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ऐसी होती है 'मस्तमलंगों' की दुनिया, फिजा में गूंजते हैं इनके सूफियाना कलाम - Roorkee Piran Collier Hazrat Makhdum Alauddin Ali Ahmed

पिरान कलियर दरगाह में मस्तमलंगों की अलग दुनिया बसती है. जहां वे अपने सूफियाने गीतों से इबादत करते हैं.

सूफिया कलाम पेश करते मस्तमलंग.
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Published : Nov 17, 2019, 10:20 AM IST

Updated : Nov 17, 2019, 8:47 PM IST

रुड़की: देश ही नहीं विदेशों में भी कई सूफी-संतों की मजार है, जहां लोग आस्था से शीष नवाने आते हैं. उन्हीं में से एक सूफी संतों की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक में सालभर लोगों का तांता लगा रहता है. वहीं पिरान कलियर में एक अलग ही दुनिया बसती है, जिन्हें मस्तमलंगों की दुनिया कहा जाता है. ये मस्तमलंग दुनिया और रीति-रिवाज से बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं, लेकिन इनके सूफियाने गीत फिजा में गूंजते रहते हैं.

मस्तमलंग की अनोखी होती है दुनिया

आमतौर परअपनी धुन में रहने वालों को मस्तमलंग की संज्ञा दी जाती है. अमूमन मस्तमलंग धार्मिक गीतों की रस्म अदा करते हैं. कई मस्तमलंग संतों की दरगाह पर पड़े रहते हैं. जिनके सूफियाने गीत फिजा में गूंजते रहते हैं. वहीं विश्व प्रसिद्ध पिरान कलियर में चार धुनें रजिस्ट्रड हैं, जिनको मस्तमलंग गाते दिखाई देते हैं. उर्स में शिकरत करने आए दूर दराज से मस्तमलंग कलियर पहुंच चुके हैं.

फिजा में गूंजते हैं इनके सूफियाना कलाम.

फिजा में गूंजते हैं सूफिया कलाम

ये मस्तमलंग दुनिया और रीति-रिवाज से बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं, जहां वे अपने सूफियाने गीतों से इबादत करते हैं. कुछ मस्तमलंग पिरान कलियर में ही रहते हैं. जहां मस्तमलंग दरगाह पर कव्वाली के साथ सूफियाना कलाम पेश करते हैं. बता दें कि पिरान कलियर में विश्व प्रसद्धि दरगाह साबिर पाक में हाजरी पेश करने दूर दराज से अकीदतमंद आते हैं और दरबारे साबरी में खराज-ए-अकीदत पेश कर मन्नते मांगते हैं.

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सूफिया कलाम पेश करते मस्तमलंग.

हर मजहब के लोग पहुंचते हैं यहां

यहां न केवल पूरे भारत से, बल्कि दुनिया के अलग-अलग कोने से हर मजहब के लोग आते हैं और मन्नत मांगते हैं. यह प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदम अलाउद्दीन अली अहमद (साबिर) की है, जो 13वीं सदी के एक प्रसिद्ध चिश्ती संत थे. जिनकी दरगाह रुड़की से 7 किमी दूर है.

रुड़की: देश ही नहीं विदेशों में भी कई सूफी-संतों की मजार है, जहां लोग आस्था से शीष नवाने आते हैं. उन्हीं में से एक सूफी संतों की नगरी पिरान कलियर में विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक में सालभर लोगों का तांता लगा रहता है. वहीं पिरान कलियर में एक अलग ही दुनिया बसती है, जिन्हें मस्तमलंगों की दुनिया कहा जाता है. ये मस्तमलंग दुनिया और रीति-रिवाज से बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं, लेकिन इनके सूफियाने गीत फिजा में गूंजते रहते हैं.

मस्तमलंग की अनोखी होती है दुनिया

आमतौर परअपनी धुन में रहने वालों को मस्तमलंग की संज्ञा दी जाती है. अमूमन मस्तमलंग धार्मिक गीतों की रस्म अदा करते हैं. कई मस्तमलंग संतों की दरगाह पर पड़े रहते हैं. जिनके सूफियाने गीत फिजा में गूंजते रहते हैं. वहीं विश्व प्रसिद्ध पिरान कलियर में चार धुनें रजिस्ट्रड हैं, जिनको मस्तमलंग गाते दिखाई देते हैं. उर्स में शिकरत करने आए दूर दराज से मस्तमलंग कलियर पहुंच चुके हैं.

