ETV Bharat / state

त्रिवेंद्र सिंह से रूठे मोदी-शाह, जानें आखिर क्या है नाराजगी की वजह - Former Uttarakhand CM Trivendra Singh Rawat

करीब 4 साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही त्रिवेंद्र रावत को सीएम की कुर्सी से बेदखल कर दिया गया. जिसके पीछे की वजह पीएम मोदी और अमित शाह की नाराजगी बताई जा रही है. इसके साथ ही ऐसे कई कारण रहें, जो उनके इस्तीफे का कारण बनी.

modi and amit shah upset with trivendra rawat
त्रिवेंद्र सिंह से रूठे मोदी-शाह
author img

By

Published : Nov 6, 2021, 9:54 PM IST

Updated : Nov 8, 2021, 8:06 PM IST

देहरादून: हमसे का भूल हुई, जो ये सजा हमका मिली. सुपरस्टार राजेश खन्ना का यह गीत 70 के दशक में खूब पसंद किया गया, लेकिन इन दिनों इस गीत की पंक्तियां पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजनीतिक हालात से जोड़ी जा रही है. एक समय प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बेहद करीबी माने जाने वाले त्रिवेंद्र इन दिनों दोनों से कुछ दूर दिखाई दे रहे हैं.

यूं तो त्रिवेंद्र रावत सीएम पद त्यागकर इन नेताओं की रुसवाई को झेल चुके हैं, लेकिन शायद अब तक उनकी राजनीतिक भूलों को नही भुलाया जा सका है. तभी तो कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आ जाती हैं, जो पुराने बेजोड़ संबंधों पर भी सवाल खड़े कर ही देती है. उत्तराखंड में अमित शाह का दौरा हो या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धार्मिक यात्रा. भारतीय जनता पार्टी इन कार्यक्रमों को उत्सव के रूप में मनाती है, लेकिन इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को लेकर कुछ अधूरापन सा दिखाई देता है.

त्रिवेंद्र सिंह से रूठे मोदी-शाह

मोदी-शाह से दूरी: 2021 से पहले केंद्रीय नेताओं के दौरों में त्रिवेंद्र का गर्मजोशी से स्वागत का अंदाज और मोदी-शाह का वह मैत्रीपूर्ण स्वभाव अब बदला-बदला सा दिखता है. मुमकिन है कि त्रिवेंद्र अब मुख्यमंत्री नहीं रहे, लिहाजा अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी के पास उनकी तारीफ करने की वजह नहीं है, लेकिन सामान्य मुलाकात और स्वागत से लेकर उनके संबोधन में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर वह आकर्षण नहीं, जो एक समय इनकी घनिष्ठता को जाहिर करता था. राजनीतिक रूप से इसकी कई वजह मानी जाती हैं.

त्रिवेंद्र से नाराजगी की वजह: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को 2017 में जिस तरह कमान सौंपी गई, वह अप्रत्याशित था. प्रदेश की जनता से लेकर पार्टी के प्रदेश स्तरीय नेताओं तक कभी त्रिवेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं सोचा था, लेकिन अमित शाह से त्रिवेंद्र की अच्छी बातचीत ने उन्हें सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया. इसके बाद त्रिवेंद्र रावत ने जिस तरह बिना शंका और डर के 4 साल तक सरकार चलाई, किसी ने कभी नहीं सोचा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस तरह सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा. मोदी और शाह की जोड़ी का इस तरह उनसे रूठ जाना किसी के समझ में नहीं आया, लेकिन कुछ बिंदु है, जिस पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस जोड़ी की नाराजगी की वजह हो सकती है.

मंत्रियों-विधायकों से दूरी: त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 साल तक सरकार चलाई और इस दौरान उन्होंने विधायकों और मंत्रियों को खुद से दूर रखा, उनका सरकार चलाने का स्टाइल तानाशाही के रूप में देखा जाने लगा. शायद यही कारण था कि मंत्री से लेकर विधायक तक अपनी शिकायत लेकर अमित शाह और मोदी तक जा पहुंचे. बार-बार त्रिवेंद्र सिंह रावत की शिकायतें और शिकायतों से जुड़े मुद्दे इस नाराजगी की वजह हो सकती है.

