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नमो दैव्य: ऐसी देवी की कथा, जिसने भगवान शिव की हलाहल विष से की थी रक्षा - haridwar news

आज शारदीय नवरात्रि के पांचवे दिन हम ऐसी देवी की महिमा जानेंगे, जिन्होंने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को पीने के बाद इसी देवी ने भगवान शिव की रक्षा की थी.

हरिद्वार मनसा देवी का मंदिर
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Published : Oct 3, 2019, 7:18 AM IST

हरिद्वार: मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है. मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार में है. इनकी उत्पत्ति मस्तिक से हुई, इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा. महाभारत काल के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके पति का नाम भी जरत्कारु था. मनसा देवी के पुत्र का नाम आस्तिक बताया गया है. इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है. पुराणों के अनुसार, इनका जन्म ऋषि कश्यप के मस्तिष्क से हुआ था. मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी, इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा था.

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हरिद्वार मनसा देवी का मंदिर
ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें ऋषि कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था. साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी पूजा जाता है. 14 वीं सदी के बाद इन्हे शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया. ये मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होंने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था. परंतु ये भी कहा जाता है कि मनसा देवी का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ था. ऐसी भी मान्यता है कि मनसा ने ही शिव को हलाहल विष से मुक्त किया था.

पढ़ेंः केदारनाथ प्रलय से जुड़ा है इस मंदिर का रहस्य, दिन में तीन रूप बदलती हैं देवी

विष की देवी के रूप में इनकी पूजा झारखंड बिहार और पश्चिमी बंगाल में बड़े धूमधाम से हिन्दी और बांग्ला पंचांग के अनुसार भादो महीने में पूरा महीने इनकी स्तुति होती है. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. ये नाम हैं- जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी.

पढ़ेंः जानिए हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों की बही की अद्भुत कहानी, जहां रखा जाता है हर इंसान का 'हिसाब- किताब'

पुराणों में भी मनसा देवी की जिक्र

कई धार्मिक पुराणों में मनसा देवी का जिक्र है. विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई. ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि एक नागकन्या थी, जो शिव और कृष्ण की परम भक्त थी. उसने कई युगों तक तप किया और शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया, जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ. उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए और उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया. मंगलकाव्य बंगाल में 13वीं और18वीं शताब्दी में लिखित काव्य है. जिसमें कई देवताओ का जिक्र है. विजयगुप्त का मनसा मंगल काव्य और विप्रदास पिल्ले का मनसा विजय (1495) मनसा के जन्म का वृत्तांत बताते हैं.

पढ़ेंः नवरात्र विशेष: यहां अश्रुधार से बनी थी झील, शिव-सती के वियोग का साक्षी है ये मंदिर

मनसा विजय के अनुसार, वासुकी नाग की मां ने एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई, जो मनसा कहलाई. जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए. तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है. शिव मनसा को कैलाश ले गए. माता पार्वती ने जब मनसा को शिव के साथ देखा तो उन्होंने चंडी का रूप धारण कर लिया. मनसा की एक आंख को अपने दिव्य नेत्र के तेज से जला दिया. ऐसी मान्यता भी है कि माता पार्वती ने मनसा का विवाह भी खराब किया. मनसा को सर्पवस्त्र पहनने को कहकर कक्ष में एक मेंढक डाल दिया. जिससे उनके पति जगत्कारु भाग गये थे. हालांकि बाद में जगत्कारु और मनसा से आस्तिक का जन्म हुआ.

पढ़ेंः नवरात्र विशेष: यहां अश्रुधार से बनी थी झील, शिव-सती के वियोग का साक्षी है ये मंदिर

मनसा देवी की महिमा

हरिद्वार में स्थित मनसा देवी की मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है, यहां पर माता शक्तिपीठ के रुप में स्थापित है, जो अपने भक्तों के दुखों को दूर करती है. यहां 3 मंदिर हैं. यहां के एक वृक्ष पर सूत्र बांधा जाता है, परंतु मनसा(मनोकामना) पूरी होने के बाद सूत्र निकालना आवश्यक है. ये मंदिर सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है. दोपहर में 2 घंटे के लिए 12 से 2 बजे तक मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, जिसमे मां मनसा का श्रृंगार और भोग लगता है.

