हरिद्वार: भगवान श्रीकृष्ण जिन्हें भगवान विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है.जिन्हें लोग उनके नटखट पन से कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से पुकारा जाता है. माना जाता है जिनकी कृपा मात्र से इंसान का जीवन धन्य हो जता है ऐसे है मां यशोदा के लाल. बात श्रीकृष्ण की हो तो देवभूमि कैसे अछूती रह सकती है. जिनका वास्ता धर्मनगरी के इस मंदिर से जुड़ा हुआ है. जहां लोग दूर-दूर से आकर शीष नवाते हैं.
मान्यता है कि कनखल स्थित राधा श्रीकृष्ण मंदिर में साक्षात शिव पार्वती विराजते हैं. यही नहीं यहां पर शिव कृष्ण नहीं बल्कि राधा के रूप में और पार्वती कृष्ण भगवान के रूप में विराजते हैं. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी अविवाहित सच्चे मन से 40 दिन तक यहां पर मंदिर में भगवान राधा कृष्ण की पूजा करता है. उसके विवाह में आ रही तमाम रुकावटें दूर हो जाती हैं. यही नहीं श्रद्धालुओं को मानना है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मुराद हमेशा पूरी होती है.
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पुराणों में है जिस नगरी का उल्लेख और जो है सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष की राजधानी कनखल में गंगा के किनारे अपनी लीलाओं से लोगों को मोह लेने वाले भगवान कृष्ण भी विराजते हैं. वैसे तो कृष्ण की नगरी यमुना के किनारे मथुरा और वृंदावन है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि कृष्ण भगवान राधा के साथ कनखल में भी विराजते हैं.
मान्यता है कि मंदिर में पूजा करने से अविवाहित लोगों के विवाह में आ रही तमाम तरह की रुकावटें दूर हो जाती है. इस मंदिर का निर्माण लंढोरा रियासत की महारानी ने कराया था. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना के बाद से ही महारानी की सारी परेशानियां दूर हो गई.
18 वीं सदी में इस पर था लंढोरा के राजा का राज यह लैंडोरा विरासत का सबसे प्रमुख शहर माना जाता था. महारानी धर्मकौर वैसे तो काफी धर्मप्रिय थी पर वह अपने बेटे की वजह से काफी परेशान रहती थी. एक बार तीर्थ यात्रा के दौरान जब वे मथुरा और वृंदावन पहुंची तो उन्होंने एक कृष्ण मंदिर बनाने की इच्छा जताई. तब स्वप्न में स्वयं भगवान कृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर कहा था कि वे यहां के बजाय गंगा के किनारे हरिद्वार के कनखल में उनका मंदिर बनवाएं.
इसके बाद महारानी धर्मकौर ने कनखल में इस मंदिर का निर्माण करवाया था. जहां लोग पूजा-अर्चना करने दूर-दूर से आते हैं. वैसे तो गंगा के किनारे विराजने वाले राधा कृष्ण की पूजा की शुरुआत करने के लिए सभी दिन अच्छे हैं. लेकिन माना जाता है कि माघ मास की अष्टमी के दिन से मंदिर में पूजा की चालीसा शुरू की जाए तो वह विशेष फलदाई होती है. साथ ही इस मंदिर को सिद्ध और जागृत मंदिर माना जाता है.