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गंगा कितनी साफ ETV भारत ने जाना गंगा प्रेमियों से, एक स्वर में सबने कहा- फाइलों में हो रहा काम - haridwar story regarding the cleanliness of ganga

कितनी साफ गंगा ? ये एक बहुत बड़ा सवाल है. साल 2014 में नमामि गंगे योजना लागू करने के बाद से अबतक कितना काम गंगा को लेकर हुआ ये जाना ईटीवी भारत ने गंगा के लिए आंदोलन कर चुके गंगा प्रेमियों और स्थानीय लोगों से.

गंगा कितनी साफ?
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Published : May 9, 2019, 9:51 PM IST

हरिद्वार: गंगा जिसे पतित पावनी और मोक्षदायिनी के नाम से जाना जाता है. गंगा के तेजी से दूषित होने की वजह से मोदी सरकार ने साल 2014 में सत्ता पर काबिज होते ही महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे लागू की. इसके अंतर्गत गंगा को स्वच्छ करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का विशेष बजट रखा गया था. लेकिन, 5 साल बीत जाने के बाद भी गंगा स्वच्छ नहीं हो पाई है. अब देश में हो रहे लोकसभा चुनाव की वजह से सरकार दोबारा गंगा स्वच्छता को लेकर तमाम दावे कर रही है. साथ ही गंगा स्वच्छता के मुद्दे पर अपनी पीठ थपथपाने के लिए कई विज्ञापन भी चला रही है. लेकिन जमीनी हकीकत तो ये है कि गंगा में गिरने वाले नाले जस के तस है और गंगा दिनोंदिन दूषित होती जा रही है.

गंगा कितनी साफ ETV भारत ने जाना गंगा प्रेमियों से.

गंगा की स्वच्छता को लेकर ईटीवी भारत ने लंबे समय से काम करने वाली संस्था मातृ सदन सहित गंगा प्रेमियों से बात की. इस दौरान गंगा के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ चुके ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का कहना है कि गंगा के नाम पर नमामि गंगे योजना में केवल दिखावा हो रहा है. जमीनी स्तर पर गंगा में खनन, बांध जो गंगा के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं, उसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का कहना है कि गंगा की स्वच्छता के लिए एक पैसे के भी विज्ञापन, जागरूकता अभियान और नाच गाने की जरूरत नहीं है. गंगा स्वच्छता के नाम पर गंगा में क्लोरीन डाला जा रहा है, जिससे गंगा में रहने वाले जीव मर रहे हैं.

पढ़ें- डोइवाला नगर पालिका को मिला 'जटायु', घर-घर पहुंचेंगे 8 नए 'साथी' उठाएंगे कूड़ा

गंगा प्रेमियों ने कहा कि सरकार ने जितना रुपया विज्ञापन में, जागरूकता अभियानों में और घाट का निर्माण में खर्च किये हैं, उनमें से कुछ हिस्सा भी सही ढंग से गंगा के जीर्णोद्धार में लगाया गया होता तो अबतक गंगा साफ हो गई होती. गंगा प्रेमी रामेश्वर गौर का कहना है कि सरकार गंगा के नाम पर वाहवाही लूटने के लिए करोड़ों के विज्ञापन खर्च कर रही है, लेकिन गंगा के लिए कोई काम नहीं हुए हैं. आज भी कई नाले जस के तस गंगा में गिर रहे हैं. सरकारी फाइलों में नालों को टेप कर दिया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. गंगा स्वच्छता के नाम पर घाट बनाए जा रहे हैं, जिसका गंगा सफाई से कोई लेना देना नहीं है. देखा जाए तो आज भी गंगा काफी बुरी स्थिति में है. तमाम सीवर और गंदे नाले गंगा में जा रहे हैं, लेकिन सरकार का दावा है कि वो गंगा स्वच्छता को लेकर संकल्पित है और पूरे जोरों शोरों से काम कर रही है.

हरिद्वार: गंगा जिसे पतित पावनी और मोक्षदायिनी के नाम से जाना जाता है. गंगा के तेजी से दूषित होने की वजह से मोदी सरकार ने साल 2014 में सत्ता पर काबिज होते ही महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे लागू की. इसके अंतर्गत गंगा को स्वच्छ करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का विशेष बजट रखा गया था. लेकिन, 5 साल बीत जाने के बाद भी गंगा स्वच्छ नहीं हो पाई है. अब देश में हो रहे लोकसभा चुनाव की वजह से सरकार दोबारा गंगा स्वच्छता को लेकर तमाम दावे कर रही है. साथ ही गंगा स्वच्छता के मुद्दे पर अपनी पीठ थपथपाने के लिए कई विज्ञापन भी चला रही है. लेकिन जमीनी हकीकत तो ये है कि गंगा में गिरने वाले नाले जस के तस है और गंगा दिनोंदिन दूषित होती जा रही है.

गंगा कितनी साफ ETV भारत ने जाना गंगा प्रेमियों से.

