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राज्य स्थापना दिवसः जानें इन 21 सालों में उत्तराखंड ने क्या खोया और क्या कुछ पाया - उत्तराखंड के 21 साल

उत्तराखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है. इन बीते 21 सालों में उत्तराखंड ने बहुत कुछ खोया तो बहुत कुछ चुनौतियों पर हासिल भी किया. विरासत में मिला कर्ज इन 21 सालों में 55 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है तो पलायन का दर्द झेलने वाले गांव घोस्ट विलेज बन गए हैं. लेकिन इन्हीं 21 सालों में उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश बनकर उभरा है. साथ ही पहाड़ में रेल का सपना भी सच होता दिख रहा है.

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देहरादून
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Published : Nov 9, 2021, 5:03 AM IST

Updated : Nov 9, 2021, 2:51 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है. प्रदेश में मौजूदा समय में भाजपा की सरकार है. भाजपा सरकार के तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 21वें राज्य स्थापना दिवस पर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. इसके अलावा सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि आने वाले समय में भाजपा चुनाव में जनता के सामने होगी. ऐसे में राज्य स्थापना दिवस की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि इन बीते 21 सालों में उत्तराखंड ने क्या कुछ खोया और क्या कुछ पाया.

उत्तराखंड राज्य को विरासत में मिला कर्जः वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2000 में जब उत्तर प्रदेश से राज्य अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना तो विरासत में हमें कर्ज मिला. वरिष्ठ पत्रकार शर्मा बताते हैं कि जब बंटवारा हुआ तो बंटवारे में उत्तराखंड के हिस्से में ढाई हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज था, जो इन 21 सालों में 55 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है. आज भी यह स्थिति है कि हर महीने सरकार को 200 से 300 करोड़ रुपये तक का ऋण बाजार से उठाना पड़ता है. उत्तराखंड में लगातार घट रही उत्पादकता और बढ़ रहे खर्च के बदौलत आज प्रदेश लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है, जिसका कोई भी सरकार अभी तक स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई है.

21 सालों में उत्तराखंड ने क्या खोया और क्या कुछ पाया.

ये भी पढ़ेंः राज्य स्थापना दिवस: ईटीवी भारत से बोले धामी- चुनाव नहीं चुनौती, प्रदेश के इस काम पर मेरा फोकस

औद्योगिक क्षेत्र में उछालः वर्ष 2000 में कई सालों के आंदोलन के बाद अलग राज्य उत्तराखंड का सपना साकार हुआ. शहीदों की शहादत और आंदोलनकारियों की बदौलत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रदेशवासियों को अलग राज्य उत्तराखंड का तोहफा दिया. इसके बाद 2002 में पहली निर्वाचित सरकार उत्तराखंड में कांग्रेस की बनी. राष्ट्रीय छवि के नेता पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के निर्वाचित सरकार के पहले मुख्यमंत्री बने. तिवारी सरकार के कार्यकाल को प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए आज भी याद किया जाता है. कहा जाता है कि तिवारी सरकार में जो औद्योगिक विकास उत्तराखंड के तराई इलाकों में हुआ, उससे प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र में एक नया उछाल मिला.

तिवारी सरकार के बाद नहीं मिला लोकायुक्तः 21 सालों के बाद भी आज उत्तराखंड की पहली कांग्रेस सरकार को कई मायनों में याद किया जाता है. इसमें सबसे बड़ी उपलब्धि मुख्यमंत्री के तौर पर एनडी तिवारी द्वारा 5 साल पूरे करना और लोकायुक्त के लिए कवायद करना है. तिवारी सरकार के बाद कोई भी सरकार प्रदेश में लोकायुक्त के गठन की हिम्मत नहीं दिखा पाई. इसके अलावा तिवारी सरकार को इसलिए भी मजबूत सरकार माना जाता है क्योंकि जिस तरह से उन 5 सालों में राज्य में विकास के रफ्तार से काम हुए, वह रफ्तार अब देखने के लिए नहीं मिलती.

