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अखाड़ा परिषद की 'कहानी' संतों की जुबानी, पढ़िए नेहरू जी से नाता - History of Akhil Bharatiya Akhara Parishad

देश आजाद होने के बाद 1954 में इलाहाबाद के कुंभ में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आये थे. तब उन्होंने यहां कुंभ स्नान किया था. 1954 में इलाहाबाद कुंभ में श्रद्धालुओं में भगदड़ मची थी. जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी. जिसके कारण 13 अखाड़ों ने मिलकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की. सभी अखाड़ों के दो-दो पदाधिकारी इसमें शामिल किये गये. तब से लेकर आज तक यह व्यवस्था चली आ रही है.

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अखाड़ा परिषद की 'कहानी',संतों की जुबानी
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Published : Feb 25, 2021, 6:41 PM IST

Updated : Feb 25, 2021, 10:40 PM IST

हरिद्वार: कुंभ मेले में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही सभी अखाड़ों में साधु सतों की व्यवस्था के लिए मेला प्रशासन और शासन से बात करता है. आखिर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना क्यों करनी पड़ी? देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से इसका क्या है नाता है? आपको सबकुछ हम अपनी खास रिपोर्ट में बताएंगे.

अखाड़ा परिषद की 'कहानी' संतों की जुबानी

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तेरह अखाड़ों की प्रमुख संस्था है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही देश में होने वाले चारों कुंभों में मेला प्रशासन और शासन से साधु-संतों की सुविधाओं को लेकर बात करता है. इस संस्था की स्थापना 1954 के प्रयागराज कुंभ में हुए हादसे के बाद की गई. तब से लेकर आज तक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद कुंभ मेले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है. अखाड़ा परिषद ही मेले में व्यवस्थाओं, सुविधाओं और मूलभूत जरूरतों के लिए शासन-प्रशासन से बात करता है. उनकी बैठकों में ही सभी व्यवस्थाओं को लेकर निर्णय लिये जाते हैं.

क्या होते हैं अखाड़े

अखाड़े एक तरह से हिंदू धर्म के मठ कहे जा सकते हैं. शुरू में केवल चार प्रमुख अखाड़े थे. लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया. आज 13 प्रमुख अखाड़े हैं. कुंभ ऐसा अवसर है जहां आध्यात्मिक और धार्मिक विचार-विमर्श होता है. अखाड़े अपनी-अपनी परंपराओं में शिष्यों को दीक्षित करते हैं और उन्हें उपाधि देते हैं.

अखाड़ों का इतिहास

शंकराचार्य के आविर्भाव काल सन 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की गई. बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए. इनमें सात पंचायती अखाड़े आज भी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत समाज में कार्यरत हैं.

कौन-कौन से हैं अखाड़े

आवाहन अखाड़ा, अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, दशनामी, निरंजनी और जूना अखाड़ों का भी कई सदियों का इतिहास है. सभी अखाड़ों के अपने-अपने विधि-विधान और नियम हैं.

मोटे तौर पर 13 अखाड़े तीन समूहों में बंटे हुए हैं. शैव अखाड़े जो शिव की भक्ति करते हैं, वैष्णव अखाड़े विष्णु के भक्त हैं. तीसरा संप्रदाय उदासीन पंथ कहलाता है. उदासीन पंथ के लोग गुरु नानक की वाणी से बहुत प्रेरित हैं, और पंचतत्व यानी धरती, अग्नि, वायु, जल और आकाश की उपासना करते हैं

पढ़ें- ATS में शामिल होगा पहला महिला कमांडो दस्ता, महाकुंभ में लगेगी ड्यूटी

अखाड़ा परिषद की कहानी संतों की जुबानी

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना को लेकर इसके अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि बताते हैं कि देश आजाद होने के बाद 1954 में इलाहाबाद के कुंभ में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आये थे. तब उन्होंने यहां कुंभ स्नान किया था. 1954 में इलाहाबाद कुंभ में श्रद्धालुओं में भगदड़ मची थी. जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी. जिसके कारण 13 अखाड़ों ने मिलकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की. सभी अखाड़ों के दो-दो पदाधिकारी इसमें शामिल किये गये. तब से लेकर आज तक यह व्यवस्था चली आ रही है.

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पढ़ें- 12 से 14 मार्च तक होगा चिरबटिया नेचर फेस्टिवल, पोस्टर का विमोचन

अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि अगर कहीं पर सनातन परंपरा के विरुद्ध कार्य होता है तब भी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद उस पर कार्रवाई करता है. अखाड़ा परिषद गठन से पहले कई अखाड़ों में झगड़े हो जाते थे. मगर अखाड़ा परिषद के गठन के बाद से ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है.

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पढ़ें- त्रिवेंद्र सरकार के आखिरी बजट पर टिकी विपक्ष और जनता की निगाहें, सरकार ने तैयार किया फुलप्रूफ प्लान

वहीं, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रविंद्र पुरी बताते हैं कि 1954 प्रयागराज कुंभ में शासन द्वारा व्यवस्थाएं नहीं हो पाई थीं. जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी यहां पहुंचे थे. यहां तब जो अस्थाई पुल बनाए गए थे वो टूट गए. जिससे कई लोगों को जान चली गई. जिसके बाद मेला प्रशासन और शासन के साथ व्यवस्थाओं को लेकर श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव अनंतपुरी महाराज ने पहल की. तब सभी अखाड़ों के पदाधिकारियों ने बैठक कर एक समिति बनाई. जिसमें निर्णय लिया गया कि भविष्य में कहीं पर भी कुंभ मेला होता है तो उससे जुड़ी व्यवस्थाओं को लेकर ये समिति ही शासन-प्रशासन से बात करेगा.

