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देवभूमि में स्थित है राधा-श्रीकृष्ण का अनोखा मंदिर, रोचक है पौराणिक कथा

कनखल स्थित राधा श्रीकृष्ण मंदिर में साक्षात शिव पार्वती विराजते हैं. यही नहीं यहां पर शिव कृष्ण नहीं बल्कि राधा के रूप में और पार्वती कृष्ण भगवान के रूप में विराजते हैं. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी अविवाहित सच्चे मन से 40 दिन तक यहां पर मंदिर में भगवान राधा कृष्ण की पूजा करता है तो विवाह में आ रही तमाम रुकावटें दूर हो जाती हैं.

देवभूमि में अनोखा है ये राधा-श्रीकृष्ण मंदिर.
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Published : Aug 23, 2019, 1:10 PM IST

Updated : Aug 23, 2019, 1:25 PM IST

हरिद्वार: भगवान श्रीकृष्ण जिन्हें भगवान विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है.जिन्हें लोग उनके नटखट पन से कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से पुकारा जाता है. माना जाता है जिनकी कृपा मात्र से इंसान का जीवन धन्य हो जता है ऐसे है मां यशोदा के लाल. बात श्रीकृष्ण की हो तो देवभूमि कैसे अछूती रह सकती है. जिनका वास्ता धर्मनगरी के इस मंदिर से जुड़ा हुआ है. जहां लोग दूर-दूर से आकर शीष नवाते हैं.

मान्यता है कि कनखल स्थित राधा श्रीकृष्ण मंदिर में साक्षात शिव पार्वती विराजते हैं. यही नहीं यहां पर शिव कृष्ण नहीं बल्कि राधा के रूप में और पार्वती कृष्ण भगवान के रूप में विराजते हैं. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी अविवाहित सच्चे मन से 40 दिन तक यहां पर मंदिर में भगवान राधा कृष्ण की पूजा करता है. उसके विवाह में आ रही तमाम रुकावटें दूर हो जाती हैं. यही नहीं श्रद्धालुओं को मानना है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद हमेशा पूरी होती है.

देवभूमि में स्थित है राधा-श्रीकृष्ण का अनोखा मंदिर.

पढ़ें-जाम से निपटने के लिए पुलिस जनता को बनाएगी 'मित्र', तैयार होगा 'मास्टर प्लान'

पुराणों में है जिस नगरी का उल्लेख और जो है सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष की राजधानी कनखल में गंगा के किनारे अपनी लीलाओं से लोगों को मोह लेने वाले भगवान कृष्ण भी विराजते हैं. वैसे तो कृष्ण की नगरी यमुना के किनारे मथुरा और वृंदावन है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि कृष्ण भगवान राधा के साथ कनखल में भी विराजते हैं.

मान्यता है कि मंदिर में पूजा करने से अविवाहित लोगों के विवाह में आ रही तमाम तरह की रुकावटें दूर हो जाती है. इस मंदिर का निर्माण लंढोरा रियासत की महारानी ने कराया था. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना के बाद से ही महारानी की सारी परेशानियां दूर हो गई.

18 वीं सदी में इस पर था लंढोरा के राजा का राज यह लैंडोरा विरासत का सबसे प्रमुख शहर माना जाता था. महारानी धर्मकौर वैसे तो काफी धर्मप्रिय थी पर वह अपने बेटे की वजह से काफी परेशान रहती थी. एक बार तीर्थ यात्रा के दौरान जब वे मथुरा और वृंदावन पहुंची तो उन्होंने एक कृष्ण मंदिर बनाने की इच्छा जताई. तब स्वप्न में स्वयं भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर कहा था कि वे यहां के बजाय गंगा के किनारे हरिद्वार के कनखल में उनका मंदिर बनवाएं.

