हल्द्वानी: लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र जैव विविधता के संरक्षण और संवर्धन के लिए जाना जाता है. यहां पर कई तरह के विलुप्त हो रहे पौधों के संरक्षण और संवर्धन का काम किया जा रहा है. ऐसे में अनुसंधान केंद्र विलुप्त हो रहे गोंद प्रजाति के पेड़ और पौधों को संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसका मकसद ये है कि कि प्राकृतिक गोंद का उत्पादन हो सके. प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए गोंद कई औषधियों के रूप में काम करेंगे.
वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट ने बताया कि लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र ने वर्ष 2018 में विलुप्त हो रहे नौ प्रजातियों के 861 प्राकृतिक गोंद उत्पादन करने वाले पौधों का रोपण किया गया था जो पेड़ अब लगभग तैयार हो चुके हैं. ऐसे में अब इन पेड़ों से गोंद उत्पादन का काम किया जाएगा. साथ ही इन पेड़ों के संरक्षण का काम भी किया जा रहा है, जिससे कि इन पेड़ों द्वारा उत्पादित बीजों को अन्य नर्सरी और जंगलों में लगाकर अधिक से अधिक गोंद उत्पादित करने वाले पेड़ों को लगाया जा सके.
उन्होंने बताया कि प्राकृतिक रूप से तैयार गोंद की डिमांड कई औषधियों में की जाती है. दवा निर्माता कंपनियों के अलावा पेंट और चिपकाने वाली पदार्थों में किया जाता है.
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उन्होंने बताया कि अनुसंधान केंद्र में मुख्य रूप से गोंद उत्पादन करने वाले पेड़ बबूल, ढाक, उदाल, कुंभी, झिंगन, बांकली, अकेसिया सेनेगल, आमडा प्रजाति के पौधों को आरोपित किया गया है. आने वाले दिनों में इन पेड़ों की छाल के माध्यम से गोंद निकालने का काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि वन संधान केंद्र जंगलों में बड़े पैमाने पर गोंद उत्पादित करने वाले पेड़ों को लगाने का भी अभियान चलाने जा रहा है, जिससे कि जंगलों में ज्यादा से ज्यादा गोंद उत्पादित पौधों को लगाया जा सके.