पढ़ें: पीएम मोदी के केदार दौरे पर ट्विटर वॉर, BJP ने हरदा को याद दिलाया गोदियाल का 'पाप'

विश्वास पर खरा न उतर पाने का गुस्सा: प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की मंजूरी के बाद जिस तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई, उसके बाद भी उनका सबको साथ ना ले पाना और तानाशाही रवैये की शिकायत के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत का विश्वास पर खरा ना उतर पाना भी इस जोड़ी के गुस्से की वजह हो सकता है.

गैरसैण कमिश्नरी का एक तरफा निर्णय: त्रिवेंद्र सिंह रावत का कैबिनेट में गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का निर्णय लेना काफी विवादित रहा. इसके बाद तो कुमाऊं मंडल के अधिकतर विधायकों ने दिल्ली तक बिना राय के कमिश्नरी का निर्णय लिए जाने का मुद्दा पहुंचाया. माना जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में विधायकों की नाराजगी से हाईकमान भी हिल गया था.

देवस्थानम बोर्ड पर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी: त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ माहौल बनाने में देवस्थानम बोर्ड की भी अहम भूमिका रही, भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व मुद्दे के साथ आगे बढ़ती है और तीर्थ पुरोहित के साथ संत समाज भी इसी वजह से भाजपा को समर्थन करता हुआ दिखाई देता है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों का सड़कों पर उतरना और भाजपा के इस एजेंडे पर ही सवाल खड़े होने से भी त्रिवेंद्र के खिलाफ पार्टी में कई लोगों के साथ ही आम लोगों में भी नाराजगी बढ़ी.

त्रिवेंद्र की अलोकप्रियता से हाईकमान चिंतित: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का रवैया भी जनता से उन्हें दूर करता रहा. त्रिवेंद्र सिंह रावत के फैसले और जनता से संवाद की दूरियां और इसको लेकर प्रचार ने उन्हें धीरे-धीरे जनता के बीच लोकप्रिय बनाया, उधर तमाम सर्वे आने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर जनता में गुस्से और लोकप्रियता के कारण हाईकमान भी चिंतित दिखाई दिया. संभवत त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस अलोकप्रियता ने भी मोदी और शाह की जोड़ी को उनसे दूर किया. जाहिर है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी जिन वजह से छीनी गई. वह वजह मोदी और शाह से उनकी दूरियों का कारण भी रही.

गैरसैण में लाठीचार्ज और भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई जांच: गैरसैंण में सत्र के दौरान महिलाओं पर लाठीचार्ज होना और उसके बाद सरकार का इस मामले पर समय से कोई संतोषजनक बयान जारी ना होना भी त्रिवेंद्र के खिलाफ गया. यही नहीं नैनीताल हाईकोर्ट ने एक भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ सीबीआई जांच की मंजूरी देकर उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि केंद्र तक को हिला दिया था. जाहिर है कि यह भी त्रिवेंद्र की परेशानी बढ़ाने के लिए उनके खिलाफ एक बड़ा कारण रहा.

पढ़ें: उत्तराखंड में भी महिलाओं को मिले 40% टिकट और फ्री गैस सिलेंडर: किशोर उपाध्याय

बीजेपी का नाराजगी से इनकार: त्रिवेंद्र सिंह रावत से प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नाराजगी की कई वजह हो सकती है. मौजूदा दौरे के दौरान त्रिवेंद्र रावत को नजरअंदाज करने की तस्वीरें इस बात को और भी ज्यादा बल दे रही हैं, लेकिन इस बीच पार्टी इन तमाम बातों से इत्तेफाक नहीं रखती है. पार्टी नेता कहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर पार्टी हाईकमान या किसी नेता की कोई नाराजगी नहीं है. ना ही कोई भी त्रिवेंद्र सिंह रावत से रुठा है. ना ही फिलहाल उनके टिकट को लेकर पार्टी स्तर पर कोई निर्णय हुआ है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विनोद सुयाल कहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने समय में अच्छा काम किया था और मुख्यमंत्री बदलना पार्टी की रणनीति का हिस्सा था.

