हरिद्वारः कोरोना संक्रमण को लेकर वैज्ञानिक लगातार नए शोध के जरिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं. वैज्ञानिक ने आशंका जताई है कि कोरोना की अभी ये शुरुआत है. इसका सबसे खतरनाक रूप सामने आना बाकी है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के 198 से ज्यादा वैरिएंट हैं, जो भविष्य में वर्तमान स्वरूप से भी ज्यादा खतरनाक होगा.
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक द्वारा की गई रिसर्च में सामने आया है कि कोरोना दुनिया में अब तक का सबसे खतरनाक वायरस है. कोरोना एक नॉन लाइट सर्कल वायरस है, जो कोशिकाओं के अंदर पनपते रहते हैं. ये बाहर नहीं निकलते हैं. इसी वजह से इसकी मारक क्षमता बहुत ज्यादा है. वैज्ञानिक शोध में वैज्ञानिकों ने माना कि यह मानव द्वारा निर्मित वायरस है. चीन द्वारा अपने जैविक युद्ध मिशन के तहत इसको बनाया गया है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भविष्य में जैविक युद्ध के लिए इसे अगर आसमान से किसी देश या देशों में फैला दिया गया तो भयंकर महामारी आएगी. जिसको रोकना किसी के लिए भी लगभग असंभव होगा.
खतरनाक होगा असर
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक रमेश चंद दुबे ने कोरोना पर अपनी रिसर्च में पाया कि कोरोना का वर्तमान रूप उतना भयानक नहीं है, जितना भविष्य में हो सकता है. इनका कहना है कि कोरोना के 198 वैरियंट है. भविष्य में कोरोना का और ज्यादा भयंकर रूप सामने आ सकता है. रमेश चंद दुबे का कहना है कि दुनिया में अभी तक पाए गए वायरसों में कोरोना सबसे खतरनाक है. यह नॉन लाइट सर्कल वायरस है, जो कोशिकाओं में ही पनपते लगता है. यह रूप बदलता रहता है. रमेश चंद का कहना है कि कोरोना मानव सभ्यता के लिए बड़ा खतरा है. इसका निदान जितना जल्दी हो सके अच्छा है.
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वुहान की लैब में तैयार हुआ कोरोना
प्रो. रमेश चंद दुबे का ये भी कहना है कि कोरोना मानव द्वारा निर्मित वायरस है. दुनिया में केवल 4 ही ऐसे देश है, जहां वायरसों को रखकर उन पर रिसर्च किया जाता है. उनमें एक चीन का वुहान शहर भी है, जिसकी लेबोरेटरी में इसे तैयार किया गया है. रमेश चंद दुबे का कहना है कि कई वैज्ञानिक रिसर्च में यह सामने आ चुका है कि चीन काफी पहले से ही जैविक युद्ध की तैयारी करता आ रहा है. उसने कोरोना को भी जैविक युद्ध के एक हथियार के रूप में तैयार किया है. आज पूरी दुनिया कोरोना से लड़ रही है. ऐसे में चीन अपनी आर्थिक ताकत को बढ़ा रहा है. उनका कहना है कि प्राकृतिक वायरस में इतनी ताकत नहीं होती है. मगर यह चीन द्वारा बनाया गया है, जिसे चीन जैविक युद्ध के रूप में इस्तेमाल कर रहा है.