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शांतिकुंज की स्थापना के पचास वर्ष पूरे होने पर स्थापित होंगे स्वर्ण जयंती वन - स्वर्ण जयंती वनों की स्थापना

शांतिकुंज की स्थापना के स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में 30 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूरे देश में 50 स्थानों पर स्वर्ण जयंती वनों की स्थापना की जाएगी. अखिल विश्व गायत्री परिवार ये आयोजन करेगा.

अखिल विश्व गायत्री परिवार
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Published : Aug 26, 2021, 1:47 PM IST

हरिद्वार: अखिल विश्व गायत्री परिवार के मुख्यालय शांतिकुंज की स्थापना को 50 वर्ष पूर्ण होने पर पूरे देश में पचास स्थानों पर स्वर्ण जयंती वनों की स्थापना की जाएगी. शांतिकुंज से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में 30 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूरे देश में 50 स्थानों पर स्वर्ण जयंती वनों की स्थापना की जाएगी. इसके अंतर्गत एक साथ, एक समय पर तरुपुत्र रोपण महायज्ञ के माध्यम से हजारों स्थानों पर सामूहिक वृक्षारोपण किया जाएगा.

साथ ही जिन घरों में आंगन या छत उपलब्ध है, वहां माता भगवती की बाड़ी, ग्रीन जोन, गमलों में स्वास्थ्य वाटिका, लघु आरोग्य वाटिका भी स्थापित की जाएगी. कोविड-19 में दिवंगत परिजनों की स्मृति में वृक्षारोपण अपने जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ की स्मृति में वृक्षारोपण और छतों पर शाक वाटिका लगाने के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे. कार्यक्रम का ऑनलाइन संचालन शांतिकुंज से किया जाएगा.

पढ़ें: बागेश्वर में 11 सितंबर को होगा राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन

गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या ने बताया कि शांतिकुंज नवयुग के निर्माण की गंगोत्री बनकर उभरा है. व्यक्ति परिवार और समाज राष्ट्र के नव निर्माण के लिए विभिन्न साधनात्मक, प्रचारात्मक, सुधारात्मक और रचनात्मक कार्यों का निरंतर संचालन शांतिकुंज से किया जा रहा है. पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष दो हजार से वृक्ष गंगा अभियान के अंतर्गत पूरे देश में वृहद वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है. अभियान के अंतर्गत पौधों को पुत्र या मित्र रूप में गोद लेकर उन्हें स्मृति वन-उपवन में रोपित कर पालन पोषण किया जाता है. इस प्रकार अभी तक 250 से अधिक छोटी-बड़ी पहाड़ियों व मैदानों को हरा-भरा बनाया गया है. 2011 से अब तक 2 करोड़ से अधिक वृक्षों का रोपण किया जा चुका है.

शांतिकुंज हरिद्वार को जानें: शांतिकुंज आध्यात्मिक और सामाजिक संगठन ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार (एडब्ल्यूजीपी) का मुख्यालय है. यह हरिद्वार में 1971 में स्थापित किया गया. शांतिकुंज हरिद्वार को चैतन्य तीर्थ प्रखर, प्रज्ञा-सजल, श्रद्धा के रूप में जाना जाता है. शांतिकुंज हरिद्वार में स्थित एक सामाजिक और आध्यात्मिक जागृति के लिए एक परिषद या आश्रम है.

आचार्य श्रीराम शर्मा की समाधि है: शांतिकुंज आध्यात्मिक रूप से तीर्थस्थल केंद्र है, जिसमें करोड़ों लोगों के जीवन को धर्म निर्देश दिया जाता है और लंबे समय तक शांति कायम रखी जाती है. यह स्थान आचार्य श्रीराम शर्मा और उनकी पत्नी भगवती देवी शर्मा की समाधि स्थली है. अपने जीवनकाल में आचार्य श्रीराम शर्मा यहां श्रद्घालुओं से मिला करते थे. इसलिए यह शंतिकुंज का परम पवित्र स्थान माना जाता है.

