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जैव विविधता के क्षेत्र में बड़ा योगदान दे रहा फाइकस गार्डन, विलुप्त हो रहे पौधों का यहां हो रहा संरक्षण

लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र 121 फाइकस प्रजाति के दुर्लभ पेड़ों का संरक्षण कर रहा है.फाइकस प्रजाति का पेड़ का पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहता है.

फाइकस गार्डन
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Published : Jun 16, 2019, 11:55 PM IST

हल्द्वानीः लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र प्रदेश में पहला ऐसा फाइकस पार्क है जहां देश के विभिन्न कोनों से लाई गईं 121 फाइकस प्रजाति के दुर्लभ पेड़ों का संरक्षण करने का काम हो रहा है, जो विलुप्त की कगार पर हैं. यही नहीं यह फाइकस गार्डन जैव विविधता के क्षेत्र में बड़ा योगदान भी दे रहा है.

फाइकस गार्डन पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा योगदान.

दरअसल, हल्द्वानी के लालकुआं स्थित अनुसंधान केंद्र जैव विविधता के क्षेत्र में अपना अहम योगदान निभा रहा है. वन अनुसंधान केंद्र देश-विदेश की हजारों जातियों के विलुप्त हो रहे पौधों और जड़ी बूटियों का संरक्षण करने का काम कर रहा है.

इसके अलावा अनुसंधान केंद्र प्रदेश में पहला फाइकस गार्डन बनाया गया है, जहां देश विदेश के कोने-कोने से लाई गईं 121 फाइकस प्रजाति के पौधों का संरक्षण करने का काम किया जा रहा है.

फाइकस गार्डन में उत्तराखंड की 23 विलुप्त हो रहीं प्रजाति के अलावा केरल, उत्तर प्रदेश, असम, हरियाणा और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु सहित कई राज्यों के विलुप्त हो रहे फाइकस प्रजाति के पौधों का संरक्षण किया जा रहा है.

यह भी पढ़ेंः पटवारियों के अनिश्चितकालीन हड़ताल से जनता परेशान, वकीलों ने दी तालाबंदी की चेतावनी

इन पौधों में मुख्य रूप से बरगद, गूलर काला रबड़, चाचरी ,खैना सुनिया, फाइकस पोलैंड सहित कई प्रजाति मौजूद हैं.
वन अनुसंधान केंद्र के वन क्षेत्राधिकारी नवीन रौतेला का कहना है कि फाइकस प्रजाति का पेड़ संरक्षण का काम वन अनुसंधान केंद्र में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.

फाइकस प्रजाति का पेड़ का पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहता है, क्योंकि इसकी चौड़ी पत्तियां वातावरण में फैले कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा को कम करने में अहम भूमिका निभाती हैं. इसके अलावा जंगलों में वन्य जीव के भोजन के लिए भी ज्यादा लाभदायक होता है.

हल्द्वानीः लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र प्रदेश में पहला ऐसा फाइकस पार्क है जहां देश के विभिन्न कोनों से लाई गईं 121 फाइकस प्रजाति के दुर्लभ पेड़ों का संरक्षण करने का काम हो रहा है, जो विलुप्त की कगार पर हैं. यही नहीं यह फाइकस गार्डन जैव विविधता के क्षेत्र में बड़ा योगदान भी दे रहा है.

फाइकस गार्डन पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा योगदान.

दरअसल, हल्द्वानी के लालकुआं स्थित अनुसंधान केंद्र जैव विविधता के क्षेत्र में अपना अहम योगदान निभा रहा है. वन अनुसंधान केंद्र देश-विदेश की हजारों जातियों के विलुप्त हो रहे पौधों और जड़ी बूटियों का संरक्षण करने का काम कर रहा है.

इसके अलावा अनुसंधान केंद्र प्रदेश में पहला फाइकस गार्डन बनाया गया है, जहां देश विदेश के कोने-कोने से लाई गईं 121 फाइकस प्रजाति के पौधों का संरक्षण करने का काम किया जा रहा है.