कट सकता है त्रिवेंद्र का टिकट: भाजपा में जिस तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर समय-समय पर बातें उठती रही है, उससे भविष्य में उनके विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. दरअसल जिस तरह उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, उसके बाद उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाना मुश्किल दिखाई देता है. ऐसे में यदि उन्हें डोईवाला विधानसभा से टिकट दिया जाता है तो वह जीत कर आने पर एक सामान्य विधायक के रुप में ही रह जाएंगे. लिहाजा इस बार उनको टिकट दिया जाएगा, इस पर भी संशय बरकरार है. टिकट न मिलने की भी 2 वजह मानी जा सकती है, पहला मोदी और शाह की त्रिवेंद्र को लेकर दिखाई दे रही दूरियां और दूसरा त्रिवेंद्र को टिकट देकर उन्हें एक सामान्य विधायक के रूप में रखा जाना, दोनों ही वजह से उनके टिकट कटने की भी संभावना है.

पार्टी में रुसवाई क्या बगावत की बनेगी वजह: त्रिवेंद्र सिंह रावत कि यदि पार्टी स्तर पर लगातार रुसवाई होती है, तो क्या वह बगावत भी कर सकते हैं ? यह सवाल भी राजनीतिक रूप से उठना लाजमी है. ऐसे में इस सवाल का जवाब काफी हद तक ना ही होना चाहिए. दरअसल त्रिवेंद्र लंबे समय तक संघ में काम कर चुके हैं और शुरू से ही पार्टी में काम करते रहे हैं. ऐसे में उनका पार्टी छोड़कर बगावत करना काफी मुश्किल दिखाई देता है. हालांकि हरीश रावत से उनकी करीबी भी जगजाहिर है. यह एक वजह है कि वह पार्टी से बगावत की स्थिति अपना सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो इसके दो फायदे कांग्रेस के हो सकते हैं, पहला दल बदल के रूप में एक बड़े चेहरे से संदेश प्रदेशभर में जाएगा. दूसरा देहरादून की कुछ सीटों पर कांग्रेस को इसका फायदा हो सकता है. हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के पिछले इतिहास और उनके राजनीति के स्टाइल को देखकर उनका बगावत करना करीब-करीब नामुमकिन ही दिखाई देता है.

त्रिवेंद्र से विपक्षी दल भी खफा: त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर विपक्षी दल भी उनसे काफी खफा से दिखाई देते हैं. कांग्रेस की मानें तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 साल तक मुख्यमंत्री का पद संभाला और सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश में उनके मुख्यमंत्री रहते हुए ही हुआ है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजेश चमोली कहते हैं कि प्रदेशभर में त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोध होता रहा है. उनके समय में कोई काम ना होना भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान कर गया.

त्रिवेंद्र को लेकर राजनीतिक जानकारों की राय: बीजेपी में त्रिवेंद्र की अनदेखी को लेकर राजनीतिक जानकार अपनी अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि किसी भी राष्ट्रीय पार्टी में बिना हाईकमान की मर्जी से कोई भी नेता अपना फैसला नहीं ले सकता. पार्टी हाईकमान के फैसले के आधार पर ही मुख्यमंत्री को निर्णय लेना होता है. ऐसे में देवस्थानम बोर्ड से लेकर बाकी निर्णय पर त्रिवेंद्र रावत ने केंद्र से नहीं पूछा होगा. यह होना मुश्किल दिखाई देता है, लेकिन त्रिवेंद्र के राजनीतिक मिजाज के कारण वह जनता के बीच अलोकप्रिय हुए. यह राजनीतिक जानकार मानते हैं. इसके अलावा राजनीतिक जानकार कहते हैं कि लगातार विधायकों का और मंत्रियों का त्रिवेंद्र के खिलाफ केंद्र में शिकायत करना भी उनके खिलाफ गया और उससे भी केंद्र उनसे नाराज दिखाई दिया.

