हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार अपने प्राचीन इतिहास और पैराणिक महत्व के लिए विश्व विख्यात है. यहां आध्यात्म से जुड़े कई स्थल हैं. महाभारत काल से जुड़ा पौराणिक तीर्थ स्थल भीमकुंड भी इन्हीं में से एक है. मगर शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण आज ये भीमकुंड बदहाली की मार झेल रहा है. हालांकि इस कुंड के पौराणिक महत्व को देखते हुए इसे महाभारत सर्किट से जोड़ा गया है. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि इसके सौंदर्यीकरण के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, बजट स्वीकृत होते ही इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा.
भीमकुंड की पौराणिक महता
हरिद्वार के भीमगौड़ा स्थित भीमकुंड का पौराणिक इतिहास है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव हरिद्वार आए थे. यहां आकर उन्होंने अपने ही भाइयों के संहार की ग्लानि से निजात पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी. जिस वक्त पांडव यहां तपस्या कर रहे थे, इसी बीच माता कुंती को बहुत प्यास लगी. उनकी प्यास बुझाने के लिए भीम ने अपना घुटना जमीन में मारा. जहां से पानी की धारा निकलने लगी. तब से ही इस स्थान को भीमगौड़ा के नाम से जाना जाता है. यहां स्थित शिवलिंग भी 5 हजार साल पुराना है, जिसे भीम ने स्वयं स्थापित किया था. पुरातत्व विभाग की टीम भी इसका सर्वेक्षण कर चुकी है.
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बदहाल भीमकुंड
स्थानीय लोग बताते हैं कुछ साल पहले तक कुंड में साफ पानी भरा होता था. जिसमें सिक्का भी चमकता था. मगर बीतते वक्त के साथ ही इसकी हालत खराब होती चली गई. लोग बताते हैं कि भीमकुंड के आसपास सीवर का पानी भरा है. जिसके कारण इस कुंड के पानी में बदबू आ रही है. यहां अंग्रेजों ने इस कुंड तक पानी पहुंचाने के लिए एक सुरंग बनाई थी. फिलहाल भीमकुंड में सीवर युक्त पानी की रोकथाम के लिए भी कोई व्यवस्था तक नहीं है. माना जाता है कि हरकी पैड़ी स्नान के बाद अगर कोई इस स्थान पर स्नान न करें तो उसकी हरिद्वार की यात्रा फलीभूत नहीं होती है.
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सौंदर्यीकरण के लिए कई बार किये जा चुके प्रयास
स्थानीय लोग इस कुंड के सौंदर्यीकरण के लिए कई बार प्रयास कर चुके हैं. स्थानीय पार्षद इसके लिए एचआरडीए दफ्तर के बाहर धरना दे चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके प्रशासन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. स्थानीय पार्षद कैलाश भट्ट ने बताया कि वे 2017 से सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर भीमकुंड में गंगाजल लाने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए वे मेला अधिकारी, जिला अधिकारी, एचआरडीए पर्यटन विभाग सभी को पत्र दे चुके हैं. मेला अधिकारी दीपक बाकायदा इसके लिए भीमकुंड का निरीक्षण भी कर चुके हैं. मगर अभी तक यहां के लिए कुछ नहीं किया गया.
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उन्होंने कहा ब्रिटिश शासन इसकी महत्वता को समझते हुए इस कुंड में गंगाजल ला सकता है, तो स्वतंत्र भारत में इसमें गंगाजल क्यों नहीं लाया जा सकता? वे बताते हैं कि कुछ साल पहले इस कुंड में गंगाजल आता था, मगर साफ-सफाई न होने और प्रशासन की अनदेखी के कारण अब यहां के हालात बदल गये है. पार्षद कैलाश भट्ट का कहना है कि भीमकुंड आज सरकारी उपेक्षा और राजनीतिकरण के कारण बदहाल अवस्था में हैं. वे लगाताार इसके सौंदर्यीकरण की मांग कर रहे हैं.
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महाभारत सर्किट से जोड़ा गया है भीमकुंड
वहीं, बात अगर पर्यटन विभाग की करें तो उसने इस कुंड के पौराणिक महत्व को समझते हुए इसे महाभारत सर्किट से जोड़ा है, मगर इसकी कुंड की साफ-सफाई के लिए अभी तक कुछ भी काम नहीं किया है. कुंभ तथा अर्ध कुंभ में इस कुंड के रखरखाव के नाम पर लाखों रुपए की योजनाएं बनाकर पैसा ठिकाने लगा दी जाती हैं, मगर व्यवस्थाएं जस की तस रहती हैं. पर्यटन मंत्री और हरिद्वार प्रभारी मंत्री सतपाल महाराज से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा कि इसके सौंदर्यीकरण के लिए उन्होंने महाभारत सर्किट को प्रस्ताव भेजा है. जैसे ही जब बजट स्वीकृत होगा इसके सौंदर्यीकरण का काम भी शुरू हो जाएगा.
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कुल मिलाकर कहा जाये तो आज धर्मनगरी हरिद्वार के कई ऐसे स्थान हैं,जो पौराणिक महत्व रखते हैं, मगर सरकार और शासन की अनदेखी के चलते वे सभी अपने मूल स्वरूप को खोते जा रहे हैं. भीमकुंड भी इन्ही में से एक है. नाम के लिए इस कुंड को महाभारत सर्किट से जोड़ा तो गया है, मगर उस लिहाज से जितना ध्यान इस ओर दिया जाना था, नहीं दिया गया. जिसके कारण हर बीतते दिन के साथ इस तरह के पैराणिक आस्था वाले स्थान अपनी पहचान खोते जा रहे हैं.