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Uttarakhand Election: 70 विधानसभा सीटों पर मतदान जारी, मैदान में 632 प्रत्याशी - उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 LIVE

आज 81 लाख से ज्यादा मतदाता 632 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. राज्य में कुल 11,697 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनकी सुरक्षा व्यवस्था 50 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों के हवाले हैं. इसके अलावा संवेदनशील केन्द्रों के लिए रिजर्व फोर्स भी रखी गई है.

Uttarakhand Election 2022
उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीटों पर मतदान
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Published : Feb 13, 2022, 4:12 PM IST

Updated : Feb 14, 2022, 10:25 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड की सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान जारी है. इस बार कुल 632 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनके भाग्य का फैसला 82,66,644 मतदाता करेंगे. जिनमें कुल 42,38,890 पुरुष और 39,32,995 महिला के साथ 40 अन्य वोटर शामिल हैं. इसके अलावा इसमें 94471 सर्विस वोटर भी हैं. जबकि राज्य में कुल 11697 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनकी सुरक्षा व्यवस्था 50 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों के हवाले हैं. इसके अलावा संवेदनशील केन्द्रों के लिए रिजर्व फोर्स भी रखी गई है. उत्तराखंड में सोमवार को सुबह 8 बजे से शाम छह बजे तक मतदान होगा.

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) की बात हमेशा मजाकिया लहजे में शुरू होती है और फिर मामला एक क्विज शो में तब्दील हो जाता है. क्योंकि जब तक लोग उत्तराखंड का मुख्यमंत्री (Uttarakhand CM) कौन है, को याद करेंगे, वैसे ही सीएम बदल जाएंगे. मार्च 2021 से उत्तराखंड में तीन मुख्यमंत्री हो चुके हैं. 10 मार्च, 2021 को बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया. तीन महीने बाद रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी ने ली. अब लोग मजाक में कहते हैं कि 2022 के चुनावों के तुरंत बाद सीएम बदल दिया जाएगा.

दरअसल, उत्तराखंड में पांचवीं सरकार बनाने के लिए हो रहे चुनाव एक तरह से मुद्दा विहीन हैं. कांग्रेस पार्टी हरीश रावत के नेतृत्व और चेहरे के साथ सरकार बनाने के लिए चुनाव मैदान में है तो मोदी की चमक के सहारे बीजेपी सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है. इसी तरह आम आदमी पार्टी मुख्यतः केजरीवाल के नाम और काम के दम पर राज्य में अपनी जगह बनाने के लिए हाथ-पैर मार रही है.

BJP को एंटी इंकम्बेंसी से मुकाबला करना होगा: चुनाव भले ही उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के लिए हों, लेकिन कांग्रेस को बड़ा खतरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही है. 2017 में मोदी लहर का असर झेल चुकी कांग्रेस को राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का बड़ा सहारा तो है ही, साथ में कोशिश की जा रही है कि राज्य में प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए मजबूत किलेबंदी की जाए. इसी रणनीति को अंजाम देने के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को देवभूमि में उतारा. पार्टी ने राहुल की किच्छा और हरिद्वार की चुनावी रैलियों की व्यूह रचना की. इन दोनों ही जिलों में किसानों का असर रहा है. देशभर में जब किसान आंदोलन चल रहा था तो उत्तराखंड में भी कांग्रेस ने इसे धार देने में कसर नहीं छोड़ी. यह अलग बात है कि उत्तराखंड में पार्टी का यह दांव अभी तक भाजपा को परेशानी की स्थिति में नहीं ला पाया है.

उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां जाति के आधार पर विभाजन नहीं है. हालांकि ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच कुछ विरोध है. लेकिन इसके बावजूद यहां किसी सोशल इंजीनियरिंग को साधने की आवश्यकता नहीं है. इतना ही नहीं, उत्तराखंड में मुसलमानों की संख्या बहुत कम है. जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना खत्म हो गई है. जाति और समुदाय जैसे मुद्दों की अनुपस्थिति में यह चुनाव बीजेपी सरकार के प्रदर्शन पर एक जनमत संग्रह जैसा हो गया है.

उत्तराखंड में भाजपा इस बार पिछले चार विधानसभा चुनाव में हर बार सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ने का दम तो भर रही है. उसने 60 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य भी रखा है. यही नहीं, उसके समक्ष वर्ष 2017 के चुनाव के अपने ही प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती भी है. तब भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज कर ऐतिहासिक बहुमत पाया था. एक तरह से भाजपा के लिए उसका अपना ही पिछला प्रदर्शन कसौटी बन गया है. भाजपा छोटा राज्य होने के बावजूद उत्तराखंड को खासा महत्व देती है, इसीलिए चुनावी साल में भाजपा दो-दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन जैसा कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटी.

