देहरादून: राजधानी देहरादून में जोशीमठ के रहने वाले युवक विपिन रावत (Vipin Rawat murder case in Dehradun) की हत्या के बाद एक बार फिर से रंजिशन अपराध के मामलों की चर्चाएं होने लगी हैं. जिस तरह से मामूली विवाद के बाद दून का कुख्यात गैंगस्टर 'देवेन्द्र अरोड़ा' उर्फ़ 'निक्कू दाई' (Gangster Devendra Arora Nikku Dai) गुनाह के रास्ते पर निकल गया था, शायद वो ही राह उसके भतीजे ने भी पकड़ ली है. देवेन्द्र अरोड़ा' उर्फ़ 'निक्कू दाई ने भतीजे ने मामूली कहासुनी में चमोली निवासी युवक विपिन रावत की हत्या कर दी.
बता दें जोशीमठ निवासी विपिन रावत पुत्र अव्वल सिंह रावत दून की एक प्राइवेट लैब में टेक्नीशियन था. 23 नवंबर की रात वह तीन दोस्तों के साथ इनामुल्ला बिल्डिंग स्थित रेस्टोरेंट में खाना खाने गया था. इसके बाद वह लोग वहां से निकलकर सभी बाहर सड़क पर खड़े थे. इसी दौरान कार से आईं दो महिलाएं और दो युवकों ने उन पर अभद्र टिप्पणी कर दी. इसके बाद कार सवार महिला और विपिन की महिला दोस्त के बीच तनावपूर्ण कहासुनी हो गई. देखते ही देखते चारों लोग विपिन पर हमला करने लगे.
इस बीच विपिन ने माफी मांगी तो किसी तरह मामला शांत हो गया. तभी सभी लोग वहां से निकल रहे थे कि अचानक महिलाओं के साथ मौजूद युवक ने कार से बेसबॉल स्टिक निकालकर विपिन के कमर और सिर पर जबरदस्त हमला कर दिया. जिसके बाद विपिन जमीन पर गिरकर तड़पने लगा. यह देख हमलावर मौके से फरार हो गया. विपिन को स्थानीय लोगों की मदद से सीएमआई अस्पताल पहुंचाया गया. जहां तीन दिन चिकित्सा उपचार के बाद उसे सीरियस कंडीशन में महंत इंद्ररेश अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां शुक्रवार रात विपिन ने दम तोड़ दिया.
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इस दुःखद घटना के बाद 25 नवंबर को विपिन के भाई पंकज की शिकायत पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मारपीट, गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया गया. इस पूरे घटनाक्रम में जो नाम सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. वह नाम कुख्यात बदमाश देवेंद्र अरोड़ा उर्फ निक्कू के सगे भाई संजय अरोड़ा के बेटे विनीत अरोड़ा एवं उसकी पत्नी का है. विपिन की हत्या करने वाला आरोपी कोई नहीं बल्कि विनीत अरोड़ा था. सीसीटीवी फुटेज से इस बात की पुष्टि हुई है.
कौन था 'देवेन्द्र अरोड़ा' उर्फ़ 'निक्कू दाई': देवेन्द्र अरोड़ा उर्फ़ निक्कू दाई (Gangster Devendra Arora Nikku Dai) 80 के दशक में उत्तराखंड का गैंगस्टर था. उसकी दहशत का डंका देहरादून से पश्चिम उत्तर प्रदेश बिहार और मुंबई अंडरवर्ल्ड जैसे कई राज्यों में भी बजता था. देवेन्द्र अरोड़ा उर्फ निक्कू एक ऐसा गैंगस्टर था, जिसने न केवल देहरादून शहर में कोहराम मचाया. बल्कि बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम और पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफियाओं को साथ जोड़कर इतना बड़ा गैंग खड़ा कर दिया कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री को उसे काबू में लाने के लिए एक स्पेशल टीम का गठन करना पड़ा. निक्कू अंतरराज्यीय गिरोहों का सरगना भी बना. उसे काबू करने में कई राज्यों की पुलिस के पसीने छूट गए.
