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बैकों का निजीकरण आजादी से पहले के दौर में पहुंचाएगा, लोन लेने को तैयार नहीं लोगः SBISA सचिव - एसबीआई स्टाफ एसोसिएशन बैठक

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन (SBISA) मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश ने बैकों के निजीकरण के नुकसान गिनाए. साथ ही कहा कि बैकों का निजीकरण हमें आजादी से पहले के दौर में ले जाएगी. जानिए इसके अलावा क्या-क्या कहा...

privatization of banks not in interest of public
बैंकों के निजीकरण पर एसबीआई स्टाफ एसोसिएशन मुख्य सचिव से बातचीत
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Published : Nov 27, 2021, 10:35 PM IST

हरिद्वारः उत्तराखंड के हरिद्वार में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन यानी एसबीआईएसए (8 सर्कल) की 67वीं सेंट्रल कमेटी की मीटिंग हुई. जिसमें एसबीआईएसए के मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने बैंकिंग सेक्टर की मुख्य भूमिका, बैंकों के निजीकरण से कर्मचारियों और आमजन पर पड़ने वाले प्रभावों समेत अन्य मुद्दों पर विस्तार से बात की.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन (State Bank of India Staff Association) के मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश ने ईटीवी भारत पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से बैंक कर्मियों और आम जनता पर प्रभाव और उनकी समस्याओं को लेकर खुलकर बात की. उनका साफतौर पर कहना है कि बैकों का निजीकरण किसी भी तरीके नागरिकों के हित (privatization of banks not in interest of public) में नहीं है. अगर बैकों का निजीकरण होता है तो बैंकों की बागडोर कुछ पूंजीपतियों के हाथ में होगी.

बैंकों के निजीकरण पर एसबीआई स्टाफ एसोसिएशन के मुख्य सचिव से बातचीत.

ये भी पढ़ेंः 75 सालों बाद इस क्षेत्र में खुलने जा रही है बैंक की शाखा, 40 ग्राम सभाओं को होगा फायदा

निजीकरण से आजादी के दौर में पहुंचेंगेः उनका कहना है कि बैंक पूंजीपतियों के हाथ में होगी तो हम आजादी से पहले वाले दौर में पहुंच जाएंगे. साथ ही कहा कि निजीकरण से आम आदमी की आर्थिक सुरक्षा पर भी प्रभाव पड़ेगा. रोजगार और सम्मानजनक सेवा शर्तों व वेतन का निर्धारण भी सार्वजनिक क्षेत्र की ओर से ही संभव है. ऐसे में वो हर प्रकार के आंदोलन के लिए तैयार हैं.

ये भी पढ़ेंः मुजफ्फरपुर में चलता है भिखारियों का अपना बैंक, जरूरत पड़ने पर मिलता है लोन

कोरोनाकाल के बाद लोन लेने को तैयार नहीं लोगः उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में हर सेक्टर में कर्मचारियों की सैलरी काटी गई, लेकिन उन्होंने बैंक कर्मियों की सैलरी नहीं कटने दी. कोरोनाकाल में भी उन्होंने जनता की सेवा की है. उनका कहना है कि कोरोनाकाल के बाद से बैंकों की हालत काफी खस्ता है. बैंकों के पास पैसा देने के लिए काफी है. लेकिन कोई लोन (Bank Loan) लेने को तैयार नहीं है. उनकी कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोन दें. जिस तरह से कोरोना के बाद देश की जीडीपी (GDP) गिरी है, उसे उठाने का प्रयास किया जा रहा है.

ये भी पढ़ेंः पॉजिटिव पे सिस्टम से रुकेगा चेक पेमेंट फ्रॉड, जानिए क्या है नियम

नोटबंदी का बैंकों पर कितना असर? एसबीआईएसए (SBISA) के मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश का कहना है कि नोटबंदी का असर (Demonetization effect on Bank) अब बैंकों पर नहीं है, लेकिन कोविड का असर साफ तौर पर बैंकों पर पड़ा है. कोरोना के चलते काफी उद्योग और बाजार बंद हो गए. कुछ ही कंपनियां बची हैं. ऐसे में बाजार में मंदी आई है. जिसका असर बैंकों पर पड़ा है.