इसके बाद महारानी धर्मकौर ने कनखल में इस मंदिर का निर्माण करवाया था. जहां लोग पूजा-अर्चना करने दूर-दूर से आते हैं. वैसे तो गंगा के किनारे विराजने वाले राधा कृष्ण की पूजा की शुरुआत करने के लिए सभी दिन अच्छे हैं. लेकिन माना जाता है कि माघ मास की अष्टमी के दिन से मंदिर में पूजा की चालीसा शुरू की जाए तो वह विशेष फलदाई होती है. साथ ही इस मंदिर को सिद्ध और जागृत मंदिर माना जाता है.

हरिद्वार: भगवान श्रीकृष्ण जिन्हें भगवान विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है.जिन्हें लोग उनके नटखट पन से कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से पुकारा जाता है. माना जाता है जिनकी कृपा मात्र से इंसान का जीवन धन्य हो जता है ऐसे है मां यशोदा के लाल. बात श्रीकृष्ण की हो तो देवभूमि कैसे अछूती रह सकती है. जिनका वास्ता धर्मनगरी के इस मंदिर से जुड़ा हुआ है. जहां लोग दूर-दूर से आकर शीष नवाते हैं.

मान्यता है कि कनखल स्थित राधा श्रीकृष्ण मंदिर में साक्षात शिव पार्वती विराजते हैं. यही नहीं यहां पर शिव कृष्ण नहीं बल्कि राधा के रूप में और पार्वती कृष्ण भगवान के रूप में विराजते हैं. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी अविवाहित सच्चे मन से 40 दिन तक यहां पर मंदिर में भगवान राधा कृष्ण की पूजा करता है. उसके विवाह में आ रही तमाम रुकावटें दूर हो जाती हैं. यही नहीं श्रद्धालुओं को मानना है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद हमेशा पूरी होती है.

देवभूमि में स्थित है राधा-श्रीकृष्ण का अनोखा मंदिर.

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पुराणों में है जिस नगरी का उल्लेख और जो है सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष की राजधानी कनखल में गंगा के किनारे अपनी लीलाओं से लोगों को मोह लेने वाले भगवान कृष्ण भी विराजते हैं. वैसे तो कृष्ण की नगरी यमुना के किनारे मथुरा और वृंदावन है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि कृष्ण भगवान राधा के साथ कनखल में भी विराजते हैं.

मान्यता है कि मंदिर में पूजा करने से अविवाहित लोगों के विवाह में आ रही तमाम तरह की रुकावटें दूर हो जाती है. इस मंदिर का निर्माण लंढोरा रियासत की महारानी ने कराया था. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना के बाद से ही महारानी की सारी परेशानियां दूर हो गई.

18 वीं सदी में इस पर था लंढोरा के राजा का राज यह लैंडोरा विरासत का सबसे प्रमुख शहर माना जाता था. महारानी धर्मकौर वैसे तो काफी धर्मप्रिय थी पर वह अपने बेटे की वजह से काफी परेशान रहती थी. एक बार तीर्थ यात्रा के दौरान जब वे मथुरा और वृंदावन पहुंची तो उन्होंने एक कृष्ण मंदिर बनाने की इच्छा जताई. तब स्वप्न में स्वयं भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर कहा था कि वे यहां के बजाय गंगा के किनारे हरिद्वार के कनखल में उनका मंदिर बनवाएं.

इसके बाद महारानी धर्मकौर ने कनखल में इस मंदिर का निर्माण करवाया था. जहां लोग पूजा-अर्चना करने दूर-दूर से आते हैं. वैसे तो गंगा के किनारे विराजने वाले राधा कृष्ण की पूजा की शुरुआत करने के लिए सभी दिन अच्छे हैं. लेकिन माना जाता है कि माघ मास की अष्टमी के दिन से मंदिर में पूजा की चालीसा शुरू की जाए तो वह विशेष फलदाई होती है. साथ ही इस मंदिर को सिद्ध और जागृत मंदिर माना जाता है.