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देवेंद्र अरोड़ा के निक्कू दाई (Gangster Devendra Arora Nikku Dai) बनने की कहानी कुछ-कुछ वैसी ही है. जैसी अक्सर किसी बॉलीवुड फिल्म में जुर्म के खिलाफ हथियार उठाने वाले किसी किरदार की होती है.. ये कहानी भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दंगों से शुरू होती है. संतराम अरोड़ा भी इन्हीं लोगों में से एक थे. उनका परिवार बंटवारे के बाद हुए दंगों के बाद पाकिस्तान के बन्नूवाल गांव से भारत पहुंचा. जहां से वे देहरादून के प्रेमनगर में आकर बसे. यहां उन्हें शरणार्थी के रूप में मिला पट्टा उनकी नई पहचान बना.
शरणार्थियों के लिये लगाए गए टेंट उनकी नई दुनिया रही. सब कुछ गवां देने के बाद संतराम ने किसी तरह अपना एक छोटा सा फलों के जूस का व्यवसाय शुरू किया. संतराम ने मेहनत करके कुछ रक़म जोड़ी. जिसके बाद रिफ्यूजी कैंप से निकल कर देहरादून के डिस्पेंसरी रोड पर एक मकान खरीदा. संतराम शिक्षा को जरूरत को समझते थे, लिहाजा उन्होंने अपने पांचों बेटों को गांधी इंटर कॉलेज में एडमिशन दिलाया. तीसरे नंबर का बेटा देवेंद्र शांत और समझदार था. वो स्कूल के बाद पिता का हाथ बांटाने के लिये दुकान पर भी बैठता था. एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसके बाद संतराम का शांत बेटा ताउम्र के लिये अशांत हो गया.
बताया जाता है कि उन दिनों शहर में राजेश भाटिया नाम का एक बदमाश व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. एक दिन वो संतराम की फ्रूट जूस की दुकान पर भी पहुंचा. उसने संत राम से रंगदारी मांगी. संतराम ने देने से इनकार किया तो भाटिया और उसके साथियों ने बुजुर्ग संतराम के साथ मारपीट की. देवेंद्र उसी वक्त स्कूल से लौट रहा था. उसने अपने पिता को गुंड़ों से छुड़ाना चाहा, जिसमें बदमाशों मे उसकी भी पिटाई कर दी. ये गुंडागर्दी सरेआम होती रही, लेकिन किसी ने भी आगे बढ़कर उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की.
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इसके बाद पिता की पिटाई चौराहे पर होते देख, देवेंद्र के मन में गहरा जख्म लगा. वो अपने पिता को अस्पताल ले गया. मरहम पट्टी कराने के बाद उन्हें घर छोड़ आया. अगले कुछ दिन देवेंद्र दुकान पर घायल हालत में खुद ही बैठा. उसका मन अब दुकानदारी से उठ चुका था. वो प्रतिशोध की आग में तप रहा था. उसे हर चीज़ से नफ़रत होने लगी. परिवार के अतीत में बंटवारे की नफ़रत तो वर्तमान में ग़रीबी का बोझ, जिसने उसे और भी अशांत कर दिया. यहीं से शांत देवेंद्र से कुख्यात निक्कू दाई बनने की कहानी शुरू होती है.
एक दिन देवेंद्र दुकान से उठकर साथी का तमंचा चुराकर सीधे घोसी गली पहुंचा. वहां उसे राजेश भाटिया अपने कुछ मवाली साथियों के साथ दिखा. निक्कू सीधे भाटिया के सामने आया. जिसके बाद देवेंद्र ने उसके पेट में तमंचा सटा कर फायर कर दिया. भाटिया की वहीं मौके पर ही मौत हो गई. भाटिया को लहूलुहान हालत में देख उसके साथी वहां से भाग गए. इस हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल गई. पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. 1980 का ये वो ही दिन था, जब देहरादून में पुलिस क्राइम रिकॉर्ड में निक्कू का खाता खुला.
इस हत्या के आरोप में गिरफ़्तार हुआ, निक्कू कुछ सालों बाद जब जमानत पर छूट कर आया तो उसकी पारिवारिक हालत बेहद खराब हो चुकी थी. निक्कू का नाम जुर्म की दुनिया में दर्ज हो चुका था. लिहाज़ा उसने इसी दुनिया में आगे बढ़ने का फैसला किया. अब देवेंद्र अवैध शराब का धंधा करने लगा. इसके साथ ही उसने अपनी एक गैंग बना डाली. जिसने फिर डालनवाला क्षेत्र में कई लूट की घटनाओं को अंजाम दिया. पुलिस ने उस पर घेरा कसा तो वो भाग कर ऋषिकेश आ गया. वहां से अपने धंधे संचालित करने लगा. निक्कू यहां पर अपना धंधा स्थापित कर ही रहा था कि उसकी अनिल कुमार नाम के एक व्यापारी से दुश्मनी हो गई. उसने ऋषिकेश के नामा हाउस के पास सरेआम अनिल कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी. उसी की मोटरसाइकिल लेकर फ़रार हो गया.
