हल्द्वानी: अल्मोड़ा की सुप्रसिद्ध मिठाई सिंगौड़ी (singori mithai) भले ही देश-दुनिया में अलग पहचान रखती हो लेकिन मिठाई को सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाने वाला पत्ता भी कई औषधीय गुणों से भरपूर है. कहा जाता है कि सिंगौड़ी मिठाई को मालू पत्ता में रखने से कई दिनों तक मिठाई खराब नहीं होती है क्योंकि मालू का पत्ता औषधीय गुणों से भरपूर है. इसका नतीजा है कि इस पत्ते में मिठाई कई दिन सुरक्षित रहती है. ऐसे में हल्द्वानी वन अनुसंधान केंद्र (Forest Research Center Haldwani) इस मालू पत्ता को संरक्षित करने का भी काम कर रहा है, जिससे कि औषधि से भरपूर इस पत्ते को लोग जान सकें.
हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केंद्र में कई विलुप्त हो रहे पौधों को संरक्षित करने का काम किया जा रहा है. अनुसंधान केंद्र ने जैव विविधता और औषधि के क्षेत्र में भी बेहतर काम कर औषधि से भरपूर कई प्रजातियों को भी संरक्षित किया है. इसी के तहत अनुसंधान केंद्र ने लता वाटिका तैयार की है. लता युक्त (बेल नुमा) 40 प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम किया है, जो औषधि से भरपूर हैं, जिसमें मुख्य रूप से मालू पत्ता, विदारा, गिलोय, दम बूटी, बिदारी कंद, गंजारु सहित कई औषधि युक्त जंगली बेलें हैं, जिन को संरक्षित करने का काम किया जा रहा है.
वन अनुसंधान केंद्र के प्रभारी मदन बिष्ट ने बताया कि सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की सुप्रसिद्ध मिठाई सिंगौड़ी को सुरक्षित रखने वाले मालू पत्ता को अनुसंधान केंद्र द्वारा संरक्षित करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि मालू पत्ता पूरी तरह से औषधि गुणों से भरपूर है, जिसका नतीजा है कि पत्ते में सिंगोड़ी मिठाई कई दिनों तक रखने के बाद भी खराब नहीं होती है.
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उन्होंने बताया कि मालू पत्ता अल्मोड़ा जनपद की कोसी नदी क्षेत्र के जौसारी के जंगलों में भारी तादाद में पाया जाता है. इस पत्ते का आकार पान के पत्तों की तरह है, जिसमें सिंगोड़ी मिठाई रखी जाती है. यह पत्ता मवेशियों को खिलाने के अलावा भोजन के थाल के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. अल्मोड़ा के कई क्षेत्रों में यह पत्ता लोगों के रोजगार का साधन भी है, लेकिन पौधों को संरक्षित करने की जरूरत है, जिससे कि पहाड़ पर इस बेल को अन्य जगहों पर लगाया जा सके.