सिर्फ ब्राह्मण-ठाकुर जाति वाले CM बने: उत्तराखंड की सत्ता पर कांग्रेस और बीजेपी का ही कब्जा रहा है. दोनों ही पार्टियों ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी 'ठाकुर' पर विश्वास जताया है या फिर 'ब्राह्मण' को अपनी पसंद माना है. राज्य में पिछले 22 साल से यही ट्रेंड देखने को मिला है. सूबे में चुनाव कोई भी रहा हो, समीकरण कितने भी बदले हों. लेकिन, सत्ता की कमान ठाकुर और ब्राह्मण के हाथ में ही रही. इसका कारण भी काफी सरल है. इस पहाड़ी राज्य में 35 फीसदी ठाकुर हैं तो वहीं 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाता रहते हैं. ऐसे में हर चुनाव में इस चुनावी गणित को साधने का प्रयास रहता है.

मैदान में धामी समेत कई हैं कई चेहरे: भाजपा में फिलहाल सीएम के रूप में वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी ही सबसे आगे हैं. जुलाई 2021 में वर्तमान सरकार के तीसरे सीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद धामी ने लगातार प्रदेश के दौरे पर हैं. पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा समेत सभी नेता धामी को भविष्य बता चुके हैं. इससे माना जा रहा है कि भाजपा में फिलहाल धामी ही सीएम को चेहरा हो सकते हैं. हालांकि, पार्टी में मुख्यमंत्री के कई दावेदार हैं, इनमें पूर्व सीएम डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी शामिल हैं.

कांग्रेस से कई दिग्गज मैदान में: कांग्रेस में जाहिर तौर पर इस वक्त चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पूर्व सीएम हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ही भावी सीएम की दौड़ में है. दोनों के समर्थकों का मानना है कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर इनमें ही एक व्यक्ति सीएम बनेगा. इन सबके बीच जिस प्रकार दलित सीएम की बात कांग्रेस में आती रही है. उससे यशपाल आर्य का नाम भी इस दौड़ में शामिल हो जाता है. इधर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के समर्थक उन्हें छुपे रूस्तम की तरह देख रहे हैं. सत्ता में आने पर सीएम के पद के शीर्ष नेताओं में संघर्ष होने पर गोदियाल भी बाजी मार सकते हैं.

आम आदमी पार्टी से कर्नल कोठियाल ही सीएम: प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों में केवल आप ही ऐसा दल है, जिसने सीएम को लेकर कोई असंमजस नहीं रखा है. आप ने काफी पहले ही कर्नल अजय कोठियाल (रि) को अपना सीएम प्रत्याशी घोषित कर दिया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने खुद उत्तराखंड आकर उनके नाम का ऐलान किया है.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022: चुनावी बयानों की धार, जैसे हो कटार

दांव पर सीएम पुष्कर सिंह धामी और हरीश रावत की प्रतिष्ठा: उत्‍तराखंड व‍िधानसभा चुनाव 2022 कई मायनों में द‍िलचस्‍प होता जा रहा है. इस चुनाव को युवा नेतृत्‍व बनाम अनुभवी बुजुर्ग नेतृत्‍व के बीच चुनावी जंग के तौर पर देखा जा रहा है. ज‍िसके तहत चुनाव में एक तरफ बीजेपी के युवा मुख्‍यमंत्री पुष्‍कर स‍िंंह धामी की राजनीत‍िक प्रत‍िष्‍ठा दांव पर लगी हुई है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के वर‍िष्‍ठ नेता हरीश रावत का राजनीत‍िक वजूद दांव पर है.

असल में यह चुनाव कांग्रेस अपरोक्ष तौर पर हरीश रावत के नेतृत्‍व में ही लड़ रही है. कांग्रेस ने हरीश रावत को चुनाव कैंपेन कमेटी का संंयोजक बनाया है. वहीं यह भी अटकलें हैं क‍ि यह उनका आख‍िरी व‍िधानसभा चुनाव है. असल में बीते व‍िधानसभा चुनाव में मुख्‍यमंत्री रहते हुए हरीश रावत को दो सीटों से चुनावी हार म‍िली थी. जि‍सके बाद इस चुनाव को उनकी अग्‍न‍ि परीक्षा माना जा रहा है.