Intro:फील लाइक व्यू से भेजी गई है


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कृष्ण कन्हैया केवल यमुना किनारे ही रास नहीं रचाते हैं बल्कि कृष्ण तो गंगा किनारे भी है और यहां भी है उनकी लीला न्यारी गंगा की गोद में बसे है कृष्ण भगवान वह भी भोले शंकर की ससुराल में उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध धर्म नगरी है हरिद्वार और हरिद्वार की उपनगरी कनखल को माना जाता है शिव की ससुराल पर यहीं पर भगवान कृष्ण भी विराजमान है अपनी राधा के साथ पुराणिक नगरी कनखल में है राधा कृष्ण का अद्भुत मंदिर माना जाता है कि इस मंदिर में राधा कृष्ण के रूप में साक्षात शिव पार्वती विराजते हैं यही नहीं यहां पर शिव कृष्ण नहीं बल्कि राधा के रूप में और पार्वती कृष्ण भगवान के रूप में विराजते हैं इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी अविवाहित सच्चे मन से 40 दिन तक यहां पर मंदिर में भगवान राधा कृष्ण की पूजा करता है उसके विवाह में आ रही तमाम रुकावटें दूर हो जाती है यही नहीं राधा कृष्ण अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं

पीटीसी-----------------------------------------------------


Body:जब शिव पार्वती की जगी कामेच्छा जब पार्वती के मन में हुई विपरीत रति करने की इच्छा तो पार्वती बन गई कृष्ण और शिव बन गए राधा शिव अपने ससुराल कनखल में राधा के रूप में रहते हैं पुराणों में है जिस नगरी का उल्लेख और जो है सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष की राजधानी उसी कनखल में गंगा के किनारे अपनी लीलाओं से लोगों को मोह लेने वाले भगवान कृष्ण भी विराजते हैं वैसे तो कृष्ण की नगरी यमुना के किनारे मथुरा और वृंदावन है पर यह शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि कृष्ण भगवान राधा के साथ कनखल में गंगा किनारे भी रचाते हैं रास कहा जाता है कि एक बार जब शिव पार्वती के बीच संवाद हो रहा था तो दोनों के मन में विपरीत रति करने की इच्छा जागृत हुई पर यह उनके वास्तविक रूप में संभव नहीं था तो दोनों ने रचा राधा कृष्ण का रूप शिव ने राधा और पार्वती ने कृष्ण का रूप रचाया और कनखल के इसी स्थान पर फिर उन्होंने किया विपरीत रति तभी से माना जाता है कि शिव पार्वती यहां पर राधा कृष्ण के रूप में रहते हैं

बाइट-- प्रतीक मिश्रपुरी---ज्योतिषाचार्य

इस मंदिर में राधा कृष्ण के विग्रह भी अद्भुत है ऐसा लगता है जैसे दोनों यहां पर साक्षात रूप में विराजमान हो मंदिर में कृष्ण भगवान श्याम रंग के हैं और राधा का रंग एकदम गोरा है माना जाता है कि पार्वती का काली मां का रूप ही यहां पर विपरीत रति की इच्छा पूरी करने के लिए प्रकट होने के कारण कृष्ण के रूप में है कनखल मां पार्वती की जन्म स्थली भी है और मां पार्वती यहां पर साक्षात रूप में राधा कृष्ण मंदिर में मौजूद रहती है मान्यता है कि राधा कृष्ण के इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से पूजा करता है उसकी सभी मनोकामना जरूर पूरी होती है

बाइट-- प्रतीक मिश्रपुरी---ज्योतिषाचार्य

भगवान कृष्ण करते हैं सबकी मनोकामनाएं पूरी गंगा किनारे के कृष्ण की लीला है सबसे निराली यहां जो भी आता है वह खाली हाथ वापस नहीं जाता राधा संग कृष्ण भर देते हैं अपने भक्तों की झोली इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मंदिर में पूजा करने से अविवाहित लोगों के विवाह में आ रही तमाम तरह की रुकावटें दूर हो जाती है और व्यक्ति के दांपत्य जीवन भी सुखमय बनता है इस मंदिर का निर्माण भी अपने बेटे को लेकर परेशान लंढोरा रियासत की महारानी ने कराया था इस मंदिर की स्थापना के बाद से ही महारानी की हो गई थी सारी परेशानियां दूर