ये भी पढ़ेंः त्रिवेंद्र सिंह से रूठे मोदी-शाह, जानें आखिर क्या है नाराजगी की वजह

उत्तराखंड बना ऊर्जा प्रदेशः इन 21 सालों में उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर अप्रत्याशित रूप से विकास हुआ. उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश की तरफ अग्रसर हुआ. हालांकि, इसकी शुरुआत का श्रेय भी तिवारी सरकार को ही जाता है. क्योंकि उत्तराखंड में सबसे बड़ी टिहरी जल विद्युत परियोजना का काम भी 2005 में शुरू हुआ था, जिस दौरान एनडी तिवारी की सरकार थी. वहीं, इसके बाद प्रदेश के कई अलग-अलग इलाकों में जल विद्युत परियोजनाओं की नीव रखी गई. आज प्रदेश में छोटी से लेकर बड़ी सैकड़ों जल विद्युत परियोजनाएं काम कर रही हैं, जो प्रदेश के आर्थिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं.

2013 में लड़खड़ाया उत्तराखंडः इन 21 सालों में प्रदेश को एक बड़ा झटका भी लगा. वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भीषण आपदा से प्रदेश को बड़ी क्षति हुई. उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी. लिहाजा, कांग्रेस सरकार को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. हालात इतने बिगड़े कि मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी तक छोड़नी पड़ी. इसके बाद मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत ने हालातों को काफी हद तक सुधारने की कोशिश की, लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव आते-आते उनके कुछ अपनों ने ही उनकी सरकार गिरा दी.

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राज्य पर लगा दलबदल का दागः 21 सालों में 70 विधानसभा वाले इस छोटे से राज्य ने राजनीतिक अस्थिरता और दलबदल के क्षेत्र में खूब नाम कमाया. आलम यह है कि आज कई अलग-अलग जगहों पर यह परीक्षाओं का सवाल बन चुका है. राज्य में अस्थिर सरकार की शुरुआत करने वाली भाजपा ही है. लेकिन दलबदल के क्षेत्र में कांग्रेस भाजपा से एक कदम और आगे निकली. वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हरीश रावत के सरकार में 2 मंत्रियों समेत 9 विधायकों ने विधानसभा के भीतर ही दलबदल कर आजाद भारत के इतिहास की पहली अभूतपूर्व घटना बुनी. पहली दफा सुप्रीम कोर्ट को विधानसभा की कार्यशैली में हस्तक्षेप करना पड़ा.

महिलाओं की स्थिति चिंताजनकः उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक आज भी बनी है. हालांकि, महिला उत्थान के लिए काफी हद तक सभी सरकारों ने काम किया. 'बेटी बढ़ाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान के तहत काफी हद तक बेटियों को शिक्षित किया गया. लेकिन, आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ी-लिखी ग्रेजुएट बेटियां घास काटते और गांव में घर का काम करते नजर आती हैं. कारण ये रहा कि सरकारों ने महिलाओं की शिक्षा पर तो काम किया है लेकिन महिलाओं के रोजगार को लेकर कोई बड़े कदम नहीं उठाए.

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पलायन की स्थिति बद से बदतरः पहाड़ी इलाकों से पलायन राज्य का एक बड़ा नासूर बन चुका है. नतीजा ये है कि अब सरकारों के लिए ये एक चुनौती से कम नहीं है. कोई भी सरकार पलायन पर नकेल कसने में कारगर साबित नहीं हो पाई है. हालांकि, सभी सरकारों द्वारा प्रयास जरूर किया गया है, लेकिन पलायन को लेकर राज्य में हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि कई गांव अब घोस्ट विलेज बन चुके हैं. ऐसा नहीं है कि पलायन केवल लोगों ने किया. पहाड़ से नेता भी पलायन कर देहरादून, हरिद्वार में बसे, बीते समय में कई पहाड़ी सीटों पर चुनाव लड़ने वाले नेता आज पलायन कर चुके हैं और मैदानी क्षेत्रों को अपना राजनीतिक क्षेत्र बना चुके हैं.