इन राजनीतिक दिग्गजों के बिना हो रहा पहला चुनाव: प्रकाश पंत, नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश, आठ बार विधायक चुने गए हरबंस कपूर, सल्ट से दो बार भाजपा के टिकट पर जीतने वाले सुरेंद्र सिंह जीना का भी निधन हो चुका है. गंगोत्री और थराली के विधायकों का भी चुनाव से पहले निधन हो गया था. ऐसे में इनके दलों की इनकी कमी भी खल रही है.

फरवरी 2018 से दिसंबर 2021 के बीच उत्तराखंड की राजनीति से जुड़े सात नाम दुनिया को अलविदा कह गए. कांग्रेस के दिग्गज नेता कहे जाने वाले पूर्व सीएम एनडी तिवारी इसमें पहला नाम हैं. तिवारी का कद को देखते हुए भाजपा ने उनके नाम पर रुद्रपुर सिडकुल का नाम रखने की घोषणा भी की है. 2017 में सीएम बनने से चूके प्रकाश पंत को बाद में वित्तमंत्री बनाया गया था. मगर बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था. नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश को प्रदेश कांग्रेस की तिगड़ी में माना जाता था. मगर पिछले साल जून में उनका भी निधन हो गया था.

वहीं, भाजपा के लिए दून कैंट सीट को मजबूत किला बनाने वाले आठ बार के विधायक हरबंस कपूर भी अब दुनिया में नहीं हैं. पिछले साल भाजपा ने अपने युवा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना को भी खो दिया. वहीं, भाजपा टिकट पर विधायक रहते गंगोत्री से गोपाल रावत और थराली से मगन लाल शाह का बीमारी के चलते निधन हो चुका है. पंत, जीना और कपूर की राजनीतिक विरासत भाजपा ने उनके स्वजनों को सौंप दी. पंत की पत्नी चंद्रा पिथौरागढ़, हरबंस कपूर की पत्नी सविता दून कैंट और जीना के भाई महेश जीना 2022 में सल्ट सीट से मैदान में उतरे हैं. वहीं, कांग्रेस ने हल्द्वानी सीट पर इंदिरा के बेटे सुमित को टिकट दिया है.

रोजगार, भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य हैं सियासी मुद्दे: देवभूमि उत्तराखंड में आज मतदान होगा. वहीं इस बार उत्तराखंड के चुनाव में भ्रष्टाचार, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर खास नजर है. उत्तराखंड स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में अभी काफी पिछड़ा है. वहीं शिक्षा का मुद्दा भी युवा पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण है. कोरोना के चलते रोजगार में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. इस वजह से युवाओं के लिए रोजगार इस बार यह मुद्दा है.

2017 में भाजपा को मिला था बड़ा बहुमत: 2017 में भाजपा ने 70 विधानसभा सीटों में से 56 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस को केवल 11 सीटों पर विजय मिली थी. इस चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 46.5 फीसदी रहा था, जबकि कांग्रेस को 33.5 फीसदी वोट म‍िले थे. वहीं इस बार आम आदमी पार्टी के आने से मुकाबला और भी कड़ा हो गया है. हालांकि मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के बीच माना जा रहा है. उत्तराखंड के गठन के बाद से ही यहां पर 5- 5 साल के लिए बीजेपी और कांग्रेस की सरकार बनती रही है.

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विधानसभा चुनाव में 632 उम्मीदवार मैदान में: उत्तराखंड में 81 लाख से ज्यादा मतदाता 632 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. 70 विधानसभा सीटों से 632 उम्मीदवार चुनावी समर में हैं. पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार उत्तराखंड में मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी बढ़ी है. आंकड़ों पर गौर करें तो मतदाता पहाड़ी जनपदों से शिफ्ट होकर मैदानी इलाकों में भी आ गये हैं. उत्तराखंड में पिछले पांच सालों में 5.37 लाख नए मतदाता बनाए गए हैं.

वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कुल मतदाताओं की संख्या 76,06,688 थी. जो इस वर्ष बढ़कर 81,72,173 हो गई है. इसमें 42,38,890 पुरुष, 39,32,995 महिला और 288 अन्य मतदाता हैं. वहीं, प्रदेश में 94,471 सर्विस मतदाता हैं, जो मताधिकार का प्रयोग करेंगे. वहीं, प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार 1556 ऐसे मतदाता भी हैं, जो अपनी उम्र के 100 साल पूरे कर चुके हैं. इन बुजुर्ग, उम्रदराज वोटरों पर सबकी निगाहें रहेंगी.

