हल्द्वानी: हिंदू तीर्थ स्थलों में भगवान शिव की तपोस्थली मानसरोवर यात्रा देश की सबसे दुर्गम और कठिन यात्रा मानी जाती है. इस यात्रा में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए तकरीबन एक महीने का वक्त लगता है. ऐसे में कहा जाता है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा उसी को नसीब होती है जिसको भगवान शिव पुकारते हैं. यही नहीं कहा जाता है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान जिन यात्रियों की मौत होती है, वह स्वर्ग जाते हैं.
वहीं, कैलाश मानसरोवर यात्रा करने के लिए हर साल हजारों लोग आवेदन करते हैं लेकिन किस्मत वाले ही यात्रा करने का मौका मिलता है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्ष 1981 से लेकर वर्ष 2019 तक कैलाश मानसरोवर यात्रा में 478 यात्रियों का दल गया है. जिसमें 17,794 यात्रियों ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर भगवान शिव का दर्शन किए.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा संचालित कैलाश मानसरोवर यात्रा अंतर्गत वर्ष 2003 से लेकर 2015 तक यात्रा के दौरान छह यात्रियों की हृदय गति रुकने , यात्रा के दौरान पैर फिसल कर गिर और बीमारी के चलते 6 लोगों की मौत हुई है.
वहीं, वर्ष 2003 में सातवें दल में एक यात्री, 2007 में तीसरे दल की एक यात्री 2007 में नौवे में एक यात्री, 2009 चौदवे दल की एक यात्री 2010 चौथे दल में 1 यात्री और 2015 के प्रथम दल में एक यात्री की मौत हुई है. जानकारी के मुताबिक इस यात्रा में विदेशी यात्री प्रति भाग नहीं ले सकते हैं.
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आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत गोनिया का कहना है कि हिंदुओं के सबसे पवित्र यात्रा कैलाश मानसरोवर यात्रा को सरकार को और सरल और सुगम बनाने की आवश्यकता है. जिससे की ज्यादा से ज्यादा लोग कैलाश मानसरोवर यात्रा का दर्शन कर सकें. जिससे की उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा मिले.