हरिद्वार: नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है. नवरात्रि में हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पांचवें दिन स्कन्दमाता की पूजा-अर्चना की जाती है. मां स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है. यह कमल के आसन पर विराजमान हैं. इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है.
हरिद्वार के मां चंडी देवी मंदिर की मान्यता धर्मनगरी के साथ-साथ सिद्धपीठ एवं शक्ति पीठ की भूमि कहे जाने वाले हरिद्वार में मां दुर्गा के अनेक मंदिर हैं. इनमें से एक यहां का प्रख्यात मां चंडी देवी का मंदिर है. देश में मौजूद 52 पीठों में से एक नील पर्वत पर स्थित इस मंदिर में मां दुर्गा दो रूपों में विराजमान हैं. एक रूप में मां चंडी खंभ के रूप में विराजमान हैं. वहीं, दूसरे रूप में माता मंगल चंडिका के रूप में विराजमान हैं.
चंडी देवी मंदिर के मुख्य पुजारी महंत रोहित गिरि के मुताबिक इस प्राचीन मंदिर में हर साल भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन, मान्यता है कि नवरात्रों के दौरान जो भक्त माता के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना करता है, मां उसकी हर मनोकामना पूरी करती हैं. मां चंडी देवी की महिमा यह है कि धार्मिक मान्यता गंगा से सटे नील पर्वत पर स्थित मां चंडी का दरबार आदि काल से है.
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मां चंडी ने किया था दैत्यों का वधः पौराणिक कथाओं में है जब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर ने इस धरती पर प्रलय मचाया, तब देवताओं ने उनका संहार करने का प्रयास किया. जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने भगवान भोलेनाथ के दरबार में दोनों के संहार के लिए गुहार लगाई. भगवान भोलेनाथ एवं देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया और चंडी रूप धारण कर उन दैत्यों को दौड़ाया. तब शुंभ, निशुंभ इस नील पर्वत पर मां चंडी से बच कर छिप गए. तब मां चंडी ने यहां पर खंभ के रूप में प्रकट होकर दोनों का वध किया. इसके बाद देवताओं के निवेदन पर मां चंडी इसी स्थान पर विराजमान हुईं और आदिकाल से अपने भक्तों का कल्याण कर रही हैं.
वहीं, मंगल चंडिका आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा आठवीं शताब्दी में स्थापित की गई. मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंगल चंडिका का ध्यान किया जाता है. नवरात्रि के समय में जो भी भक्त माता से मन्नतें मांगते हैं, मां उसे जरूर पूरा करती हैं. मां चंडी देवी मंदिर के पुजारी पंकज रतूड़ी के मुताबिक 8वीं शताब्दी में मां चंडी देवी का जीर्णोद्धार जगदगुरु आदि शंकराचार्य ने विधिवत रूप से कराया था. इसके बाद कश्मीर के राजा सुचेत सिंह ने 1872 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया. मां रुद्र चंडी एक खंभे के रूप में स्वयंभू अवतरित हैं.
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दूर-दूर से आते हैं भक्तः वहीं, हरिद्वार में मां चंडी देवी के द्वार अलग-अलग राज्यों से मां के भक्त पहुंचते हैं, जिनका कहना है कि यहां सच्चे हृदय से मनोकामना करता है तो मां उसकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उसके सभी कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं. यही नहीं, नवरात्र में चंडी देवी की आराधना करने का विशेष लाभ होता है.
धागा बांधकर मांगी जाती है मुरादः हरिद्वार के पंडित राजकुमार मिश्रा का कहना है मां चंडी देवी से मांगी गई मुराद के लिए यहां पर मंदिर में धागा बांधा जाता है. कामना पूरी होने पर भक्तों को इस धागे को खोलने के लिए यहां आना पड़ता है. मन्नत मांगने के लिए मां चंडी देवी मंदिर में नवरात्रि में भक्तों का तांता लगाता है. नील पर्वत पर स्थित मां चंडी देवी मंदिर में साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है. यहां पहुंचने वाले भक्त तीन किमी पैदल चल कठिन चढ़ाई को पार करते हैं और मां के दरबार तक पहुंचते हैं.
नवरात्रि के बाद मां चंडी देवी मंदिर में चंडी चौदस का मेला भी लगता है. इस चंडी चौदस के मेले के दौरान भी सैकड़ों भक्त मां चंडी देवी की पूजा कर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की कामना करते हैं.
ऐसे पहुंचें मंदिरः मां चंडी देवी मंदिर हरिद्वार रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन से करीब 3 किलोमीटर दूर है. यहां ऑटो, बैटरी रिक्शा, टैक्सी के अलावा निजी वाहनों से पहुंचा जा सकता है. श्रद्धानुसार भक्त 3 किलोमीटर पैदल चल कर कठिन चढ़ाई को पार करते हुए मां के दरबार तक पंहुचते हैं. यहां उड़नखटोले (ट्रॉली) से भी पहुंचा जा सकता है.