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विश्व ब्रेल दिवस: दिव्यांगों के लिए वरदान साबित हो रही केंद्रीय ब्रेल प्रेस, मिल रही शिक्षा की रोशनी

देहरादून स्थित केंद्रीय ब्रेल प्रेस न केवल भारत की पहली यूनिट है बल्कि एशिया में भी सबसे पुरानी और बड़ी ब्रेल प्रेस में शामिल है. यहां दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि में हजारों किताबें छापी जा रही हैं. विश्व ब्रेल दिवस पर दिव्यांगों से जुड़ी Etv भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट.

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विश्व दृष्टि दिवस
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Published : Oct 11, 2019, 9:24 AM IST

Updated : Jan 4, 2020, 7:19 AM IST

देहरादून: यूं तो फ्रांस के लुईस ब्रेल ने ब्रेल लिपि का आविष्कार कर 1829 में पहली किताब प्रकाशित कर दुनिया भर के दिव्यांग (नेत्रहीन) को बड़ी सौगात दी है. जिससे भारत सहित पूरे एशिया में 1950 के बाद ही दिव्यांगों को ब्रेल लिपि का फायदा मिल सका है. विश्व दृष्टि दिवस पर आज ईटीवी भारत न केवल भारत की पहली बल्कि एशिया की सबसे पुरानी ब्रेल प्रेस से आपको रूबरू करवाने जा रहा है.

केंद्रीय ब्रेल प्रेस दिव्यांगों के लिए बनी वरदान.

देहरादून स्थित केंद्रीय ब्रेल प्रेस वह जगह है जहां दिव्यांगों को शिक्षा की रोशनी देने के लिए लगातार काम किया जा रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि हर साल यहां दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि में हजारों किताबें छापी जा रही हैं. जानकारी के अनुसार 1 साल में करीब 1,600 किताबों के 83,000 खंड ब्रेल प्रेस में छप रहे हैं.

इसमें दिव्यांगों के लिए एनसीईआरटी के सिलेबस की किताबों के साथ ही समसामयिक पत्रिकाओं को भी प्रकाशित किया जा रहा है. यही नहीं धार्मिक पुस्तकों का भी ब्रेल लिपि में प्रकाशन कर दिव्यांगों तक पहुंचाया जा रहा है. यानी स्कूली शिक्षा से लेकर वृद्धजनों तक को केंद्रीय ब्रेल प्रेस पुस्तकों के माध्यम से शिक्षा की रोशनी दे रही है.

बता दें कि राष्ट्रीय दिव्यांगों सशक्तिकरण संस्थान के तहत 1952 में ब्रेल प्रेस स्थापित की गई थी. इसमें पहले मैनुअल ही किताबों को छापा जाता था, लेकिन समय के साथ साथ इसमें भी बदलाव हुआ और अब हाई इक्विप्ड मशीनों का उपयोग ब्रेल लिपि की किताबों को छापने के लिए किया जा रहा है.

हालांकि अब देश में दूसरी कई ब्रेल प्रेस स्थापित की जा चुकी है, लेकिन फिर भी आज भी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, हिमाचल और उत्तराखंड में दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि किताबों का प्रकाशन इसी ब्रेल प्रेस से किया जा रहा है.

दिव्यांग जन भी लुइस ब्रेल द्वारा ईजाद ब्रेल लिपि को अपने लिए एक बड़ी सौगात मानते हैं. दिव्यांग देवी प्रसाद यादव बताते हैं कि ब्रेल लिपि में छपी किताबों से पठन- पाठन का काम काफी आसान हो गया है.

यह भी पढ़ेंः स्वास्थ्य सूचकांक में बिहार, हिमाचल व उत्तराखंड पिछड़े, नहीं मिलेगा अतिरिक्त फंड

बड़ी बात यह है कि ब्रेल लिपि की पुस्तकों से नेत्रहीन शिक्षा के लिहाज से आत्मनिर्भर हो गए हैं. देवी प्रसाद यादव यह भी कहते हैं कि वह न केवल खुद बिना मदद के पठन-पाठन कर सकते हैं बल्कि उसकी समीक्षा भी कर सकते हैं. खास बात है कि ब्रेल लिपि में पुस्तकें हर भाषा में प्रकाशित हो रही हैं, जिससे दिव्यांगों को भाषा को लेकर भी कोई समस्या नहीं हो रही है.