फिजा में गूंजते हैं इनके सूफियाना कलाम.

फिजा में गूंजते हैं सूफिया कलाम

ये मस्तमलंग दुनिया और रीति-रिवाज से बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं, जहां वे अपने सूफियाने गीतों से इबादत करते हैं. कुछ मस्तमलंग पिरान कलियर में ही रहते हैं. जहां मस्तमलंग दरगाह पर कव्वाली के साथ सूफियाना कलाम पेश करते हैं. बता दें कि पिरान कलियर में विश्व प्रसद्धि दरगाह साबिर पाक में हाजरी पेश करने दूर दराज से अकीदतमंद आते हैं और दरबारे साबरी में खराज-ए-अकीदत पेश कर मन्नते मांगते हैं.

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सूफिया कलाम पेश करते मस्तमलंग.

हर मजहब के लोग पहुंचते हैं यहां

यहां न केवल पूरे भारत से, बल्कि दुनिया के अलग-अलग कोने से हर मजहब के लोग आते हैं और मन्नत मांगते हैं. यह प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदम अलाउद्दीन अली अहमद (साबिर) की है, जो 13वीं सदी के एक प्रसिद्ध चिश्ती संत थे. जिनकी दरगाह रुड़की से 7 किमी दूर है.

Intro:स्पेशल स्टोरी

रुड़की

रूड़की: भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश हैं जहां आस्था, श्रद्धा और विश्वास की त्रिवेणी का संगम न केवल शहरों बल्कि गांव देहातों में देखा जाता है। हरिद्वार धर्म और आध्यात्म की ऐसी अनुपम नगरी हैं जहां नित दिन अधिकांष आश्रमों से धर्म और आध्यात्म आधारित उपदेश गूंजते हैं। तो कलियर से सूफियों के मानव कल्याण का संदेश देते प्रवचन सुनाई देते है। दुनिया को विश्व बन्धुत्व का संदेश देती दो धर्मनगरी हरिद्वार और कलियर ने दुनिया भर में वैचारिक स्तर पर लड़ रहे लोगां का ईश्वर एक होने और इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म होने का संदेश दे रहे हैं। यह इन्सान की सबसे बड़ी नासमझी है कि श्रेष्ठता की जंग में एक दूसरे को नीचा दिखाने पर तुला है वर्ना सूफी सन्तों ने मानव को मानव से जोड़ने का काम किया है सूफियों और वलियों की दरगाह से भी हर मजहब-ओ- मिल्लत के लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

देखिये ख़ास रिपोर्ट।

वीओ-1-कहते है आशिकी में इंसान दुनिया की तमाम चीजों को भुलाकर अपनी ही एक अलग दुनिया बसा लेता है। इश्क मुहब्बत के किस्से दुनियां के जन्म लेने से शुरू हुए है। जो आजतक कहानी किस्सों में पढ़े जाते है। इश्क इंसान भगवान से कर ले तो उसकी भक्ति लीला अलग हो जाती है। इश्क लैला मजनू ने भी किया, शिरी फ़राज़ ने भी किया, जो किताबो में किस्से कहानी बनकर सबके सामने है। इश्क वो दुनिया है जो सर चढ़ जाए तो सब कुछ भूलकर इंसान उसे पाने के लिए लीन हो जाता है। बात यहां सुफिसन्तो से किए जाने वाले इश्क की बाबत हो रही है। दुनिया में सुफिसन्तो की अलग अलग स्थानों पर मजार शरीफ है। उनकी अपनी अलग-अलग ही मान्यताएं है। उनके चाहने वाले दुनिया में लाखो करोड़ो की सँख्या में मौजूद है। उन्ही के इश्क में लीन ऐसे भी आशिक मौजूद है जिन्हें इन सुफिसन्तो के अलावा ना दुनियां की फिक्र है ना समाज की और ना बीवी बच्चो की, बस इन आशिकों को इन मज़ारो में पर्दा किए हुए सूफी सन्तो से ऐसा इश्क है कि रात हो या दिन, सर्दी हो या गर्मी, इन्हें इस बात का कोई फर्क नही पड़ता है। जब लोग सर्दी में गर्मी की तपिश के लिए कपड़ो व आग का इंतेज़ाम करते है, तब इन्हें सुफिसन्तो के मज़ारो के आसपास निवस्त्र खुले में पड़े देखा जा सकता है। जब लोग गर्मी से बचने ले किए कूलर ऐसी के आलावा ऐसे स्थानों पर वक़्त बिताना चाहते है जहाँ तापमान में नमी हो, इन आशिको को लिहाफ़ व गर्म कपड़ो में लेटे देखा जा सकता है।