शांतिकुंज के देवात्मा हिमालय मंदिर से उत्तराखंड के प्रमुख धामों के दर्शन होते हैं. साथ ही साथ इस स्थल में आप ध्यान लगा कर बैठ कर मानसिक शांति का एहसास कर सकते हैं. इस स्थल से सभी धर्म-संप्रदाय के पवित्र प्रतीक चिन्ह, जड़ी-बूटियों का दुर्लभ बाग और गायत्री परिवार की स्थापना से लेकर वर्तमान समय पर आधारित प्रदर्शनी देख सकते हैं.

1926 से जल रहा दीपक: शांतिकुंज के अन्दर गायत्री माता की मूर्ति के पास दीपक 1926 से निरंतर जल रहा है. इस स्थल में मां गायत्री के अनेकों रूपों के दर्शन कर देवी गायत्री के विराट स्वरूप को भी जाना जा सकता है. यहां लगभग 24 लाख (24,00,000) गायत्री मंत्र समर्पित आध्यात्मिक साधक द्वारा रोजाना गाए जाते हैं. लगभग 1000 लोग गायत्री यज्ञ में भाग लेते हैं. यह एक ऐसा केंद्र है जो कि दिव्य आध्यात्मिक सिद्धांतों पर आधारित लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करता है.

ऋषि परंपरा को पुनर्जीवन करने के लिए हिमालय के ऋषि सट्टा के मार्गदर्शन में शांतिकुंज की स्थापना की गई है.

शांतिकुंज की स्थापना 1971 में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के द्वारा जमीन के एक छोटे से टुकड़े में की गयी. बाद में यह गायत्री नगर के नाम पर एक बड़े क्षेत्र में फैल गया. यहां उनके मार्गदर्शन में कई उच्च स्तर के आध्यात्मिक शिविर आयोजित किए गए थे. 1998 में एक और परिसर 1/2 किमी उत्तर में गायत्रीकुंज के नाम से जोड़ा गया है . यह देव संस्कृति विश्वविद्यालय का परिसर है. 2 नवंबर 2000 में “श्रीजन संकल्प विभूति महायानंज” का आयोजन इस स्थान पर 12 वर्ष की “यूगंसंधी महापुराशरण” के पूरा होने पर किया गया था, जिसमें 4 लाख श्रद्धालु उपस्थित थे.

हरिद्वार: अखिल विश्व गायत्री परिवार के मुख्यालय शांतिकुंज की स्थापना को 50 वर्ष पूर्ण होने पर पूरे देश में पचास स्थानों पर स्वर्ण जयंती वनों की स्थापना की जाएगी. शांतिकुंज से प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में 30 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूरे देश में 50 स्थानों पर स्वर्ण जयंती वनों की स्थापना की जाएगी. इसके अंतर्गत एक साथ, एक समय पर तरुपुत्र रोपण महायज्ञ के माध्यम से हजारों स्थानों पर सामूहिक वृक्षारोपण किया जाएगा.

साथ ही जिन घरों में आंगन या छत उपलब्ध है, वहां माता भगवती की बाड़ी, ग्रीन जोन, गमलों में स्वास्थ्य वाटिका, लघु आरोग्य वाटिका भी स्थापित की जाएगी. कोविड-19 में दिवंगत परिजनों की स्मृति में वृक्षारोपण अपने जन्मदिन, विवाह की वर्षगांठ की स्मृति में वृक्षारोपण और छतों पर शाक वाटिका लगाने के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे. कार्यक्रम का ऑनलाइन संचालन शांतिकुंज से किया जाएगा.

पढ़ें: बागेश्वर में 11 सितंबर को होगा राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन

गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या ने बताया कि शांतिकुंज नवयुग के निर्माण की गंगोत्री बनकर उभरा है. व्यक्ति परिवार और समाज राष्ट्र के नव निर्माण के लिए विभिन्न साधनात्मक, प्रचारात्मक, सुधारात्मक और रचनात्मक कार्यों का निरंतर संचालन शांतिकुंज से किया जा रहा है. पर्यावरण संरक्षण के लिए वर्ष दो हजार से वृक्ष गंगा अभियान के अंतर्गत पूरे देश में वृहद वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है. अभियान के अंतर्गत पौधों को पुत्र या मित्र रूप में गोद लेकर उन्हें स्मृति वन-उपवन में रोपित कर पालन पोषण किया जाता है. इस प्रकार अभी तक 250 से अधिक छोटी-बड़ी पहाड़ियों व मैदानों को हरा-भरा बनाया गया है. 2011 से अब तक 2 करोड़ से अधिक वृक्षों का रोपण किया जा चुका है.

