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रुड़की IIT के प्रोफेसर का नया अविष्कार, पहाड़ के लोगों के लिए होगा मददगार - प्रोफेसर का नया अविष्कार

आईआईटी रुड़की के एक प्रोफेसर ने बागेश्वरी चरखे का नया आविष्कार किया है. इस चरखे के उपयोग से ज्यादा ऊन तैयार की जा सकेगी.

रुड़की IIT के प्रोफेसर का नया अविष्कार
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Published : May 21, 2019, 9:14 PM IST

रुड़की: आईआईटी रुड़की के एक प्रोफेसर ने पारंपरिक चरखे की उपयोगिता को आसान बानने के लिए अपग्रेड चरखा तैयार किया है. इसमें इलेक्ट्रिक मोटर, मोडिफाइड फ्लायर और स्पीड कंट्रोलर का प्रयोग किया गया है. साथ ही बॉबिन के लैटरल मोशन पर भी काम किया है. आईआईटी प्रो. आरपी सैनी के मुताबिक उनके द्वारा तैयार किए गए इस चरखे से पहाड़ के काश्तकारों को लाभ मिलेगा.

रुड़की IIT के प्रोफेसर का नया अविष्कार

पढ़ें- किसानों के लिए चिंता भरी खबर, अम्लीयता बढ़ने से जहरीली हुई उपजाऊ भूमि

आईआईटी प्रो. आरपी सैनी के मुताबिक उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों के लोगों की आमदनी का मुख्य जरिया ऊन बेचना है. इन लोगों के सामने पारंपरिक चरखे से ऊन तैयार करना काफी मुश्किल था. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पारंपरिक चरखे को अपग्रेड किया है.

प्रो. सैनी के मुताबिक उनके द्वारा तैयार किए गए बागेश्वरी चरखे से एक घंटे में लगभग 200 ग्राम ऊन के रेशे तैयार किये जा सकेंगे. जोकि पारंपरिक चरखे से दो गुना से भी ज्यादा ऊन का उत्पादन कर सकेंगे.

रुड़की: आईआईटी रुड़की के एक प्रोफेसर ने पारंपरिक चरखे की उपयोगिता को आसान बानने के लिए अपग्रेड चरखा तैयार किया है. इसमें इलेक्ट्रिक मोटर, मोडिफाइड फ्लायर और स्पीड कंट्रोलर का प्रयोग किया गया है. साथ ही बॉबिन के लैटरल मोशन पर भी काम किया है. आईआईटी प्रो. आरपी सैनी के मुताबिक उनके द्वारा तैयार किए गए इस चरखे से पहाड़ के काश्तकारों को लाभ मिलेगा.

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आईआईटी प्रो. आरपी सैनी के मुताबिक उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों के लोगों की आमदनी का मुख्य जरिया ऊन बेचना है. इन लोगों के सामने पारंपरिक चरखे से ऊन तैयार करना काफी मुश्किल था. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पारंपरिक चरखे को अपग्रेड किया है.

प्रो. सैनी के मुताबिक उनके द्वारा तैयार किए गए बागेश्वरी चरखे से एक घंटे में लगभग 200 ग्राम ऊन के रेशे तैयार किये जा सकेंगे. जोकि पारंपरिक चरखे से दो गुना से भी ज्यादा ऊन का उत्पादन कर सकेंगे.

Intro:रूड़की


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स्लग- आईआईटी की खोज

एंकर- आईआईटी रूड़की का नाम दुनिया भर में नई नई खोज करने में यू ही नही है इस बार आईआईटी रुड़की के एक प्रोफेसर ने पुराने जमाने मे सूत कातने के प्रयोग में आने वाले चरखे का अभी ये आधुनिक युग में नया अवतार दिया है


Body:वीओ- गौरतलब है कि आईआईटी रुड़की दुनिया भर में अपने आप एक अलग ही पहचान रखती है यहाँ पढ़ने वाले छात्र या छात्रायें हो या इनको शिक्षा दीक्षा देकर अपने नाम की अलग पहचान बनाने में मदद करने वाले प्रोफेसर हो या यहाँ की कोई भी फैकल्टी हो सभी अपना अपना काम बखूबी से अंजाम देते है और समय समय पा अपनी नई नई तकनीकों द्वारा खोज कर अपना व अपने संस्थान का नाम रोशन करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं ताजा मामला भी आईआईटी रुड़की से ही जुड़ा है इस बार आईआईटी रूड़की के जल नवीनीकरण विभाग के रूलर टेक्नोलॉजी एक्शन ग्रुप ने उन मेहनत कश बुनकरों को ध्यान में रख कर एक नया ही अविश्वास अविष्कार किया है बुनकरों के लिए बागेश्वरी चरखे का अविष्कार किया है इसकी खासियत यह है कि पारम्परिक बागेश्वरी चरखे की तुलना से ये चरखा दो गुना से भी अधिक ऊन का उत्पादन किया जा सकता है आईआईटी प्रोफेसर आर पी सैनी के मुताबिक उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यो की आबादी की आमदनी का मुख्य जरिया ऊन तैयार कर अपनी रोजी रोटी कामना है सन 1926 से ये लोग चरखे से ऊन तैयार कर रहे है लेकिन इस कार्य मे इन लोगो के लिए कई चुनोतियाँ भी है जिसको देखने के लिए आईआईटी रुड़की की टीम ने उत्तराखंड के बागेश्वर क्षेत्र का भी दौरा किया और चार चरणों मे बागेश्वरी चरखे में सुधार कर नए चरखे को अंतिम रूप दिया वही प्रोफेसर सैनी ने बताया कि पारम्परिक चरखे की सीमाओं को दूरकर उपयोग के लिए आसान बनाया गया है इसकी के तहत इसमे पैर से चलने वाले इलेक्ट्रॉनिक मोटर ,स्पीड कंट्रोलर,मोडिफाइड फ्लायर,और गति के लिए एक क्रेंक लगाया है जिसके चलते अब बागेश्वरी चरखे से एक घंटे में लगभग 200 ग्राम स्थानीय ऊन के रेशे तैयार किये जा सकेंगे जोकि पारम्परिक चरखे से दो गुना से भी अधिक ऊन उत्पाद कर सकेंगे

बाइट- आर पी सैनी-आइआइटी रुड़की प्रोफेसर


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