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पुलिस पर निक्कू को गिरफ़्तार करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. 1982 के उस दौर में ऋषिकेश कोतवाली के सब इंस्पेक्टर राजबीर सिंह यादव हुआ करते थे. उनका सामना एक शाम निक्कू और उसके साथी सत्यबीर त्यागी से हो गया. दोनों तरफ़ से कई राउंड गोलीबारी हुई. जिसमें सत्यबीर त्यागी की मौत हो गई. तब निक्कू एक बार फिर से भागने में कामयाब रहा. अब तक निक्कू को एक बात समझ आ गई थी कि पुलिस से सांठ-गांठ किए बिना उसका धंधा चल पाना मुश्किल है. लिहाज़ा उसने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा पुलिस तक पहुंचाना शुरू कर दिया. बदले में पुलिस उसके काले कारनामों पर आंख मूंदने लगी. यहीं से निक्कू और भी ज्यादा ताकतवर होने लगा.
निक्कू का राजनीतिक रसूखदार लोगों से दुश्मनी का दौर: अस्सी के दशक में देहरादून में विनोद बड़थ्वाल कॉलेज की राजनीति में अपना परचम फहरा रहे थे. सूर्यकांत धस्माना छा़त्र राजनीति में दाखिल होने वाले थे. इनका एक और दोस्त था, जो बाद में इस पूरी कहानी का मुख्य किरदार बनने वाला था. उसका नाम सुभाष शर्मा था. विनोद बड़थ्वाल, सूर्यकांत धस्माना और सुभाष शर्मा का अपना एक स्टूडेंट ग्रुप था, जो डीएवी कॉलेज की राजनीति में मजबूत दखल रखता था.
विनोद बड़थ्वाल फॉरेस्ट गार्ड पिता के चार बेटों में सबसे बड़े थे. 1983 में वो डीएवी कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. लगभग इसी दौर में उनके छोटे भाई राजेश बड़थ्वाल को छायादीप पिक्चर हॉल के साइकिल स्टेंड का ठेका मिला था. इस ठेके को निक्कू के गुर्गे भी लेना चाह रहे थे. दोनों पक्षों में विवाद हुआ, मारपीट हुई, गोलियां तक चल गई.
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निक्कू वहां से लौट ही रहा था कि किसी ने तमंचे से उस पर पीछे से फायर कर दिया. ये फायर मिस हो गया, लेकिन इस घटना से राजेश बड़थ्वाल और निक्कू की रंजिश शुरू हो गई. ऐसी रंजिश जिसके चलते कई घरों के आंगन से अर्थियां उठी. नौ मई 1983 के दिन देहरादून में एक ऐसा सामूहिक हत्याकांड हुआ, जिससे पूरा शहर सन्न रह गया. इस दिन अपनी काली बुलेट पर राजेश बड़थ्वाल और उसका दोस्त दिलावर, अधोईवाला में रज्जो के घर पहुंचे थे. रज्जो राजेश की प्रेमिका हुआ करती थी. तीनों बैठकर गपशप कर ही रहे थे कि लाल रंग की एक मोटरसाइकिल पर दो युवक घर के बाहर उतरे और दरवाजे को धकेलते हुए अंदर कमरे में दाखिल हुए.
अंदर बैठे तीनों लोग कुछ समझ पाते, तब तक निक्कू और उसके साथी पप्पू कांणा ने प्वाइंट 32 बोर की रिवॉल्वर से दस राउंड से ज्यादा फायर तीनों पर झोंक दिए. राजेश, रज्जो और दिलावर की वहीं मौत हो गई. देहरादून के इस ट्रिपल मर्डर से हड़कंप मच गया. निक्कू पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुख्यात हो गया.
