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एवरेस्ट की चोटियों को पार कर हरिद्वार पहुंचे 'राजहंस', जानें क्या है खासियत - Headed Geese started reaching India

एवरेस्ट की ऊंची चोटियों को पार कर राजहंस यानी बार हेडेड गीज हरिद्वार (Flamingo bird reached Haridwar) पहुंचना शुरू हो गये हैं. राजहंस पक्षी मंगोलिया, चीन, तिब्बत के पठार और कजाकिस्तान से भारत (Headed Geese started reaching India) की ओर रुख करते हैं. हरिद्वार के गंगा घाटों पर राजहंस को देखने के लिए लोग इस तरफ आना शुरू करने लगे हैं.

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एवरेस्ट की चोटियों को पार कर हरिद्वार पहुंचे 'राजहंस'
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Published : Jan 7, 2023, 8:14 PM IST

हरिद्वार: जैसे जैसे सर्दियां बढ़ रही हैं वैसे ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर पक्षी हरिद्वार आकर गंगा में अपना अस्थाई बसेरा बना रहे हैं. राजहंस यानी बार हेडेड गीज (Headed Geese started reaching India) आजकल हरिद्वार के गंगा घाटी में जल विहार करते नजर आने लगे हैं. हरिद्वार में सिर्फ कड़कड़ाती सर्दियों के दौरान दिखाई देने वाले इन राजहंसों को देखने के लिए लोग गंगा घाटों का रुख करने लगे हैं.

अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक व गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. दिनेश भट्ट की टीम के अनुसार दिसंबर अंतिम सप्ताह में हरिद्वार गंगा की धारा में और आसपास के ताल तलैया में करीब 16 जोड़े राजहंस के दिखाई दिए. नववर्ष के आगमन के साथ इन जोड़ों की संख्या बढ़कर 40-45 हो चुकी है. सारस यानी क्रौंच पक्षी की तरह ही राजहंस में नर व मादा का जोड़ा आजीवन बना रहता है. यह पक्षी विशुद्ध शाकाहारी है, जो जलीय वेजिटेशन जैसे काई इत्यादि को जलाशयों से भोजन के रूप में प्राप्त करता है.
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प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया भारत में आने वाले राजहंस मंगोलिया, चीन, तिब्बत का पठार और कजाकिस्तान के हिस्सों से हिमालय पर्वत की एवरेस्ट एवं अन्य उत्तंग श्रृंखलाओं को पार कर भारत भूमि पर शीतकालीन प्रवास करने के लिए आते हैं. ब्रिटेन, भारत एवं अन्य अनेक देशों के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने पाया कि राजहंस लगभग 53 से 55 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हैं. यह गणना वैज्ञानिकों द्वारा सेटेलाइट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस टूल की सहायता से की गई है
पढे़ं- जोशीमठ: प्रभावित क्षेत्रों का CM धामी ने लिया जायजा, मुख्यमंत्री को देख फूट-फूट कर रोए लोग

प्रोफेसर भट्ट की टीम में शामिल उत्तराखंड संस्कृत यूनिवर्सिटी के पक्षी वैज्ञानिक डॉक्टर विनय सेठी के अनुसार माइग्रेशन गमन के दौरान मंगोलिया और अन्य शीतकालीन प्रदेशों से चलते हुए इन पक्षियों की फ्लाइट मसल्स में 110% चर्बी यानी फैट अधिक जमा हो जाती है जो इनके फ्लाईवे के गमन के समय इन्हें एनर्जी प्रदान करती है. वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया कि मंगोलिया से चलकर हिंदुस्तान की सरजमी पर पहुंचने में लगभग 5000 किलोमीटर की दूरी को राजहंस लगभग ढाई-तीन माह में पूरा कर लेता है. शोध छात्रा पारुल भटनागर व शोधार्थी आशीष आर्य ने अवगत कराया कि राजहंस एवं अन्य पक्षी मे मार्ग निर्धारण इनकी चोच पर जीपीएस जैसा बायोसेंसर्स के कारण संभव होता है.

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'राजहंस' फ्लाई वे
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कम ऑक्सीजन में उड़ने में कामयाब: कोलंबिया यूनिवर्सिटी कनाडा के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में राजहंस पक्षी (Headed Geese started reaching India) के माइग्रेशन संबंधित व्यवहार को परखा. जिसमें पाया कि यह पक्षी 40-50% ऑक्सीजन के कम स्तर में भी अपना माइग्रेशन जारी रखता है. इसके हृदय की गति में कोई खास अंतर नहीं आता है. यह प्रयोग इसलिए किया गया कि एवरेस्ट की चढ़ाई करते हुए कई पर्वतारोहियों के द्वारा यह बताया गया कि राजहंस एवरेस्ट पर्वत को पार कर हिंदुस्तान की सरजमी में प्रवेश करता है. यह ऐसा वर्ष में दो बार करता है. एक बार तब जब मंगोलिया या चीन से भारत आना हो और दूसरी बार तब जब हिंदुस्तान में मार्च-अप्रैल में गर्मी शुरू हो जाती है तो यह पंछी पर्वत शृंखला पार कर वापस जाते हैं.

हरिद्वार: जैसे जैसे सर्दियां बढ़ रही हैं वैसे ही हजारों किलोमीटर की यात्रा कर पक्षी हरिद्वार आकर गंगा में अपना अस्थाई बसेरा बना रहे हैं. राजहंस यानी बार हेडेड गीज (Headed Geese started reaching India) आजकल हरिद्वार के गंगा घाटी में जल विहार करते नजर आने लगे हैं. हरिद्वार में सिर्फ कड़कड़ाती सर्दियों के दौरान दिखाई देने वाले इन राजहंसों को देखने के लिए लोग गंगा घाटों का रुख करने लगे हैं.

अंतरराष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक व गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. दिनेश भट्ट की टीम के अनुसार दिसंबर अंतिम सप्ताह में हरिद्वार गंगा की धारा में और आसपास के ताल तलैया में करीब 16 जोड़े राजहंस के दिखाई दिए. नववर्ष के आगमन के साथ इन जोड़ों की संख्या बढ़कर 40-45 हो चुकी है. सारस यानी क्रौंच पक्षी की तरह ही राजहंस में नर व मादा का जोड़ा आजीवन बना रहता है. यह पक्षी विशुद्ध शाकाहारी है, जो जलीय वेजिटेशन जैसे काई इत्यादि को जलाशयों से भोजन के रूप में प्राप्त करता है.
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प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने बताया भारत में आने वाले राजहंस मंगोलिया, चीन, तिब्बत का पठार और कजाकिस्तान के हिस्सों से हिमालय पर्वत की एवरेस्ट एवं अन्य उत्तंग श्रृंखलाओं को पार कर भारत भूमि पर शीतकालीन प्रवास करने के लिए आते हैं. ब्रिटेन, भारत एवं अन्य अनेक देशों के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने पाया कि राजहंस लगभग 53 से 55 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ते हैं. यह गणना वैज्ञानिकों द्वारा सेटेलाइट ट्रैकिंग एंड एनालिसिस टूल की सहायता से की गई है
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