हरिद्वार: महाशिवरात्रि के पर्व पर पहला शाही स्नान करके अखाड़ों ने हरिद्वार कुंभ की शुरुआत कर दी है. महाशिवरात्रि पर सात अखाड़ों में पेशवाई निकालकर हरकी पैड़ी पर शाही स्नान किया था. इस दौरान कुंभ प्रशासन ने सुरक्षा से लेकर अन्य सभी तरह की व्यवस्थाओं के पुख्ता इंतजाम किए थे. लेकिन कुछ संत मेला प्रशासन की व्यवस्था से खुश नजर नहीं आ रहे हैं.
भूमि आवंटन को लेकर जगदगुरु पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद काफी नाराज हैं. उन्होंने भूमि आवंटन के लिए सरकार और प्रशासन को पांच दिन का समय दिया है. इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी अपील की है. साथ ही उन्होंने कहा कि यदि उनकी समस्या का हल नहीं निकलता है तो वे कुछ कदम उठाने के लिए मजबूर होंगे. इसको लेकर उन्होंने वीडियो जारी किया है.
शंकराचार्य ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से अपने संदेश के माध्यम से अपील की है कि हरिद्वार में इस समय महाकुंभ चल रहा है. इसमें धर्म ध्वजा व प्रथम शाही स्नान भी हो चुका है. बावजूद इसके प्रथम शंकराचार्य शासन तंत्र की तरफ से पूर्ण उपेक्षित हैं. अब तक मेला प्रशासन की ओर से भूमि आवंटन करने का कार्य शुरू नहीं किया गया है. आपके राज्य में ही यह सब हो रहा है. अगर इस समस्या का हल नहीं किया गया तो हम संकेत करेंगे कि आप लोग शासन करने के योग्य नहीं हैं.
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उन्होंने कहा कि इतिहास में भी नागा संन्यासी और संतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. एक ओर कुंभ मेला शुरू हो चुका है, उसके बाद भी अब तक उचित भूमि देने की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है. आपके राज्य में संतों की इस तरह से उपेक्षा हो रही है. आप अपने मुख्यमंत्री और मंत्रियों को आदेश करें कि वह 5 दिन के अंदर हरिद्वार में महाकुंभ के लिए भूमि आवंटित करने का कार्य करें अन्यथा अगले कदम हम उठाएंगे.
शंकराचार्य निश्चलानंद के बारे में खास
- कहा जाता है कि किसी महत्वपूर्ण अभियान से पहले इसरो के वैज्ञानिक आपसे मिलते हैं.
- करीब चार साल पहले आपने इसरो के अहमदाबाद सेंटर में लेक्चर दिया था.
- अपने लैक्चर में आपने वैदिक गणित के महत्व को समझाया था.
- स्वामी जी ने बताया था कि कैसे सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत ही आज के विज्ञान को और आगे ले जा सकता है. इसके लिए जरूरी है वैदिक गणित.
- आपका मत था कि वैदिक गणित की मदद से इसरो के वैज्ञानिक देश, काल और वस्तु का आकलन करके अपने मिशन को सफल बना सकते हैं.
- स्वामी निश्चलानंद जी ने कहा था कि आज हम ढेरों यंत्र बना रहे हैं, लेकिन सबसे उत्कृष्ट यंत्र वही होता है जिसमें मेधा शक्ति, प्रज्ञा शक्ति, प्राण शक्ति हो.
- स्वामीजी ने कहा कि अब तक ऐसा यंत्र मानव नहीं बना पाया है. मानव के जीवन की अनुकृति ही सर्वश्रेष्ठ यंत्र होगा.
- इसके लिए जरूरी है कि विज्ञान में वेदों की मदद ली जाए.
- बिना वैदिक गणित के विज्ञान अधूरा है.
- आपने कहा- वेद विहीन विज्ञान दरिद्रता का स्रोत होता है. लेकिन दुनिया भर के वैज्ञानिक आज इसी विज्ञान को समृद्धि बता रहे हैं.
- शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती वैदिक गणित के प्रकांड विद्वान हैं. आपने वैदिक गणित पर 11 किताबें भी लिखी हैं.
- आप बार्क, आईआईटी और इसरो जैसे संस्थानों में वैदिक गणित के महत्व पर लेक्चर देने भी जाते हैं.
कौन हैं जगदगुरु पुरी शंकराचार्य निश्चलानंद
श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के वर्तमान 145 वें श्रीमज्जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज भारत के एक ऐसे सन्त हैं जिनसे आधुनिक युग में विश्व के सर्वोच्च वैधानिक संगठनों संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा विश्व बैंक तक ने मार्गदर्शन प्राप्त किया है. संयुक्त राष्ट्रसंघ ने दिनांक 28 से 31 अगस्त 2000 को न्यूयार्क में आयोजित विश्वशांति शिखर सम्मेलन तथा विश्व बैंक ने वर्ल्ड फेथ्स डेवलपमेन्ट डाइलॉग- 2000 के वाशिंगटन सम्मेलन के अवसर पर उनसे लिखित मार्गदर्शन प्राप्त किया था. श्री गोवर्धन मठ से संबंधित स्वस्ति प्रकाशन संस्थान द्वारा इसे क्रमश: विश्व शांति का सनातन सिद्धांत तथा सुखमय जीवन सनातन सिद्धांत शीर्षक से सन् 2000 में पुस्तक रूप में प्रकाशित किया है.
स्वस्तिक गणित है तकनीक की कुंजी
वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर व मोबाइल फोन से लेकर अंतरिक्ष तक के क्षेत्र में किये गये आधुनिक आविष्कारों में वैदिक गणितीय सिद्धांतों का उपयोग किया है जो पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य श्री स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा रचित स्वस्तिक गणित नामक पुस्तक में दिये गये हैं. गणित के ही क्षेत्र में पूज्यपाद जगद्गुरू शंकराचार्य जी महाराज की अंक पदीयम् तथा गणित दर्शन नाम से दो और पुस्तकों का लोकार्पण हुआ है, जो निश्चित ही विश्व मंच पर वैज्ञानिकों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नए आविष्कारों के लिए नए परिष्कृत मानदंडों की स्थापना करेंगे.
बिहार में हुआ जन्म
अपनी भूमिका से भारत वर्ष को पुन: विश्वगुरु के रूप में उभारने वाले पूज्यपाद जगद्गुरू श्री शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज का जन्म 72 वर्ष पूर्व बिहार प्रान्त के मिथिलांचल में दरभंगा (वर्तमान में मधुबनी) जिले के हरिपुर बख्शीटोलमानक गांव में आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी, बुधवार रोहिणी नक्षत्र, विक्रम संवत् 2000 तदानुसार दिनांक 30 जून ई | 1943 को हुआ. देश-विदेश में उनके अनुयायी उनका प्राकट्य दिवस उमंग व उत्साहपूर्वक मनाते हैं. पूज्य पिताजी पं श्री लालवंशी झा क्षेत्रीय कुलभूषण दरभंगा नरेश के राज पंडित थे. आपकी माताजी का नाम गीता देवी था. आपके बचपन का नाम नीलाम्बर था.
बिहार और दिल्ली में हुई शिक्षा
आपकी प्रारंभिक शिक्षा बिहार और दिल्ली में सम्पन्न हुई है. दसवीं तक आप बिहार में विज्ञान के विद्यार्थी रहे. दो वर्षों तक तिब्बिया कॉलेज दिल्ली में अपने अग्रज डॉ. श्री शुक्रदेव झा जी की छत्रछाया में शिक्षा ग्रहण की. पढ़ाई के साथ-साथ कुश्ती, कबड्डी और तैरने में अभिरुचि के अलावा आप फुटबाल के भी अच्छे खिलाड़ी थे. बिहार और दिल्ली में आप छात्रसंघ विद्यार्थी परिषद के उपाध्यक्ष और महामंत्री भी रहे. अपने अग्रज पं. श्रीदेव झा जी की प्रेरणा से आपने दिल्ली में सर्व वेद शाखा सम्मेलन के अवसर पर पूज्यपाद धर्म सम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज एवं श्री ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम के पीठाधीश्वर पूज्यपाद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री कृष्णबोधाश्रम जी महाराज का दर्शन प्राप्त किया. इस अवसर पर उन्होंने पूज्य करपात्री जी महाराज को हृदय से अपना गुरुदेव मान लिया.
