होने वाली दाल सबसे ज्यादा पौष्टिक होती है.

वैज्ञानिक भाषा में इस दाल को डॉली क्रॉस बाइफलोरस कहा जाता है यह दाल गुर्दे की रोगियों और पथरी के लिए अचूक दवा मानी जाती है और सर्दियों में इस दाल का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.

सूबे में सरकार किसानों को परंपरागत (स्थानीय) फसलों को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में शासन-प्रशासन किसानों की मेहनत से उगाए गए उत्पादों को बाजार दिलाने का कार्य कर रही है. जिससे किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत किया जा सकें. बता दें कि कई बार उन्हें फसल के उचित दाम भी नहीं मिल पाते हैं, जिसका नतीजा है कि वह धीरे-धीरे खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं. लेकिन बढ़ावा देने से जहां एक और पलायन पर चोट होगी, दूसरी ओर किसान आर्थिक रूप से मजबूत भी होंगे.

गहत की दाल के फायदे

गहत की दाल गुर्दे की पथरी में काफी लाभकारी मानी जाती है. लोगों का मानना है कि गहत की दाल का रस किटनी की पथरी में काफी लाभकारी होता है. जिसके उपयोग से पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है. इसमें प्रोटीन की मात्रा भी पाई जाती है, जो कमजोर लोगों के लिए विशेष लाभदायी माना जाता है.

हल्द्वानीः देवभूमि के पर्वतीय अंचलों में ठंड के मौसम में गहत की दाल लजीज मानी जाती है. जिसकी तासीर गर्म और औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है. प्रोटीन तत्व की अधिकता से यह दाल शरीर को ऊर्जा देती है, साथ ही पथरी की बीमारी में लाभप्रद मानी जाती है.

गहत दाल की पैदावार बढ़ रही है.

सर्द मौसम में गहत की दाल का स्वाद हर किसी की जुबां पर आ ही जाता है. गहत पर्वतीय क्षेत्रों की दालों में अपना विशेष स्थान रखती है. गहत का वानस्पतिक नाम डौली कॉस बाईफ्लोरस है. सर्द मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों के हर घर में इस दाल को भोजन में प्रयोग किया जाता है. पहाड़ के सर्द मौसम में गहत की दाल लजीज दाल मानी जाती है. बात उत्पादन की करें तो पूरे उत्तराखंड में गहत की दाल की खेती करीब 13 हजार हेक्टेयर में की जाती है. वर्ष 2017-18 में जहां गहत की दाल का उत्पादन पूरे प्रदेश में 10 हजार 555 मीट्रिक टन था, जो बढ़कर 2018-19 में 11 हजार 511 मीट्रिक टन हो गया है.

संयुक्त कृषि निदेशक प्रदीप कुमार सिंह के अनुसार पहाड़ के काश्तकार अब अन्य फसलों के साथ-साथ पारंपरिक फसल मडुआ, गहत, राजमा, भट्ट की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. कृषि विभाग भी किसानों को सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करा रहा है.

मडुवे की खेती पूरे प्रदेश में करीब 91 हजार 937 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिसका उत्पादन करीब 1लाख 9 हजार 800 मीट्रिक टन है. आंकड़े की बात करें तो पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा गहत दाल का उत्पादन टिहरी जनपद में होता है, जहां 3,679 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है जबकि 6,491 मीट्रिक टन का उत्पादन भी है.

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आम तौर पर एक पहाड़ की सबसे पौष्टिक गहत जोकि पहाड़ के सबसे ऊंचाई और ठंड वाले इलाकों में पाई जाती है. बताया जाता है कि सबसे ज्यादा ठंड वाले इलाकों में पैदा होने वाली दाल सबसे ज्यादा पौष्टिक होती है.

वैज्ञानिक भाषा में इस दाल को डॉली क्रॉस बाइफलोरस कहा जाता है यह दाल गुर्दे की रोगियों और पथरी के लिए अचूक दवा मानी जाती है और सर्दियों में इस दाल का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है.

सूबे में सरकार किसानों को परंपरागत (स्थानीय) फसलों को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में शासन-प्रशासन किसानों की मेहनत से उगाए गए उत्पादों को बाजार दिलाने का कार्य कर रही है. जिससे किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत किया जा सकें. बता दें कि कई बार उन्हें फसल के उचित दाम भी नहीं मिल पाते हैं, जिसका नतीजा है कि वह धीरे-धीरे खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं. लेकिन बढ़ावा देने से जहां एक और पलायन पर चोट होगी, दूसरी ओर किसान आर्थिक रूप से मजबूत भी होंगे.

गहत की दाल के फायदे

गहत की दाल गुर्दे की पथरी में काफी लाभकारी मानी जाती है. लोगों का मानना है कि गहत की दाल का रस किटनी की पथरी में काफी लाभकारी होता है. जिसके उपयोग से पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है. इसमें प्रोटीन की मात्रा भी पाई जाती है, जो कमजोर लोगों के लिए विशेष लाभदायी माना जाता है.

Last Updated : Feb 13, 2020, 1:18 PM IST
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