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उत्तराखंड में पहली बार उगाया गया ब्लैक राइस, कीमत 600 प्रति किलो से भी ज्यादा

हल्द्वानी के किसान ने काला चावल का उत्पादन किया है. किसान के काले चावल उत्पादन को लेकर वैज्ञानिक भी तारीफ कर रहे हैं. काले चावल का उपयोग औषधीय और पौष्टिक आहार के रूप में किया जाता है.

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Published : Nov 21, 2019, 6:51 PM IST

Updated : Nov 22, 2019, 1:36 PM IST

उत्तराखंड के किसान ने काले चावल का किया उत्पादन

हल्द्वानी: चीन के राजा महाराजाओं के लिए उत्पादित होने वाला काला चावल अब उत्तराखंड में भी पैदा हो सकता है. फिलहाल काला चावल का उत्पादन भारत के मणिपुर, असम और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में किसान कर रहे हैं. लेकिन, हल्द्वानी के गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने उत्तराखंड में पहली बार काला चावल का उत्पादन किया है. काला चावल औषधि और पौष्टिक युक्त आहार है.

किसान ने पहली बार उगाया काला चावल,

गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ऑर्गेनिक खेती के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दे चुके हैं. नरेंद्र मेहरा अब उत्तराखंड में काले चावल के उत्पादन का काम शुरू करने वाले हैं. उन्होंने बताया कि काले चावल का उत्पादन सबसे पहले चीन में हुआ था. काला चावल सिर्फ चीन के राजा महाराजा खाते थे और किसी अन्य को खाने पर प्रतिबंध था. फिलहाल, काला चावल का उत्पादन असम, मणिपुर और मध्य प्रदेश के किसान कर रहे हैं.

किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने बताया कि मध्य प्रदेश के एक किसान से उन्होंने कुछ बीज मंगवाए और आज उस बीज के द्वारा करीब डेढ़ कुंटल काला चावल का उत्पादन कर चुके हैं. उस बीज को उन्होंने संरक्षित कर दिया है. उत्तराखंड में पहली बार काले चावल का उत्पादन हुआ है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में भू-माफिया के हौसले बुलंद, IMA के प्रतिबंधित क्षेत्र में हो रही प्लॉटिंग

उन्होंने बताया कि पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी इस काला चावल को काफी सराहा कर रहे हैं. इस चावल में पौष्टिकता के साथ-साथ औषधीय गुण भी हैं, जिसके चलते इस चावल की डिमांड खूब हो रही है. उन्होंने बताया कि इस धान के बीज की कीमत करीब 1800 रुपये प्रति किलो है. धान का ऑर्गेनिक तरीके से उत्पादन किए जाने पर 600 रुपये प्रति किलो के रेट से चावल की डिमांड है.

किसान नरेंद्र मेहरा ने बताया कि प्रदेश सरकार काले चावल को बढ़ावा दे और उत्पादन के लिए किसानों को जागरुक करे, जिससे किसानों की आय में खासा वृद्धि होगी. उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार उत्तराखंड के किसानों को काला चावल का बीज उपलब्ध कराए, जिससे किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकें.

क्‍या है ब्‍लैक राइस या काला चावल?
काला चावल सामान्‍य तौर पर आम सफेद या भूरे राइस जैसा ही होता है. इसकी शुरुआती खेती चीन प्रांत में होती थी. भारत में सबसे पहले इसकी खेती असम और मणिपुर में शुरू हुई. काला चावल एंटी-ऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर माना जाता है, कॉफी और चाय से भी ज्यादा. इसके चलते बॉडी डि‍टॉक्स होती है और कई तरह की सेहत संबंधी परेशानि‍यां दूर रहती हैं. इसे कैंसर के इलाज के लिए सब से ज्यादा उपयोगी माना जाता है. आम सफेद चावल के मुकाबले इसमें ज्‍यादा विटामिन B और E के साथ कैल्शिमय, मैगनीशियम, आयरन और जिंक की भी मात्रा ज्‍यादा होती है.

हल्द्वानी: चीन के राजा महाराजाओं के लिए उत्पादित होने वाला काला चावल अब उत्तराखंड में भी पैदा हो सकता है. फिलहाल काला चावल का उत्पादन भारत के मणिपुर, असम और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में किसान कर रहे हैं. लेकिन, हल्द्वानी के गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने उत्तराखंड में पहली बार काला चावल का उत्पादन किया है. काला चावल औषधि और पौष्टिक युक्त आहार है.

किसान ने पहली बार उगाया काला चावल,

गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ऑर्गेनिक खेती के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दे चुके हैं. नरेंद्र मेहरा अब उत्तराखंड में काले चावल के उत्पादन का काम शुरू करने वाले हैं. उन्होंने बताया कि काले चावल का उत्पादन सबसे पहले चीन में हुआ था. काला चावल सिर्फ चीन के राजा महाराजा खाते थे और किसी अन्य को खाने पर प्रतिबंध था. फिलहाल, काला चावल का उत्पादन असम, मणिपुर और मध्य प्रदेश के किसान कर रहे हैं.

किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने बताया कि मध्य प्रदेश के एक किसान से उन्होंने कुछ बीज मंगवाए और आज उस बीज के द्वारा करीब डेढ़ कुंटल काला चावल का उत्पादन कर चुके हैं. उस बीज को उन्होंने संरक्षित कर दिया है. उत्तराखंड में पहली बार काले चावल का उत्पादन हुआ है.

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उन्होंने बताया कि पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी इस काला चावल को काफी सराहा कर रहे हैं. इस चावल में पौष्टिकता के साथ-साथ औषधीय गुण भी हैं, जिसके चलते इस चावल की डिमांड खूब हो रही है. उन्होंने बताया कि इस धान के बीज की कीमत करीब 1800 रुपये प्रति किलो है. धान का ऑर्गेनिक तरीके से उत्पादन किए जाने पर 600 रुपये प्रति किलो के रेट से चावल की डिमांड है.

किसान नरेंद्र मेहरा ने बताया कि प्रदेश सरकार काले चावल को बढ़ावा दे और उत्पादन के लिए किसानों को जागरुक करे, जिससे किसानों की आय में खासा वृद्धि होगी. उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार उत्तराखंड के किसानों को काला चावल का बीज उपलब्ध कराए, जिससे किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकें.

क्‍या है ब्‍लैक राइस या काला चावल?
काला चावल सामान्‍य तौर पर आम सफेद या भूरे राइस जैसा ही होता है. इसकी शुरुआती खेती चीन प्रांत में होती थी. भारत में सबसे पहले इसकी खेती असम और मणिपुर में शुरू हुई. काला चावल एंटी-ऑक्सीडेंट के गुणों से भरपूर माना जाता है, कॉफी और चाय से भी ज्यादा. इसके चलते बॉडी डि‍टॉक्स होती है और कई तरह की सेहत संबंधी परेशानि‍यां दूर रहती हैं. इसे कैंसर के इलाज के लिए सब से ज्यादा उपयोगी माना जाता है. आम सफेद चावल के मुकाबले इसमें ज्‍यादा विटामिन B और E के साथ कैल्शिमय, मैगनीशियम, आयरन और जिंक की भी मात्रा ज्‍यादा होती है.

Intro:sammry- प्रगतिशील किसान ने उत्पादन की काला चावल कभी चाइना के राजा महाराजाओं के लिए उत्पादित किया जाता था काला चावल। एंकर- कभी चाइना के राजा महाराजाओं के लिए खाने के लिए उत्पादित होने वाले काला चावल अब उत्तराखंड में भी पैदा हो सकता है। फिलहाल काला चावल का उत्पादन भारत के मणिपुर, असम और मध्य प्रदेश के कुछ किसान उत्पादन कर रहे हैं। लेकिन हल्द्वानी के गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने उत्तराखंड में पहली बार काला चावल का उत्पादन किया है। काला चावल औषधि और पोस्टिक युक्त है।


Body:गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ऑर्गेनिक खेती के साथ-साथ कृषि के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दे चुके हैं। नरेंद्र मेहरा अब उत्तराखंड में काले चावल का उत्पादन का काम शुरू किया है। उन्होंने बताया कि काले चावल का उत्पादन सबसे पहले चाइना में हुआ। काला चावल वहां के राजा महाराजा केवल खाते थे और किसी अन्य को खाने पर प्रतिबंध था। फिलहाल काला चावल का उत्पादन असम मणिपुर और मध्य प्रदेश के किसान कर रहे हैं उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश के एक किसान से उन्होंने कुछ भेज मंगाया और आज उस बीज को यहां लगाकर करीब डेढ़ कुंटल काला चावल धान का उत्पादन कर चुके हैं और उसको बीज के लिए संरक्षित कर दिया है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में पहली बार ऐसा किया गया है जहां काला चावल का उत्पादन किया गया है उन्होंने कहा कि पंतनगर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी इस काला चावल को काफी सराहा है। उन्होंने बताया कि इस चावल में पौष्टिकता के साथ-साथ औषधि गुण भी है जिसके चलते इस चावल की डिमांड खूब हो रही है। उन्होंने बताया कि इस धान की बीच की कीमत करीब 18 सौ रुपए प्रति किलो की है।धान की ऑर्गेनिक तरीके से उत्पादन किए जाने पर ₹600 प्रति किलो के रेट से चावल की डिमांड है ।


Conclusion:नरेंद्र मेहरा ने कहा कि प्रदेश सरकार काले चावल को बढ़ावा दें और उत्पादन के लिए किसानों को जागरूक करें तो किसानों की आय में खासा वृद्धि होगी । उन्होंने सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार उत्तराखंड के किसानों को काला चावल धान का बीज उपलब्ध कराया जिससे कि किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकें। बाइट- नरेंद्र मेहरा प्रगतिशील किसान
Last Updated : Nov 22, 2019, 1:36 PM IST
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