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हरिद्वार में सरकारी स्कूलों की हालत जर्जर, खतरे में छात्रों का 'भविष्य'

हरिद्वार में इन दिनों सरकारी स्कूलों को स्थिति बहुत खराब हो चुकी है. हालात ये है कि कहीं भवन नहीं है तो, कहीं स्कूलों की बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है. ऐसे में यहां पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य खतरे में है. कई स्कूलों की छत क्षतिग्रस्त होकर नीचे गिर चुकी हैं, जिसकी वजह से बच्चों को टेंट में या खुले में पढ़ाया जा रहा है. आखिर प्रदेश के इन स्कूलों की हालात कब सुधरेगी ये देखने वाली बात होगी.

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सरकारी स्कूलों की हालत जर्जर
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Published : Aug 7, 2022, 5:37 PM IST

हरिद्वार: बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है, लेकिन हरिद्वार में इन बच्चों के भविष्य के साथ साथ उनका जीवन भी खतरे में है. ये हम नहीं कह रहे, ये सरकारी स्कूलों की हालात (condition of government schools) बयां कर रही है. जहां ये रोजाना शिक्षा ग्रहण करने आते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हरिद्वार के उन सरकारी स्कूलों की जहां के भवन जर्जर होने के कारण बच्चों के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं. कभी भी शिक्षा के ये मंदिर बच्चों की कब्रगाह बन सकते हैं, लेकिन यहां के शिक्षा विभाग को शायद ये नजर नहीं आता.

हरिद्वार के तमाम सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग जर्जर (Government school building dilapidated) हालत में है. कहीं छात्र टेंट के नीचे पढ़ने को मजबूर है. तो कहीं खुले आसमान के नीचे. स्कूल के नाम पर भवन तो हैं, लेकिन उनकी हालात इतनी खराब है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. क्योंकि इन भवनों की छत गिरी हुई है. कुछ भवनों की छतों में मोटी-मोटी दरारें आ रखी है.

सरकारी स्कूलों की हालत जर्जर

शिक्षा का अधिकार (Right to Education) को भारत के संविधान में मूलभूत अधिकारों में शामिल किया गया है. सरकार हर साल करोड़ों रुपया शिक्षा के नाम पर खर्च करती है, लेकिन क्या ये शिक्षा मासूम बच्चों की जिंदगी दांव पर लगाकर दी जा रही है. हरिद्वार के कुछ स्कूल के हालात तो कम से कम यही बयां कर रहे हैं. हरिद्वार के ज्वालापुर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय (Government Primary School at Jwalapur) नंबर 12 के टीचर सुधीर चौबे का कहना है कि हमारे स्कूल की बिल्डिंग जर्जर हालत में है. जिस तरह की सुविधा दी जा रही है, उसी हिसाब से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. क्लास रूम की छत गिरने के कारण बच्चों को बाहर पढ़ाया जाता है.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस ने स्मृति ईरानी के दून दौरे का किया विरोध, लगाए 'गो बैक' के नारे

उन्होंने कहा स्कूल किराए पर है. इस कारण मरम्मत का कार्य भी नहीं हो पा रहा है. अधिकारियों द्वारा कई बार इसका निरीक्षण किया गया, लेकिन अब तक कोई कार्य नहीं हुआ. यह स्कूल तकरीबन 40 से 50 साल पुराना है. वहीं, प्राथमिक विद्यालय नंबर 13 का भी यही हाल है. विद्यालय की छतों लेंटर टूट कर गिर रहा है और भवन में बड़ी-बड़ी दरारें आ रखी है.

इसलिए विद्यालय में छात्र-छात्राओं को टिन शेड में बिठा कर पढ़ाया जा रहा है. यहां पर भी छात्र छात्राओं के ऊपर खतरा मंडरा रहा है. विद्यालय नंबर 5 का तो सबसे बुरा हाल है. यहां पर भवन बिल्कुल भरभरा कर जमींदोज हो चुका है. बच्चे खुले आसमान और पेड़ के नीचे बैठने को मजबूर है.

इस मामले में बेसिक शिक्षा अधिकारी शिव प्रकाश सेमवाल (Basic Education Officer Shiv Prakash Semwal) का कहना है कि विभाग द्वारा जर्जर स्कूलों का निरीक्षण किया गया है. शासन द्वारा भी निर्देशित किया गया है कि जर्जर स्कूलों का डाटा शासन को उपलब्ध कराया जाए. हमारे लिए भी काफी बड़ी चुनौती है. जल्द से जल्द जर्जर अवस्था वाले स्कूलों को सही कराने के विभाग द्वारा वैकल्पिक रास्ते भी तलाशे जा रहे हैं. जिले में कई सरकारी स्कूलों की मरम्मत के लिए प्राइवेट संस्था की आगे आई है. उनके द्वारा कार्य कराया जा रहा है. कई सरकारी स्कूल किराए पर है. ज्वालापुर स्थित एक स्कूल की जमीन का मामला कोर्ट में चल रहा है. इस कारण वहां निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है.

