देहरादून: उत्तराखंड हर साल आपदा की मार झेल रहा है. लेकिन इससे निपटने के इंतजाम जमीनी स्तर पर नजर नहीं आ रहे हैं. प्रदेश में भारी बारिश से नदियां उफान पर हैं. मौसम विभाग ने पूरे उत्तराखंड में 23 जुलाई तक भारी बारिश और ओलावृष्टि को लेकर रेड अलर्ट जारी किया है. उत्तराखंड हिमालय के ऐसे छोर पर बसा है जहां आपदाओं का आना निश्चित है. 2013 में आई केदार आपदा के जख्म भरे भी न थे कि, साल दर साल आपदाएं कहीं न कहीं अपना प्रभाव दिखा ही रही हैं.
उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं
19 और 20 जुलाई को पिथौरागढ़ के मुनस्यारी में विभिन्न स्थानों पर बादल फटने से भारी तबाही हुई है. मुनस्यारी के टांगा गांव में 11 लोगों की मौत और गेला गांव में 3 लोगों की मौत हो चुकी है. जबकि, कई लोग लापता हैं, जिनकी तलाश जारी है. मुनस्यारी में भारी बारिश के कारण गोरी नदी पर बीआरओ का 120 मीटर लंबा वैली ब्रिज बह गया है. जबकि, छोरीबगड़ में पांच घर पूरी तरह जमींदोज हो गए. इसके साथ ही जौलजीबी-मुनस्यारी मोटर मार्ग भी कई जगह से बह गया है.
वहीं, 10 जुलाई को भी पिथौरागढ़ में बादल फटने के बाद पूरे इलाके में भारी तबाही मची है. धारचूला तहसील मुख्यालय से 120 किमी दूर गुंजी से कुटी के बीच जबरदस्त बादल फटा और भूस्खलन हुआ. जिसकी वजह से भारत-चीन सीमा पर गुंजी और कूटी के बीच बीआरओ की 500 मीटर लंबी सड़क बह गई. वहीं, पहाड़ियों के दरकने से आए मलबे की वजह से कूटी-यांग्ती नदी के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो गया. जिसकी वजह से उस स्थान पर झील बन गया है. नदी में झील बनने से रोकांग, नाबी, गुंजी सहित कई गांवों को खतरा पैदा हो गया है.
20 जुलाई को तेज बारिश से विकासनगर में हुए लैंडस्लाइड के बाद दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे पर एक पुल बह गया. लैंडस्लाइड के बाद जुड्डो खेड़ा गांव को भी खतरा पैदा हो गया है. मलबे की चपेट में आने से उत्तराखंड जल विद्युत निगम के गेस्ट हाउस को बड़ा नुकसान पहुंचा है. तेज बारिश के बाद इलाके के गदेरे उफान पर हैं. संभावित खतरे को देखते हुए जिला प्रशासन ने कई मकानों को खाली करवा लिया है.
21 जुलाई को कोटद्वार के NH-534 पर कोटद्वार-दुगड्डा के बीच बादल फटने से सड़क पर भारी मात्रा में मलबा आ गया. मलबे की चपेट में आने से एक कार बह गई. एसडीआरएफ और पुलिस की टीम ने राहत बचाव कार्य चलाते हुए एक शख्स को बचा लिया है, जबकि लापता दो अन्य लोगों की तलाश जारी है. वहीं, 5 जुलाई को कोटद्वार के दुगड्डा ब्लॉक के धरियाल सार गांव में बादल फटने से बड़ा नुकसान हुआ था. बादल फटने के कारण गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली एकमात्र पुलिया भी ढह गई.
रुद्रप्रयाग में 17 जुलाई को अखोड़ी और कणसिली गांव में बादल फटने से दो गौशालाएं ढह गईं. इसके साथ ही गांव को जोड़ने वाली मुख्य सड़क क्षतिग्रस्त हो गई.
बादल फटना क्या है?
देहरादून के मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक जब एक जगह पर अचानक एक साथ भारी बारिश हो जाए तो उसे बादल फटना कहते हैं. आम आदमी के लिए बादल फटना वैसा ही है, जैसा किसी पानी भरे गुब्बारे को अचानक फोड़ दिया जाए. वैज्ञानिकों के मुताबिक बादल फटने की घटना तब होती है. जब काफी ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह पर रुक जाते हैं. वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं.
बूंदों के भार से बादल का घनत्व बढ़ जाता है. फिर अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिमी प्रति घंटे की रफ्तार से बारिश हो सकती है. पानी से भरे बादल पहाड़ी इलाकों में फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई की वजह से बादल आगे नहीं बढ़ पाते. फिर अचानक एक ही स्थान पर तेज बारिश होने लगती है. चंद सेकेंड में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. पहाड़ों पर अमूमन 15 किमी की ऊंचाई पर बादल फटते हैं. पहाड़ों पर बादल फटने से इतनी तेज बारिश होती है, जो सैलाब बन जाती है.
आपदा से हुए नुकसान के आंकड़े
- आपदा विभाग द्वारा दिए आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 आए आपदा में कुल 66 लोगों की मौत हो गई थी और 66 लोग घायल हुए थे. साथ ही 371 जानवरों की मौत हो गई थी. जबकि 1285.53 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई थी. साल 2015 की आपदा में 56 लोगों की मौत और 65 लोग घायल हुए थे. इसके साथ ही 3 हजार 717 जानवरों की मौत हो गई थी. 15.479 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.
- साल 2016 की आपदा में 119 लोगों की मौत, 102 लोग घायल और 5 लोग लापता हो गए थे. इसके साथ ही 1 हजार 391 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 112.245 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.
- साल 2017 की आपदा में 84 लोगों की मौत, 66 लोग घायल और 27 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 20 जानवरों की मौत हुई थी. जबकि, 21.044 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.
- साल 2018 में कुल 4 हजार 330 आपदा की घटनाएं हुईं. जिसमें 101 लोगों की मौत, 53 लोग घायल और 3 लापता हुए थे. इसके साथ ही 895 जानवरों की मौत, 739 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे. इन घटनाओं में 963.284 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.
- साल 2019 में 1680 घटनाओं में 102 लोगों की मौत, 91 लोग घायल और 2 लापता हुए थे. इसके साथ ही 1 हजार 323 जानवरों की मौत हुई थी और 385 मकानों को क्षतिग्रस्त हो गए थे. इस दौरान 238.838 हेक्टेयर एग्रीकल्चर जमीन की क्षति हुई.
- साल 2020 में अभी तक कुल 225 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिसमें 21 लोगों की मौत और 15 लोग जख्मी हो गए हैं. इन घटनाओं में 186 जानवरों की मौत हो चुकी है और 53 मकान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं.
उत्तराखंड में नदियां, पर्वत, बुग्याल और तमाम झरने देखने में जितने सुंदर और मनमोहक हैं, उतने ही नाजुक और संवेदनशील भी. इनके साथ छेड़छाड़ और जलवायु परिवर्तन से हालात बद से बदतर हो रहे हैं. ऐसे में उत्तराखंड सरकार को आपदा प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, ताकि पहाड़ी पर रहने वाले लोगों की जिंदगी समय रहते बचाई जा सके.