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पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की 134वीं जयंती आज, जानिए राजनीतिक सफरनामा - यूपी के पहले सीएम

आजादी की लड़ाई के एक सिपाही भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत भी थे. जिन्होंने अपने संघर्षों से राजनीतिक को नई दिशा दी. पंडित गोविंद बल्लभ पंत स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ एक कुशल अधिवक्ता और प्रशासक भी रहे .

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पंडित गोविन्द बल्लभ पंत
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Published : Sep 10, 2021, 10:12 AM IST

Updated : Sep 10, 2021, 11:42 AM IST

हल्द्वानी: भारत रत्न (Bharat Ratna) पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Pandit Govind Ballabh Pant) की 134 वीं जयंती आज है. पूरे प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जयंती को मनाया जा रहा है. जयंती के अवसर पर हल्द्वानी पंत पार्क में जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों ने पंडित गोविंद बल्लभ की मूर्ति पर माल्यापर्ण कर श्रद्धांजलि दी और उनके मार्ग पर चलने का संकल्प लेकर देश के विकास का संकल्प लिया. इस मौके पर गोविंद बल्लभ पंत जयंती के संयोजक गोपाल सिंह रावत और हल्द्वानी मेयर डॉक्टर जोगेंद्र रौतेला ने माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज 134वी जयंती है. उनकी जयंती को पूरे देश के साथ आज उत्तराखंड में भी धूमधाम से मनाई जा रही है. 10 सितम्बर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में जन्मे पंडित गोविंद बल्लभ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और जाने-माने वकील के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री से लेकर भारत के गृह मंत्री का पदभार संभाल, भारत रत्न तक का सफर संघर्ष भरा रहा. आज उनके 134वी जयंती के मौके पर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में भव्य कार्यक्रम कर उनको याद किया जा रहा है. महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 1887 को अल्मोड़ा के खूंट (धामस) गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ.

पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की 134वीं जयंती आज.

गोविंद बल्लभ पंत के पिता का नाम मनोरथ पंत और मां का नाम गोविंदी बाई पंत था. छोटी सी उम्र में गोविंद बल्लभ पंत के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी परवरिश उनके नाना बद्री दत्त जोशी ने की गोविंद बल्लभ पंत ने 10 वर्ष की उम्र तक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की. 1897 तक उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रामजे कॉलेज से की. जिसके बाद 12 वर्ष की आयु में कक्षा 7 में पढ़ाई करते हुए उनकी शादी गंगा देवी से हो गई. जिसके बाद उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा अल्मोड़ा से की.

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1905 में गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा छोड़ इलाहाबाद चले गए, जहां उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और कांग्रेस के स्वयंसेवक के तौर पर काम करते रहे. शिक्षा में उनकी रुचि और लगन के परिणाम स्वरूप वर्ष 1909 में उनको कानून की शिक्षा में सर्वोच्च अंकों से उपलब्धि हासिल की. उनके लगन को देखते हुए कॉलेज से लेम्सडेन अवार्ड से सम्मानित किया गया. जिसके बाद गोविंद बल्लभ पंत वापस अल्मोड़ा आ गए और अल्मोड़ा से उन्होंने वकालत की शुरूआत की. वर्ष 1909 में उनके पुत्र की बीमारी से मौत हो गई, जिसके बाद कुछ दिन बाद पत्नी गंगा देवी की भी मृत्यु हो गई.

उस समय उनकी उम्र 23 वर्ष थी, जिसके बाद परिवार वालों ने 1912 में उनकी दूसरी विवाह अल्मोड़ा की रहने वाली कलादेवी से कराया. लेकिन दो साल बाद 1914 में दूसरी पत्नी कमला देवी की भी मौत हो गई. जिसके बाद उन्होंने 1916 में कलावती देवी से तीसरी शादी की. इस बीच गोविंद बल्लभ पंत का नैनीताल और काशीपुर आना-जाना शुरू हो गया है और काशीपुर में उन्होंने 1914 में प्रेम सभा स्थापना कर शिक्षा समिति के अध्यक्ष बने और निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा राष्ट्रीय आंदोलन की शुरूआत की. दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के रास्ते उन्होंने खुली राजनीति शुरू की.

