हल्द्वानी: उत्तराखंड राज्य गठन को 21 साल पूरे हो चुके हैं. इन 21 सालों में जहां प्रदेश ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं तो वहीं वर्तमान स्थिति कुछ यह है कि विकास की तेज दौड़ के बीच साल दर साल प्रदेश में बेशकीमती कृषि भूमि भी कम होती जा रही है. अब धीरे-धीरे उत्तराखंड की उपजाऊ जमीनों पर शहरीकरण होना शुरू हो गया है. जिसका नतीजा है कि पिछले 15 सालों में 20,6,025 हेक्टेयर उपजाऊ भूमि कम हो गई है.
बता दें कि, वर्ष 2004-5 में पूरे प्रदेश में 12,34,539 हेक्टेयर भूमि में फसलों की बुआई हुआ करती थी. वर्तमान समय में 10,28,514 हेक्टेयर भूमि पर कृषि का काम हो रहा है. इसके अलावा 3,28,323 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य नहीं है जो बेकार है, जबकि 1,85,704 हेक्टेयर ऊसर भूमि भी है.
साल दर साल आंकड़ों की बात करें तो 2004-5 में 12,34,539 हेक्टेयर में 2005-6 में 12,12,342 हेक्टेयर, 2006-7 में 12,12,309 हेक्टेयर वर्ष 2007-8 में 11,87,409 हेक्टेयर, 2008-9 में 11,93,197 हेक्टेयर, 2009-10 में 11,66,380, 2010-11 में 11,69,697, 2011-12 में 11,31,804 हेक्टेयर 2012 -13 में 11,24,404 हेक्टेयर, 2013-14 में 10,99,185 हेक्टेयर 2014-15 में 10,96,834 हेक्टेयर, 2015-16 में 10,69,176 हेक्टेयर, 2016-17 में 10,81,795 हेक्टेयर 2017-18 में 10,59,531 हेक्टेयर, 2018-19 में 10,29,014 हेक्टेयर जबकि 2019-20 में 10,28,514 हेक्टेयर भूमि पर कृषि की जा रही है.
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संयुक्त निदेशक कृषि विभाग प्रदीप कुमार का कहना है कि लगातार घटती उपजाऊ भूमि का मुख्य कारण लगातार हो रहे शहरीकरण और औद्योगिकीकरण है. विभाग द्वारा उत्पादकता बढ़ाए जाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि उपजाऊ भूमि के क्षेत्रफल में गिरावट हुई है लेकिन नई तकनीकी और बेहतर बीज और खाद उपलब्ध कराकर उत्पादकता बढ़ाए जाने का प्रयास किए जा रहा है.