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महाकुंभ में मिलिए भगवान शिव के पुरोहितों से, जूना अखाड़े से है खास रिश्ता

जांगड़ समाज की वेशभूषा अपने आप में बेहद खास रहती है. ये सिर पर मोर मुकुट, माथे पर शेषनाग, कानों में कुंडल और बेहद चटकीले वस्त्र धारण करते हैं.

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शिव की भक्ति में मदमस्त झूमते हैं जांगड़
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Published : Apr 11, 2021, 9:57 PM IST

Updated : Apr 13, 2021, 9:21 PM IST

देहरादून/हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार इन दिनों कुंभ के रंग में रंगी है. कुंभ में सनातन संस्कृति, लोक आस्था की अलौकिक छटा देखने को मिल रही है. कुंभ एक धार्मिक संस्कार और सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन भर नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की एक पर्व है. जिसके लिए साधु-संत बड़ी संख्या में कुंभ में हिस्सा लेने पहुंचते हैं. कुंभ में मुख्य रूप से तेरह अखाड़े हैं. इन अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है. जूना अखाड़ा संत परंपरा में दशनाम जूना अखाड़ा की परंपरा बेहद अलग है. हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान जूना अखाड़ा के पुरोहित जांगड़ समाज के लोग जगह-जगह जाकर शिव की आराधना गा रहे हैं. आखिर जूना अखाड़े से जांगड़ का क्या कनेक्शन है, आइये आपको बताते हैं.

शिव की भक्ति में मदमस्त झूमते हैं जांगड़

जांगड़ समाज की वेशभूषा अपने आप में बेहद खास रहती है. ये सिर पर मोर मुकुट, माथे पर शेषनाग, कानों में कुंडल और बेहद चटकीले वस्त्र धारण करते हैं. कहा जाता है कि मोर मुकुट भगवान विष्णु ने इनके वंशजों को दिया था तो शेषनाग भगवान शिव की देन है. कानों में कुंडल साक्षात देवी द्वारा दिये गए हैं. दशनाम जूना अखाड़ा इन्हें अपना पुरोहित मानता है.

क्या होते हैं पुरोहित

पुरोहित अपने यजमान के यहां अगुआ बनकर यज्ञ आदि श्रौतकर्म, गृहकर्म और संस्कार तथा शांति आदि अनुष्ठान कराते हैं. आजकल कर्मकाण्ड करनेवाला, कृत्य करनेवाला ब्राह्मण पुरोहित कहलाता है. वैदिक काल में पुरोहित का बड़ा अधिकार था. तब पुरोहित मंत्रियों में गिने जाते थे. पहले पुरोहित यज्ञादि के लिये नियुक्त किए जाते थे. आजकल वे कर्मकांड करने के अतिरिक्त, यजमान की और से देवपूजन आदि भी करते हैं. पुरोहित का पद कुलपरम्परागत चलता है. विशेष कुलों के पुरोहित भी नियत रहते हैं.

ऐसे ही जांगड़ दशनाम जूना अखाड़े के पुरोहित होते हैं. इसलिए इनका दशनाम जूना अखाड़े से बेहद खास नाता है. जहां-जहां भी कुंभ होता है वहां पर यह जूना अखाड़ा यानी 10 नाम परंपरा से जुड़े तमाम साधु-संतों के पास जाकर ये लोग भगवान शिव की आराधना सुनाते हैं.

पढ़ें- सल्ट उपचुनाव: कांग्रेस का BJP पर हमला, कहा- खराब छवि त्रिवेंद्र को हटाने की वजह

इतना ही नहीं तमाम साधु-संतों को भी इनका बेसब्री से इंतजार रहता है. जूना अखाड़े के साधु-संत इन्हें दान दक्षिणा देते हैं. ये सभी लोग अखाड़ों में जाकर भक्तिमय माहौल को शिव की अराधना के और भी विशेष बना देते हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव स्वरूप यह लोग जिस भी कैंप में पधारते हैं, वहीं इनका धूमधाम से स्वागत किया जाता है.

पढ़ें- सल्ट उपचुनाव: कांग्रेस प्रत्याशी गंगा पंचोली ने दाखिल किया नामांकन पत्र

जांगड़ समाज के लोग कुंभ में शिव की धुन में मदमस्त होकर चलते हैं. ये लोग मंजीरा, खड़ताल लेकर पूरी मंडली के साथ माहौल बनाते हुए चलते हैं. ये सभी जगहों पर जाकर शिव की अराधना करते हुए उनका गुणगान करते हैं. कुछ इसी तरह के नजारों के लिए कुंभ जाना जाता है. यहीं कारण है कि दुनिया भर में कुंभ की महता है. यहां की विविधता, मान्यता मनीषियों का त्याग, तपस्या और बलिदान ही कुंभ की विशेषता है.