शांतिकुंज हरिद्वार को जानें: शांतिकुंज आध्यात्मिक और सामाजिक संगठन ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार (एडब्ल्यूजीपी) का मुख्यालय है. यह हरिद्वार में 1971 में स्थापित किया गया. शांतिकुंज हरिद्वार को चैतन्य तीर्थ प्रखर, प्रज्ञा-सजल, श्रद्धा के रूप में जाना जाता है. शांतिकुंज हरिद्वार में स्थित एक सामाजिक और आध्यात्मिक जागृति के लिए एक परिषद या आश्रम है.

आचार्य श्रीराम शर्मा की समाधि है: शांतिकुंज आध्यात्मिक रूप से तीर्थस्थल केंद्र है, जिसमें करोड़ों लोगों के जीवन को धर्म निर्देश दिया जाता है और लंबे समय तक शांति कायम रखी जाती है. यह स्थान आचार्य श्रीराम शर्मा और उनकी पत्नी भगवती देवी शर्मा की समाधि स्थली है. अपने जीवनकाल में आचार्य श्रीराम शर्मा यहां श्रद्घालुओं से मिला करते थे. इसलिए यह शंतिकुंज का परम पवित्र स्थान माना जाता है.

शांतिकुंज के देवात्मा हिमालय मंदिर से उत्तराखंड के प्रमुख धामों के दर्शन होते हैं. साथ ही साथ इस स्थल में आप ध्यान लगा कर बैठ कर मानसिक शांति का एहसास कर सकते हैं. इस स्थल से सभी धर्म-संप्रदाय के पवित्र प्रतीक चिन्ह, जड़ी-बूटियों का दुर्लभ बाग और गायत्री परिवार की स्थापना से लेकर वर्तमान समय पर आधारित प्रदर्शनी देख सकते हैं.

1926 से जल रहा दीपक: शांतिकुंज के अन्दर गायत्री माता की मूर्ति के पास दीपक 1926 से निरंतर जल रहा है. इस स्थल में मां गायत्री के अनेकों रूपों के दर्शन कर देवी गायत्री के विराट स्वरूप को भी जाना जा सकता है. यहां लगभग 24 लाख (24,00,000) गायत्री मंत्र समर्पित आध्यात्मिक साधक द्वारा रोजाना गाए जाते हैं. लगभग 1000 लोग गायत्री यज्ञ में भाग लेते हैं. यह एक ऐसा केंद्र है जो कि दिव्य आध्यात्मिक सिद्धांतों पर आधारित लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करता है.

ऋषि परंपरा को पुनर्जीवन करने के लिए हिमालय के ऋषि सट्टा के मार्गदर्शन में शांतिकुंज की स्थापना की गई है.

शांतिकुंज की स्थापना 1971 में पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के द्वारा जमीन के एक छोटे से टुकड़े में की गयी. बाद में यह गायत्री नगर के नाम पर एक बड़े क्षेत्र में फैल गया. यहां उनके मार्गदर्शन में कई उच्च स्तर के आध्यात्मिक शिविर आयोजित किए गए थे. 1998 में एक और परिसर 1/2 किमी उत्तर में गायत्रीकुंज के नाम से जोड़ा गया है . यह देव संस्कृति विश्वविद्यालय का परिसर है. 2 नवंबर 2000 में “श्रीजन संकल्प विभूति महायानंज” का आयोजन इस स्थान पर 12 वर्ष की “यूगंसंधी महापुराशरण” के पूरा होने पर किया गया था, जिसमें 4 लाख श्रद्धालु उपस्थित थे.

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