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1139 लावारिस शवों की अस्थियों का गंगा में विसर्जन, राजस्थान की संस्था 97 साल से कर रही ये कार्य - haridwar latest news

हिंदू सेवा मंडल (Jodhpur Hindu Seva Mandal Sanstha) ने हरिद्वार की हरकी पैड़ी पहुंच कर लावारिस 1139 लोगों की अस्थियों को पूरे विधि-विधान के साथ आज गंगा में विसर्जित किया. संस्था के सचिव विष्णु चंद प्रजापत का कहना है कि संस्था की स्थापना सन 1925 में हुई थी. तभी से विभिन्न सामाजिक कार्यों के साथ लावारिस अस्थियों के विसर्जन का काम करते आ रहे हैं.

Haridwar Ganges
हरिद्वार में लावारिस शवों की अस्थियों का विसर्जन
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Published : Apr 26, 2022, 2:53 PM IST

हरिद्वार: लावारिस मरने वालों को मोक्ष दिलाने के लिए राजस्थान के जोधपुर की एक संस्था बीते कई दशकों से लगी हुई है. संस्था तमाम लावारिस शवों का न केवल अंतिम संस्कार कराती है, बल्कि उनको मोक्ष दिलाने के लिए उनकी अस्थियों को एकत्र कर सामूहिक रूप से उनको गंगा में विसर्जित भी करती है. हिंदू सेवा मंडल (Jodhpur Hindu Seva Mandal Sanstha) ने हरिद्वार की हरकी पैड़ी पहुंच कर लावारिस 1139 लोगों की अस्थियों को पूरे विधि-विधान के साथ आज गंगा में विसर्जित किया.

गंगा में विसर्जित करते हैं अस्थियां: लाल रंग के कपड़ों में टंगी इन मटकियों में उन अभागे लोगों की अस्थियां हैं, जिनकी मौत के समय कोई पहचान नहीं हो सकी और ना ही इनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई अपना था. लेकिन ऐसे लोगों की अस्थियां को गंगा में विसर्जित (Haridwar Unclaimed Bone Immersion) करने का काम जोधपुर की हिंदू सेवा मंडल नामक समिति कर रही है. इस संस्था से जुड़े 24 सदस्य बीते कई दशकों से पूरे साल अपने इलाके में लावारिस मरने वाले लोगों की अस्थियों को एकत्र करती है और साल में एक बार हरिद्वार पहुंच पूरे विधि-विधान से गंगा में विसर्जित करने का काम करती है.

पढ़ें-हरिद्वार श्मशान घाटों का फरमान, नहीं हैं अस्थियां रखने की जगह, दो घंटे में ले जाएं

कोविड काल में खोला अस्थि बैंक: संस्था के सचिव विष्णु चंद प्रजापत का कहना है कि संस्था की स्थापना सन 1925 में हुई थी. तभी से विभिन्न सामाजिक कार्यों के साथ लावारिस अस्थियों के विसर्जन का काम करते आ रहे हैं. इन लावारिस अस्थियां के लिए जोधपुर में पहले एक श्रद्धांजलि सभा रखी गई थी, जिसके बाद इन अस्थियों को लेकर हरिद्वार पहुंचे और आज इनको यहां पर पूरे विधि विधान से गंगा में विसर्जित किया गया है.

कोविड-19 में जब लोग अपनों के शवों का अंतिम संस्कार करने से कतराते थे, तब संस्था लगातार लावारिस और कोरोना वायरस संक्रमित लोगों के शवों का अंतिम संस्कार कर रही थी. जब लोग कोरोना वायरस संक्रमित अपने मृतकों की अस्थियों को हाथ नहीं लगाते थे, तब हमारी संस्था ने वहां पर एक अस्थि बैंक की स्थापना की और उस समय भी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया. अस्थि बैंक में 1000 से 1500 शवों की अस्थियों को रखने की व्यवस्था है.

हरिद्वार: लावारिस मरने वालों को मोक्ष दिलाने के लिए राजस्थान के जोधपुर की एक संस्था बीते कई दशकों से लगी हुई है. संस्था तमाम लावारिस शवों का न केवल अंतिम संस्कार कराती है, बल्कि उनको मोक्ष दिलाने के लिए उनकी अस्थियों को एकत्र कर सामूहिक रूप से उनको गंगा में विसर्जित भी करती है. हिंदू सेवा मंडल (Jodhpur Hindu Seva Mandal Sanstha) ने हरिद्वार की हरकी पैड़ी पहुंच कर लावारिस 1139 लोगों की अस्थियों को पूरे विधि-विधान के साथ आज गंगा में विसर्जित किया.

गंगा में विसर्जित करते हैं अस्थियां: लाल रंग के कपड़ों में टंगी इन मटकियों में उन अभागे लोगों की अस्थियां हैं, जिनकी मौत के समय कोई पहचान नहीं हो सकी और ना ही इनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई अपना था. लेकिन ऐसे लोगों की अस्थियां को गंगा में विसर्जित (Haridwar Unclaimed Bone Immersion) करने का काम जोधपुर की हिंदू सेवा मंडल नामक समिति कर रही है. इस संस्था से जुड़े 24 सदस्य बीते कई दशकों से पूरे साल अपने इलाके में लावारिस मरने वाले लोगों की अस्थियों को एकत्र करती है और साल में एक बार हरिद्वार पहुंच पूरे विधि-विधान से गंगा में विसर्जित करने का काम करती है.

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कोविड काल में खोला अस्थि बैंक: संस्था के सचिव विष्णु चंद प्रजापत का कहना है कि संस्था की स्थापना सन 1925 में हुई थी. तभी से विभिन्न सामाजिक कार्यों के साथ लावारिस अस्थियों के विसर्जन का काम करते आ रहे हैं. इन लावारिस अस्थियां के लिए जोधपुर में पहले एक श्रद्धांजलि सभा रखी गई थी, जिसके बाद इन अस्थियों को लेकर हरिद्वार पहुंचे और आज इनको यहां पर पूरे विधि विधान से गंगा में विसर्जित किया गया है.

कोविड-19 में जब लोग अपनों के शवों का अंतिम संस्कार करने से कतराते थे, तब संस्था लगातार लावारिस और कोरोना वायरस संक्रमित लोगों के शवों का अंतिम संस्कार कर रही थी. जब लोग कोरोना वायरस संक्रमित अपने मृतकों की अस्थियों को हाथ नहीं लगाते थे, तब हमारी संस्था ने वहां पर एक अस्थि बैंक की स्थापना की और उस समय भी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया. अस्थि बैंक में 1000 से 1500 शवों की अस्थियों को रखने की व्यवस्था है.

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