उत्तराखंड को मिली ग्रीष्मकालीन राजधानीः भाजपा ने चुनाव में जाने से ठीक पहले 3 मुख्यमंत्री बदले, जिसका सवाल सरकार से अक्सर पूछा जाता है. हालांकि, अगर भाजपा सरकार की इन 5 सालों की उपलब्धि की बात की जाए तो उसमें सबसे पहले उत्तराखंड को स्थाई राजधानी के नाम पर बनाई गई ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण का आता है. हालांकि, यह उपलब्धि भी भाजपा की आधी अधूरी है. क्योंकि, ग्रीष्मकालीन राजधानी केवल घोषणा और नाम तक ही सीमित रह गई है.

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ऑल वेदर रोड से आसान हुई जिंदगीः भाजपा के इन 5 सालों में बड़ी उपलब्धि में से प्रदेश में बिछता सड़कों का जाल भी है. उत्तराखंड के लिए राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ-साथ प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भी एक बड़ी उपलब्धि है. इन 21 सालों में 90 फीसदी ग्रामीण इलाकों को सड़कों से जोड़ने का काम हुआ है. इसके अलावा अगर हम जिला मार्ग और राष्ट्रीय राजमार्गों की बात करें तो इस दिशा में ऑल वेदर रोड ने बेहतर कार्य किया है. पहाड़ों पर ऑल वेदर रोड के साथ-साथ अन्य योजनाओं के तहत सड़कों में हुआ काम बखूबी नजर आता है. इस काम को लेकर जनता भी इस उपलब्धि के लिए सरकार को क्रेडिट देती है.

पहाड़ पर रेल का सपना और एयर कनेक्टिविटी बढ़ीः रोड कनेक्टिविटी के अलावा पहाड़ पर रेल एक सपना ही था, जिसे केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार ने पूरा किया. ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट प्रदेश की एक बड़ी उपलब्धि में से एक माना जा सकता है. इसके अलावा एयर कनेक्टिविटी को लेकर भी पिछले 5 सालों में भाजपा की सरकार ने बेहद सराहनीय काम किया है.

देहरादूनः उत्तराखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है. प्रदेश में मौजूदा समय में भाजपा की सरकार है. भाजपा सरकार के तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 21वें राज्य स्थापना दिवस पर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. इसके अलावा सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि आने वाले समय में भाजपा चुनाव में जनता के सामने होगी. ऐसे में राज्य स्थापना दिवस की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि इन बीते 21 सालों में उत्तराखंड ने क्या कुछ खोया और क्या कुछ पाया.

उत्तराखंड राज्य को विरासत में मिला कर्जः वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2000 में जब उत्तर प्रदेश से राज्य अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना तो विरासत में हमें कर्ज मिला. वरिष्ठ पत्रकार शर्मा बताते हैं कि जब बंटवारा हुआ तो बंटवारे में उत्तराखंड के हिस्से में ढाई हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज था, जो इन 21 सालों में 55 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है. आज भी यह स्थिति है कि हर महीने सरकार को 200 से 300 करोड़ रुपये तक का ऋण बाजार से उठाना पड़ता है. उत्तराखंड में लगातार घट रही उत्पादकता और बढ़ रहे खर्च के बदौलत आज प्रदेश लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है, जिसका कोई भी सरकार अभी तक स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई है.

21 सालों में उत्तराखंड ने क्या खोया और क्या कुछ पाया.