फाइकस गार्डन में उत्तराखंड की 23 विलुप्त हो रहीं प्रजाति के अलावा केरल, उत्तर प्रदेश, असम, हरियाणा और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु सहित कई राज्यों के विलुप्त हो रहे फाइकस प्रजाति के पौधों का संरक्षण किया जा रहा है.

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इन पौधों में मुख्य रूप से बरगद, गूलर काला रबड़, चाचरी ,खैना सुनिया, फाइकस पोलैंड सहित कई प्रजाति मौजूद हैं.
वन अनुसंधान केंद्र के वन क्षेत्राधिकारी नवीन रौतेला का कहना है कि फाइकस प्रजाति का पेड़ संरक्षण का काम वन अनुसंधान केंद्र में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है.

फाइकस प्रजाति का पेड़ का पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहता है, क्योंकि इसकी चौड़ी पत्तियां वातावरण में फैले कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा को कम करने में अहम भूमिका निभाती हैं. इसके अलावा जंगलों में वन्य जीव के भोजन के लिए भी ज्यादा लाभदायक होता है.

Intro:स्लग-फाइकस गार्डन में 121 विलुप्त होती फाइकस प्रजाति के पौधों का किया जा रहा है संरक्षण।
रिपोर्टर-भावनाथ पंडित हल्द्वानी।
एंकर- लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र प्रदेश में पहला ऐसा फाइकस पार्क का स्थापना किया है। जहां देश के विभिन्न कोनों के लाई गई 121 फाइकस प्रजाति के दुर्लभ पेड़ों का संरक्षण करने का काम कर रहा है जो विलुप्त के कगार पर हैं। यही नहीं यह फाइकस गार्डन जैव विविधता के क्षेत्र में बड़ा योगदान भी दे रहा है।


Body:दरअसल हल्द्वानी के लालकुआं लाल कुआं स्थित अनुसंधान केंद्र जैव विविधता के क्षेत्र में कई अपना अहम योगदान निभा रहा है। वन अनुसंधान केंद्र में देश-विदेश के हजारों पर जातियों के विलुप्त हो रहे हैं पौधों और जड़ी बूटियों का संरक्षण करने का काम कर रहा है। इसके अलावा अनुसंधान केंद्र प्रदेश में पहला फाइकस गार्डन का स्थापना किया है जहां देश विदेश के कोने से लाई गई 121 फाइकस प्रजाति के पौधों का संरक्षण काम किया जा रहा है। फाइकस गार्डन में उत्तराखंड के 23 विलुप्त हो रही प्रजाति के अलावा केरला,उत्तर प्रदेश, आसाम, हरियाणा और आंध्र प्रदेश ,तमिलनाडु सहित कई राज्यों के विलुप्त हो रहे हैं फाइकस प्रजाति के पौधों का संरक्षण किया जा रहा है.। इन पौधों में मुख्य रूप से बरगद, गूलर काला रबड़, चाचरी ,खैना सुनिया, फाइकस पोलैंड सहित कई प्रजाति मौजूद है।



Conclusion:वन अनुसंधान केंद्र के वन क्षेत्राधिकारी नवीन रौतेला का कहना है कि फाइकस प्रजाति का पेड़ संरक्षण का कामवन अनुसंधान केंद्र में बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। फाइकस प्रजाति का पेड़ का पर्यावरण के क्षेत्र में बड़ा योगदान रहता है क्योंकि इसकी चौड़ी पत्तियां वातावरण में फैले कार्बन डाइऑक्साइड के मात्रा को कम करने में अहम भूमिका निभाता है ।इसके अलावा जंगलों में वन्य जीव के भोजन के लिए भी ज्यादा लाभदायक होता हैं।

बाइट -नवीन रौतेला वन क्षेत्राधिकारी वन अनुसंधान केंद्र
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