लक्सर: स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में उत्तराखंड के हालात किसी से छुपे नहीं है, बात मैदानी जिलों की हो या फिर पहाड़ी, प्रदेश में सभी जगह स्वास्थ्य सेवाएं राम भरोसे चल रही हैं. कोरोना काल में तो स्वास्थ्य सुविधाओं और सहूलियतों का मामला और गहरा गया है. यहां डॉक्टरों को बिना पीपीई किट और ग्लवस के भी ड्यूटी करनी पड़ रही है, कई जगहों पर तो हालात ये हैं कि बाहर से आने वाले प्रवासियों की जांच के लिए प्राइमरी स्कूल के टीचर्स को तैनात किया गया है.
मामला उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के खानपुर बॉर्डर का है, जहां शासन और प्रशासन की कार्यशैली ही उनकी लापरवाही की तस्दीक रही है. राज्य में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए अधिकारी इतने तत्पर हैं कि उन्होंने प्राइमरी स्कूलों के मास्टरों को ही डॉक्टर बना दिया, और उन्हें बिना हथियारों के ही फ्रंटफुट पर कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए छोड़ दिया है. टीचरों की डिग्री वाले 'डॉक्टर्स' और बॉर्डर के हालात का जायजा लेने के लिए ईटीवी भारत मौके पर पहुंचा, वहां जो भी नजर आया वो वाकई कई सवाल खड़े करने वाला है.
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लक्सर के खानपुर बॉर्डर पर प्रवासियों के मेडिकल चेकअप, ट्रेवल हिस्ट्री, एंट्री और व्यवस्थाओं के लिए लगाये टीचर्स ने पास न तो पीपीई किट थी और न ही ग्लब्स. यहां तैनात प्राइमरी स्कूल के मास्टर साहब तो केवल ड्यूटी कर रहे हैं. इस बावत हमने यहां तैनात संदीप से बात की जो दल्ला वाला गांव में प्राथमिक विद्यालय में टीचर हैं. उन्होंने बताया के वे और उनके साथी खानपुर बॉर्डर पर लोगों का मेडिकल चेकअप करने के लिए लगाये गये हैं.
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यहां साफ-साफ देखा जा सकता है कि ये बिना पीपीई किट और बिना ग्लव्स के ये दोनों टीचर लोगों का मेडिकल चेकअप कर रहे हैं. उनकी ट्रेवल हिस्ट्री पता कर रहे हैं. अब ऐसे में इन्हें कोरोना संक्रमण का खतरा बना हुआ है. साफ है कि ये स्वास्थ्य विभाग की बड़ी लापरवाही है.
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कलम और कागज से वास्ता रखने वालें इन भविष्य रचयिताओं को सरकार और प्रशासन के बीच पिसना पड़ रहा है. वहीं इस मामले में लक्सर उपजिलाधिकारी पूरन सिंह राणा ने बताया कि सीएचसी में डॉक्टरों की कमी और कुछ डॉक्टरों के सैंपलिंग में व्यस्त होने के कारण अध्यापकों की ड्यूटी बॉर्डर पर स्वास्थ्य परीक्षण के लिए लगाई गई है.
इस नाजुक दौर में भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन कर्मचारियों की कमी का रोना रो रहा है, जिसका खामियाजा बॉर्डर पर तैनात इन शिक्षकों को अतिरिक्त डूयटी करने भुगतना पड़ रहा है, नतीजा इन्हें सुविधा और संसाधनों के अभाव में दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है, जो कि सरकार के दावों के साथ ही सिस्टम की भी पोल खोलता है