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मृत लोगों को मुक्ति दिलाने का उठाया बीड़ा, देश-विदेश के 8296 लावारिस अस्थियों को किया गंगा में विसर्जित

मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद जब तक उसकी अस्थियों को गंगा मे विसर्जित नहीं किया जाता है, तब तक उसकी मुक्ति नहीं मानी जाती है. इसलिए दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति के द्वारा पिछले 18 सालों से हजारों लावारिस लोगों की अस्थियों को गंगा मे प्रवाहित किया जा रहा है.

मृत लोगों को मुक्ति दिलाने का उठाया बीड़ा.
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Published : Sep 22, 2019, 9:22 AM IST

हरिद्वार: धर्मनगरी कनखल स्थित सती घाट के गंगा घाट पर एक अनोखा नजारा देखने को मिला. यहां पर एक साथ लगभग 8296 लावारिस अस्थियों को गंगा मे प्रवाहित किया गया. दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति के द्वारा पिछले 18 सालों से हजारों लावारिस लोगों की अस्थियों को गंगा मे प्रवाहित किया जा रहा है. समिति देश से ही नहीं सिंगापुर और दुबई से भी अस्थियां लाकर गंगा प्रवाहित करती हैं.

मृत लोगों को मुक्ति दिलाने का उठाया बीड़ा.

सनातन धर्म के अनुसार, मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद जब तक उसकी अस्थियों को गंगा मे विसर्जित नहीं किया जाता है, तब तक उसकी मुक्ति नहीं मानी जाती है. इस देश मे ऐसे अनेक लोग हैं, जिनके मरने के बाद अस्थियों को लावारिस मानकर श्मशान घाट पर ही छोड़ दिया जाता है. लेकिन, श्री देवोत्थान सेवा समिति ने इन लावारिस अस्थियों को गंगा मे विसर्जित करने का बीड़ा उठाया है. पिछले समिति बीते 18 सालों से ये काम कर रही है. देश के कई स्थानों के साथ इस बार सिंगापुर और दुबई से भी एकत्र की गई 8296 लावारिस अस्थियों को पूरे धार्मिक विधि- विधान के साथ गंगा मे प्रवाहित किया गया. श्री देवोत्थान सेवा समिति अब तक एक लाख से अधिक लावारिस लोगों की अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर चुकी है.

ये भी पढ़ें: शर्मसार उत्तराखंडः बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं ने ली महिला की जान, कौन देगा जुड़वा नवजात को मां का प्यार?

श्री देवोत्थान सेवा समिति के संरक्षक महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत ने बताया कि पिछले 18 सालों से 1 लाख 28 हजार 493 लावारिस अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया गया है. इस बार वे 8296 लोगों की अस्थियां लेकर हरिद्वार पहुंचे हैं. इन सभी लावारिस अस्थियों का विधिवत गंगा में प्रवाहित किया गया.

श्री देवोत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष अनिल नरेंद्र ने बताया कि इन लावारिस अस्थियों को पूरे देश से इकट्ठा किया गया है. साथ ही इस बार सिंगापुर और दुबई से भी लावारिस अस्थियों को उनके द्वारा लाया गया है. हरिद्वार में आकर उनको पूरे विधि- विधान के साथ गंगा में विसर्जित करते हैं और उन्होंने कहा कि ये कार्य निरंतर आगे चलता ही रहेगा.

हरिद्वार: धर्मनगरी कनखल स्थित सती घाट के गंगा घाट पर एक अनोखा नजारा देखने को मिला. यहां पर एक साथ लगभग 8296 लावारिस अस्थियों को गंगा मे प्रवाहित किया गया. दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति के द्वारा पिछले 18 सालों से हजारों लावारिस लोगों की अस्थियों को गंगा मे प्रवाहित किया जा रहा है. समिति देश से ही नहीं सिंगापुर और दुबई से भी अस्थियां लाकर गंगा प्रवाहित करती हैं.

मृत लोगों को मुक्ति दिलाने का उठाया बीड़ा.

सनातन धर्म के अनुसार, मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद जब तक उसकी अस्थियों को गंगा मे विसर्जित नहीं किया जाता है, तब तक उसकी मुक्ति नहीं मानी जाती है. इस देश मे ऐसे अनेक लोग हैं, जिनके मरने के बाद अस्थियों को लावारिस मानकर श्मशान घाट पर ही छोड़ दिया जाता है. लेकिन, श्री देवोत्थान सेवा समिति ने इन लावारिस अस्थियों को गंगा मे विसर्जित करने का बीड़ा उठाया है. पिछले समिति बीते 18 सालों से ये काम कर रही है. देश के कई स्थानों के साथ इस बार सिंगापुर और दुबई से भी एकत्र की गई 8296 लावारिस अस्थियों को पूरे धार्मिक विधि- विधान के साथ गंगा मे प्रवाहित किया गया. श्री देवोत्थान सेवा समिति अब तक एक लाख से अधिक लावारिस लोगों की अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर चुकी है.