काशी में लिया संन्यास
तिब्बिया कालेज में जब आपकी संन्यास की भावना अत्यंत तीव्र होने लगी तब बिना किसी को बताये काशी के लिए पैदल ही चल पड़े. इसके उपरांत आपने काशी, वृन्दावन, नैमिषारण्य, बदरिकाआश्रम, ऋषिकेश, हरिद्वार, पुरी, श्रृंगेरी आदि प्रमुख धर्म स्थानों में रहकर वेद-वेदांग आदि का गहन अध्ययन किया. नैमिषाराण्य के पूज्य स्वामी श्री नारदानन्द सरस्वती जी ने आपका नाम ‘ध्रुवचैतन्य’ रखा. आपने 7 नवम्बर 1966 को दिल्ली में देश के अनेक वरिष्ठ संत-महात्माओं एवं गौभक्तों के साथ गौरक्षा आन्दोलन में भाग लिया. इस पर उन्हें 9 नवम्बर को बन्दी बनाकर 52 दिनों तक तिहाड़ जेल में रखा गया.
हरिद्वार में संपन्न हुआ संन्यास कार्यक्रम
बैशाख कृष्ण एकादशी गुरुवार विक्रम संवत् 2031 तद्नुसार दिनांक 18 अप्रैल 1974 को हरिद्वार में आपका लगभग 31 वर्ष की आयु में पूज्यपाद धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के करकमलों से संन्यास सम्पन्न हुआ. उन्होंने आपका नाम ‘निश्चलानन्द सरस्वती’ रखा. श्री गोवर्धन मठ पुरी के तत्कालीन 144 वें शंकराचार्य पूज्यपाद जगद्गुरू स्वामी निरन्जनदेव तीर्थ जी महाराज ने स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती को अपना उपयुक्त उत्तराधिकारी मानकर माघ शुक्ल षष्ठी रविवार विक्रम संवत् 2048 तद्नुसार दिनांक 9 फरवरी 1992 को उन्हें अपने करकमलों से गोवर्धनमठ पुरी के 145 वें शंकराचार्य पद पर पदासीन किया.
राष्ट्र रक्षा अभियान के अगुआ
शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने के तुरन्त बाद आपने ‘अन्यों के हित का ध्यान रखते हुए हिन्दुओं के अस्तित्व और आदर्श की रक्षा, देश की सुरक्षा और अखण्डता’ के उद्देश्य से प्रामाणिक और समस्त आचार्यों को एक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए राष्ट्र रक्षा के इस अभियान को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान कराने की दिशा में अपना प्रयास आरंभ कर दिया. राष्ट्ररक्षा की अपनी राष्ट्रव्यापी योजना को मूर्तरूप दिलाने हेतु उन्होंने देश के प्रबुद्ध नागरिकों के लिए ‘पीठ परिषद’ और उसके अन्तर्गत युवकों की ‘आदित्य वाहिनी’ तथा मातृशक्ति के लिए आनन्द वाहिनी के नाम से एक संगठनात्मक परियोजना तैयार की. इसमें बालकों के लिए ‘बाल आदित्य वाहिनी’ एवं बालिकाओं हेतु बाल आनंद वाहिनी की व्यवस्था भी की गई. पूज्यपाद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज ने चैत्र शुक्ल नवमी शनिवार विक्रम संवत् 2049 तद्नुसार दिनाकं 4 अप्रैल सन् 1992 को रामनवमी के शुभ दिन पर श्री गोवर्धनमठपुरी में ‘पीठ परिषद’ और उसके अंतर्गत ‘आदित्य वाहिनी’ का शुभारंभ करवाया.