हरिद्वार: मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है. मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार में है. इनकी उत्पत्ति मस्तिक से हुई, इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा. महाभारत काल के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके पति का नाम भी जरत्कारु था. मनसा देवी के पुत्र का नाम आस्तिक बताया गया है. इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है. पुराणों के अनुसार, इनका जन्म ऋषि कश्यप के मस्तिष्क से हुआ था. मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी, इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा था.

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हरिद्वार मनसा देवी का मंदिर
ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें ऋषि कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था. साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी पूजा जाता है. 14 वीं सदी के बाद इन्हे शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया. ये मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होंने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था. परंतु ये भी कहा जाता है कि मनसा देवी का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ था. ऐसी भी मान्यता है कि मनसा ने ही शिव को हलाहल विष से मुक्त किया था.

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विष की देवी के रूप में इनकी पूजा झारखंड बिहार और पश्चिमी बंगाल में बड़े धूमधाम से हिन्दी और बांग्ला पंचांग के अनुसार भादो महीने में पूरा महीने इनकी स्तुति होती है. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. ये नाम हैं- जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी.

पढ़ेंः जानिए हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों की बही की अद्भुत कहानी, जहां रखा जाता है हर इंसान का 'हिसाब- किताब'

पुराणों में भी मनसा देवी की जिक्र

कई धार्मिक पुराणों में मनसा देवी का जिक्र है. विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई. ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि एक नागकन्या थी, जो शिव और कृष्ण की परम भक्त थी. उसने कई युगों तक तप किया और शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया, जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ. उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए और उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया. मंगलकाव्य बंगाल में 13वीं और18वीं शताब्दी में लिखित काव्य है. जिसमें कई देवताओ का जिक्र है. विजयगुप्त का मनसा मंगल काव्य और विप्रदास पिल्ले का मनसा विजय (1495) मनसा के जन्म का वृत्तांत बताते हैं.

पढ़ेंः नवरात्र विशेष: यहां अश्रुधार से बनी थी झील, शिव-सती के वियोग का साक्षी है ये मंदिर

मनसा विजय के अनुसार, वासुकी नाग की मां ने एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई, जो मनसा कहलाई. जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए. तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है. शिव मनसा को कैलाश ले गए. माता पार्वती ने जब मनसा को शिव के साथ देखा तो उन्होंने चंडी का रूप धारण कर लिया. मनसा की एक आंख को अपने दिव्य नेत्र के तेज से जला दिया. ऐसी मान्यता भी है कि माता पार्वती ने मनसा का विवाह भी खराब किया. मनसा को सर्पवस्त्र पहनने को कहकर कक्ष में एक मेंढक डाल दिया. जिससे उनके पति जगत्कारु भाग गये थे. हालांकि बाद में जगत्कारु और मनसा से आस्तिक का जन्म हुआ.

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मनसा देवी की महिमा

हरिद्वार में स्थित मनसा देवी की मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है, यहां पर माता शक्तिपीठ के रुप में स्थापित है, जो अपने भक्तों के दुखों को दूर करती है. यहां 3 मंदिर हैं. यहां के एक वृक्ष पर सूत्र बांधा जाता है, परंतु मनसा(मनोकामना) पूरी होने के बाद सूत्र निकालना आवश्यक है. ये मंदिर सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है. दोपहर में 2 घंटे के लिए 12 से 2 बजे तक मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, जिसमे मां मनसा का श्रृंगार और भोग लगता है.

