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नहीं रहीं हंसी प्रहरी, लावारिस की तरह दी गई अंतिम विदाई, जानें किसने ली बेटे की जिम्मेदारी

कुमाऊं विवि से अंग्रेजी व राजनीति विज्ञान से एमए करने वाली और छात्रसंघ की पदाधिकारी रहीं अल्मोड़ा जिले की हंसी प्रहरी अब हमारे बीच नहीं रहीं. लावारिस की तरह हंसी को अंतिम विदाई दी गई. समाजसेवी भोला शर्मा ने उनका अंतिम संस्कार किया.

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Published : Jan 1, 2023, 1:21 PM IST

Updated : Jan 1, 2023, 3:44 PM IST

हरिद्वारः फर्राटेदार अंग्रेजी, कुमाऊं यूनिवर्सिटी की टॉपर, छात्रा यूनियन वाइस प्रेसिडेंट, डबल एमए करने के बाद भी हरिद्वार की सड़कों में भिक्षावृत्ति कर अपना पेट पालने वाली हंसी प्रहरी अब नहीं रहीं. शुक्रवार को हंसी प्रहरी का देहांत (HANSI PRAHARI died of illness) हो गया. हंसी का बीमारी के चलते शुक्रवार को निधन हुआ. शनिवार को समाजसेवी भोला शर्मा ने उनका अंतिम संस्कार किया. हंसी को (hansi prahari of Bhola Sharma was cremated) लावारिसों की तरह अंतिम विदाई दी गई.

आज से ठीक डेढ़ साल पहले हंसी प्रहरी नाम की ये महिला एकाएक राज्य के लेकर राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियां बन गई थीं. करीब दो साल पहले 18 अक्टूबर 2020 को ईटीवी भारत इस महिला की कहानी दुनिया के सामने लेकर आया था. सोचा था शायद इस महिला की स्थिति में सुधार हो सकेगा, लेकिन मानों ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था. लाख कोशिशों के बावजूद भी हंसी अपने बच्चे के लिए कुछ नहीं कर पाई और आखिरी सांस लेते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.

कई नेताओं ने उन्हें घर दिलाने और नौकरी दिलाने का आश्वासन तो दिया, लेकिन किसी भी नेता ने उसे पूरा नहीं किया. चाहे वह कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य हो या फिर हरिद्वार की मेयर अनीता शर्मा. लाख कोशिशों के बाद भी हंसी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और अब जब हंसी नहीं रही है तो उनके बेटे की देखरेख कैसे होगी यह बड़ा सवाल है.
ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड की हंसी प्रहरी...क्या ये नाम किसी को याद है?

हालांकि, हरिद्वार के समाजसेवी व भाजपा नेता भोला शर्मा ने हंसी के बेटे को संभालने की जिम्मेदारी उठाई है. भोला शर्मा ने बताया कि उन्होंने हंसी के परिवार में उनके भाई निधन की खबर दी. लेकिन उसके बावजूद भी परिवार का कोई भी सदस्य हंसी के अंतिम संस्कार में नहीं आया.

भोला शर्मा ने बताया कि काफी समय से हंसी की तबीयत खराब थी. डॉक्टर का कहना था कि उनका ब्लड धीरे-धीरे पानी बन रहा है. जिसके बाद 22 दिसंबर को उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया. लेकिन 30 दिसंबर की देर रात हंसी ने अंतिम सांस ली. हंसी का बेटा भी मेरे ही घर में है. उसकी देखभाल की जिम्मेदारी मैंने ली है. अगर हंसी के परिवार से कोई नहीं आता है तो मैं उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही रखूंगा.

हंसी की अर्श से फर्श तक की कहानी: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंदपुर के पास रणखिला गांव पड़ता है. इसी गांव में पली-बढ़ीं हंसी 5 भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी हैं. पहाड़ी परिवार में सब कुछ बेहतर चल रहा था. परिवार की सबसे बड़ी बेटी हंसी पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी. पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे. अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया था.

छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट रह चुकी हैं हंसी: पिता का मान रखते हुए परिवार की बेटी हंसी गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंच गईं. एडमिशन की तमाम प्रक्रिया और टेस्ट पास करने के बाद हंसी का दाखिला विश्वविद्यालय में हो गया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1999-2000 वह चर्चाओं में तब आईं जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनीं. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की.
ये भी पढ़ेंः हंसी को यूपी से आया जॉब ऑफर, बेटे के लिए भी है प्रस्ताव

उन्होंने लगभग 4 साल विश्वविद्यालय में नौकरी की. उन्हें नौकरी इसलिए मिली क्योंकि वह विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेती थीं. चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह सभी में प्रथम आया करती थीं. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की.

शादी के बाद हुई आपसी तनातनी से 2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आया. शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं, तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं. उन्होंने कहा था कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 7 साल के बच्चे का लालन-पालन किया. हंसी के दो बच्चे हैं. बेटी नानी के साथ रहती है और बेटा उनके साथ ही फुटपाथ पर रहता था.

पूर्व केंद्रीय मंत्री को टक्कर दे चुकी हैं हंसी: ईटीवी भारत ने जब हंसी के बारे में और जानकारी जुटाई थी, तो पता लगा कि हंसी अपने गांव का कोई छोटा-मोटा नाम नहीं हैं. साल 2002 में हंसा ने वर्तमान दोनों सांसद प्रदीप टम्टा और अजय टम्टा के खिलाफ सोमेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. ग्रामीणों ने हंसी के पढ़े-लिखे होने के बाद खुद उनको ये चुनाव लड़ने को कहा था. इतना ही नहीं, हंसी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद अजय टम्टा से 2000 वोट अधिक हासिल किए थे.

