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हरिद्वार का नीलेश्वर महादेव मंदिर, जहां भगवान शिव ने किया तांडव - क्रोधित होकर शिव ने तांडव

देवभूमि उत्तराखंड भगवान भोलेनाथ का प्रिय स्थल है, हमारी इस खास रिपोर्ट में पढ़िए भोलेनाथ के ससुराल कनखल के पास वो कौन सा स्थान है, जहां क्रोधित होकर शिव ने तांडव किया था.

Nileshwar Mahadev
नीलेश्वर महादेव मंदिर
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Published : Jul 19, 2020, 4:41 PM IST

Updated : Jul 20, 2020, 3:36 PM IST

हरिद्वार: धर्म शास्त्रों में पर्वतों एवं वनों में बसे देवी-देवताओं की महिमा अपार बताई गई है. देवभूमि उत्तराखंड का सनातन हिन्दू संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है और भगवान भोलेनाथ का प्रिय स्थल है. आइये जानते हैं हरिद्वार के नील पर्वत के बारे में, जहां नीलेश्वर महादेव के रूप में भगवान शिव ने तांडव किया था.

हिंदू धर्म में सावन के महीने का बहुत महत्व है और श्रावण मास को मनोकामनाएं पूरा करने का महीना भी कहा जाता है. धर्मनगरी के नील पर्वत पर स्थित नीलेश्वर महादेव मंदिर का अस्तित्व आदिकाल से माना जाता है. शिव महापुराण में भी नीलेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख मिलता है. नीलेश्वर महादेव मंदिर भी दक्षेश्वर मंदिर के काल से ही यहां स्थित है. हरिद्वार और कनखल में भगवान शंकर, सती और पार्वती के अनेक चिन्ह बिखरे हुए हैं. भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए पूरे श्रावण मास इन पौराणिक मंदिरों में श्रद्धालु रुद्राभिषेक करने पहुंचते हैं.

पौराणिक मान्यता है कि मां सती भगवान शिव के मना करने के बावजूद यज्ञ में शामिल होने के लिए पिता दक्ष के पास कनखल आई थीं. इसी दौरान भगवान शिव का अपमान होता देख मां सती ने हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे. जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे क्रोधित हो उठे. उन्होंने अपने गणों को यज्ञ नष्ट करने और राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दिया.

नीलेश्वर महादेव मंदिर की महिमा.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के पंचकेदार का जानिए महत्ता, सावन में दर्शन का है विशेष महत्व

शिव महापुराण के मुताबिक सती के यज्ञ कुंड में प्राण त्यागने के बाद भगवान शिव बेहद क्रोधित हो गए थे. अपने प्रचंड क्रोध के कारण भगवान शिव का पूरा शरीर नीला हो गया और उन्होंने जमकर तांडव किया. जिसकी वजह से पर्वत का नाम नील पर्वत पड़ा और जहां भगवान शिव का मंदिर स्थापित है, उसे नीलेश्वर महादेव कहा गया. कहा जाता है कि नील धारा के रूप में गंगा भगवान शिव के चरणों को प्रणाम करती है.

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि नीलेश्वर महादेव मंदिर भी दक्षेश्वर मंदिर के काल से ही यहां स्थित है. मंदिर में उत्तराभिमुख ढाई फीट ऊंचा स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है. ऐसे में अगर कोई सावन में भोलेनाथ का जलाभिषेक करता है और विशेषकर दो गुरुवार पूजा-अर्चना करता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है. मान्यता है कि स्वयंभू शिवलिंग के भीतर छोटे-छोटे एक हजार शिवलिंग हैं. ऐसे में यहां पर जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं को एक हजार शिवलिंग पर जलाभिषेक का पुण्य प्राप्त होता है.