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चुनाव से पहले आयोग के प्रयासों से मतदाता सूची में 26,251 नए मतदाता शामिल किए गए हैं. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सबसे ज्यादा मतदाता जोड़े गए हैं. देहरादून में 5901 नए मतदाता जोड़े गए हैं. देहरादून में कुल मतदाताओं की संख्या बढ़कर 14,87,775 हो गई है.

संवेदनशील बूथों पर विशेष निगरानी: डीजीपी अशोक कुमार के मुताबिक उत्तराखंड में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष मतदान कराने के लिए पुलिस तैयार है. विभिन्न जिलों में 145 संभावित विवाद वाले मतदान केंद्रों पर विशेष सुरक्षा के साथ ही सीसीटीवी की निगरानी में रहेंगे. राज्य में 8624 मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के लिए करीब 50 हजार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है.

विवाद वाले केंद्रों में वायरलैस एवं मोबाइल नेटवर्क के जरिए पल-पल की जानकारी ली जाएगी. इनमें एक-एक सेक्शन फोर्स भी तैनात रहेगा. डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि सुरक्षा के लिए 110 कंपनी केंद्रीय अर्धसैनिक बल, 26 कंपनी पीएसी, राज्य से 4604 व दूसरे राज्यों से 13200 होमगार्ड जवान, 4178 पीआरडी और 26 कंपनी वन रक्षकों की सुरक्षा में तैनाती की गई है.

उन्होंने बताया कि विवाद वाले सबसे सबसे मतदान केंद्र हरिद्वार में 51, देहरादून में 40, नैनीताल में 20, यूएसनगर में 17, अल्मोड़ा में 14, पौड़ी में दो और रुद्रप्रयाग में एक शामिल हैं. इन सभी केंद्रों पर 11 कंपनी अतिरिक्त फोर्स की तैनाती रिजर्व के तौर पर की गई है, ताकि जरूरत पड़ने पर तत्काल से सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने को लगाया जा सके.

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उत्तराखंड में 145 स्पेशल ट्रबल वाले मतदान केंद्र चिह्नित किए गए हैं. एहतियात के तौर पर वहां अन्य मतदान केंद्रों से ज्यादा फोर्स की तैनाती की गई है. शांति और निष्पक्ष मतदान के लिए वहां सभी राजनीतिक दलों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी पूरी तरह से पुलिस प्रशासन ने संपर्क कर लिया है.

उत्तराखंड में दागी उम्मीदवार: एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 632 उम्मीदवारों में से 107 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

आपराधिक मामलों में पार्टीवार उम्मीदवार: एडीआर के मुताबिक इस चुनाव में कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 23, भाजपा के 70 उम्मीदवारों में से 13, आम आदमी पार्टी के 69 उम्मीदवारों में से 15, बहुजन समाज पार्टी के 54 उम्मीदवारों में से 10 और यूकेडी के 42 उम्मीदवारों में से 7 ने अपने हलफनामे में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र: 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से 13 रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र हैं. रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र वे होते हैं, जहां चुनाव लड़ने वाले 3 या अधिक उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

करोड़पति उम्मीदवार: भाजपा के 70 उम्मीदवारों में से 60 करोड़पति हैं. इसी तरह कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 56 करोड़पति हैं. आम आदमी पार्टी में 69 उम्मीदवारों में से 31 करोड़पति हैं. बहुजन समाज पार्टी के 54 उम्मीदवारों में से 18 करोड़पति हैं. वहीं, यूकेडी में 42 उम्मीदवारों में से 12 ने 1 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति घोषित की है.

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अधिक संपत्ति वाले उम्मीदवार:

नामजिलाविस क्षेत्रपार्टीकुल संपत्ति
अंतरिक्ष सैनीहरिद्वारलक्सरकांग्रेस1,23,90,89,427
सतपाल महाराजपौड़ी गढ़वालचौबट्टाखालबीजेपी87,34,13,319
मोहन कालापौड़ी गढ़वालश्रीनगरयूकेडी82,52,08,200

पार्टी के अनुसार औसत संपत्ति: कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों के लिए प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 6.93 करोड़ रुपये है. इसी तरह बीजेपी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 6.56 करोड़ रुपए, आम आदमी पार्टी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 2.95 करोड़ रुपये, यूकेडी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 2.79 करोड़ रुपये है. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 2.23 करोड़ रुपये है.