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हरिद्वार: मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है. मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार में है. इनकी उत्पत्ति मस्तिक से हुई, इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा. महाभारत काल के अनुसार इनका वास्तविक नाम जरत्कारु है और इनके पति का नाम भी जरत्कारु था. मनसा देवी के पुत्र का नाम आस्तिक बताया गया है. इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है. पुराणों के अनुसार, इनका जन्म ऋषि कश्यप के मस्तिष्क से हुआ था. मनसा किसी भी विष से अधिक शक्तिशाली थी, इसलिये ब्रह्मा ने इनका नाम विषहरी रखा था. 

ग्रीस में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है। इन्हें ऋषि कश्यप की पुत्री तथा नागमाता के रूप में माना जाता था. साथ ही शिव पुत्री, विष की देवी के रूप में भी पूजा जाता है. 14 वीं सदी के बाद इन्हे शिव के परिवार की तरह मंदिरों में आत्मसात किया गया. ये मान्यता भी प्रचलित है कि इन्होंने शिव को हलाहल विष के पान के बाद बचाया था. परंतु ये भी कहा जाता है कि मनसा देवी का जन्म समुद्र मंथन के बाद हुआ था. ऐसी भी मान्यता है कि मनसा ने ही शिव को हलाहल विष से मुक्त किया था.

विष की देवी के रूप में इनकी पूजा झारखंड बिहार और पश्चिमी बंगाल में बड़े धूमधाम से हिन्दी और बांग्ला पंचांग के अनुसार भादो महीने में पूरा महीने इनकी स्तुति होती है. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. ये नाम हैं- जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी.

पुराणों में भी मनसा देवी की जिक्र

कई धार्मिक पुराणों में मनसा देवी का जिक्र है. विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रतलित हुई. ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि एक नागकन्या थी, जो शिव और कृष्ण की परम भक्त थी. उसने कई युगों तक तप किया और शिव से वेद तथा कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया, जो मंत्र आगे जाकर कल्पतरु मंत्र के नाम से प्रचलित हुआ. उस कन्या ने पुष्कर में तप कर कृष्ण के दर्शन किए और उनसे सदैव पूजित होने का वरदान प्राप्त किया. 

मंगलकाव्य बंगाल में 13वीं और18वीं शताब्दी में लिखित काव्य है. जिसमें कई देवताओ का जिक्र है. विजयगुप्त का मनसा मंगल काव्य और विप्रदास पिल्ले का मनसा विजय (1495) मनसा के जन्म का वृत्तांत बताते हैं.

मनसा विजय के अनुसार, वासुकी नाग की मां ने एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव वीर्य से स्पर्श होते ही एक नागकन्या बन गई, जो मनसा कहलाई. जब शिव ने मनसा को देखा तो वे मोहित हो गए. तब मनसा ने बताया कि वह उनकी बेटी है. शिव मनसा को कैलाश ले गए. माता पार्वती ने जब मनसा को शिव के साथ देखा तो उन्होंने चंडी का रूप धारण कर लिया. मनसा की एक आंख को अपने दिव्य नेत्र के तेज से जला दिया. ऐसी मान्यता भी है कि माता पार्वती ने मनसा का विवाह भी खराब किया. मनसा को सर्पवस्त्र पहनने को कहकर कक्ष में एक मेंढक डाल दिया. जिससे उनके पति जगत्कारु भाग गये थे. हालांकि बाद में जगत्कारु और मनसा से आस्तिक का जन्म हुआ.

मनसा देवी की महिमा

हरिद्वार में स्थित मनसा देवी की मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है, यहां पर माता शक्तिपीठ के रुप में स्थापित है, जो अपने भक्तों के दुखों को दूर करती है. यहां 3 मंदिर हैं. यहां के एक वृक्ष पर सूत्र बांधा जाता है, परंतु मनसा(मनोकामना) पूरी होने के बाद सूत्र निकालना आवश्यक है. ये मंदिर सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है. दोपहर में 2 घंटे के लिए 12 से 2 बजे तक मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, जिसमे मां मनसा का श्रृंगार और भोग लगता है. 


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