निक्कू के खिलाफ हत्या का मुकदमा फिर से दर्ज हुआ. इस बार देहरादून के पुलिस कप्तान शैलेंद्र सागर ने उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून की भी धारा लगा दी. कुछ समय बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिलने पर जब निक्कू बाहर आया तो पूरे देहरादून शहर के अवैध धंधों पर उसका एकछत्र राज स्थापित हो चुका था. उधर छोटे भाई की हत्या के आरोप में विनोद बड़थ्वाल ने निक्कू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इसके चलते निक्कू ने विनोद बड़थ्वाल की भी हत्या करने की खुली चुनौती दे डाली. इससे पूरे शहर में एक डर का माहौल हो गया. अब निक्कू का गैंग और डीएवी कॉलेज का छात्र संघ आमने-सामने आ गए थे.
ये वो दौर था जब डीएवी कॉलेज को बदमाशी की नर्सरी कहा जाता था. यहां छात्र नेता भी हथियार रखा करते थे. लिहाज़ा पूरे शहर में ये डर फैल गया था कि दोनों गुटों के आमने-सामने आने पर कोई भी अनहोनी घट सकती है. ये अनहोनी जल्द ही सच साबित हुई. डिस्पेंसरी रोड पर निक्कू के घर के पास ही दोनों पक्षों के बीच एक दिन गोलीबारी हो गई. इस घटना में इन दोनों पक्षों के लोगों को तो गोली नहीं लगी, लेकिन वहां से गुजर रहे जिलाधिकारी के अर्दली के बेटे की गोली लगने से मौत हो गई. इस घटना के बाद निक्कू गिरफ्तार तो हुआ, लेकिन अब वो इतना ताकतवर था कि कुछ ही दिनों में उसे फिर से जमानत मिल गई.
अब निक्कू जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन चुका था. शहर में एक समानांतर सत्ता उसकी चलने लगी थी. बहुत कम लोग ही उसका विरोध करने की हिम्मत करते थे. शहर के कुछ नेता भी निक्कू की बिरादरी के वोटों के लालच में उसके साथ मित्रता निभाते थे. ऐसे में निक्कू और उसके संगी साथी खूब चांदी काट रहे थे. चर्चित ट्रिपल मर्डर में भी निक्कू को सबूतों के अभाव बरी कर दिया गया. और इसके चलते पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में उसकी तूती बोलने लगी.
मुंबई अंडरवर्ल्ड में निक्कू का सिक्का: निक्कू लगातार अपने काले कारनामों को विस्तार दे रहा था. इसी कड़ी में उसके संबंध मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहम से भी हो गये. दाउद के कहने पर उसने पश्चिम उत्तर प्रदेश में कई शूट आउट किए. दाउद के अलावा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद और यहां तक कि उस समय के बिहार के धनबाद कोल फील्ड के माफ़ियाओं से भी निक्कू के गहरे संबंध हो गये थे.
धनबाद के कोयला माफ़ियाओं के साथ तो निक्कू की ऐसी घनिष्ठता हो गई थी कि वहां से कई फरार अपराधी देहरादून में निक्कू के मेहमान बन कर रहा करते थे. अलीगढ़ के जावेद और छोटा जाकिर समेत कई खतरनाक अपराधी हिंसक वारदातों को अंजाम देकर देहरादून में निक्कू के ठिकानों पर छिपने लगे थे. यहां ओएनजीसी में एक ऐसे अधिकारी का बंगला इनके छिपने का ठिकाना हुआ करता था. निक्कू लगातार मजबूत हो रहा था. जावेद और जाकिर की तो पूरी गैंग ही निक्कू के साथ मिल गई. इससे निक्कू पश्चिम उत्तर प्रदेश में बड़े गैंगस्टर के रूप में कुख्यात हो गया.
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निक्कू का हौसला और दुस्साहस बढ़ता ही गया. इसी दुस्साहस में उसने एक ऐसी घटना को अंजाम दे दिया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई बड़े गैंगस्टर निक्कू के खून के प्यासे हो गये. ये घटना ओंकार सिंह की हत्या से जुड़ी. मेरठ के ओंकार सिंह एक लोकप्रिय छात्र नेता थे. जाट बिरादरी मे उनका बहुत सम्मान था. अन्य बिरादरियों में भी उनके हंसमुख और मददगार व्यवहार के कारण उनके बहुत से चाहने वाले थे. पश्चिमी यूपी के कुख्यात माफिया सुशील मूंछ से भी उनके गहरे संबंध थे.