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9 अगस्त 1924 को काकोरी कांड में उन्होंने मुकदमे की पैरवी पूरी जी जान से की. 1930 में नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून में जेल भी गए. गोविंद बल्लभ पंत ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में बढ़-चढ़ भाग लिया. वर्ष 1921, 1930, 1932 और 1934 में करीब 7 साल तक जेल में रहे. 17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवंबर 1939 टाको ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रांत यानी यूपी के पहले मुख्यमंत्री बने हैं जिसके बाद दोबारा उन्हें वहीं दायित्व सौंपा गया. 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947तक संयुक्त प्रांत यूपी के मुख्यमंत्री बने रहे. जब भारतवर्ष का अपना संविधान बना और संयुक्त प्रांत का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर तीसरी बार उन्हें उसी पद के लिए सहमति से मुख्यमंत्री बनाया गया. इस प्रकार स्वतंत्र भारत के 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसंबर 1954 तक वो मुख्यमंत्री बने रहे.
सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के बाद 10 जनवरी 1955 को केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार दिया गया. सन 1957 में गणतंत्र दिवस पर महान देशभक्त कुशल प्रशासक भारतीय संविधान के ज्ञाता, जमीदारी प्रथा को खत्म करने और हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाए जाने पर उन्हें सर्वोच्च उपाधि भारत से विभूषित किया गया. 7 मई 1961 को हृदय गति रुकने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. उस समय वह भारत के केंद्रीय गृहमंत्री थे और गोविंद बल्लभ पंत भारत रत्न प्राप्त करने वाले उत्तराखंड के पहले व्यक्ति थे. इसलिए आज भी गोविंद बल्लभ पंत को हिमालय पुत्र और भारत रत्न के नाम से जाना जाता है.

हल्द्वानी: भारत रत्न (Bharat Ratna) पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Pandit Govind Ballabh Pant) की 134 वीं जयंती आज है. पूरे प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की जयंती को मनाया जा रहा है. जयंती के अवसर पर हल्द्वानी पंत पार्क में जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों ने पंडित गोविंद बल्लभ की मूर्ति पर माल्यापर्ण कर श्रद्धांजलि दी और उनके मार्ग पर चलने का संकल्प लेकर देश के विकास का संकल्प लिया. इस मौके पर गोविंद बल्लभ पंत जयंती के संयोजक गोपाल सिंह रावत और हल्द्वानी मेयर डॉक्टर जोगेंद्र रौतेला ने माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए.

उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की आज 134वी जयंती है. उनकी जयंती को पूरे देश के साथ आज उत्तराखंड में भी धूमधाम से मनाई जा रही है. 10 सितम्बर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में जन्मे पंडित गोविंद बल्लभ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और जाने-माने वकील के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री से लेकर भारत के गृह मंत्री का पदभार संभाल, भारत रत्न तक का सफर संघर्ष भरा रहा. आज उनके 134वी जयंती के मौके पर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में भव्य कार्यक्रम कर उनको याद किया जा रहा है. महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 1887 को अल्मोड़ा के खूंट (धामस) गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ.

पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की 134वीं जयंती आज.

गोविंद बल्लभ पंत के पिता का नाम मनोरथ पंत और मां का नाम गोविंदी बाई पंत था. छोटी सी उम्र में गोविंद बल्लभ पंत के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी परवरिश उनके नाना बद्री दत्त जोशी ने की गोविंद बल्लभ पंत ने 10 वर्ष की उम्र तक शिक्षा घर पर ही ग्रहण की. 1897 तक उन्होंने प्राथमिक शिक्षा रामजे कॉलेज से की. जिसके बाद 12 वर्ष की आयु में कक्षा 7 में पढ़ाई करते हुए उनकी शादी गंगा देवी से हो गई. जिसके बाद उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा अल्मोड़ा से की.

