हल्द्वानी: मकर संक्रांति और उत्तरायणी के मौके पर काठगोदाम रानीबाग स्थित कुमाऊं एवं गढ़वाल के अलग-अलग हिस्सों से पहुंचे कत्यूरी वंशजों ने अपने कुलदेवी जिया रानी की विधिवत पूजा अर्चना की और रातभर जागर लगाकर आह्वान किया. इस मौके पर केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट ने भी चित्रशिला घाट स्थित माता जिया रानी गुफा के दर्शन किए. साथ ही कत्यूरी वंशजों की कुलदेवी जिया रानी को चुनरी चढ़ाकर देश प्रदेश की सुख समृद्धि की कामना की. साथ ही जोशीमठ की रक्षा के लिए प्रार्थना की.
आपको बता दें कि मकर संक्रांति के अवसर श्रद्धालु रानी बाग स्थित जिया रानी माता मंदिर में पूजा अर्चना कर रहे हैं. जिया रानी माता का मंदिर हल्द्वानी के रानीबाग चित्रशीला घाट पर स्थित है. मकर संक्रांति के अवसर पर कत्यूर वंश के लोग यहां माता जिया रानी की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और पवित्र गौला नदी में स्नान कर अपने घरों को लौटते हैं. कत्यूर वंश के लोगों में माता जिया रानी को लेकर अटूट आस्था है.
कौन थीं जिया रानी: लगभग 800 साल पहले कत्यूरी राजवंश का राज्य था, जिनकी कत्यूर घाटी बागेश्वर हुआ करती थी. कत्यूरी राजवंश की रानी थीं जिया रानी. 12 वीं शताब्दी में मुगल और तुर्कों का शासन बढ़ता चला गया. मुगलों ने उत्तराखंड को लूटने के लिए गढ़वाल में हरिद्वार और कुमाऊं में हल्द्वानी का रुख किया. लेकिन इस दौरान मुगलों को कत्यूरी सेना से मुंह की खानी पड़ी और युद्ध हार गए. जिया रानी जब बड़ी हुई तो अपने राज्य का कार्यभार देखने के लिए गौला नदी के घाट पर आ गई, जहां उन्होंने एक बाग बनवाया और जिसके बाद इस पूरे इलाके का नाम रानीबाग पड़ गया.
माता जिया रानी की लोक कथा: जिया रानी भगवान शिवजी की भक्त थी. बताया जाता है कि जब वो रानीबाग गौला नदी के तट पर चित्रेश्वर महादेव यानी भगवान शिव के दर्शन करने आई थीं तो उनके स्नान करने के दौरान मुगल दीवान उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया. मुगल सैनिकों से लड़ते-लड़ते उस स्थान को अपवित्र होने से बचाने के लिए जिया रानी वहां से अंतर्ध्यान हो गयी. बताया जाता है कि जिया रानी ने उसी समय अपना लहंगा उसी स्थान पर छोड़ दिया, जब मुगलों ने लहंगे को छूकर जिया रानी को ढूंढना चाहा, तो लहंगा पत्थर की शिला में तब्दील हो गया, मुगलों को जिया रानी का कोई पता नहीं चल सका. यह पत्थर आज भी चित्रशिला घाट पर मौजूद है.
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मकर संक्रांति के दिन लोग यहां पर जिया रानी के नाम की पूजा अर्चना कर सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं. चित्रशिला घाट के ठीक ऊपर माता जिया रानी की गुफा भी है. बताया जाता है कि जब मुगलों ने माता जिया रानी का पीछा किया तो वें अंतर्ध्यान होकर इस गुफा में आकर छिप गईं. जिया रानी की गुफा आज भी यहां मौजूद है. यहां हर साल कत्यूरी वंशज मकर संक्रांति के मौके पर जिया रानी की गुफा के पास पहुंचते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मकर संक्रांति पर कुलदेवी जिया रानी की पूजा अर्चना कर उनका आह्वान किया जाता है.