हरिद्वारः चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद से हरिद्वार-ऋषिकेश के बीच पौराणिक सत्यनारायण मंदिर (Satyanarayan Mandir) भी इन दिनों श्रद्धालुओं से गुलजार है. करीब 600 साल पुराना प्रदेश के एकमात्र सत्यनारायण भगवान के इस मंदिर को चारधाम यात्रा का पहला चरण (Satyanarayan Temple Chardham Yatra First Phase) माना जाता है. कई चारधाम यात्री यहीं से अपनी यात्रा की शुरुआत करते हैं. यह मंदिर राजाजी पार्क के क्षेत्र में आता है.
पुराणों में भगवान सत्यनारायण की महिमा का कई बार वर्णन किया गया है. देशभर में भगवान सत्यनारायण के मंदिरों की संख्या बहुत कम है. इसलिए हरिद्वार-ऋषिकेश हाईवे के बीच स्थित सत्यनारायण भगवान के मंदिर में भक्तों की अटूट श्रद्धा है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि करीब 600 साल पुराना ये मंदिर चारधाम यात्रियों की आस्था का भी केंद्र है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसी मंदिर में माथा टेककर अपनी यात्रा आरंभ करते हैं.
प्रदेश का एकमात्र सत्यनारायण मंदिर होने के कारण लोग दूर-दूर से मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. आए दिन यहां कथाओं और भंडारों का आयोजन चलता रहता है. श्रद्धालुओं का कहना है कि भगवान सत्यनारायण सभी की मनोकामना पूरी करते हैं. चारधाम को रवाना हुए यात्री गंगा स्नान के बाद हरिद्वार से निकलकर भगवान सत्यनारायण के मंदिर में शीश झुकाते हैं. फिर यात्रा का शुभारंभ करते हैं. यही कारण है कि हरिद्वार को चारधाम यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है.
ये भी पढ़ेंः चारधाम यात्रा में टूट रहा रिकॉर्ड, महज 12 दिनों में 4 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन
मंदिर का इतिहासः सत्यनारायण मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में भक्त पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. इस स्थान को बदरीनाथ यात्रा की प्रथम चट्टी के रूप में भी जाना जाता है. बाबा काली कमली वाले ने साल 1532 में मंदिर की स्थापना की थी, जिसका दस्तावेजों में उल्लेख मिलता है. बाबा काली कमली वाले ने पूरे देश में यात्रियों के लिए धर्मशालाओं और प्याऊ की व्यवस्था की है, जो वर्तमान में भी संचालित हो रही हैं.
कुंड के बीच में गरुड़ जी की मूर्तिः चारधाम यात्रा पर जाने वाले देशभर के यात्रियों के लिए श्री सत्यनारायण मंदिर परिसर में बनी धर्मशाला और जलकुंड तनमन को राहत एवं ताजगी प्रदान करते थे. बताया जाता है कि यह चारधाम यात्रा की प्रथम चट्टी यानी पड़ाव था. जलकुंड के लिए सौंग नदी से जलधारा आती थी. इस कुंड के बीच में गरुड़ जी की मूर्ति स्थापित थी और यात्री यहां स्नान करते थे.
यात्रा की थकावट होती थी दूरः चारधाम यात्रा पर जाते हुए और वहां से आते हुए इस कुंड में स्नान का विधान था. मान्यता थी कि यहां स्नान करने से यात्री यात्रा की थकावट महसूस नहीं करता था. अब कुंड के स्थान पर गरुड़ जी के मंदिर का पक्का निर्माण हो गया है और फर्श बिछा दिया गया है. मंदिर के उत्तर और दक्षिण भाग में देखकर साफ पता चलता है कि यहां कभी नहर हुआ करती थी.