हरिद्वार एक ऐसा शहर है जिसे लोग मोक्ष का द्वार मानते हैं. देवभूमि उत्तराखंड के हर शिखर पर कोई न कोई मंदिर स्थापित है. इसके साथ ही नदी का संगम स्थल भी देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक मान्यताओं का प्रमुख बिंदु केंद्र है. इसीलिए सावन के मौके पर नीलेश्वर महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है.

हरिद्वार: धर्म शास्त्रों में पर्वतों एवं वनों में बसे देवी-देवताओं की महिमा अपार बताई गई है. देवभूमि उत्तराखंड का सनातन हिन्दू संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है और भगवान भोलेनाथ का प्रिय स्थल है. आइये जानते हैं हरिद्वार के नील पर्वत के बारे में, जहां नीलेश्वर महादेव के रूप में भगवान शिव ने तांडव किया था.

हिंदू धर्म में सावन के महीने का बहुत महत्व है और श्रावण मास को मनोकामनाएं पूरा करने का महीना भी कहा जाता है. धर्मनगरी के नील पर्वत पर स्थित नीलेश्वर महादेव मंदिर का अस्तित्व आदिकाल से माना जाता है. शिव महापुराण में भी नीलेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख मिलता है. नीलेश्वर महादेव मंदिर भी दक्षेश्वर मंदिर के काल से ही यहां स्थित है. हरिद्वार और कनखल में भगवान शंकर, सती और पार्वती के अनेक चिन्ह बिखरे हुए हैं. भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए पूरे श्रावण मास इन पौराणिक मंदिरों में श्रद्धालु रुद्राभिषेक करने पहुंचते हैं.

पौराणिक मान्यता है कि मां सती भगवान शिव के मना करने के बावजूद यज्ञ में शामिल होने के लिए पिता दक्ष के पास कनखल आई थीं. इसी दौरान भगवान शिव का अपमान होता देख मां सती ने हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे. जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वे क्रोधित हो उठे. उन्होंने अपने गणों को यज्ञ नष्ट करने और राजा दक्ष का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दिया.

नीलेश्वर महादेव मंदिर की महिमा.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड के पंचकेदार का जानिए महत्ता, सावन में दर्शन का है विशेष महत्व

शिव महापुराण के मुताबिक सती के यज्ञ कुंड में प्राण त्यागने के बाद भगवान शिव बेहद क्रोधित हो गए थे. अपने प्रचंड क्रोध के कारण भगवान शिव का पूरा शरीर नीला हो गया और उन्होंने जमकर तांडव किया. जिसकी वजह से पर्वत का नाम नील पर्वत पड़ा और जहां भगवान शिव का मंदिर स्थापित है, उसे नीलेश्वर महादेव कहा गया. कहा जाता है कि नील धारा के रूप में गंगा भगवान शिव के चरणों को प्रणाम करती है.

ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्रपुरी का कहना है कि नीलेश्वर महादेव मंदिर भी दक्षेश्वर मंदिर के काल से ही यहां स्थित है. मंदिर में उत्तराभिमुख ढाई फीट ऊंचा स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है. ऐसे में अगर कोई सावन में भोलेनाथ का जलाभिषेक करता है और विशेषकर दो गुरुवार पूजा-अर्चना करता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है. मान्यता है कि स्वयंभू शिवलिंग के भीतर छोटे-छोटे एक हजार शिवलिंग हैं. ऐसे में यहां पर जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं को एक हजार शिवलिंग पर जलाभिषेक का पुण्य प्राप्त होता है.

हरिद्वार एक ऐसा शहर है जिसे लोग मोक्ष का द्वार मानते हैं. देवभूमि उत्तराखंड के हर शिखर पर कोई न कोई मंदिर स्थापित है. इसके साथ ही नदी का संगम स्थल भी देश-दुनिया के श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक मान्यताओं का प्रमुख बिंदु केंद्र है. इसीलिए सावन के मौके पर नीलेश्वर महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने का विशेष महत्व होता है.

Last Updated : Jul 20, 2020, 3:36 PM IST
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