देहरादून: हमसे का भूल हुई, जो ये सजा हमका मिली. सुपरस्टार राजेश खन्ना का यह गीत 70 के दशक में खूब पसंद किया गया, लेकिन इन दिनों इस गीत की पंक्तियां पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के राजनीतिक हालात से जोड़ी जा रही है. एक समय प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बेहद करीबी माने जाने वाले त्रिवेंद्र इन दिनों दोनों से कुछ दूर दिखाई दे रहे हैं.

यूं तो त्रिवेंद्र रावत सीएम पद त्यागकर इन नेताओं की रुसवाई को झेल चुके हैं, लेकिन शायद अब तक उनकी राजनीतिक भूलों को नही भुलाया जा सका है. तभी तो कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आ जाती हैं, जो पुराने बेजोड़ संबंधों पर भी सवाल खड़े कर ही देती है. उत्तराखंड में अमित शाह का दौरा हो या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की धार्मिक यात्रा. भारतीय जनता पार्टी इन कार्यक्रमों को उत्सव के रूप में मनाती है, लेकिन इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को लेकर कुछ अधूरापन सा दिखाई देता है.

त्रिवेंद्र सिंह से रूठे मोदी-शाह

मोदी-शाह से दूरी: 2021 से पहले केंद्रीय नेताओं के दौरों में त्रिवेंद्र का गर्मजोशी से स्वागत का अंदाज और मोदी-शाह का वह मैत्रीपूर्ण स्वभाव अब बदला-बदला सा दिखता है. मुमकिन है कि त्रिवेंद्र अब मुख्यमंत्री नहीं रहे, लिहाजा अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी के पास उनकी तारीफ करने की वजह नहीं है, लेकिन सामान्य मुलाकात और स्वागत से लेकर उनके संबोधन में भी त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर वह आकर्षण नहीं, जो एक समय इनकी घनिष्ठता को जाहिर करता था. राजनीतिक रूप से इसकी कई वजह मानी जाती हैं.

त्रिवेंद्र से नाराजगी की वजह: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को 2017 में जिस तरह कमान सौंपी गई, वह अप्रत्याशित था. प्रदेश की जनता से लेकर पार्टी के प्रदेश स्तरीय नेताओं तक कभी त्रिवेंद्र सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं सोचा था, लेकिन अमित शाह से त्रिवेंद्र की अच्छी बातचीत ने उन्हें सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया. इसके बाद त्रिवेंद्र रावत ने जिस तरह बिना शंका और डर के 4 साल तक सरकार चलाई, किसी ने कभी नहीं सोचा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को इस तरह सत्ता से बेदखल होना पड़ेगा. मोदी और शाह की जोड़ी का इस तरह उनसे रूठ जाना किसी के समझ में नहीं आया, लेकिन कुछ बिंदु है, जिस पर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस जोड़ी की नाराजगी की वजह हो सकती है.

मंत्रियों-विधायकों से दूरी: त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 साल तक सरकार चलाई और इस दौरान उन्होंने विधायकों और मंत्रियों को खुद से दूर रखा, उनका सरकार चलाने का स्टाइल तानाशाही के रूप में देखा जाने लगा. शायद यही कारण था कि मंत्री से लेकर विधायक तक अपनी शिकायत लेकर अमित शाह और मोदी तक जा पहुंचे. बार-बार त्रिवेंद्र सिंह रावत की शिकायतें और शिकायतों से जुड़े मुद्दे इस नाराजगी की वजह हो सकती है.

पढ़ें: पीएम मोदी के केदार दौरे पर ट्विटर वॉर, BJP ने हरदा को याद दिलाया गोदियाल का 'पाप'

विश्वास पर खरा न उतर पाने का गुस्सा: प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की मंजूरी के बाद जिस तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई, उसके बाद भी उनका सबको साथ ना ले पाना और तानाशाही रवैये की शिकायत के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत का विश्वास पर खरा ना उतर पाना भी इस जोड़ी के गुस्से की वजह हो सकता है.

