रुड़की: वैसे तो आपने लोगों में काम करने का अलग-अलग जुनून देखा होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं जो रुड़की में जलवीर के नाम से जाना जाता है. रुड़की का ये जलवीर गंगनहर में डूबते लोगों और जानवरों को निस्वार्थ भाव से अपनी जान दांव पर लगाकर बचाता है. उधर जलवीर मोनू के इस काम की प्रशंसा जहां पूरे शहरवासी करते हैं तो वहीं पुलिस प्रशासन भी उनके इस योगदान की पूरी तारीफ करता है. पुलिस भी इस जलवीर की समय-समय पर मदद लेती रहती है. क्योंकि मोनू सामाजिक काम में भी लोगों का पूरा सहयोग करते हैं. एसपी स्वप्न किशोर सिंह का कहना है कि मोनू को कई बार प्रोत्साहित भी किया गया है.
कौन है यह जलवीर: करीब 40 वर्ष पूर्व डाकघर मंडी जनपद पटियाला (पंजाब) निवासी विजय, रुड़की गंगनहर में बने गऊघाट के पास आकर झुग्गी झोपड़ी डालकर रहने लगे. जिसके बाद विजय अपनी जान की परवाह न करते हुए गंगनहर में डूबने वाले लोगों व जानवरों की जान बचाने लगे. इसी के साथ वह गंगनहर में पीछे से बहकर आ रहे शवों को भी निकालने लगे. विजय ने इस काम को बिना किसी लालच के करीब 40 सालों तक किया. उन्होंने गंगनहर में डूबने वाले हजारों लोगों की जिंदगी बचाई है. इसी बीच उन्होंने अपने 15 वर्षीय बेटे मोनू को भी गंगनहर में तैरना सिखाया. डूबते इंसान को कैसे बचाया जाता है यह भी सिखाया. विजय अब काफी बुजुर्ग हो चुके हैं, इसलिए अब उनका बेटा मोनू करीब पिछले 15 वर्षों से लोगों और जानवरों की जान बचा रहा है. हालांकि मोनू भी इस काम को निस्वार्थ भावना से ही कर रहे हैं.
झुग्गी में रहता है पूरा परिवार: गौरतलब है, रुड़की की गंगनहर में आए दिन लोगों के डूबने की घटनाएं होती रहती हैं. वहीं सोलानी पार्क स्थित झुग्गी झोपड़ी में रहने वाला पंजाब का एक परिवार पिछले करीब 40 वर्षों से गंगनहर में डूबने वाले लोगों औऱ जानवरों की जान बचा रहा है. मोनू के पिता का कहना है कि उन्हें लोगों की जान बचाने के बाद बड़ा सुकून मिलता है. इसलिए उन्होंने इस काम को अपने बेटे मोनू को भी सिखाया. अगर बात करें मोनू के कारोबार की तो मोनू अपनी झुग्गी में ही चाय की दुकान चलाते हैं. दरअसल मोनू की झुग्गी के पास ही सोलानी पार्क है. यहां पर लोग घूमने के लिए आते हैं. मोनू की दुकान पर आकर चाय और अन्य सामान की खरीदारी करते हैं. इसी काम से उसके परिवार का पालन पोषण होता है.
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अब तक जलवीर का परिवार हजारों जानें बचा चुका है. यह काम वह पूरी तरह से निस्वार्थ होकर करते हैं. इस काम के लिये उन्हें लोगों की तारीफ भी मिलती है. मोनू का के मन में एक टीस भी है. उनका कहना है कि इस कार्य के लिए आज तक उन्हें किसी संस्था या पुलिस द्वारा सम्मानित नहीं किया गया. ये परिवार कई बार प्रशासन की मदद भी करता है. इसके बाद भी इन्हें झुग्गी झोपड़ी में रहना पड़ रहा है.