राज्‍य में कुल व‍िधानसभा सीटें 70
मतदान के ल‍िए बनाए गए केंद्र8624
मतदान के ल‍िए बनाए गए बूथ 11647
मॉडल बूथ156

देहरादून: उत्तराखंड की सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान जारी है. इस बार कुल 632 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनके भाग्य का फैसला 82,66,644 मतदाता करेंगे. जिनमें कुल 42,38,890 पुरुष और 39,32,995 महिला के साथ 40 अन्य वोटर शामिल हैं. इसके अलावा इसमें 94471 सर्विस वोटर भी हैं. जबकि राज्य में कुल 11697 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनकी सुरक्षा व्यवस्था 50 हजार से अधिक सुरक्षाकर्मियों के हवाले हैं. इसके अलावा संवेदनशील केन्द्रों के लिए रिजर्व फोर्स भी रखी गई है. उत्तराखंड में सोमवार को सुबह 8 बजे से शाम छह बजे तक मतदान होगा.

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Assembly Election) की बात हमेशा मजाकिया लहजे में शुरू होती है और फिर मामला एक क्विज शो में तब्दील हो जाता है. क्योंकि जब तक लोग उत्तराखंड का मुख्यमंत्री (Uttarakhand CM) कौन है, को याद करेंगे, वैसे ही सीएम बदल जाएंगे. मार्च 2021 से उत्तराखंड में तीन मुख्यमंत्री हो चुके हैं. 10 मार्च, 2021 को बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को सीएम बना दिया. तीन महीने बाद रावत की जगह पुष्कर सिंह धामी ने ली. अब लोग मजाक में कहते हैं कि 2022 के चुनावों के तुरंत बाद सीएम बदल दिया जाएगा.

दरअसल, उत्तराखंड में पांचवीं सरकार बनाने के लिए हो रहे चुनाव एक तरह से मुद्दा विहीन हैं. कांग्रेस पार्टी हरीश रावत के नेतृत्व और चेहरे के साथ सरकार बनाने के लिए चुनाव मैदान में है तो मोदी की चमक के सहारे बीजेपी सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है. इसी तरह आम आदमी पार्टी मुख्यतः केजरीवाल के नाम और काम के दम पर राज्य में अपनी जगह बनाने के लिए हाथ-पैर मार रही है.

BJP को एंटी इंकम्बेंसी से मुकाबला करना होगा: चुनाव भले ही उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा के लिए हों, लेकिन कांग्रेस को बड़ा खतरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही है. 2017 में मोदी लहर का असर झेल चुकी कांग्रेस को राज्य की भाजपा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का बड़ा सहारा तो है ही, साथ में कोशिश की जा रही है कि राज्य में प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए मजबूत किलेबंदी की जाए. इसी रणनीति को अंजाम देने के लिए कांग्रेस ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को देवभूमि में उतारा. पार्टी ने राहुल की किच्छा और हरिद्वार की चुनावी रैलियों की व्यूह रचना की. इन दोनों ही जिलों में किसानों का असर रहा है. देशभर में जब किसान आंदोलन चल रहा था तो उत्तराखंड में भी कांग्रेस ने इसे धार देने में कसर नहीं छोड़ी. यह अलग बात है कि उत्तराखंड में पार्टी का यह दांव अभी तक भाजपा को परेशानी की स्थिति में नहीं ला पाया है.

उत्तराखंड एक ऐसा प्रदेश है जहां जाति के आधार पर विभाजन नहीं है. हालांकि ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच कुछ विरोध है. लेकिन इसके बावजूद यहां किसी सोशल इंजीनियरिंग को साधने की आवश्यकता नहीं है. इतना ही नहीं, उत्तराखंड में मुसलमानों की संख्या बहुत कम है. जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना खत्म हो गई है. जाति और समुदाय जैसे मुद्दों की अनुपस्थिति में यह चुनाव बीजेपी सरकार के प्रदर्शन पर एक जनमत संग्रह जैसा हो गया है.

उत्तराखंड में भाजपा इस बार पिछले चार विधानसभा चुनाव में हर बार सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ने का दम तो भर रही है. उसने 60 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य भी रखा है. यही नहीं, उसके समक्ष वर्ष 2017 के चुनाव के अपने ही प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती भी है. तब भाजपा ने 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज कर ऐतिहासिक बहुमत पाया था. एक तरह से भाजपा के लिए उसका अपना ही पिछला प्रदर्शन कसौटी बन गया है. भाजपा छोटा राज्य होने के बावजूद उत्तराखंड को खासा महत्व देती है, इसीलिए चुनावी साल में भाजपा दो-दो बार सरकार में नेतृत्व परिवर्तन जैसा कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटी.

