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लोक गायक दीपक कुमाऊंनी संस्कृति के प्रचार–प्रसार में जुटे, सरकार से की ये अपील

उभरते हुए लोक गायक दीपक कुमार गीत-संगीत के जरिए कुमाऊंनी संस्कृति के प्रचार–प्रसार में जुटे हैं. दीपक अभी तक 'पहाड़े की शान', 'उत्तराखंड नाम, पहाड़े की शान' और 'गीत धमा धम' कुमाऊंनी गीत गा चुके हैं. उन्होंने सरकार से लोक कलाकारों को प्रोत्साहित और आर्थिक मदद करने की अपील की.

Kumauni singer deepak kumar
कुमाऊंनी सिंगर दीपक
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Published : Nov 22, 2021, 3:41 PM IST

Updated : Nov 22, 2021, 3:59 PM IST

कालाढूंगीः कोटाबाग ब्लॉक के दीपक कुमार (Deepak Kumar) गीत-संगीत के जरिए अपनी संस्कृति (Kumauni Culture) को पहचान दिलाने में जुटे हैं. उभरते हुए लोक गायक दीपक संसाधनों के अभाव में भी कुमाऊंनी संगीत को नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि ग्रामीण परिवेश में संगीत के क्षेत्र में कई तरह की चुनौतियां है. संसाधनों के अभाव में स्थानीय प्रतिभा निखर नहीं पाती है. ऐसे में सरकार को उभरते कलाकारों को प्रोत्साहित करने के साथ मदद मुहैया करानी चाहिए.

बता दें कि दीपक कुमार कोटाबाग ब्लॉक के चांदीपुर गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने हल्द्वानी के एमबीपीजी कॉलेज (Motiram Baburam Govt. Post Graduate College Haldwani) से संगीत में परास्नातक तक की पढ़ाई की है. दीपक का बचपन से ही संगीत के प्रति रुझान रहा. घर की आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने संगीत की दुनिया में कदम रखा. जो आज सीमित संसाधनों के बीच भी खुद को तराश रहे हैं. उभरते हुए लोक गायक दीपक (Folk singer Deepak) अभी तक 'पहाड़े की शान', 'उत्तराखंड नाम, पहाड़े की शान' और 'गीत धमा धम' कुमाऊंनी गीत गा चुके हैं. जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

कुमाऊंनी संस्कृति के प्रचार–प्रसार में जुटे लोक गायक दीपक कुमार.

ये भी पढ़ेंः कहीं गुजरे जमाने की बात न हो जाए 'ढोल दमाऊ', हुनरमंदों का हो रहा मोहभंग

लोक गायक दीपक का कहना है कि गांव के परिवेश से संगीत के क्षेत्र में जाना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा. भाषा किसी भी संस्कृति की मौलिक इकाई होती है. ऐसे में वो अपने गानों के जरिए अपनी संस्कृति को विश्व स्तर पर फैलाना चाहते हैं. उनका कहना है कि एक गाना तैयार करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. गाने में संगीत, लिरिक्स, कलाकारों का चयन आदि जटिल प्रक्रियाएं होती है. जिसके बाद ही गीत तैयार हो पाता है.

ये भी पढ़ेंः जोहार महोत्सव में दिखी संस्कृति की झलक, रंगारंग कार्यक्रमों के साथ हुआ समापन

दीपक का कहना है कि वर्तमान में लोग कुमाऊंनी संगीत और गानों के जरिए ही भाषा के स्वरूप को जान पा रहे हैं. उनका प्रयास है कि वो भाषा के प्रवाह को बनाए रखे. युवाओं को संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. साथ ही संसाधन भी सरकार को मुहैया करानी चाहिए. उनका कहना है कि बिना संसाधन, आर्थिक सहायता और अनुदान के उभरते हुए कलाकार आगे नहीं बढ़ पाते हैं. ऐसे में सरकार को संगीत के क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर योजनाओं को लाकर उभरते कलाकारों को हरसंभव मदद देनी चाहिए.

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कालाढूंगीः कोटाबाग ब्लॉक के दीपक कुमार (Deepak Kumar) गीत-संगीत के जरिए अपनी संस्कृति (Kumauni Culture) को पहचान दिलाने में जुटे हैं. उभरते हुए लोक गायक दीपक संसाधनों के अभाव में भी कुमाऊंनी संगीत को नया आयाम देने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि ग्रामीण परिवेश में संगीत के क्षेत्र में कई तरह की चुनौतियां है. संसाधनों के अभाव में स्थानीय प्रतिभा निखर नहीं पाती है. ऐसे में सरकार को उभरते कलाकारों को प्रोत्साहित करने के साथ मदद मुहैया करानी चाहिए.

बता दें कि दीपक कुमार कोटाबाग ब्लॉक के चांदीपुर गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने हल्द्वानी के एमबीपीजी कॉलेज (Motiram Baburam Govt. Post Graduate College Haldwani) से संगीत में परास्नातक तक की पढ़ाई की है. दीपक का बचपन से ही संगीत के प्रति रुझान रहा. घर की आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने संगीत की दुनिया में कदम रखा. जो आज सीमित संसाधनों के बीच भी खुद को तराश रहे हैं. उभरते हुए लोक गायक दीपक (Folk singer Deepak) अभी तक 'पहाड़े की शान', 'उत्तराखंड नाम, पहाड़े की शान' और 'गीत धमा धम' कुमाऊंनी गीत गा चुके हैं. जिसे लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

कुमाऊंनी संस्कृति के प्रचार–प्रसार में जुटे लोक गायक दीपक कुमार.

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लोक गायक दीपक का कहना है कि गांव के परिवेश से संगीत के क्षेत्र में जाना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहा. भाषा किसी भी संस्कृति की मौलिक इकाई होती है. ऐसे में वो अपने गानों के जरिए अपनी संस्कृति को विश्व स्तर पर फैलाना चाहते हैं. उनका कहना है कि एक गाना तैयार करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. गाने में संगीत, लिरिक्स, कलाकारों का चयन आदि जटिल प्रक्रियाएं होती है. जिसके बाद ही गीत तैयार हो पाता है.

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दीपक का कहना है कि वर्तमान में लोग कुमाऊंनी संगीत और गानों के जरिए ही भाषा के स्वरूप को जान पा रहे हैं. उनका प्रयास है कि वो भाषा के प्रवाह को बनाए रखे. युवाओं को संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. साथ ही संसाधन भी सरकार को मुहैया करानी चाहिए. उनका कहना है कि बिना संसाधन, आर्थिक सहायता और अनुदान के उभरते हुए कलाकार आगे नहीं बढ़ पाते हैं. ऐसे में सरकार को संगीत के क्षेत्र में ग्रामीण स्तर पर योजनाओं को लाकर उभरते कलाकारों को हरसंभव मदद देनी चाहिए.

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Last Updated : Nov 22, 2021, 3:59 PM IST
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