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हरिद्वार महाकुंभ का 'महामना' नाता, 1915 में रचा गया था इतिहास

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Published : Jan 18, 2021, 5:00 AM IST

Updated : Apr 11, 2021, 9:20 PM IST

वर्ष 1915 के कुंभ मेले में हरिद्वार की धरती पर दो ऐसे काम हुए, जो हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए हैं. इतिहास के इन पन्नों का नाता भारतरत्न महामना मदन मोहन मालवीय के नाम से जुड़ा हुआ है.

Malaviya Haridwar Kumbh Connection
हरिद्वार महाकुंभ का 'महामना' नाता

देहरादून/हरिद्वार: 1839 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड के शासनकाल में गंगा पर बांध बनाने के लिए प्रोफेसर बीटी कौटले ने हरिद्वार में एक सर्वेक्षण किया. 1854 में अपर गंगा कैनाल और 1878 में लोवर गंगा कैनाल का कार्य पूरा हुआ. कौटले ने हिंदू भावना का सम्मान करते हुए सभी स्थानों पर गंगा के अविरल प्रवाह बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किया गया था. 1909 में ब्रिटिश सरकार ने हरिद्वार के भीमगोडा में गंगा पर नए बांध का प्रस्ताव स्वीकार करने के साथ वर्ष 1912 पर इस पर काम शुरू किया.

हिंदू समुदाय के कड़े विरोध के चलते 5 नवंबर 1914 में संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स मेस्टन ने गंगा रक्षा का समझौता किया. इस समझौते के पीछे ब्रिटिश सरकार की सोची-समझी चाल थी. 1915 के शुरुआत में हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन होना था. इस कारण हिंदू समुदाय आंदोलन को रोकने पर सहमत हो गए. कुंभ मेले के बाद सरकार ने समझौते के विपरीत बांध बनाने का काम जारी रखा, जिसका लगातार विरोध होता रहा.

गंगा रक्षा आंदोलन में कूदे महामना

गंगा को बांधने से रोकने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय गंगा रक्षा आंदोलन में कूद गए. हरिद्वार में गंगा पर बांध निर्माण का पुरोहित लगातार विरोध कर रहे थे. पंडा समाज यह कहते हुए आंदोलन कर रहे थे कि बंधे जल में अस्थि प्रवाह एवं अन्य कर्मकांड शास्त्रीय दृष्टि से वर्जित हैं. पुरोहितों के आंदोलन का नेतृत्व महामना मदन मोहन मालवीय कर रहे थे.

1905 में महामना ने हरिद्वार में गंगा महासभा की स्थापना की. उसके बाद वे काशी हिंदू विवि के स्थापना में लग गए. 1916 में बीएचयू के स्थापना के बाद वे ऋषिकुल ब्रहृमचर्याश्रम के कार्यक्रम में भाग लेने हरिद्वार गए, तब उन्हें पता चला कि ब्रिटिश सरकार गंगा बांध बनाकर गंगा के अविरल प्रवाह को रोकना चाहती थी.

ये भी पढ़ें: कोरोना: हरिद्वार महाकुंभ के स्वरूप पर संशय, अंतिम चरण में तैयारियां

1915 में जब कुंभ लगा तो महामना ने कुंभ में आए राजा महाराजाओं का सहयोग लेने के लिए हरिद्वार में डेरा जमा दिया था. बताते हैं कि छोटे-बड़े 25 राजघराने के नरेश उस कुंभ में गंगा स्नान के लिए आए थे. महामना और पुरोहितों ने तीर्थत्व की रक्षा के लिए राजाओं को बांध विरोधी आंदोलन में भाग लेने के लिए राजी कर लिया. कुंभ के बाद बांध विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा और कई रियासतों ने बांध का कार्य रोकने के लिए अपनी सेनाएं हरिद्वार भेज दी थी. 18-19 दिसंबर 1916 को हरिद्वार में एक कॉन्फ्रेंस बुलाई गई. जिसमें जयपुर, ग्वालियर, बीकानेर, पटियाला, अलवर, बनारस के महाराजा सहित महामना मालवीय और ब्रिटिश सरकार एवं जनता के प्रतिनिधि मौजूद थे.