सिर्फ ब्राह्मण-ठाकुर जाति वाले CM बने: उत्तराखंड की सत्ता पर कांग्रेस और बीजेपी का ही कब्जा रहा है. दोनों ही पार्टियों ने मुख्यमंत्री पद के लिए किसी 'ठाकुर' पर विश्वास जताया है या फिर 'ब्राह्मण' को अपनी पसंद माना है. राज्य में पिछले 22 साल से यही ट्रेंड देखने को मिला है. सूबे में चुनाव कोई भी रहा हो, समीकरण कितने भी बदले हों. लेकिन, सत्ता की कमान ठाकुर और ब्राह्मण के हाथ में ही रही. इसका कारण भी काफी सरल है. इस पहाड़ी राज्य में 35 फीसदी ठाकुर हैं तो वहीं 25 फीसदी ब्राह्मण मतदाता रहते हैं. ऐसे में हर चुनाव में इस चुनावी गणित को साधने का प्रयास रहता है.

मैदान में धामी समेत कई हैं कई चेहरे: भाजपा में फिलहाल सीएम के रूप में वर्तमान सीएम पुष्कर सिंह धामी ही सबसे आगे हैं. जुलाई 2021 में वर्तमान सरकार के तीसरे सीएम के रूप में कार्यभार संभालने के बाद धामी ने लगातार प्रदेश के दौरे पर हैं. पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा समेत सभी नेता धामी को भविष्य बता चुके हैं. इससे माना जा रहा है कि भाजपा में फिलहाल धामी ही सीएम को चेहरा हो सकते हैं. हालांकि, पार्टी में मुख्यमंत्री के कई दावेदार हैं, इनमें पूर्व सीएम डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी और कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी शामिल हैं.

कांग्रेस से कई दिग्गज मैदान में: कांग्रेस में जाहिर तौर पर इस वक्त चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पूर्व सीएम हरीश रावत और नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ही भावी सीएम की दौड़ में है. दोनों के समर्थकों का मानना है कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर इनमें ही एक व्यक्ति सीएम बनेगा. इन सबके बीच जिस प्रकार दलित सीएम की बात कांग्रेस में आती रही है. उससे यशपाल आर्य का नाम भी इस दौड़ में शामिल हो जाता है. इधर, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के समर्थक उन्हें छुपे रूस्तम की तरह देख रहे हैं. सत्ता में आने पर सीएम के पद के शीर्ष नेताओं में संघर्ष होने पर गोदियाल भी बाजी मार सकते हैं.

आम आदमी पार्टी से कर्नल कोठियाल ही सीएम: प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों में केवल आप ही ऐसा दल है, जिसने सीएम को लेकर कोई असंमजस नहीं रखा है. आप ने काफी पहले ही कर्नल अजय कोठियाल (रि) को अपना सीएम प्रत्याशी घोषित कर दिया है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने खुद उत्तराखंड आकर उनके नाम का ऐलान किया है.

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दांव पर सीएम पुष्कर सिंह धामी और हरीश रावत की प्रतिष्ठा: उत्‍तराखंड व‍िधानसभा चुनाव 2022 कई मायनों में द‍िलचस्‍प होता जा रहा है. इस चुनाव को युवा नेतृत्‍व बनाम अनुभवी बुजुर्ग नेतृत्‍व के बीच चुनावी जंग के तौर पर देखा जा रहा है. ज‍िसके तहत चुनाव में एक तरफ बीजेपी के युवा मुख्‍यमंत्री पुष्‍कर स‍िंंह धामी की राजनीत‍िक प्रत‍िष्‍ठा दांव पर लगी हुई है. वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के वर‍िष्‍ठ नेता हरीश रावत का राजनीत‍िक वजूद दांव पर है.

असल में यह चुनाव कांग्रेस अपरोक्ष तौर पर हरीश रावत के नेतृत्‍व में ही लड़ रही है. कांग्रेस ने हरीश रावत को चुनाव कैंपेन कमेटी का संंयोजक बनाया है. वहीं यह भी अटकलें हैं क‍ि यह उनका आख‍िरी व‍िधानसभा चुनाव है. असल में बीते व‍िधानसभा चुनाव में मुख्‍यमंत्री रहते हुए हरीश रावत को दो सीटों से चुनावी हार म‍िली थी. जि‍सके बाद इस चुनाव को उनकी अग्‍न‍ि परीक्षा माना जा रहा है.

इन राजनीतिक दिग्गजों के बिना हो रहा पहला चुनाव: प्रकाश पंत, नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश, आठ बार विधायक चुने गए हरबंस कपूर, सल्ट से दो बार भाजपा के टिकट पर जीतने वाले सुरेंद्र सिंह जीना का भी निधन हो चुका है. गंगोत्री और थराली के विधायकों का भी चुनाव से पहले निधन हो गया था. ऐसे में इनके दलों की इनकी कमी भी खल रही है.