देहरादून/हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार इन दिनों कुंभ के रंग में रंगी है. कुंभ में सनातन संस्कृति, लोक आस्था की अलौकिक छटा देखने को मिल रही है. कुंभ एक धार्मिक संस्कार और सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन भर नहीं, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने की एक पर्व है. जिसके लिए साधु-संत बड़ी संख्या में कुंभ में हिस्सा लेने पहुंचते हैं. कुंभ में मुख्य रूप से तेरह अखाड़े हैं. इन अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है. जूना अखाड़ा संत परंपरा में दशनाम जूना अखाड़ा की परंपरा बेहद अलग है. हरिद्वार कुंभ मेले के दौरान जूना अखाड़ा के पुरोहित जांगड़ समाज के लोग जगह-जगह जाकर शिव की आराधना गा रहे हैं. आखिर जूना अखाड़े से जांगड़ का क्या कनेक्शन है, आइये आपको बताते हैं.

शिव की भक्ति में मदमस्त झूमते हैं जांगड़

जांगड़ समाज की वेशभूषा अपने आप में बेहद खास रहती है. ये सिर पर मोर मुकुट, माथे पर शेषनाग, कानों में कुंडल और बेहद चटकीले वस्त्र धारण करते हैं. कहा जाता है कि मोर मुकुट भगवान विष्णु ने इनके वंशजों को दिया था तो शेषनाग भगवान शिव की देन है. कानों में कुंडल साक्षात देवी द्वारा दिये गए हैं. दशनाम जूना अखाड़ा इन्हें अपना पुरोहित मानता है.

क्या होते हैं पुरोहित

पुरोहित अपने यजमान के यहां अगुआ बनकर यज्ञ आदि श्रौतकर्म, गृहकर्म और संस्कार तथा शांति आदि अनुष्ठान कराते हैं. आजकल कर्मकाण्ड करनेवाला, कृत्य करनेवाला ब्राह्मण पुरोहित कहलाता है. वैदिक काल में पुरोहित का बड़ा अधिकार था. तब पुरोहित मंत्रियों में गिने जाते थे. पहले पुरोहित यज्ञादि के लिये नियुक्त किए जाते थे. आजकल वे कर्मकांड करने के अतिरिक्त, यजमान की और से देवपूजन आदि भी करते हैं. पुरोहित का पद कुलपरम्परागत चलता है. विशेष कुलों के पुरोहित भी नियत रहते हैं.

ऐसे ही जांगड़ दशनाम जूना अखाड़े के पुरोहित होते हैं. इसलिए इनका दशनाम जूना अखाड़े से बेहद खास नाता है. जहां-जहां भी कुंभ होता है वहां पर यह जूना अखाड़ा यानी 10 नाम परंपरा से जुड़े तमाम साधु-संतों के पास जाकर ये लोग भगवान शिव की आराधना सुनाते हैं.

पढ़ें- सल्ट उपचुनाव: कांग्रेस का BJP पर हमला, कहा- खराब छवि त्रिवेंद्र को हटाने की वजह

इतना ही नहीं तमाम साधु-संतों को भी इनका बेसब्री से इंतजार रहता है. जूना अखाड़े के साधु-संत इन्हें दान दक्षिणा देते हैं. ये सभी लोग अखाड़ों में जाकर भक्तिमय माहौल को शिव की अराधना के और भी विशेष बना देते हैं. कहा जाता है कि भगवान शिव स्वरूप यह लोग जिस भी कैंप में पधारते हैं, वहीं इनका धूमधाम से स्वागत किया जाता है.

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जांगड़ समाज के लोग कुंभ में शिव की धुन में मदमस्त होकर चलते हैं. ये लोग मंजीरा, खड़ताल लेकर पूरी मंडली के साथ माहौल बनाते हुए चलते हैं. ये सभी जगहों पर जाकर शिव की अराधना करते हुए उनका गुणगान करते हैं. कुछ इसी तरह के नजारों के लिए कुंभ जाना जाता है. यहीं कारण है कि दुनिया भर में कुंभ की महता है. यहां की विविधता, मान्यता मनीषियों का त्याग, तपस्या और बलिदान ही कुंभ की विशेषता है.

Last Updated : Apr 13, 2021, 9:21 PM IST
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