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श्री देवोत्थान सेवा समिति के संरक्षक महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत ने बताया कि पिछले 18 सालों से 1 लाख 28 हजार 493 लावारिस अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया गया है. इस बार वे 8296 लोगों की अस्थियां लेकर हरिद्वार पहुंचे हैं. इन सभी लावारिस अस्थियों का विधिवत गंगा में प्रवाहित किया गया.

श्री देवोत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष अनिल नरेंद्र ने बताया कि इन लावारिस अस्थियों को पूरे देश से इकट्ठा किया गया है. साथ ही इस बार सिंगापुर और दुबई से भी लावारिस अस्थियों को उनके द्वारा लाया गया है. हरिद्वार में आकर उनको पूरे विधि- विधान के साथ गंगा में विसर्जित करते हैं और उन्होंने कहा कि ये कार्य निरंतर आगे चलता ही रहेगा.

Intro:सनातन धर्म मे मनुष्य के अंतिम संस्कार के बाद जब तक उसकी अस्थियों को गंगा मे न प्रवाहित किया जाये तब तक उसकी मुक्ति नहीं मानी जाती है और इस देश मे ऐसे अनेक दुर्भाग्यशाली लोग है जिनको मरने के बाद लावारिश मान कर शमशान घाट पर ही छोड़ दिया जाता है लेकिन श्री देवोत्थान सेवा समिति ने इन लावारिस अस्थियों को गंगा मे विसर्जित करने का बीड़ा उठाया है और पिछले 18 साल से यह काम कर रही है देश के कई स्थानों के साथ इस बार सिंगापुर और दुबई से भी एकत्र क़ी गई 8296 लावारिस अस्थियों को पुरे धार्मिक विधि विधान के साथ गंगा मे प्रवाहित किया श्री देवोत्थान सेवा समिति अब तक एक लाख से अधिक लावारिश लोगों की अस्थियों को गंगा में विसर्जित कर चुकी है
Body:हरिद्वार कनखल स्थित सती घाट के गंगा घाट पर एक अनोखा ही नजारा देखने को मिला यंहा पर एक साथ ही करीब 8296 लावारिश अस्थियों को गंगा मे प्रवाहित किया गया दिल्ली की श्री देवोत्थान सेवा समिति के द्वारा पिछले 18 साल से इसी तरह से ही हजारों लावारिस लोगों क़ी अस्थियाँ गंगा मे प्रवाहित क़ी जा रही है श्री देवोत्थान सेवा समिति के संरक्षक महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत का कहना है कि हमारे द्वारा पिछले 17 सालों से 1 लाख 28 हजार 493 लावारिस हस्तियों को गंगा में प्रवाहित किया गया है और इस बार 8296 लोगों की अस्थियां लेकर हरिद्वार पहुंचे हैं इन सभी लावारिस हस्तियों का विधिवत वैदिक संसार के साथ गंगा में प्रवाहित किया गया है ताकि इनको मोक्ष मिल सके क्योंकि सनातन संस्कृति में मृत्यु के बाद जब तक गंगा में विसर्जित नहीं होती मृत आत्मा को शांति नहीं मिलती इसलिए हम लावारिस लोगों के वारिस बनकर उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित करते हैं इस बार देश के साथ ही दुबई और सिंगापुर से भी लावारिस हस्तियों को लाया गया है

बाइट महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत संरक्षक श्री देवोत्थान सेवा समिति

श्री देवोत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष अनिल नरेंद्र का कहना है कि इन लावारिस अस्थियों को पूरे देश से इकट्ठा किया गया है और साथ ही इस बार सिंगापुर और दुबई से भी लावारिस हस्तियों को हमारे द्वारा लेकर आया गया है हम देश के कोने कोने से लावारिस हस्तियों को इकट्ठा करते हैं और हरिद्वार में आकर उनको पूरे विधि विधान के साथ गंगा में विसर्जित करते हैं और यह हमारा कार्य निरंतर आगे चलता ही रहेगा

बाइट अनिल नरेंद्र अध्यक्ष श्री देवोत्थान सेवा समिति Conclusion:लावारिस अस्तियों को गंगा में प्रवाहित कर यह पुण्य का काम तो कर ही रहे हैं और साथ ही इस काम के साथ-साथ उन लोगों को भी अपने पूर्वजों के प्रति जागरूक कर रहे हैं कि जो काम की आपाधापी में अपनों को पूरा अंतिम कर्मकांड नहीं करते हैं जिसकी वजह से उनके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि सनातन धर्म में जब तक गंगा में अस्थियां विसर्जित नहीं होती तब तक मृत आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती और यही संदेश यह उन लोगों को दे रहे हैं
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