अपर गंगा नहर हजारों मील बहती है. लेकिन उसके किनारे घाट नहीं हैं. नहर के किनारे रहने वाले लोग गंगा में ही स्नान करते हैं. इस प्रकार गंगा का प्रवाह अविरल रहना आवश्यक है.
-कॉन्फ्रेंस में महामना मदन मोहन मालवीय

मालवीय जी की बात और कॉन्फ्रेंस में विचार-विमर्श के बाद 19 दिसंबर 1916 को गंगा रक्षा का समझौता पास हुआ और 26 सितंबर 1917 से आदेश लागू हुआ. शासनादेश के पैरा-7 में लिखा गया है कि 'इस आदेश के द्वारा इस बात की गारंटी दी जाती है कि गंगा का अविरल प्रवाह जारी रहेगा. चैनल नंबर एक से न्यूनतम 1 हजार क्यूसेक जल का प्रवाह होता रहेगा.

आखिरी दिनों में समौझते के लिए चिंतित रहे महामना

अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी महामना 1916 के समझौते की रक्षा के लिए चिंतित थे. ब्रिटिश सरकार 1916 के समझौते का पालन किया. लेकिन गंगा पर बांध बनाने के काम स्वतंत्र भारत में बड़े पैमाने पर हुआ. स्वतंत्र भारत में कई ऐसे बांध बने हैं, जिससे गंगा के अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है. अपने उद्गगम गौमुख से लेकर गंगा सागर तक जाने वाली पतित पावनी गंगा आज एक बार फिर महामना के प्रयासों को खोज रही है.

अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना

1915 के कुंभ में महामना मालवीय ने मेला शिविर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना की. महामना के बुलावे पर वीर सावरकर, केशव राव बलीराम हेडगेवार और भाई परमानंद जैसी हस्तियां उस बैठक में शामिल हुईं. दरअसल, हिंदू सभा की स्थापना 1908 में पंजाब में हुई थी. हरिद्वार कुंभ में उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू महासभा का स्वरूप प्रदान किया. समय के साथ इसी महासभा से निकलकर 1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी.

देहरादून/हरिद्वार: 1839 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल लॉर्ड ऑकलैंड के शासनकाल में गंगा पर बांध बनाने के लिए प्रोफेसर बीटी कौटले ने हरिद्वार में एक सर्वेक्षण किया. 1854 में अपर गंगा कैनाल और 1878 में लोवर गंगा कैनाल का कार्य पूरा हुआ. कौटले ने हिंदू भावना का सम्मान करते हुए सभी स्थानों पर गंगा के अविरल प्रवाह बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किया गया था. 1909 में ब्रिटिश सरकार ने हरिद्वार के भीमगोडा में गंगा पर नए बांध का प्रस्ताव स्वीकार करने के साथ वर्ष 1912 पर इस पर काम शुरू किया.

हिंदू समुदाय के कड़े विरोध के चलते 5 नवंबर 1914 में संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेम्स मेस्टन ने गंगा रक्षा का समझौता किया. इस समझौते के पीछे ब्रिटिश सरकार की सोची-समझी चाल थी. 1915 के शुरुआत में हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन होना था. इस कारण हिंदू समुदाय आंदोलन को रोकने पर सहमत हो गए. कुंभ मेले के बाद सरकार ने समझौते के विपरीत बांध बनाने का काम जारी रखा, जिसका लगातार विरोध होता रहा.

गंगा रक्षा आंदोलन में कूदे महामना

गंगा को बांधने से रोकने के लिए पंडित मदन मोहन मालवीय गंगा रक्षा आंदोलन में कूद गए. हरिद्वार में गंगा पर बांध निर्माण का पुरोहित लगातार विरोध कर रहे थे. पंडा समाज यह कहते हुए आंदोलन कर रहे थे कि बंधे जल में अस्थि प्रवाह एवं अन्य कर्मकांड शास्त्रीय दृष्टि से वर्जित हैं. पुरोहितों के आंदोलन का नेतृत्व महामना मदन मोहन मालवीय कर रहे थे.