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना होने के बाद सभी कुंभ मेले की व्यवस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा ही की जाती है. इसमें सभी तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जो मेला प्रशासन और शासन से सभी प्रकार की व्यवस्थाओं को लेकर बैठक करते हैं. उन बैठकों में कुंभ मेले की व्यवस्थाओं को लेकर निर्णय लिए जाते हैं. जिससे साधु-संतों और बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े.

हरिद्वार: कुंभ मेले में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही सभी अखाड़ों में साधु सतों की व्यवस्था के लिए मेला प्रशासन और शासन से बात करता है. आखिर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना क्यों करनी पड़ी? देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से इसका क्या है नाता है? आपको सबकुछ हम अपनी खास रिपोर्ट में बताएंगे.

अखाड़ा परिषद की 'कहानी' संतों की जुबानी

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद तेरह अखाड़ों की प्रमुख संस्था है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही देश में होने वाले चारों कुंभों में मेला प्रशासन और शासन से साधु-संतों की सुविधाओं को लेकर बात करता है. इस संस्था की स्थापना 1954 के प्रयागराज कुंभ में हुए हादसे के बाद की गई. तब से लेकर आज तक अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद कुंभ मेले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है. अखाड़ा परिषद ही मेले में व्यवस्थाओं, सुविधाओं और मूलभूत जरूरतों के लिए शासन-प्रशासन से बात करता है. उनकी बैठकों में ही सभी व्यवस्थाओं को लेकर निर्णय लिये जाते हैं.

क्या होते हैं अखाड़े

अखाड़े एक तरह से हिंदू धर्म के मठ कहे जा सकते हैं. शुरू में केवल चार प्रमुख अखाड़े थे. लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया. आज 13 प्रमुख अखाड़े हैं. कुंभ ऐसा अवसर है जहां आध्यात्मिक और धार्मिक विचार-विमर्श होता है. अखाड़े अपनी-अपनी परंपराओं में शिष्यों को दीक्षित करते हैं और उन्हें उपाधि देते हैं.

अखाड़ों का इतिहास

शंकराचार्य के आविर्भाव काल सन 788 से 820 के उत्तरार्द्ध में देश के चार कोनों में चार शंकर मठों और दसनामी संप्रदाय की स्थापना की गई. बाद में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के अनेक अखाड़े प्रसिद्ध हुए. इनमें सात पंचायती अखाड़े आज भी अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत समाज में कार्यरत हैं.

कौन-कौन से हैं अखाड़े

आवाहन अखाड़ा, अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, दशनामी, निरंजनी और जूना अखाड़ों का भी कई सदियों का इतिहास है. सभी अखाड़ों के अपने-अपने विधि-विधान और नियम हैं.

मोटे तौर पर 13 अखाड़े तीन समूहों में बंटे हुए हैं. शैव अखाड़े जो शिव की भक्ति करते हैं, वैष्णव अखाड़े विष्णु के भक्त हैं. तीसरा संप्रदाय उदासीन पंथ कहलाता है. उदासीन पंथ के लोग गुरु नानक की वाणी से बहुत प्रेरित हैं, और पंचतत्व यानी धरती, अग्नि, वायु, जल और आकाश की उपासना करते हैं

पढ़ें- ATS में शामिल होगा पहला महिला कमांडो दस्ता, महाकुंभ में लगेगी ड्यूटी

अखाड़ा परिषद की कहानी संतों की जुबानी

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना को लेकर इसके अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि बताते हैं कि देश आजाद होने के बाद 1954 में इलाहाबाद के कुंभ में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू आये थे. तब उन्होंने यहां कुंभ स्नान किया था. 1954 में इलाहाबाद कुंभ में श्रद्धालुओं में भगदड़ मची थी. जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी. जिसके कारण 13 अखाड़ों ने मिलकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की. सभी अखाड़ों के दो-दो पदाधिकारी इसमें शामिल किये गये. तब से लेकर आज तक यह व्यवस्था चली आ रही है.

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अखाड़ा परिषद की 'कहानी' संतों की जुबानी

पढ़ें- 12 से 14 मार्च तक होगा चिरबटिया नेचर फेस्टिवल, पोस्टर का विमोचन

अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि अगर कहीं पर सनातन परंपरा के विरुद्ध कार्य होता है तब भी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद उस पर कार्रवाई करता है. अखाड़ा परिषद गठन से पहले कई अखाड़ों में झगड़े हो जाते थे. मगर अखाड़ा परिषद के गठन के बाद से ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है.

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वहीं, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव रविंद्र पुरी बताते हैं कि 1954 प्रयागराज कुंभ में शासन द्वारा व्यवस्थाएं नहीं हो पाई थीं. जब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी यहां पहुंचे थे. यहां तब जो अस्थाई पुल बनाए गए थे वो टूट गए. जिससे कई लोगों को जान चली गई. जिसके बाद मेला प्रशासन और शासन के साथ व्यवस्थाओं को लेकर श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव अनंतपुरी महाराज ने पहल की. तब सभी अखाड़ों के पदाधिकारियों ने बैठक कर एक समिति बनाई. जिसमें निर्णय लिया गया कि भविष्य में कहीं पर भी कुंभ मेला होता है तो उससे जुड़ी व्यवस्थाओं को लेकर ये समिति ही शासन-प्रशासन से बात करेगा.

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना होने के बाद सभी कुंभ मेले की व्यवस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा ही की जाती है. इसमें सभी तेरह अखाड़ों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, जो मेला प्रशासन और शासन से सभी प्रकार की व्यवस्थाओं को लेकर बैठक करते हैं. उन बैठकों में कुंभ मेले की व्यवस्थाओं को लेकर निर्णय लिए जाते हैं. जिससे साधु-संतों और बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े.

Last Updated : Feb 25, 2021, 10:40 PM IST
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