देहरादून: यूं तो फ्रांस के लुईस ब्रेल ने ब्रेल लिपि का आविष्कार कर 1829 में पहली किताब प्रकाशित कर दुनिया भर के दिव्यांग (नेत्रहीन) को बड़ी सौगात दी है. जिससे भारत सहित पूरे एशिया में 1950 के बाद ही दिव्यांगों को ब्रेल लिपि का फायदा मिल सका है. विश्व दृष्टि दिवस पर आज ईटीवी भारत न केवल भारत की पहली बल्कि एशिया की सबसे पुरानी ब्रेल प्रेस से आपको रूबरू करवाने जा रहा है.

केंद्रीय ब्रेल प्रेस दिव्यांगों के लिए बनी वरदान.

देहरादून स्थित केंद्रीय ब्रेल प्रेस वह जगह है जहां दिव्यांगों को शिक्षा की रोशनी देने के लिए लगातार काम किया जा रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि हर साल यहां दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि में हजारों किताबें छापी जा रही हैं. जानकारी के अनुसार 1 साल में करीब 1,600 किताबों के 83,000 खंड ब्रेल प्रेस में छप रहे हैं.

इसमें दिव्यांगों के लिए एनसीईआरटी के सिलेबस की किताबों के साथ ही समसामयिक पत्रिकाओं को भी प्रकाशित किया जा रहा है. यही नहीं धार्मिक पुस्तकों का भी ब्रेल लिपि में प्रकाशन कर दिव्यांगों तक पहुंचाया जा रहा है. यानी स्कूली शिक्षा से लेकर वृद्धजनों तक को केंद्रीय ब्रेल प्रेस पुस्तकों के माध्यम से शिक्षा की रोशनी दे रही है.

बता दें कि राष्ट्रीय दिव्यांगों सशक्तिकरण संस्थान के तहत 1952 में ब्रेल प्रेस स्थापित की गई थी. इसमें पहले मैनुअल ही किताबों को छापा जाता था, लेकिन समय के साथ साथ इसमें भी बदलाव हुआ और अब हाई इक्विप्ड मशीनों का उपयोग ब्रेल लिपि की किताबों को छापने के लिए किया जा रहा है.

हालांकि अब देश में दूसरी कई ब्रेल प्रेस स्थापित की जा चुकी है, लेकिन फिर भी आज भी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, हिमाचल और उत्तराखंड में दिव्यांगों के लिए ब्रेल लिपि किताबों का प्रकाशन इसी ब्रेल प्रेस से किया जा रहा है.

दिव्यांग जन भी लुइस ब्रेल द्वारा ईजाद ब्रेल लिपि को अपने लिए एक बड़ी सौगात मानते हैं. दिव्यांग देवी प्रसाद यादव बताते हैं कि ब्रेल लिपि में छपी किताबों से पठन- पाठन का काम काफी आसान हो गया है.

यह भी पढ़ेंः स्वास्थ्य सूचकांक में बिहार, हिमाचल व उत्तराखंड पिछड़े, नहीं मिलेगा अतिरिक्त फंड

बड़ी बात यह है कि ब्रेल लिपि की पुस्तकों से नेत्रहीन शिक्षा के लिहाज से आत्मनिर्भर हो गए हैं. देवी प्रसाद यादव यह भी कहते हैं कि वह न केवल खुद बिना मदद के पठन-पाठन कर सकते हैं बल्कि उसकी समीक्षा भी कर सकते हैं. खास बात है कि ब्रेल लिपि में पुस्तकें हर भाषा में प्रकाशित हो रही हैं, जिससे दिव्यांगों को भाषा को लेकर भी कोई समस्या नहीं हो रही है.