फरवरी 2018 से दिसंबर 2021 के बीच उत्तराखंड की राजनीति से जुड़े सात नाम दुनिया को अलविदा कह गए. कांग्रेस के दिग्गज नेता कहे जाने वाले पूर्व सीएम एनडी तिवारी इसमें पहला नाम हैं. तिवारी का कद को देखते हुए भाजपा ने उनके नाम पर रुद्रपुर सिडकुल का नाम रखने की घोषणा भी की है. 2017 में सीएम बनने से चूके प्रकाश पंत को बाद में वित्तमंत्री बनाया गया था. मगर बीमारी के चलते उनका निधन हो गया था. नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदयेश को प्रदेश कांग्रेस की तिगड़ी में माना जाता था. मगर पिछले साल जून में उनका भी निधन हो गया था.

वहीं, भाजपा के लिए दून कैंट सीट को मजबूत किला बनाने वाले आठ बार के विधायक हरबंस कपूर भी अब दुनिया में नहीं हैं. पिछले साल भाजपा ने अपने युवा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना को भी खो दिया. वहीं, भाजपा टिकट पर विधायक रहते गंगोत्री से गोपाल रावत और थराली से मगन लाल शाह का बीमारी के चलते निधन हो चुका है. पंत, जीना और कपूर की राजनीतिक विरासत भाजपा ने उनके स्वजनों को सौंप दी. पंत की पत्नी चंद्रा पिथौरागढ़, हरबंस कपूर की पत्नी सविता दून कैंट और जीना के भाई महेश जीना 2022 में सल्ट सीट से मैदान में उतरे हैं. वहीं, कांग्रेस ने हल्द्वानी सीट पर इंदिरा के बेटे सुमित को टिकट दिया है.

रोजगार, भ्रष्टाचार और स्वास्थ्य हैं सियासी मुद्दे: देवभूमि उत्तराखंड में आज मतदान होगा. वहीं इस बार उत्तराखंड के चुनाव में भ्रष्टाचार, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर खास नजर है. उत्तराखंड स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में अभी काफी पिछड़ा है. वहीं शिक्षा का मुद्दा भी युवा पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण है. कोरोना के चलते रोजगार में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. इस वजह से युवाओं के लिए रोजगार इस बार यह मुद्दा है.

2017 में भाजपा को मिला था बड़ा बहुमत: 2017 में भाजपा ने 70 विधानसभा सीटों में से 56 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि कांग्रेस को केवल 11 सीटों पर विजय मिली थी. इस चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 46.5 फीसदी रहा था, जबकि कांग्रेस को 33.5 फीसदी वोट म‍िले थे. वहीं इस बार आम आदमी पार्टी के आने से मुकाबला और भी कड़ा हो गया है. हालांकि मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के बीच माना जा रहा है. उत्तराखंड के गठन के बाद से ही यहां पर 5- 5 साल के लिए बीजेपी और कांग्रेस की सरकार बनती रही है.

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विधानसभा चुनाव में 632 उम्मीदवार मैदान में: उत्तराखंड में 81 लाख से ज्यादा मतदाता 632 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. 70 विधानसभा सीटों से 632 उम्मीदवार चुनावी समर में हैं. पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार उत्तराखंड में मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी बढ़ी है. आंकड़ों पर गौर करें तो मतदाता पहाड़ी जनपदों से शिफ्ट होकर मैदानी इलाकों में भी आ गये हैं. उत्तराखंड में पिछले पांच सालों में 5.37 लाख नए मतदाता बनाए गए हैं.

वर्ष 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कुल मतदाताओं की संख्या 76,06,688 थी. जो इस वर्ष बढ़कर 81,72,173 हो गई है. इसमें 42,38,890 पुरुष, 39,32,995 महिला और 288 अन्य मतदाता हैं. वहीं, प्रदेश में 94,471 सर्विस मतदाता हैं, जो मताधिकार का प्रयोग करेंगे. वहीं, प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार 1556 ऐसे मतदाता भी हैं, जो अपनी उम्र के 100 साल पूरे कर चुके हैं. इन बुजुर्ग, उम्रदराज वोटरों पर सबकी निगाहें रहेंगी.

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चुनाव से पहले आयोग के प्रयासों से मतदाता सूची में 26,251 नए मतदाता शामिल किए गए हैं. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सबसे ज्यादा मतदाता जोड़े गए हैं. देहरादून में 5901 नए मतदाता जोड़े गए हैं. देहरादून में कुल मतदाताओं की संख्या बढ़कर 14,87,775 हो गई है.