बाइट-- प्रतीक मिश्रपुरी---ज्योतिषाचार्य

कनखल का राधा कृष्ण का मंदिर जो करता है सबकी मुरादें पूरी मंदिर में पूजा करने से हो जाती है शादी और दूर हो जाते हैं सभी तरह के गृहक्लेश घर में आती है सुख शांति और गूंजती है घर आंगन में बच्चों की किलकारियां कनखल वैसे तो राजा दक्ष की राजधानी थी पर 18 वीं सदी में इस पर था लंढोरा के राजा का राज यह लैंडोरा विरासत का सबसे प्रमुख शहर माना जाता था यहां की महारानी धर्मकौर वैसे तो काफी धर्मप्रिय थी पर वह अपने बेटे की वजह से काफी परेशान रहती थी इसी को लेकर उन्होंने शुरू की थी तीर्थ यात्रा और जब वह पहुंची मथुरा और वृंदावन तो वहां पर उन्होंने एक कृष्ण मंदिर बनाने की इच्छा जताई तब रात को स्वप्न में स्वयं कृष्ण भगवान ने उन्हें दर्शन देकर कहा था कि वह यहां के बजाय गंगा के किनारे हरिद्वार के कनखल में उनका मंदिर बनवाए इसके बाद महारानी धर्मकौर ने कनखल में इस मंदिर का निर्माण करवाया

बाइट-- प्रतीक मिश्रपुरी---ज्योतिषाचार्य

इस मंदिर में दूर-दूर से लोग आते हैं श्रद्धा और आस्था के साथ इस मंदिर के प्रति लोगों में एक अटूट आस्था है लोगों को विश्वास है कि मुरली वाले ठाकुर जी उनकी हर मुरादों को पूरा करते हैं इस मंदिर में आस्था रखने वाले भक्तों का कहना है कि इस मंदिर में कुछ भी मांगा जाए वह सब पूरा होता है राधा कृष्ण के आशीर्वाद से जुड़वा बच्चे को जन्म देने वाले दंपत्ति का कहना है कि हमने इस मंदिर में आकर राधा कृष्ण के दरबार में दो बच्चों की मुराद मांगी थी राधा कृष्ण ने हमारी यह मुराद पूरी कर दी आज हम इस मंदिर में दोनों बच्चों के साथ पूजा करने आए हैं क्योंकि यह दोनों बच्चे राधा कृष्ण के आशीर्वाद से प्राप्त हुए हैं लड़का कृष्ण रूप में और लड़की राधा के रूप में हमें मिली है हमारी इस मंदिर में अटूट आस्था है और हमारा पूरा परिवार इस मंदिर में आता है

बाइट-- राधा कृष्ण भक्त


Conclusion:पीटीसी--------------------------------------------------

गंगा के किनारे विराजने वाले राधा कृष्ण की पूजा की शुरुआत करने के लिए वैसे तो सभी दिन अच्छे हैं पर माना जाता है कि यदि माघ मास की अष्टमी के दिन से मंदिर में पूजा की चालीसा शुरू की जाए तो वह विशेष फलदाई होती है कहा जाता है कि जब इस मंदिर की स्थापना हुई और मंदिर में राधा कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की गई तो दोनों प्रतिमाओं को एक एक करके सभी 108 अंगों को पहले मंत्रों से अभिमंत्रित किया गया जब एक अंग को अभिमंत्रित करना होता था तो उसी में पूरा एक दिन लग जाता था इस तरह से मंदिर में प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा 108 दिन में पूरी हुई थी इसी वजह से इस प्रतिमाओं को सिद्ध और जागृत माना जाता है
Last Updated : Aug 23, 2019, 1:25 PM IST
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