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रुड़की: सादगी से मनाई गयी बकरीद, सोशल डिस्टेंसिंग का रखा गया ख्याल - बकरीद का त्योहार

रुड़की में ईद-उल-अजहा का पर्व इस बार बड़ी सादगी के साथ मनाया गया. ईदगाह और मस्जिदों में सिर्फ पांच-पांच लोगों ने ईद की नमाज अदा की.

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नमाज पढ़ते बच्चे
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Published : Aug 1, 2020, 7:48 PM IST

रुड़की: देशभर में ईद-उल-अजहा का पर्व इस बार बड़ी सादगी के साथ मनाया गया. ईदगाह और मस्जिदों में सिर्फ पांच-पांच लोगों ने ईद की नमाज को अदा किया. बाकी घरों में ईद की नमाज को अदा किया गया. एक- दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी गई. इसके बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ. दरअसल, सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक कुर्बानी के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. इस मौके पर छोटे-छोटे मासूम बच्चे नए पोशाक में नजर आए.

इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा का खास महत्व है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, बकरीद का त्योहार अल्लाह को राजी करने का पर्व है. अल्लाह ने पैगंबर हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी और अजीज चीज की कुर्बानी देने के लिए कहा था. हजरत इब्राहिम के लिए सबसे अजीज और प्यारे उनके बेटे हजरत इस्माइल ही थे, लेकिन हजरत इब्राहिम ने बेटे के लिए अपनी मुहब्बत के बजाए अल्लाह के हुक्म को मानने का फैसला किया. अपने बेटे को अल्लाह के लिए कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए.

पढ़ें: रक्षाबंधन के लिये हजारों टन फूलों से सज रहा केदारनाथ मंदिर, देखें मनमोहक दृश्य

हजरत इब्राहिम ने आंखें बंद करके जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह दुंबा (कुर्बानी का जानवर) भेज दिया. इस तरह उनके बेटे बच गए और दुंबा कुर्बान हो गया. इसके बाद से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का सिलसिला शुरू हो गया और तब से आजतक अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी का सिलसिला चलता आ रहा है.

पढ़ें: एसएसपी के तबादला मामले पर कांग्रेस ने साधा त्रिवेंद्र सरकार का निशाना

मुस्लिम मजहब के मुताबिक, हैसियत मंद लोगों पर कुर्बानी वाजिब होती है. कहा जाता है कि जो हैसियतमंद कुर्बानी नहीं करता है. वह गुनाहगार होता है. लोग अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक कुर्बानी करते है. यही वजह है कि हर साल मुस्लिम समाज के लोग कुर्बानी के लिए सेहतमंद जानवर की कुर्बानी करते है. कुर्बानी के लिए बकरा, भेड़, ऊंट, भैंस जैसे जानवरों की कुर्बानी होती है. ये जरूरी है कि कुर्बानी का जानवर सेहतमंद होना चाहिए.

रुड़की: देशभर में ईद-उल-अजहा का पर्व इस बार बड़ी सादगी के साथ मनाया गया. ईदगाह और मस्जिदों में सिर्फ पांच-पांच लोगों ने ईद की नमाज को अदा किया. बाकी घरों में ईद की नमाज को अदा किया गया. एक- दूसरे को ईद की मुबारकबाद दी गई. इसके बाद कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ. दरअसल, सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक कुर्बानी के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं. इस मौके पर छोटे-छोटे मासूम बच्चे नए पोशाक में नजर आए.

इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा का खास महत्व है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, बकरीद का त्योहार अल्लाह को राजी करने का पर्व है. अल्लाह ने पैगंबर हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी और अजीज चीज की कुर्बानी देने के लिए कहा था. हजरत इब्राहिम के लिए सबसे अजीज और प्यारे उनके बेटे हजरत इस्माइल ही थे, लेकिन हजरत इब्राहिम ने बेटे के लिए अपनी मुहब्बत के बजाए अल्लाह के हुक्म को मानने का फैसला किया. अपने बेटे को अल्लाह के लिए कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए.

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हजरत इब्राहिम ने आंखें बंद करके जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह दुंबा (कुर्बानी का जानवर) भेज दिया. इस तरह उनके बेटे बच गए और दुंबा कुर्बान हो गया. इसके बाद से ही अल्लाह की राह में कुर्बानी देने का सिलसिला शुरू हो गया और तब से आजतक अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी का सिलसिला चलता आ रहा है.

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मुस्लिम मजहब के मुताबिक, हैसियत मंद लोगों पर कुर्बानी वाजिब होती है. कहा जाता है कि जो हैसियतमंद कुर्बानी नहीं करता है. वह गुनाहगार होता है. लोग अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक कुर्बानी करते है. यही वजह है कि हर साल मुस्लिम समाज के लोग कुर्बानी के लिए सेहतमंद जानवर की कुर्बानी करते है. कुर्बानी के लिए बकरा, भेड़, ऊंट, भैंस जैसे जानवरों की कुर्बानी होती है. ये जरूरी है कि कुर्बानी का जानवर सेहतमंद होना चाहिए.

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