हरिद्वारः नागा संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े में सभी चारों मढ़ियों चार, सोलह, तेरह व चौदह में दीक्षित होने वाले नागाओं की दीक्षा की प्रक्रिया शुरू हो गई है. पहले मुंडन प्रक्रिया दुखहरण हनुमान मंदिर के पास स्थित धर्मध्वजा तणियों के नीचे की गई. मुंडन के बाद सभी नागाओं ने अलकनंदा घाट पर गंगा स्नान किया. वहीं, नागाओं ने खुद का श्राद्ध कर्म भी किया.
जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय सचिव श्रीमहंत मोहन भारती ने बताया कि आज करीब एक हजार नागा संन्यासियों को दीक्षित करने की प्रक्रिया शुरू हुई. नागा संन्यास प्रक्रिया शुरू होने पर सबसे पहले सभी इच्छुक नागा संन्यासियों का मुंडन किया गया. फिर सभी ने गंगा स्नान किया. उन्होंने कहा कि इस दौरान संन्यासी स्नान करते हुए अपनाश्राद्ध, तर्पण पंडितों के मंत्रोच्चार के बीच करते हैं. इसके बाद वापस धर्मध्वजा की तणियों के नीचे बीरजा होम में सभी संन्यासी भाग लेंगे. अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की ओर से सभी को प्रेयस मंत्र दिया जाएगा. प्रेयस मंत्र के बाद दोबारा गंगा स्नान किया जाएगा. जहां से उनका शिखा विच्छेदन किया जाएगा.
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नागा संन्यासी बनने के लिए देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा
श्री महंत मोहन भारती ने बताया कि नागा संन्यासी बनने के लिए कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. इसके लिए सबसे पहले नागा संन्यासी को महापुरुष के रूप में दीक्षित कर अखाड़े में शामिल किया जाता है. तीन सालों तक महापुरुष के रूप में दीक्षित संन्यासी को संन्यास के कड़े नियमों का पालन करते हुए गुरू सेवा के साथ-साथ अखाड़े में विभिन्न कार्य करने पड़ते हैं. तीन साल की कठिन साधना में खरा उतरने के बाद कुंभ पर्व पर उसे नागा बनाया जाता है.
यह समस्त प्रक्रिया अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की देखरेख में संपन्न होती है. सुबह सभी संन्यासी पवित्र नदी तट पर पहुंचकर स्नान कर संन्यास घारण करने का संकल्प लेते हुए डुबकी लगाते हैं. गायत्री मंत्र के जाप के साथ सूर्य, चंद्र, अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, दशों दिशाओं, सभी देवी-देवताओं को साक्षी मानते हुए खुद को संन्यासी घोषित कर जल में डुबकी लगाएंगे. उसके बाद ही आचार्य महामंडलेश्वर की ओर से नव दीक्षित नागा संन्यासी को प्रेयस मंत्र प्रदान किया जाएगा.