संवेदनशील बूथों पर विशेष निगरानी: डीजीपी अशोक कुमार के मुताबिक उत्तराखंड में शांतिपूर्ण और निष्पक्ष मतदान कराने के लिए पुलिस तैयार है. विभिन्न जिलों में 145 संभावित विवाद वाले मतदान केंद्रों पर विशेष सुरक्षा के साथ ही सीसीटीवी की निगरानी में रहेंगे. राज्य में 8624 मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के लिए करीब 50 हजार सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई है.

विवाद वाले केंद्रों में वायरलैस एवं मोबाइल नेटवर्क के जरिए पल-पल की जानकारी ली जाएगी. इनमें एक-एक सेक्शन फोर्स भी तैनात रहेगा. डीजीपी अशोक कुमार ने बताया कि सुरक्षा के लिए 110 कंपनी केंद्रीय अर्धसैनिक बल, 26 कंपनी पीएसी, राज्य से 4604 व दूसरे राज्यों से 13200 होमगार्ड जवान, 4178 पीआरडी और 26 कंपनी वन रक्षकों की सुरक्षा में तैनाती की गई है.

उन्होंने बताया कि विवाद वाले सबसे सबसे मतदान केंद्र हरिद्वार में 51, देहरादून में 40, नैनीताल में 20, यूएसनगर में 17, अल्मोड़ा में 14, पौड़ी में दो और रुद्रप्रयाग में एक शामिल हैं. इन सभी केंद्रों पर 11 कंपनी अतिरिक्त फोर्स की तैनाती रिजर्व के तौर पर की गई है, ताकि जरूरत पड़ने पर तत्काल से सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने को लगाया जा सके.

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उत्तराखंड में 145 स्पेशल ट्रबल वाले मतदान केंद्र चिह्नित किए गए हैं. एहतियात के तौर पर वहां अन्य मतदान केंद्रों से ज्यादा फोर्स की तैनाती की गई है. शांति और निष्पक्ष मतदान के लिए वहां सभी राजनीतिक दलों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी पूरी तरह से पुलिस प्रशासन ने संपर्क कर लिया है.

उत्तराखंड में दागी उम्मीदवार: एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 632 उम्मीदवारों में से 107 उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

आपराधिक मामलों में पार्टीवार उम्मीदवार: एडीआर के मुताबिक इस चुनाव में कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 23, भाजपा के 70 उम्मीदवारों में से 13, आम आदमी पार्टी के 69 उम्मीदवारों में से 15, बहुजन समाज पार्टी के 54 उम्मीदवारों में से 10 और यूकेडी के 42 उम्मीदवारों में से 7 ने अपने हलफनामे में अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र: 70 निर्वाचन क्षेत्रों में से 13 रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र हैं. रेड अलर्ट निर्वाचन क्षेत्र वे होते हैं, जहां चुनाव लड़ने वाले 3 या अधिक उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं.

करोड़पति उम्मीदवार: भाजपा के 70 उम्मीदवारों में से 60 करोड़पति हैं. इसी तरह कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों में से 56 करोड़पति हैं. आम आदमी पार्टी में 69 उम्मीदवारों में से 31 करोड़पति हैं. बहुजन समाज पार्टी के 54 उम्मीदवारों में से 18 करोड़पति हैं. वहीं, यूकेडी में 42 उम्मीदवारों में से 12 ने 1 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति घोषित की है.

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अधिक संपत्ति वाले उम्मीदवार:

नामजिलाविस क्षेत्रपार्टीकुल संपत्ति
अंतरिक्ष सैनीहरिद्वारलक्सरकांग्रेस1,23,90,89,427
सतपाल महाराजपौड़ी गढ़वालचौबट्टाखालबीजेपी87,34,13,319
मोहन कालापौड़ी गढ़वालश्रीनगरयूकेडी82,52,08,200

पार्टी के अनुसार औसत संपत्ति: कांग्रेस के 70 उम्मीदवारों के लिए प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 6.93 करोड़ रुपये है. इसी तरह बीजेपी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 6.56 करोड़ रुपए, आम आदमी पार्टी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 2.95 करोड़ रुपये, यूकेडी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 2.79 करोड़ रुपये है. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी में प्रति उम्मीदवार औसत संपत्ति 2.23 करोड़ रुपये है.

राज्‍य में कुल व‍िधानसभा सीटें 70
मतदान के ल‍िए बनाए गए केंद्र8624
मतदान के ल‍िए बनाए गए बूथ 11647
मॉडल बूथ156
Last Updated : Feb 14, 2022, 10:25 AM IST
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