हरिद्वार: शनिवार को फागुन मास की महाशिवरात्रि है. महाशिवरात्रि का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसे में धर्मनगरी हरिद्वार से कांवड़िये अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गए. महाशिवरात्रि से पहले हरिद्वार आए कांवड़िये अपने गंतव्य पर पहुंचकर अपने घर के पास के मंदिर पर जलाभिषेक कर भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करेंगे.
वैसे तो हर साल लाखों की तादात में कांवड़िये धर्मनगरी हरिद्वार में चाहे फागुन की महाशिवरात्रि हो या फिर सावन मेला हो इस दौरान आते हैं. शिव भक्त कांवड़ उठा कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करते हैं. लेकिन इस कांवड़ के भी कई नियम और कांवड़ को सजाने के तरीके होते हैं. आज ईटीवी भारत आपको कांवड़ के नियमों और किन आभूषणों से कांवड़ को सजाया जाता है इसके बारे में बताएगा.
इन आभूषणों से सजाते हैं कांवड़: आपने देखा होगा कि कांवड़ में सर्प और तोते को कांवड़ियों द्वारा लगाया जाता है. इसका विशेष महत्व होता है. पंडित मनोज त्रिपाठी बताते हैं कि कांवड़ को सजाने के लिए कुछ विशेष आभूषण होते हैं, जिन्हें अनादि काल से उपयोग में लाया जाता रहा है. जो कांवड़ भगवान परशुराम ने उठाई थी उसको सजाने के लिए उन्होंने सर्प और तोते का उपयोग किया था. इसीलिए कांवड़ पर थी आभूषणों में सर्प और तोता विशेष है.
सर्प को लेकर है ये मान्यता: सर्प को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव का सबसे प्रिय आभूषण सर्प होता है. इसीलिए सर्प को भगवान भोलेनाथ ने अपने कंठ के आभूषण के रूप में अपनाया. वहीं सर्प का अर्थ कामना होता है. कामनाओं की पूर्ति के लिए भी सर्प को भगवान भोलेनाथ ने अपना प्रिय आभूषण बनाया था. कांवड़ पर सर्प लगाने से किसी की कुदृष्टि कांवड़ नहीं पड़ती है. इसी के साथ कांवड़िया की मनोकामना पूर्ण होती है. ऐसा माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ सर्प के रूप में लोगों की मनोकामना को अपने कंठ पर रखते हैं. इसलिए सर्प कांवड़ के लिए विशेष आभूषण माना गया है.
कांवड़ में तोते का महत्व: वहीं तोता सुखदेव भगवान का रूप होता है. सुखदेव भगवान का कार्य होता है परिवार और सृष्टि को सुख प्रदान करना. इसी के साथ कांवड़ पर तोता यानी सुखदेव भगवान को लगाने से कांवड़िए भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके परिवार में सुख शांति और प्रेम बनाए रखें और परिवार में आनंद ही आनंद हो. जिस तरह तोते के बोलने से मिठास उत्पन्न होती है, उसी तरह कांवड़ पर तोते को लगाने से कांवड़ियों के घर में हमेशा सुख शांति व प्रेम बना रहता है. इसीलिए तोता कांवड़ का विशेष आभूषण माना गया है.
ये भी पढ़िए: Mahashivratri 2023: हरिद्वार में 40 लाख से ज्यादा कांवड़ियों के आने की उम्मीद, तैयारियों में जुटा प्रशासन
कांवड़ के नियम: कांवड़ यात्रा ले जाने के कई नियम होते हैं, जिनको पूरा करने का हर कांवड़िया संकल्प करता है. यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, मदिरा, मांस और तामसिक भोजन वर्जित माना गया है. कांवड़ को बिना स्नान किए हाथ नहीं लगा सकते. चमड़ा का स्पर्श नहीं करना चाहिए. वाहन का प्रयोग नहीं करना चाहिए. चारपाई का उपयोग नहीं करना, वृक्ष के नीचे भी कांवड़ नहीं रखना, कांवड़ को अपने सिर के ऊपर से लेकर जाना भी वर्जित माना गया है. साथ ही गूलर के पेड़ से निकलना भी कांवड़ के दौरान गलत है. माना जाता है कि गूलर के पेड़ में प्रेत निवास करता है. इसलिए गूलर के पेड़ की नीचे से निकलने से कांवड़ खंडित हो जाती है.