ये भी पढ़ेंः PM मोदी की दो घोषणाओं से बैंक ग्राहकों और निवेशकों को बड़ी राहत: जितेंद्र डिडोन

डिजिटलाइजेशन का कितना फायदा? वहीं, डिजिटलाइजेशन (Digitalization) पर बोलते हुए संजीव के बंदलिश ने कहा कि अब उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा अपनी सर्विस को डिजिटल करना है. जिससे ग्राहक अपने घर पर बैठकर भी बैंक से जुड़ी सुविधाओं का लाभ उठा सके. आज के समय में काफी लोग डिजिटल बैंकिंग कर रहे हैं. जिनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, आने वाले समय में डिजिटल बैंकिंग का ही जमाना है. जिसके लिए एडवांस कार्य किए जा रहे हैं. जिससे डिजिटल बैंकिंग को और सुरक्षित एवं बेहतर किया जा सके.

हरिद्वारः उत्तराखंड के हरिद्वार में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन यानी एसबीआईएसए (8 सर्कल) की 67वीं सेंट्रल कमेटी की मीटिंग हुई. जिसमें एसबीआईएसए के मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश ने शिरकत की. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने बैंकिंग सेक्टर की मुख्य भूमिका, बैंकों के निजीकरण से कर्मचारियों और आमजन पर पड़ने वाले प्रभावों समेत अन्य मुद्दों पर विस्तार से बात की.

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया स्टाफ एसोसिएशन (State Bank of India Staff Association) के मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश ने ईटीवी भारत पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से बैंक कर्मियों और आम जनता पर प्रभाव और उनकी समस्याओं को लेकर खुलकर बात की. उनका साफतौर पर कहना है कि बैकों का निजीकरण किसी भी तरीके नागरिकों के हित (privatization of banks not in interest of public) में नहीं है. अगर बैकों का निजीकरण होता है तो बैंकों की बागडोर कुछ पूंजीपतियों के हाथ में होगी.

बैंकों के निजीकरण पर एसबीआई स्टाफ एसोसिएशन के मुख्य सचिव से बातचीत.

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निजीकरण से आजादी के दौर में पहुंचेंगेः उनका कहना है कि बैंक पूंजीपतियों के हाथ में होगी तो हम आजादी से पहले वाले दौर में पहुंच जाएंगे. साथ ही कहा कि निजीकरण से आम आदमी की आर्थिक सुरक्षा पर भी प्रभाव पड़ेगा. रोजगार और सम्मानजनक सेवा शर्तों व वेतन का निर्धारण भी सार्वजनिक क्षेत्र की ओर से ही संभव है. ऐसे में वो हर प्रकार के आंदोलन के लिए तैयार हैं.

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कोरोनाकाल के बाद लोन लेने को तैयार नहीं लोगः उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में हर सेक्टर में कर्मचारियों की सैलरी काटी गई, लेकिन उन्होंने बैंक कर्मियों की सैलरी नहीं कटने दी. कोरोनाकाल में भी उन्होंने जनता की सेवा की है. उनका कहना है कि कोरोनाकाल के बाद से बैंकों की हालत काफी खस्ता है. बैंकों के पास पैसा देने के लिए काफी है. लेकिन कोई लोन (Bank Loan) लेने को तैयार नहीं है. उनकी कोशिश यही है कि ज्यादा से ज्यादा लोन दें. जिस तरह से कोरोना के बाद देश की जीडीपी (GDP) गिरी है, उसे उठाने का प्रयास किया जा रहा है.

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नोटबंदी का बैंकों पर कितना असर? एसबीआईएसए (SBISA) के मुख्य सचिव संजीव के. बंदलिश का कहना है कि नोटबंदी का असर (Demonetization effect on Bank) अब बैंकों पर नहीं है, लेकिन कोविड का असर साफ तौर पर बैंकों पर पड़ा है. कोरोना के चलते काफी उद्योग और बाजार बंद हो गए. कुछ ही कंपनियां बची हैं. ऐसे में बाजार में मंदी आई है. जिसका असर बैंकों पर पड़ा है.

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डिजिटलाइजेशन का कितना फायदा? वहीं, डिजिटलाइजेशन (Digitalization) पर बोलते हुए संजीव के बंदलिश ने कहा कि अब उनका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा अपनी सर्विस को डिजिटल करना है. जिससे ग्राहक अपने घर पर बैठकर भी बैंक से जुड़ी सुविधाओं का लाभ उठा सके. आज के समय में काफी लोग डिजिटल बैंकिंग कर रहे हैं. जिनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है, आने वाले समय में डिजिटल बैंकिंग का ही जमाना है. जिसके लिए एडवांस कार्य किए जा रहे हैं. जिससे डिजिटल बैंकिंग को और सुरक्षित एवं बेहतर किया जा सके.

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