Body:वीओ-2- किताबो में पढ़े जाने वाले इश्क माशूक के किस्सों में इनकी कहानी को स्थान तो नही मिल रहा है अल्बत्ता इनकी सुफिसन्तो के प्रति आशिक़ी ऐसी है कि दुनिया की कोई चीज इनके लिए कोई मायने नही रखती। ना खाने की फिक्र है, ना सोने की फिक्र,, फिक्र है तो उन सुफिसन्तो की जो मज़ारो में पर्दा किए आराम फरमा है। इनके पास बादशाह की भी वही हैसियत है जो अदनान व्यक्ति की है इन्हें इस बात का कोई फर्क नही पड़ता सरकार किसकी बनेगी किसकी बिगड़ेगी। तूफान कब आएगा, हवा कब चलेगी है। हा ये देखा गया है कि इनके मुँह से निकले शब्द अधिकांश पूरे होते है। इनकी आशिकी का नजारा किसी को करना हो तो इनके पास वक्त बिताए बिना नही किया जा सकता। धार्मिक रस्मो रिवाज से दूर इन आशिको को किसी के समाज हिन्दू मुस्लिम होने से कोई फर्क नही पड़ता है। इनके सामने तमाम मजहब बराबर है ये खुद को ना हिन्दू मानते है ना ही मुसलम ये मानते है तो अपने आपको, दुनिया से रुखसत हो चूके सुफिसन्तो के सच्चे आशिक।

Conclusion:वीओ-3- बता दे कि रुड़की से 7 किलो मीटर की दूरी पर बसी, सूफ़ी संतो नगरी पिरान कलियर में एक अलग ही दुनिया बस्ती है, जिन्हें मस्तमलंगों की दुनिया कहा जाता है। ये मस्तमलंग दुनियावी रीतिरिवाज से बिल्कुल अलग होते है, ना परिवार ना कोई ख्वाहिश और ना ही कोई चाहत, बस अपनी ही धुन और अपनी ही दुनिया में खोय ये मस्तमलंग दुनियां भर में बसे है। दुनियांभर में मज़ारो पर इन मस्तमलंगो का डेरा होता है बस यही वो स्थान है जहां उनका घरबार और सब कुछ यही है। पिरान कलियर भी उन स्थानों में एक है। पिरान कलियर में चार धुनें रजिस्ट्रड है चारो धुनों पर सैकड़ो मस्तमलंग रहते है जो ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ को अंजाम देते है। इन दिनों पिरान कलियर स्थित विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक का सालाना उर्स/मेला चल रहा है। उर्स में शिकरत करने आए दूर दराज से मस्तमलंग कलियर स्थित डेरो पर आशिकी में लीन है। धुनें के गद्दीनशीन मासूम बाबा ने बताया कि उनको मजार शरीफ में आराम फरमा सूफ़ीओं से इश्क है और उही के इश्क में वह दुनियां भुलाए है। मासूम बाबा बताते है कि धुनों पर मौजूद मस्तमलंगो की ग़िज़ा चिलम है हालांकि ये सेहत के लिए हानिकारक होती है बावजूद इसके वो इसे अपनी ग़िज़ा मानते है, वो बताते है की यदि तीन दिन उन्हें खाना ना दिए जाए तो उनपर कोई फर्क नही पड़ेगा, बस चिलम के सहारे वो अपनी भक्ति में लीन रहते है।

बाइट-- मासूम बाबा (गद्दीनशीन रफाई धुना)
बाइट-- सरवर बाबा (गद्दीनशीन बनवीय चौक धुना)
Last Updated : Nov 17, 2019, 8:47 PM IST
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