हरिद्वारः फर्राटेदार अंग्रेजी, कुमाऊं यूनिवर्सिटी की टॉपर, छात्रा यूनियन वाइस प्रेसिडेंट, डबल एमए करने के बाद भी हरिद्वार की सड़कों में भिक्षावृत्ति कर अपना पेट पालने वाली हंसी प्रहरी अब नहीं रहीं. शुक्रवार को हंसी प्रहरी का देहांत (HANSI PRAHARI died of illness) हो गया. हंसी का बीमारी के चलते शुक्रवार को निधन हुआ. शनिवार को समाजसेवी भोला शर्मा ने उनका अंतिम संस्कार किया. हंसी को (hansi prahari of Bhola Sharma was cremated) लावारिसों की तरह अंतिम विदाई दी गई.

आज से ठीक डेढ़ साल पहले हंसी प्रहरी नाम की ये महिला एकाएक राज्य के लेकर राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियां बन गई थीं. करीब दो साल पहले 18 अक्टूबर 2020 को ईटीवी भारत इस महिला की कहानी दुनिया के सामने लेकर आया था. सोचा था शायद इस महिला की स्थिति में सुधार हो सकेगा, लेकिन मानों ऊपर वाले को कुछ और ही मंजूर था. लाख कोशिशों के बावजूद भी हंसी अपने बच्चे के लिए कुछ नहीं कर पाई और आखिरी सांस लेते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.

कई नेताओं ने उन्हें घर दिलाने और नौकरी दिलाने का आश्वासन तो दिया, लेकिन किसी भी नेता ने उसे पूरा नहीं किया. चाहे वह कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य हो या फिर हरिद्वार की मेयर अनीता शर्मा. लाख कोशिशों के बाद भी हंसी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और अब जब हंसी नहीं रही है तो उनके बेटे की देखरेख कैसे होगी यह बड़ा सवाल है.
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हालांकि, हरिद्वार के समाजसेवी व भाजपा नेता भोला शर्मा ने हंसी के बेटे को संभालने की जिम्मेदारी उठाई है. भोला शर्मा ने बताया कि उन्होंने हंसी के परिवार में उनके भाई निधन की खबर दी. लेकिन उसके बावजूद भी परिवार का कोई भी सदस्य हंसी के अंतिम संस्कार में नहीं आया.

भोला शर्मा ने बताया कि काफी समय से हंसी की तबीयत खराब थी. डॉक्टर का कहना था कि उनका ब्लड धीरे-धीरे पानी बन रहा है. जिसके बाद 22 दिसंबर को उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया. लेकिन 30 दिसंबर की देर रात हंसी ने अंतिम सांस ली. हंसी का बेटा भी मेरे ही घर में है. उसकी देखभाल की जिम्मेदारी मैंने ली है. अगर हंसी के परिवार से कोई नहीं आता है तो मैं उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह ही रखूंगा.

हंसी की अर्श से फर्श तक की कहानी: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर विधानसभा क्षेत्र के हवालबाग विकासखंड के अंतर्गत गोविंदपुर के पास रणखिला गांव पड़ता है. इसी गांव में पली-बढ़ीं हंसी 5 भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी हैं. पहाड़ी परिवार में सब कुछ बेहतर चल रहा था. परिवार की सबसे बड़ी बेटी हंसी पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी. पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे. अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर दिया था.

छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट रह चुकी हैं हंसी: पिता का मान रखते हुए परिवार की बेटी हंसी गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंच गईं. एडमिशन की तमाम प्रक्रिया और टेस्ट पास करने के बाद हंसी का दाखिला विश्वविद्यालय में हो गया. हंसी पढ़ाई लिखाई और दूसरी एक्टिविटीज में इतनी तेज थी कि साल 1999-2000 वह चर्चाओं में तब आईं जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनीं. इसके साथ ही कुमाऊं विश्वविद्यालय से दो बार एमए की पढ़ाई अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान में पास करने के बाद हंसी ने कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी की.
ये भी पढ़ेंः हंसी को यूपी से आया जॉब ऑफर, बेटे के लिए भी है प्रस्ताव

उन्होंने लगभग 4 साल विश्वविद्यालय में नौकरी की. उन्हें नौकरी इसलिए मिली क्योंकि वह विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेती थीं. चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह सभी में प्रथम आया करती थीं. इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की.

शादी के बाद हुई आपसी तनातनी से 2011 के बाद हंसी की जिंदगी में अचानक से मोड़ आया. शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया. उन्होंने परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं, तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं. उन्होंने कहा था कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें. 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने 7 साल के बच्चे का लालन-पालन किया. हंसी के दो बच्चे हैं. बेटी नानी के साथ रहती है और बेटा उनके साथ ही फुटपाथ पर रहता था.

पूर्व केंद्रीय मंत्री को टक्कर दे चुकी हैं हंसी: ईटीवी भारत ने जब हंसी के बारे में और जानकारी जुटाई थी, तो पता लगा कि हंसी अपने गांव का कोई छोटा-मोटा नाम नहीं हैं. साल 2002 में हंसा ने वर्तमान दोनों सांसद प्रदीप टम्टा और अजय टम्टा के खिलाफ सोमेश्वर विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. ग्रामीणों ने हंसी के पढ़े-लिखे होने के बाद खुद उनको ये चुनाव लड़ने को कहा था. इतना ही नहीं, हंसी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और मौजूदा सांसद अजय टम्टा से 2000 वोट अधिक हासिल किए थे.

Last Updated : Jan 1, 2023, 3:44 PM IST
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