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प्राकृतिक गैस से जलेगी सती कुंड की ज्योति, 52 शक्तिपीठों की है जननी

सती कुण्ड बदहाल स्थिति में है. अब हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण सती कुंड स्थल को संवारने का कार्य करेगा, जिसके तहत सती कुण्ड में गंगा जल का निरंतर प्रवाह रहेगा. इसके साथ ही सती कुंड के बीचों बीच माता सती की प्रतिमा लगाई जाएगी और चौबीस घंटे यहां पर अमर जवान ज्योति की तर्ज पर ज्योति जलेगी.

Haridwar Sati Kund
हरिद्वार सती कुंड
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Published : Oct 28, 2020, 12:13 PM IST

हरिद्वार: आगामी हरिद्वार महाकुंभ 2021 को ध्यान में रखते हुए 52 शक्तिपीठों की जननी सती कुंड को भव्य स्वरूप देने में मेला प्रशासन जुट गया है. कुंड को भव्य और सुंदर बनाने के लिए दिल्ली के अमर जवान ज्योति की तर्ज पर प्राकृतिक गैस से हवन कुंड जलाया जाएगा. सालों से सती कुंड बदहाली की मार झेल रहा था, लेकिन अब इस स्थल को सवारने का कार्य जल्द शुरू होगा. सती कुंड में गंगाजल का निरंतर प्रवाह भी रहेगा. साथ ही कुंड के बीचों-बीच माता सती की प्रतिमा भी लगाई जाएगी. इस कार्य को हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण के द्वारा कराया जाएगा.

Haridwar Sati Kund
सती कुंड में जलेगी प्राकृतिक गैस से ज्योति.

कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत का कहना है कि सती कुंड का उल्लेख कई पुराणों में है और इस कुंड की काफी मान्यता है. इसको भव्य और सुंदर बनाने के लिए नेचुरल गैस अथॉरिटी द्वारा ज्योति बनाई जाएगी. इसके लिए उन्होंने नेचुरल गैस अथॉरिटी को निर्देशित किया है. इसका सर्वे किया जाएगा. सती कुंड को भव्य बनाने के लिए एचआरडीए द्वारा भी कार्य किया जा रहा है. यह काम अगले 15 दिन में कर लिया जाएगा.

52 शक्तिपीठों की जननी सती कुंड का होगा जीर्णोद्धार.

नेचुरल गैस अथॉरिटी के प्रबंधक परंजय जोशी का कहना है कि शहर में नेचुरल गैस का कार्य चल रहा है. इसके साथ ही एक प्रतीक के रूप में प्राकृतिक गैस के माध्यम से अमर ज्योति सती कुंड में जलाने की योजना चल रही है. इसके लिए दिल्ली से आर्किटेक्ट बुलवाए गए हैं. जिस तरह से अमर जवान ज्योति जलती है उसी की तर्ज पर सती कुंड पर भी एक ज्योति जलाने का प्रयास किया जाएगा.

पढ़ें- दीपावली के लिए सजने लगे बाजार,पटाखों की दुकान के लाइसेंस के लिए 29 अक्टूबर से होंगे आवेदन

सतीकुंड का पौराणिक महत्व

शिव पुराण के अनुसार हरिद्वार की पुरानी नगरी कनखल राजा दक्ष की नगरी कहलाती है. एक समय राजा दक्ष ने कनखल में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था. लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव और सती को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. पिता मोह में माता सती अपने पति भगवान शिव के मना करने के बाद भी यज्ञ में पहुंची, लेकिन जब मां सती ने यज्ञ में अपने पति का आसन नहीं देखा तो इसे अपने पति का अपमान समझा और इससे नाराज होकर मां सती ने इसी स्थल पर हवन कुंड में कूदकर जान दे दी थी.

सती के हवन कुंड में आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव ने अपना रौद्र रूप धारण किया और वीरभद्र की उत्पत्ति कर राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दक्ष का सर धड़ से अलग कर दिया. इसलिए इस स्थान को 52 शक्तिपीठों की जननी कहा जाता है.

हरिद्वार: आगामी हरिद्वार महाकुंभ 2021 को ध्यान में रखते हुए 52 शक्तिपीठों की जननी सती कुंड को भव्य स्वरूप देने में मेला प्रशासन जुट गया है. कुंड को भव्य और सुंदर बनाने के लिए दिल्ली के अमर जवान ज्योति की तर्ज पर प्राकृतिक गैस से हवन कुंड जलाया जाएगा. सालों से सती कुंड बदहाली की मार झेल रहा था, लेकिन अब इस स्थल को सवारने का कार्य जल्द शुरू होगा. सती कुंड में गंगाजल का निरंतर प्रवाह भी रहेगा. साथ ही कुंड के बीचों-बीच माता सती की प्रतिमा भी लगाई जाएगी. इस कार्य को हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण के द्वारा कराया जाएगा.

Haridwar Sati Kund
सती कुंड में जलेगी प्राकृतिक गैस से ज्योति.

कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत का कहना है कि सती कुंड का उल्लेख कई पुराणों में है और इस कुंड की काफी मान्यता है. इसको भव्य और सुंदर बनाने के लिए नेचुरल गैस अथॉरिटी द्वारा ज्योति बनाई जाएगी. इसके लिए उन्होंने नेचुरल गैस अथॉरिटी को निर्देशित किया है. इसका सर्वे किया जाएगा. सती कुंड को भव्य बनाने के लिए एचआरडीए द्वारा भी कार्य किया जा रहा है. यह काम अगले 15 दिन में कर लिया जाएगा.

52 शक्तिपीठों की जननी सती कुंड का होगा जीर्णोद्धार.

नेचुरल गैस अथॉरिटी के प्रबंधक परंजय जोशी का कहना है कि शहर में नेचुरल गैस का कार्य चल रहा है. इसके साथ ही एक प्रतीक के रूप में प्राकृतिक गैस के माध्यम से अमर ज्योति सती कुंड में जलाने की योजना चल रही है. इसके लिए दिल्ली से आर्किटेक्ट बुलवाए गए हैं. जिस तरह से अमर जवान ज्योति जलती है उसी की तर्ज पर सती कुंड पर भी एक ज्योति जलाने का प्रयास किया जाएगा.

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सतीकुंड का पौराणिक महत्व

शिव पुराण के अनुसार हरिद्वार की पुरानी नगरी कनखल राजा दक्ष की नगरी कहलाती है. एक समय राजा दक्ष ने कनखल में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था. लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव और सती को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. पिता मोह में माता सती अपने पति भगवान शिव के मना करने के बाद भी यज्ञ में पहुंची, लेकिन जब मां सती ने यज्ञ में अपने पति का आसन नहीं देखा तो इसे अपने पति का अपमान समझा और इससे नाराज होकर मां सती ने इसी स्थल पर हवन कुंड में कूदकर जान दे दी थी.

सती के हवन कुंड में आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव ने अपना रौद्र रूप धारण किया और वीरभद्र की उत्पत्ति कर राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दक्ष का सर धड़ से अलग कर दिया. इसलिए इस स्थान को 52 शक्तिपीठों की जननी कहा जाता है.

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