गंगा की स्वच्छता को लेकर ईटीवी भारत ने लंबे समय से काम करने वाली संस्था मातृ सदन सहित गंगा प्रेमियों से बात की. इस दौरान गंगा के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ चुके ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का कहना है कि गंगा के नाम पर नमामि गंगे योजना में केवल दिखावा हो रहा है. जमीनी स्तर पर गंगा में खनन, बांध जो गंगा के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं, उसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का कहना है कि गंगा की स्वच्छता के लिए एक पैसे के भी विज्ञापन, जागरूकता अभियान और नाच गाने की जरूरत नहीं है. गंगा स्वच्छता के नाम पर गंगा में क्लोरीन डाला जा रहा है, जिससे गंगा में रहने वाले जीव मर रहे हैं.

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गंगा प्रेमियों ने कहा कि सरकार ने जितना रुपया विज्ञापन में, जागरूकता अभियानों में और घाट का निर्माण में खर्च किये हैं, उनमें से कुछ हिस्सा भी सही ढंग से गंगा के जीर्णोद्धार में लगाया गया होता तो अबतक गंगा साफ हो गई होती. गंगा प्रेमी रामेश्वर गौर का कहना है कि सरकार गंगा के नाम पर वाहवाही लूटने के लिए करोड़ों के विज्ञापन खर्च कर रही है, लेकिन गंगा के लिए कोई काम नहीं हुए हैं. आज भी कई नाले जस के तस गंगा में गिर रहे हैं. सरकारी फाइलों में नालों को टेप कर दिया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. गंगा स्वच्छता के नाम पर घाट बनाए जा रहे हैं, जिसका गंगा सफाई से कोई लेना देना नहीं है. देखा जाए तो आज भी गंगा काफी बुरी स्थिति में है. तमाम सीवर और गंदे नाले गंगा में जा रहे हैं, लेकिन सरकार का दावा है कि वो गंगा स्वच्छता को लेकर संकल्पित है और पूरे जोरों शोरों से काम कर रही है.

Intro:एंकर- गंगा जिसे पतित पावनी और मोक्ष दायिनी के नाम से भी जाना जाता है उसकी पीड़ा हारने और मोक्ष दिलाने के लिए मोदी सरकार ने 2014 में सरकार में आते ही एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी,जिसका नाम रखा गया था नमामि गंगे, जिसके अंतर्गत गंगा को स्वच्छ करने हेतु विभिन्न कार्यक्रमों के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का विशेष बजट रखा गया लेकिन आज 5 साल बीत जाने के बाद जब देश में फिर से चुनाव का माहौल है ऐसे में गंगा स्वच्छता को लेकर सरकार तमाम दावे करती दिख रही है, गंगा स्वच्छता के मुद्दे पर अपनी पीठ थपथपाने के लिए कई विज्ञापन चलाए जा रहे हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ आज भी गंगा में नाले जस के तस गिर रहे है।


Body:VO1- गंगा की स्वच्छता को लेकर हमने गंगा के लिए लंबे समय से काम करने वाली संस्था मातृ सदन सहित गंगा प्रेमियों से बात की जिसमें उनका कहना है कि गंगा के लिए सरकार ने जितना पैसा विज्ञापन में, कार्यक्रमों में, जागरूकता अभियानो में, घाट का निर्माण करने में खर्च किया है अगर उसका कुछ हिस्सा भी सही ढंग से गंगा के जीर्णोद्धार में लगाया गया होता तो आज तक गंगा साफ हो गई होती। गंगा प्रेमियों का कहना है कि हरिद्वार में गंगा में आज भी गंदे नाले गिर रहे हैं सरकारी फाइलों में नालों को टेप कर दिया गया है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। गंगा पर काम करने वाले लोगों का कहना है कि नमामि गंगे महेश एक गंगा के नाम पर बंदरबांट करने के लिए इतना है जिसमें घाट आदि बनाकर पैसे को बर्बाद किया जा रहा है और गंगा के लिए कोई काम नहीं हो रहा। गंगा के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ चुके ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का कहना है कि गंगा के नाम पर नमामि गंगे योजना में केवल दिखावा हो रहा है लेकिन जमीनी स्तर पर गंगा में खनन, बांध जो गंगा के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है उसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का कहना है कि गंगा की स्वच्छता के लिए एक पैसे के भी विज्ञापन, जागरूकता अभियान के नाच गाने की जरूरत नहीं है। गंगा स्वच्छता के नाम पर गंगा में क्लोरीन डाला जा रहा है जिससे गंगा में रहने वाले जीव मर रहे हैं। गंगा प्रेमी रामेश्वर गौर का कहना है कि सरकार गंगा के नाम पर वाहवाही लूटने के लिए करोड़ों के विज्ञापन खर्च कर रही है, लेकिन गंगा के लिए कोई काम नहीं हुए है आज भी कई नाले जस के तस गंगा में गिर रहे है। गंगा स्वच्छता के नाम पर घाट बनाए जा रहे हैं जिससे गंगा सफाई का कोई लेना देना नहीं है। देखा जाए तो आज भी गंगा बड़ी ही बुरी स्थिति में है,तमाम सीवर और गंदे नाले गंगा में जा रहे है लेकिन सरकार का दावा है कि वह गंगा स्वच्छता को लेकर संकल्पित है और पूरे जोरों शोरों से काम कर रहे है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत बड़ी ही चिंताजनक है।


Conclusion:बाइट- ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद, गंगा आंदोलनकारी

बाइट- स्वामी शिवानंद, परमाध्यक्ष, मातृ सदन

बाइट- रामेश्वर गौर, गंगा प्रेमी
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