गैरसैण कमिश्नरी का एक तरफा निर्णय: त्रिवेंद्र सिंह रावत का कैबिनेट में गैरसैंण को कमिश्नरी बनाने का निर्णय लेना काफी विवादित रहा. इसके बाद तो कुमाऊं मंडल के अधिकतर विधायकों ने दिल्ली तक बिना राय के कमिश्नरी का निर्णय लिए जाने का मुद्दा पहुंचाया. माना जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में विधायकों की नाराजगी से हाईकमान भी हिल गया था.

देवस्थानम बोर्ड पर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी: त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ माहौल बनाने में देवस्थानम बोर्ड की भी अहम भूमिका रही, भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व मुद्दे के साथ आगे बढ़ती है और तीर्थ पुरोहित के साथ संत समाज भी इसी वजह से भाजपा को समर्थन करता हुआ दिखाई देता है, लेकिन तीर्थ पुरोहितों का सड़कों पर उतरना और भाजपा के इस एजेंडे पर ही सवाल खड़े होने से भी त्रिवेंद्र के खिलाफ पार्टी में कई लोगों के साथ ही आम लोगों में भी नाराजगी बढ़ी.

त्रिवेंद्र की अलोकप्रियता से हाईकमान चिंतित: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का रवैया भी जनता से उन्हें दूर करता रहा. त्रिवेंद्र सिंह रावत के फैसले और जनता से संवाद की दूरियां और इसको लेकर प्रचार ने उन्हें धीरे-धीरे जनता के बीच लोकप्रिय बनाया, उधर तमाम सर्वे आने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर जनता में गुस्से और लोकप्रियता के कारण हाईकमान भी चिंतित दिखाई दिया. संभवत त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस अलोकप्रियता ने भी मोदी और शाह की जोड़ी को उनसे दूर किया. जाहिर है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुर्सी जिन वजह से छीनी गई. वह वजह मोदी और शाह से उनकी दूरियों का कारण भी रही.

गैरसैण में लाठीचार्ज और भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई जांच: गैरसैंण में सत्र के दौरान महिलाओं पर लाठीचार्ज होना और उसके बाद सरकार का इस मामले पर समय से कोई संतोषजनक बयान जारी ना होना भी त्रिवेंद्र के खिलाफ गया. यही नहीं नैनीताल हाईकोर्ट ने एक भ्रष्टाचार के मामले में उनके खिलाफ सीबीआई जांच की मंजूरी देकर उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि केंद्र तक को हिला दिया था. जाहिर है कि यह भी त्रिवेंद्र की परेशानी बढ़ाने के लिए उनके खिलाफ एक बड़ा कारण रहा.

पढ़ें: उत्तराखंड में भी महिलाओं को मिले 40% टिकट और फ्री गैस सिलेंडर: किशोर उपाध्याय

बीजेपी का नाराजगी से इनकार: त्रिवेंद्र सिंह रावत से प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नाराजगी की कई वजह हो सकती है. मौजूदा दौरे के दौरान त्रिवेंद्र रावत को नजरअंदाज करने की तस्वीरें इस बात को और भी ज्यादा बल दे रही हैं, लेकिन इस बीच पार्टी इन तमाम बातों से इत्तेफाक नहीं रखती है. पार्टी नेता कहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर पार्टी हाईकमान या किसी नेता की कोई नाराजगी नहीं है. ना ही कोई भी त्रिवेंद्र सिंह रावत से रुठा है. ना ही फिलहाल उनके टिकट को लेकर पार्टी स्तर पर कोई निर्णय हुआ है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विनोद सुयाल कहते हैं कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने समय में अच्छा काम किया था और मुख्यमंत्री बदलना पार्टी की रणनीति का हिस्सा था.