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फोल्डर नाम-uk_deh_04_world_sight_day_pkg_7206766


summary- ईटीवी भारत आज आपको ऐसे संस्थान से रूबरू कराएगा, जिसने देश में सबसे पहले नेत्रहीनों को शिक्षा की रोशनी दी... जी हां नेत्रहीनों को पढ़ने के लिए आत्मनिर्भर बनाने वाली देहरादून स्थित केंद्रीय ब्रेल प्रेस न केवल भारत की पहली यूनिट है बल्कि एशिया में भी सबसे पुरानी और बड़ी ब्रेल प्रेस में शामिल है।।। विश्व दृष्टि दिवस पर नेत्रहीनों से जुड़ी ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट.....


Body:यूं तो फ्रांस के रहने वाले लुईस ब्रेल ने ब्रेल लिपि को इजात कर 1829 में पहली किताब प्रकाशित कर दुनिया भर के नेत्रहीनों को बड़ी सौगात दी...लेकिन भारत समेत एशिया में 1950 के बाद ही नेत्रहीनों को ब्रेल लिपि का फायदा मिल सका.. विश्व दृष्टि दिवस पर आज ईटीवी भारत न केवल भारत की पहली बल्कि एशिया की सबसे पुरानी ब्रेल प्रेस से आपको रूबरू करवाने जा रहा है... देहरादून स्थित केंद्रीय ब्रेल प्रेस वह जगह है जहां नेत्रहीनों को शिक्षा की रोशनी देने के लिए लगातार काम किया जा रहा है... आपको जानकर हैरानी होगी कि हर साल यहां नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि में हजारों किताबें छापी जा रही है.. जानकारी के अनुसार 1 साल में करीब 1600 किताबों के 83000 खंड ब्रेल प्रेस में छप रहे हैं... इसमें दृष्टि हीरो के लिए एनसीईआरटी के सिलेबस की किताबों के साथ ही समसामयिक पत्रिकाओं को भी प्रकाशित किया जा रहा है... यही नहीं धार्मिक पुस्तकों का भी ब्रेल लिपि में प्रकाशन कर दृष्टिहीनों तक पहुंचाया जा रहा है... यानी स्कूली शिक्षा से लेकर वृद्धजनों तक को केंद्रीय ब्रेल प्रेस पुस्तकों के माध्यम से शिक्षा की रोशनी दे रही है।

बाइट-सुनील श्रीपुरकर, इंचार्ज ब्रेल प्रेस

आपको बता दें कि राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान के तहत 1952 में ब्रेल प्रेस स्थापित की गई थी... इसमें पहले मैनुअल ही किताबों को छापा जाता था.. लेकिन समय के साथ साथ इसमें भी बदलाव हुआ और अब हाई इक्विप्ड मशीनों का उपयोग ब्रेल लिपि की किताबों को छापने के लिए किया जा रहा है... हालांकि अब देश में दूसरी कई ब्रेल प्रेस स्थापित की जा चुकी है, लेकिन फिर भी आज भी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, हिमाचल और उत्तराखंड में नेत्रहीनों के लिए ब्रेल लिपि किताबों का प्रकाशन इसी ब्रेल प्रेस से किया जा रहा है।

बाइट-सुनील श्रीपुरकर, इंचार्ज ब्रेल प्रेस

दृष्टिहीन जन भी लुइस ब्रेल द्वारा इजाद ब्रेल लिपि को अपने लिए एक बड़ी सौगात मानते हैं... दृष्टिहीन देवी प्रसाद यादव बताते हैं कि ब्रेल लिपि में छपी किताबों से पठन पाठन का काम काफी आसान हो गया है... बड़ी बात यह है कि ब्रेल लिपि की पुस्तकों से नेत्र हीन शिक्षा के लिहाज से आत्मनिर्भर हो गए हैं। देवी प्रसाद यादव यह भी कहते हैं कि वह न केवल खुद बिना मदद के पठन-पाठन कर सकते हैं बल्कि उसकी समीक्षा भी कर सकते हैं।। खास बात है कि ब्रेल लिपि में छपने वाली पुस्तकें हर भाषा में प्रकाशित हो रही है... जिससे नेत्रहीनों को भाषा को लेकर भी कोई समस्या नहीं हो रही है।।।

बाइट देवी प्रसाद यादव, नेत्रहीन


Conclusion:
Last Updated : Jan 4, 2020, 7:19 AM IST
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