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आजादी की लड़ाई में दीवान सिंह बिष्ट ने किया सर्वस्व न्योछावर, 24 साल की उम्र में दी थी शहादत

आजादी की लड़ाई में कोटाबाग विकासखंड से सबसे ज्यादा 74 रणबाकुरों ने हिस्सा लिया था. जिसमें दीवान सिंह बिष्ट ने 24 साल की उम्र अपनी शहादत दी थी. उन्होंने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था.

Freedom fighter Deewan Singh Bisht
शहीद दीवान सिंह बिष्ट
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Published : Aug 14, 2022, 7:13 PM IST

Updated : Aug 14, 2022, 7:35 PM IST

कालाढूंगीः देश में हर तरफ स्वतंत्रता दिवस 2022 (Independence Day 2022) की धूम है. देश की आजादी के दौरान हजारों ने लोगों ने अपना बलिदान दिया. जिसमें कोटबाग विकासखंड के शहीद दीवान सिंह समेत 74 रणबांकुरों ने हिस्सा लिया था. उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था.

बता दें कि कोटाबाग ब्लॉक से डौनपरेवा गांव के अमर शहीद दीवान सिंह बिष्ट (Freedom fighter Deewan Singh Bisht) का सबसे पहले नाम आता है. दीवान सिंह ने मात्र 24 वर्ष की आयु में देश की आजादी के लिए शहादत दी थी. दीवान का जन्म 5 मार्च 1921 को साधारण किसान परिवार के बचे सिंह के घर में हुआ था. उनके अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना जाग गई थी. देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो दीवान सिंह भी अपने साथियों के साथ कूद पड़े.

कोटबाग विकासखंड के शहीद दीवान सिंह.

साल 1944 में अपने साथियों के साथ दीवान सिंह (Martyr Deewan Singh Bisht) ने आंदोलन के दौरान भलोन में डाक बंगला फूक दिया था. कालाढूंगी के जंगलों में 13 साथियों के साथ गोरी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें और उनके साथियों को हल्द्वानी कारागार लाया गया. जहां दीवान सिंह को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई. उन्हें बरेली लाया गया. जेल में ब्रिटिश शासकों ने उन्हें माफी मांगने पर मजबूर किया. उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गई. आखिरकार 23 अगस्त 1945 को दीवान सिंह बिष्ट ने अपनी शहादत दे दी.

ये भी पढ़ेंः देश की आजादी में 14 स्वतंत्रता सेनानियों ने निभाई थी अहम भूमिका, बदहाली में श्यामपुर गांव

गौर हो कि साल 1942 में हुए कांग्रेस के स्वतंत्रता सेनानी अधिवेशन में भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत ने विकासखंड कोटाबाग को कुमाऊं की 'बारडोली' का नाम दिया था. यह अधिवेशन काफी बड़ा था. वहीं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार की कुछ हद तक मदद मिली है, लेकिन केंद्र सरकार की हमेशा उपेक्षा झेलते आ रहे हैं.

कालाढूंगीः देश में हर तरफ स्वतंत्रता दिवस 2022 (Independence Day 2022) की धूम है. देश की आजादी के दौरान हजारों ने लोगों ने अपना बलिदान दिया. जिसमें कोटबाग विकासखंड के शहीद दीवान सिंह समेत 74 रणबांकुरों ने हिस्सा लिया था. उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था.

बता दें कि कोटाबाग ब्लॉक से डौनपरेवा गांव के अमर शहीद दीवान सिंह बिष्ट (Freedom fighter Deewan Singh Bisht) का सबसे पहले नाम आता है. दीवान सिंह ने मात्र 24 वर्ष की आयु में देश की आजादी के लिए शहादत दी थी. दीवान का जन्म 5 मार्च 1921 को साधारण किसान परिवार के बचे सिंह के घर में हुआ था. उनके अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना जाग गई थी. देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में जब अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो दीवान सिंह भी अपने साथियों के साथ कूद पड़े.

कोटबाग विकासखंड के शहीद दीवान सिंह.

साल 1944 में अपने साथियों के साथ दीवान सिंह (Martyr Deewan Singh Bisht) ने आंदोलन के दौरान भलोन में डाक बंगला फूक दिया था. कालाढूंगी के जंगलों में 13 साथियों के साथ गोरी हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. उन्हें और उनके साथियों को हल्द्वानी कारागार लाया गया. जहां दीवान सिंह को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई. उन्हें बरेली लाया गया. जेल में ब्रिटिश शासकों ने उन्हें माफी मांगने पर मजबूर किया. उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गई. आखिरकार 23 अगस्त 1945 को दीवान सिंह बिष्ट ने अपनी शहादत दे दी.

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गौर हो कि साल 1942 में हुए कांग्रेस के स्वतंत्रता सेनानी अधिवेशन में भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत ने विकासखंड कोटाबाग को कुमाऊं की 'बारडोली' का नाम दिया था. यह अधिवेशन काफी बड़ा था. वहीं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रितों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार की कुछ हद तक मदद मिली है, लेकिन केंद्र सरकार की हमेशा उपेक्षा झेलते आ रहे हैं.

Last Updated : Aug 14, 2022, 7:35 PM IST
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