कट सकता है त्रिवेंद्र का टिकट: भाजपा में जिस तरह त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर समय-समय पर बातें उठती रही है, उससे भविष्य में उनके विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. दरअसल जिस तरह उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाया गया, उसके बाद उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाना मुश्किल दिखाई देता है. ऐसे में यदि उन्हें डोईवाला विधानसभा से टिकट दिया जाता है तो वह जीत कर आने पर एक सामान्य विधायक के रुप में ही रह जाएंगे. लिहाजा इस बार उनको टिकट दिया जाएगा, इस पर भी संशय बरकरार है. टिकट न मिलने की भी 2 वजह मानी जा सकती है, पहला मोदी और शाह की त्रिवेंद्र को लेकर दिखाई दे रही दूरियां और दूसरा त्रिवेंद्र को टिकट देकर उन्हें एक सामान्य विधायक के रूप में रखा जाना, दोनों ही वजह से उनके टिकट कटने की भी संभावना है.

पार्टी में रुसवाई क्या बगावत की बनेगी वजह: त्रिवेंद्र सिंह रावत कि यदि पार्टी स्तर पर लगातार रुसवाई होती है, तो क्या वह बगावत भी कर सकते हैं ? यह सवाल भी राजनीतिक रूप से उठना लाजमी है. ऐसे में इस सवाल का जवाब काफी हद तक ना ही होना चाहिए. दरअसल त्रिवेंद्र लंबे समय तक संघ में काम कर चुके हैं और शुरू से ही पार्टी में काम करते रहे हैं. ऐसे में उनका पार्टी छोड़कर बगावत करना काफी मुश्किल दिखाई देता है. हालांकि हरीश रावत से उनकी करीबी भी जगजाहिर है. यह एक वजह है कि वह पार्टी से बगावत की स्थिति अपना सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो इसके दो फायदे कांग्रेस के हो सकते हैं, पहला दल बदल के रूप में एक बड़े चेहरे से संदेश प्रदेशभर में जाएगा. दूसरा देहरादून की कुछ सीटों पर कांग्रेस को इसका फायदा हो सकता है. हालांकि त्रिवेंद्र सिंह रावत के पिछले इतिहास और उनके राजनीति के स्टाइल को देखकर उनका बगावत करना करीब-करीब नामुमकिन ही दिखाई देता है.

त्रिवेंद्र से विपक्षी दल भी खफा: त्रिवेंद्र सिंह रावत को लेकर विपक्षी दल भी उनसे काफी खफा से दिखाई देते हैं. कांग्रेस की मानें तो त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 साल तक मुख्यमंत्री का पद संभाला और सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश में उनके मुख्यमंत्री रहते हुए ही हुआ है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजेश चमोली कहते हैं कि प्रदेशभर में त्रिवेंद्र सिंह रावत का विरोध होता रहा है. उनके समय में कोई काम ना होना भाजपा को सबसे बड़ा नुकसान कर गया.

त्रिवेंद्र को लेकर राजनीतिक जानकारों की राय: बीजेपी में त्रिवेंद्र की अनदेखी को लेकर राजनीतिक जानकार अपनी अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि किसी भी राष्ट्रीय पार्टी में बिना हाईकमान की मर्जी से कोई भी नेता अपना फैसला नहीं ले सकता. पार्टी हाईकमान के फैसले के आधार पर ही मुख्यमंत्री को निर्णय लेना होता है. ऐसे में देवस्थानम बोर्ड से लेकर बाकी निर्णय पर त्रिवेंद्र रावत ने केंद्र से नहीं पूछा होगा. यह होना मुश्किल दिखाई देता है, लेकिन त्रिवेंद्र के राजनीतिक मिजाज के कारण वह जनता के बीच अलोकप्रिय हुए. यह राजनीतिक जानकार मानते हैं. इसके अलावा राजनीतिक जानकार कहते हैं कि लगातार विधायकों का और मंत्रियों का त्रिवेंद्र के खिलाफ केंद्र में शिकायत करना भी उनके खिलाफ गया और उससे भी केंद्र उनसे नाराज दिखाई दिया.

Last Updated : Nov 8, 2021, 8:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.