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औद्योगिक क्षेत्र में उछालः वर्ष 2000 में कई सालों के आंदोलन के बाद अलग राज्य उत्तराखंड का सपना साकार हुआ. शहीदों की शहादत और आंदोलनकारियों की बदौलत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रदेशवासियों को अलग राज्य उत्तराखंड का तोहफा दिया. इसके बाद 2002 में पहली निर्वाचित सरकार उत्तराखंड में कांग्रेस की बनी. राष्ट्रीय छवि के नेता पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के निर्वाचित सरकार के पहले मुख्यमंत्री बने. तिवारी सरकार के कार्यकाल को प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए आज भी याद किया जाता है. कहा जाता है कि तिवारी सरकार में जो औद्योगिक विकास उत्तराखंड के तराई इलाकों में हुआ, उससे प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र में एक नया उछाल मिला.

तिवारी सरकार के बाद नहीं मिला लोकायुक्तः 21 सालों के बाद भी आज उत्तराखंड की पहली कांग्रेस सरकार को कई मायनों में याद किया जाता है. इसमें सबसे बड़ी उपलब्धि मुख्यमंत्री के तौर पर एनडी तिवारी द्वारा 5 साल पूरे करना और लोकायुक्त के लिए कवायद करना है. तिवारी सरकार के बाद कोई भी सरकार प्रदेश में लोकायुक्त के गठन की हिम्मत नहीं दिखा पाई. इसके अलावा तिवारी सरकार को इसलिए भी मजबूत सरकार माना जाता है क्योंकि जिस तरह से उन 5 सालों में राज्य में विकास के रफ्तार से काम हुए, वह रफ्तार अब देखने के लिए नहीं मिलती.

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उत्तराखंड बना ऊर्जा प्रदेशः इन 21 सालों में उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर अप्रत्याशित रूप से विकास हुआ. उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश की तरफ अग्रसर हुआ. हालांकि, इसकी शुरुआत का श्रेय भी तिवारी सरकार को ही जाता है. क्योंकि उत्तराखंड में सबसे बड़ी टिहरी जल विद्युत परियोजना का काम भी 2005 में शुरू हुआ था, जिस दौरान एनडी तिवारी की सरकार थी. वहीं, इसके बाद प्रदेश के कई अलग-अलग इलाकों में जल विद्युत परियोजनाओं की नीव रखी गई. आज प्रदेश में छोटी से लेकर बड़ी सैकड़ों जल विद्युत परियोजनाएं काम कर रही हैं, जो प्रदेश के आर्थिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं.

2013 में लड़खड़ाया उत्तराखंडः इन 21 सालों में प्रदेश को एक बड़ा झटका भी लगा. वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भीषण आपदा से प्रदेश को बड़ी क्षति हुई. उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी. लिहाजा, कांग्रेस सरकार को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. हालात इतने बिगड़े कि मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी तक छोड़नी पड़ी. इसके बाद मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत ने हालातों को काफी हद तक सुधारने की कोशिश की, लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव आते-आते उनके कुछ अपनों ने ही उनकी सरकार गिरा दी.

ये भी पढ़ेंः राज्य स्थापना दिवस पर पुलिस लाइन में होगा रैतिक परेड, एक मंच पर होंगे राज्यपाल और मुख्यमंत्री

राज्य पर लगा दलबदल का दागः 21 सालों में 70 विधानसभा वाले इस छोटे से राज्य ने राजनीतिक अस्थिरता और दलबदल के क्षेत्र में खूब नाम कमाया. आलम यह है कि आज कई अलग-अलग जगहों पर यह परीक्षाओं का सवाल बन चुका है. राज्य में अस्थिर सरकार की शुरुआत करने वाली भाजपा ही है. लेकिन दलबदल के क्षेत्र में कांग्रेस भाजपा से एक कदम और आगे निकली. वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हरीश रावत के सरकार में 2 मंत्रियों समेत 9 विधायकों ने विधानसभा के भीतर ही दलबदल कर आजाद भारत के इतिहास की पहली अभूतपूर्व घटना बुनी. पहली दफा सुप्रीम कोर्ट को विधानसभा की कार्यशैली में हस्तक्षेप करना पड़ा.