हरिद्वार: बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है, लेकिन हरिद्वार में इन बच्चों के भविष्य के साथ साथ उनका जीवन भी खतरे में है. ये हम नहीं कह रहे, ये सरकारी स्कूलों की हालात (condition of government schools) बयां कर रही है. जहां ये रोजाना शिक्षा ग्रहण करने आते हैं. जी हां, हम बात कर रहे हरिद्वार के उन सरकारी स्कूलों की जहां के भवन जर्जर होने के कारण बच्चों के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं. कभी भी शिक्षा के ये मंदिर बच्चों की कब्रगाह बन सकते हैं, लेकिन यहां के शिक्षा विभाग को शायद ये नजर नहीं आता.

हरिद्वार के तमाम सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग जर्जर (Government school building dilapidated) हालत में है. कहीं छात्र टेंट के नीचे पढ़ने को मजबूर है. तो कहीं खुले आसमान के नीचे. स्कूल के नाम पर भवन तो हैं, लेकिन उनकी हालात इतनी खराब है कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. क्योंकि इन भवनों की छत गिरी हुई है. कुछ भवनों की छतों में मोटी-मोटी दरारें आ रखी है.

सरकारी स्कूलों की हालत जर्जर

शिक्षा का अधिकार (Right to Education) को भारत के संविधान में मूलभूत अधिकारों में शामिल किया गया है. सरकार हर साल करोड़ों रुपया शिक्षा के नाम पर खर्च करती है, लेकिन क्या ये शिक्षा मासूम बच्चों की जिंदगी दांव पर लगाकर दी जा रही है. हरिद्वार के कुछ स्कूल के हालात तो कम से कम यही बयां कर रहे हैं. हरिद्वार के ज्वालापुर स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय (Government Primary School at Jwalapur) नंबर 12 के टीचर सुधीर चौबे का कहना है कि हमारे स्कूल की बिल्डिंग जर्जर हालत में है. जिस तरह की सुविधा दी जा रही है, उसी हिसाब से बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. क्लास रूम की छत गिरने के कारण बच्चों को बाहर पढ़ाया जाता है.

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उन्होंने कहा स्कूल किराए पर है. इस कारण मरम्मत का कार्य भी नहीं हो पा रहा है. अधिकारियों द्वारा कई बार इसका निरीक्षण किया गया, लेकिन अब तक कोई कार्य नहीं हुआ. यह स्कूल तकरीबन 40 से 50 साल पुराना है. वहीं, प्राथमिक विद्यालय नंबर 13 का भी यही हाल है. विद्यालय की छतों लेंटर टूट कर गिर रहा है और भवन में बड़ी-बड़ी दरारें आ रखी है.

इसलिए विद्यालय में छात्र-छात्राओं को टिन शेड में बिठा कर पढ़ाया जा रहा है. यहां पर भी छात्र छात्राओं के ऊपर खतरा मंडरा रहा है. विद्यालय नंबर 5 का तो सबसे बुरा हाल है. यहां पर भवन बिल्कुल भरभरा कर जमींदोज हो चुका है. बच्चे खुले आसमान और पेड़ के नीचे बैठने को मजबूर है.

इस मामले में बेसिक शिक्षा अधिकारी शिव प्रकाश सेमवाल (Basic Education Officer Shiv Prakash Semwal) का कहना है कि विभाग द्वारा जर्जर स्कूलों का निरीक्षण किया गया है. शासन द्वारा भी निर्देशित किया गया है कि जर्जर स्कूलों का डाटा शासन को उपलब्ध कराया जाए. हमारे लिए भी काफी बड़ी चुनौती है. जल्द से जल्द जर्जर अवस्था वाले स्कूलों को सही कराने के विभाग द्वारा वैकल्पिक रास्ते भी तलाशे जा रहे हैं. जिले में कई सरकारी स्कूलों की मरम्मत के लिए प्राइवेट संस्था की आगे आई है. उनके द्वारा कार्य कराया जा रहा है. कई सरकारी स्कूल किराए पर है. ज्वालापुर स्थित एक स्कूल की जमीन का मामला कोर्ट में चल रहा है. इस कारण वहां निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है.

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