हरिद्वार: महिला भारतीय हॉकी टीम भले ही चौथे नंबर पर रही हो, लेकिन ओलंपिक में जिस तरह से पूरी टीम ने प्रदर्शन किया है. उसके बाद पूरा देश इन महिलाओं की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है. ओलंपिक के दौरान अगर सबसे ज्यादा किसी की चर्चा रहीं तो वह 'हैट्रिक गर्ल' वंदना कटारिया ही थीं.
हरिद्वार जनपद के रोशनाबाद के एक छोटे से गांव में रहने वाली वंदना कटारिया ने बहुत तंगी में अपना जीवन यापन किया है, लेकिन आज उनके गांव में जश्न का माहौल है. ऐसा नहीं है कि पूरे गांव में सिर्फ वंदना ही हैं, जिन्होंने हॉकी का शौक रखते हुए ओलंपिक तक का सफर तय किया है. रोशनाबाद गांव में बहुत सी छात्राएं हैं, जो स्टेडियम में पसीना बहाकर वंदना कटारिया की तरह बनना चाहती हैं.
वंदना कटारिया का गांव डीएम, एसएसपी ऑफिस और विकास भवन से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है. वंदना कटारिया के गांव में अधिकतर मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं, जो सिडकुल में काम करते हैं. ईटीवी भारत की टीम वंदना कटारिया के गांव में पहुंची तो देखा कि वंदना के घर जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं थी. उनके घर तक जाने किए लोगों को या तो टू-व्हीलर का प्रयोग करना पड़ेगा या फिर पैदल ही जाना पड़ेगा.
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वंदना के घर की तरफ जाने वाली सड़क कच्ची है, सड़क में बड़े-बड़े गड्ढे हैं, जिनमें बारिश का पानी भर जाता है. कुछ दूरी चलने पर संकरी गलियां, चारों तरफ फैला कूड़ा और टूटी-फूटी सड़क के साथ ऐसी बदबू आती है कि किसी इंसान से खड़ा भी हुआ न जाए.
ईटीवी भारत की टीम ने देखा कि वंदना कटारिया के गांव में ग्राउंड के अभाव के कारण कुछ छात्राएं छत पर प्रैक्टिस कर रही थीं. लगभग 25 से 30 छात्राएं स्कूल से आने के बाद इसी तरह प्रैक्टिस करती हैं. यह पूरा गांव इतना पिछड़ा हुआ है कि कोई भी परिवार अपने बच्चों को पहले घर से बाहर निकालने की सोचता भी नहीं था. लेकिन वंदना कटारिया के हॉकी टीम में चयन होने के बाद उनके द्वारा एशिया कप में कप्तानी करने के बाद और अब ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन करने के बाद अब इस गांव का हर परिवार अपनी बेटी को वंदना कटारिया बनाना चाहता है.
किसी भी खिलाड़ी के खेल को निखारने के लिए जरूरत होती है अच्छे ग्राउंड की, अच्छे ट्रेनर की खानपान और आसपास के आबोहवा की. लेकिन वंदना कटारिया के गांव का हाल बेहद खराब हैं. गांव में एक स्टेडियम है, जो पिछले 2 साल से बंद पड़ा है. जगह-जगह कूड़े के ढेर हैं और स्टेडियम तक जाने के लिए गांव की लड़कियों को कोई सवारी नहीं मिलती. शाम को प्रैक्टिस खत्म होने के बाद सड़कों पर अंधेरा हो जाता है.
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वंदना कटारिया की तरह ही 6 साल की उम्र से हॉकी सीख रही 11 साल की गुनगुन कहतीं हैं कि वह वंदना कटारिया के नाम की टीशर्ट पहनकर ही प्रैक्टिस करती हैं. उन्हें बड़े होकर वंदना कटारिया की तरह ही बनना है. वह सुबह और शाम प्रैक्टिस के लिए छत का भी इस्तेमाल करती हैं.
गुनगुन की तरह ही और भी बच्चे हैं, जिनका कहना है कि अगर अच्छी सहूलियत होगी तो खिलाड़ियों की ट्रेनिंग और मानसिक फिटनेस ठीक रहेगा. ऐसे में गांव की बेटियों ने सरकार से आग्रह किया है कि उनके गांव में सफाई, सड़क और अच्छे कोच के साथ साथ अच्छे ग्राउंड की व्यवस्था की जाए.
वंदना कटारिया के भाई पंकज कटारिया कहते हैं कि वंदना के नेशनल टीम में सेलेक्ट हो जाने के बाद इस पूरे गांव का कुछ हद तक कायाकल्प हुआ है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है. जगह-जगह कूड़े के ढेर हैं. आसपास के गांव में हर साल ऐसी बीमारी आ जाती है, जिससे कई बार बच्चों को अस्पताल तक पहुंचाने का मौका नहीं मिलता. उनका कहना है कि अगर सफाई व्यवस्था, ग्राउंड और अच्छे कोच की व्यवस्था होगी तो वंदना कटारिया की तरह और भी खिलाड़ी इस गांव से निकल सकते हैं.
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वंदना कटारिया की मां का कहना है कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए. उन्होंने देश के पीएम नरेंद्र मोदी से यह आग्रह किया है कि उनके घर और गांव में कूड़ा उठाने वाले सफाई कर्मियों की व्यवस्था की जानी चाहिए.
वंदना कटारिया के घर के नजदीक रोशनाबाद क्रिकेट स्टेडियम में तैनात क्रीडा अधिकारी ने बताया कि इस ग्राउंड में फुटबॉल क्रिकेट के लिए व्यवस्था की गई है. हॉकी के लिए इंटरनेशनल लेवल का एक ग्राउंड भी बनाया गया है. हालांकि वह अभी इस्तेमाल में नहीं है. इसके साथ ही खिलाड़ियों के रुकने की व्यवस्था भी ग्राउंड में की जा रही है.
खेल अधिकारी बताते हैं कि वंदना कटारिया के नेशनल टीम में अच्छे प्रदर्शन के बाद कई बच्चे अचानक हॉकी के प्रति आकर्षित हुए हैं. अब ऐसे बच्चों की संख्या अधिक हो रही है, जो हॉकी सीखना चाहते हैं. ग्राउंड में 2 कोच की व्यवस्था है लेकिन अलग से हॉकी का कोच वर्तमान में नहीं है.