महिलाओं की स्थिति चिंताजनकः उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक आज भी बनी है. हालांकि, महिला उत्थान के लिए काफी हद तक सभी सरकारों ने काम किया. 'बेटी बढ़ाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान के तहत काफी हद तक बेटियों को शिक्षित किया गया. लेकिन, आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ी-लिखी ग्रेजुएट बेटियां घास काटते और गांव में घर का काम करते नजर आती हैं. कारण ये रहा कि सरकारों ने महिलाओं की शिक्षा पर तो काम किया है लेकिन महिलाओं के रोजगार को लेकर कोई बड़े कदम नहीं उठाए.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड की इन विभूतियों को मिले पद्म पुरस्कार, राष्ट्रपति कोविंद ने किया सम्मानित

पलायन की स्थिति बद से बदतरः पहाड़ी इलाकों से पलायन राज्य का एक बड़ा नासूर बन चुका है. नतीजा ये है कि अब सरकारों के लिए ये एक चुनौती से कम नहीं है. कोई भी सरकार पलायन पर नकेल कसने में कारगर साबित नहीं हो पाई है. हालांकि, सभी सरकारों द्वारा प्रयास जरूर किया गया है, लेकिन पलायन को लेकर राज्य में हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि कई गांव अब घोस्ट विलेज बन चुके हैं. ऐसा नहीं है कि पलायन केवल लोगों ने किया. पहाड़ से नेता भी पलायन कर देहरादून, हरिद्वार में बसे, बीते समय में कई पहाड़ी सीटों पर चुनाव लड़ने वाले नेता आज पलायन कर चुके हैं और मैदानी क्षेत्रों को अपना राजनीतिक क्षेत्र बना चुके हैं.

उत्तराखंड को मिली ग्रीष्मकालीन राजधानीः भाजपा ने चुनाव में जाने से ठीक पहले 3 मुख्यमंत्री बदले, जिसका सवाल सरकार से अक्सर पूछा जाता है. हालांकि, अगर भाजपा सरकार की इन 5 सालों की उपलब्धि की बात की जाए तो उसमें सबसे पहले उत्तराखंड को स्थाई राजधानी के नाम पर बनाई गई ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण का आता है. हालांकि, यह उपलब्धि भी भाजपा की आधी अधूरी है. क्योंकि, ग्रीष्मकालीन राजधानी केवल घोषणा और नाम तक ही सीमित रह गई है.

ये भी पढ़ेंः ग्लासगो में बोलीं स्निग्धा तिवारी, जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहे हिमालयी क्षेत्र

ऑल वेदर रोड से आसान हुई जिंदगीः भाजपा के इन 5 सालों में बड़ी उपलब्धि में से प्रदेश में बिछता सड़कों का जाल भी है. उत्तराखंड के लिए राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं के साथ-साथ प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना भी एक बड़ी उपलब्धि है. इन 21 सालों में 90 फीसदी ग्रामीण इलाकों को सड़कों से जोड़ने का काम हुआ है. इसके अलावा अगर हम जिला मार्ग और राष्ट्रीय राजमार्गों की बात करें तो इस दिशा में ऑल वेदर रोड ने बेहतर कार्य किया है. पहाड़ों पर ऑल वेदर रोड के साथ-साथ अन्य योजनाओं के तहत सड़कों में हुआ काम बखूबी नजर आता है. इस काम को लेकर जनता भी इस उपलब्धि के लिए सरकार को क्रेडिट देती है.

पहाड़ पर रेल का सपना और एयर कनेक्टिविटी बढ़ीः रोड कनेक्टिविटी के अलावा पहाड़ पर रेल एक सपना ही था, जिसे केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार ने पूरा किया. ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट प्रदेश की एक बड़ी उपलब्धि में से एक माना जा सकता है. इसके अलावा एयर कनेक्टिविटी को लेकर भी पिछले 5 सालों में भाजपा की सरकार ने बेहद सराहनीय काम किया है.

Last Updated : Nov 9, 2021, 2:51 PM IST
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