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1905 में गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा छोड़ इलाहाबाद चले गए, जहां उन्होंने वकालत की पढ़ाई की और कांग्रेस के स्वयंसेवक के तौर पर काम करते रहे. शिक्षा में उनकी रुचि और लगन के परिणाम स्वरूप वर्ष 1909 में उनको कानून की शिक्षा में सर्वोच्च अंकों से उपलब्धि हासिल की. उनके लगन को देखते हुए कॉलेज से लेम्सडेन अवार्ड से सम्मानित किया गया. जिसके बाद गोविंद बल्लभ पंत वापस अल्मोड़ा आ गए और अल्मोड़ा से उन्होंने वकालत की शुरूआत की. वर्ष 1909 में उनके पुत्र की बीमारी से मौत हो गई, जिसके बाद कुछ दिन बाद पत्नी गंगा देवी की भी मृत्यु हो गई.

उस समय उनकी उम्र 23 वर्ष थी, जिसके बाद परिवार वालों ने 1912 में उनकी दूसरी विवाह अल्मोड़ा की रहने वाली कलादेवी से कराया. लेकिन दो साल बाद 1914 में दूसरी पत्नी कमला देवी की भी मौत हो गई. जिसके बाद उन्होंने 1916 में कलावती देवी से तीसरी शादी की. इस बीच गोविंद बल्लभ पंत का नैनीताल और काशीपुर आना-जाना शुरू हो गया है और काशीपुर में उन्होंने 1914 में प्रेम सभा स्थापना कर शिक्षा समिति के अध्यक्ष बने और निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा राष्ट्रीय आंदोलन की शुरूआत की. दिसंबर 1921 में महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के रास्ते उन्होंने खुली राजनीति शुरू की.

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9 अगस्त 1924 को काकोरी कांड में उन्होंने मुकदमे की पैरवी पूरी जी जान से की. 1930 में नमक सत्याग्रह में भी उन्होंने भाग लिया और मई 1930 में देहरादून में जेल भी गए. गोविंद बल्लभ पंत ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में बढ़-चढ़ भाग लिया. वर्ष 1921, 1930, 1932 और 1934 में करीब 7 साल तक जेल में रहे. 17 जुलाई 1937 से लेकर 2 नवंबर 1939 टाको ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रांत यानी यूपी के पहले मुख्यमंत्री बने हैं जिसके बाद दोबारा उन्हें वहीं दायित्व सौंपा गया. 1 अप्रैल 1946 से 15 अगस्त 1947तक संयुक्त प्रांत यूपी के मुख्यमंत्री बने रहे. जब भारतवर्ष का अपना संविधान बना और संयुक्त प्रांत का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश रखा गया तो फिर तीसरी बार उन्हें उसी पद के लिए सहमति से मुख्यमंत्री बनाया गया. इस प्रकार स्वतंत्र भारत के 26 जनवरी 1950 से लेकर 27 दिसंबर 1954 तक वो मुख्यमंत्री बने रहे.
सरदार वल्लभ भाई पटेल की मृत्यु के बाद 10 जनवरी 1955 को केंद्रीय गृह मंत्री का पदभार दिया गया. सन 1957 में गणतंत्र दिवस पर महान देशभक्त कुशल प्रशासक भारतीय संविधान के ज्ञाता, जमीदारी प्रथा को खत्म करने और हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाए जाने पर उन्हें सर्वोच्च उपाधि भारत से विभूषित किया गया. 7 मई 1961 को हृदय गति रुकने के कारण उनकी मृत्यु हो गई. उस समय वह भारत के केंद्रीय गृहमंत्री थे और गोविंद बल्लभ पंत भारत रत्न प्राप्त करने वाले उत्तराखंड के पहले व्यक्ति थे. इसलिए आज भी गोविंद बल्लभ पंत को हिमालय पुत्र और भारत रत्न के नाम से जाना जाता है.

Last Updated : Sep 10, 2021, 11:42 AM IST
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