1905 में महामना ने हरिद्वार में गंगा महासभा की स्थापना की. उसके बाद वे काशी हिंदू विवि के स्थापना में लग गए. 1916 में बीएचयू के स्थापना के बाद वे ऋषिकुल ब्रहृमचर्याश्रम के कार्यक्रम में भाग लेने हरिद्वार गए, तब उन्हें पता चला कि ब्रिटिश सरकार गंगा बांध बनाकर गंगा के अविरल प्रवाह को रोकना चाहती थी.

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1915 में जब कुंभ लगा तो महामना ने कुंभ में आए राजा महाराजाओं का सहयोग लेने के लिए हरिद्वार में डेरा जमा दिया था. बताते हैं कि छोटे-बड़े 25 राजघराने के नरेश उस कुंभ में गंगा स्नान के लिए आए थे. महामना और पुरोहितों ने तीर्थत्व की रक्षा के लिए राजाओं को बांध विरोधी आंदोलन में भाग लेने के लिए राजी कर लिया. कुंभ के बाद बांध विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा और कई रियासतों ने बांध का कार्य रोकने के लिए अपनी सेनाएं हरिद्वार भेज दी थी. 18-19 दिसंबर 1916 को हरिद्वार में एक कॉन्फ्रेंस बुलाई गई. जिसमें जयपुर, ग्वालियर, बीकानेर, पटियाला, अलवर, बनारस के महाराजा सहित महामना मालवीय और ब्रिटिश सरकार एवं जनता के प्रतिनिधि मौजूद थे.

अपर गंगा नहर हजारों मील बहती है. लेकिन उसके किनारे घाट नहीं हैं. नहर के किनारे रहने वाले लोग गंगा में ही स्नान करते हैं. इस प्रकार गंगा का प्रवाह अविरल रहना आवश्यक है.
-कॉन्फ्रेंस में महामना मदन मोहन मालवीय

मालवीय जी की बात और कॉन्फ्रेंस में विचार-विमर्श के बाद 19 दिसंबर 1916 को गंगा रक्षा का समझौता पास हुआ और 26 सितंबर 1917 से आदेश लागू हुआ. शासनादेश के पैरा-7 में लिखा गया है कि 'इस आदेश के द्वारा इस बात की गारंटी दी जाती है कि गंगा का अविरल प्रवाह जारी रहेगा. चैनल नंबर एक से न्यूनतम 1 हजार क्यूसेक जल का प्रवाह होता रहेगा.

आखिरी दिनों में समौझते के लिए चिंतित रहे महामना

अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी महामना 1916 के समझौते की रक्षा के लिए चिंतित थे. ब्रिटिश सरकार 1916 के समझौते का पालन किया. लेकिन गंगा पर बांध बनाने के काम स्वतंत्र भारत में बड़े पैमाने पर हुआ. स्वतंत्र भारत में कई ऐसे बांध बने हैं, जिससे गंगा के अस्तिव पर खतरा मंडरा रहा है. अपने उद्गगम गौमुख से लेकर गंगा सागर तक जाने वाली पतित पावनी गंगा आज एक बार फिर महामना के प्रयासों को खोज रही है.

अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना

1915 के कुंभ में महामना मालवीय ने मेला शिविर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की स्थापना की. महामना के बुलावे पर वीर सावरकर, केशव राव बलीराम हेडगेवार और भाई परमानंद जैसी हस्तियां उस बैठक में शामिल हुईं. दरअसल, हिंदू सभा की स्थापना 1908 में पंजाब में हुई थी. हरिद्वार कुंभ में उसे राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू महासभा का स्वरूप प्रदान किया. समय के साथ इसी महासभा से निकलकर 1925 में दशहरे के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी.

Last Updated : Apr 11, 2021, 9:20 PM IST
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