80 से 90 के दशक में निक्कू ने की सिलसिलेवार हत्याएं: 11 अप्रैल 1988 के दिन ओंकार किसी काम से देहरादून आये थे. अपना काम निपटाने के बाद वो विनोद बड़थ्वाल और सूर्यकांत धस्माना से मिले. सभी ने देहरादून और मेरठ की छात्र राजनीति पर लंबी चर्चा की. इस मुलाक़ात के बाद ओंकार अपने साथी लोकेश के साथ लौटने लगे कि तभी राजा रोड से प्रिंस चौक की तरफ बढ़ उनकी कार के सामने आकर निक्कू और जाकिर ने उन पर ताबड़तोड़ फायर कर दी.
ओंकार सिंह के नीचे गिरते ही उनकी लाइसेंसी पिस्टल से गोली मार दी. ओंकार की मौत की सूचना पर उनका भाई ओमवीर सिंह और पश्चिम यूपी के कई बाहुबली माफिया भी दून अस्पताल पहुंचे. अब निक्कू कई बड़े माफियाओं के रडार पर आ गया था. इधर देहरादून में तो विनोद बड़थ्वाल का ग्रुप पहले से ही उसके हर कारनामे पर पैनी नजर बनाए हुए था, लेकिन अब निक्कू की तलाश में मेरठ, बागपत और मुज़्ज़फ़रनगर के भी कई बदमाश दून आने लगे थे.
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खतरे को भांपते हुए निक्कू ने एक मामले में सहारनपुर कोर्ट में अपनी जमानत तुड़वा ली और जेल चला गया. इस बीच बदमाशों ने उसके छोटे भाई निट्टी और साथी पप्पू काने की हत्या कर दी. इस हत्याकांड से निक्कू बौखला उठा. उसने माना कि इस हत्याकांड में विनोद बड़थ्वाल के ग्रुप का भी हाथ है. उसने एक बार फिर सीधे तौर पर विनोद बड़थ्वाल और सुभाष शर्मा को जान से मारने की धमकी दे डाली. ये दौर हेमवती नंदन बहुगुणा की बग़ावती राजनीति का दौर था. वो कांग्रेस को छोड़ चुके थे और राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर पौड़ी लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी चंद्रमोहन नेगी को भारी अंतर से हरा चुके थे.
विनोद बड़थ्वाल, सूर्यकांत धस्माना और सुभाष शर्मा समेत उनके ग्रुप के सौ से ज्यादा युवा बहुगुणा के लोकदल में काम कर रहे थे. उन्होंने विनोद बड़थ्वाल को पार्टी में प्रमुख पद दे दिया. उधर, सूर्यकांत धस्माना भी अब डीएवी का छात्र संघ चुनाव जीत चुके थे. इन लोगों की शहर में अच्छी-ख़ासी लोकप्रियता थी. यही कारण है कि जब इन पर सीधा हमला हुआ तो पूरा शहर आक्रोश से भर गया.
24 अगस्त 1988 की सुबह के लगभग 11 बजे थे, विनोद बड़थ्वाल और उनके साथी राकेश वासन पायल सिनेमा हॉल के सामने शकील नाई की दुकान पर बाल कटवाने पहुंचे. वो कुर्सी पर बैठे ही थे कि चार हमलावर दुकान के संकरे से गेट पर आए और सेमी ऑटोमेटिक हथियारों से अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी. विनोद बड़थ्वाल और उनके साथी राकेश वासन को कई गोलियां लगी. नाई शकील भी इस हादसे में घायल हो गया.
इन लोगों को जमीन पर लहूलुहान गिरा देख हमलावर इन्हें मरा हुआ मानकर वहां से फ़रार हो गए. ये खबर आग की तरह पूरे शहर में फैल गई. बड़थ्वाल और अन्य घायलों को तुरंत दून अस्पताल पहुंचाया. वहां से उन्हें दिल्ली एम्स रेफ़र कर दिया गया. इधर इस घटना के विरोध में देहरादून भर में लोग सड़कों पर उतर आए. जगह-जगह तोड़फोड़ और आगजनी होने लगी. लाखों की संपत्ति जलकर खाक हो गई.
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उधर दिल्ली में कई दिनों के इलाज के बाद विनोद बड़थ्वाल और उनके साथी की जान बच तो गई लेकिन निक्कू अब प्यासे खूनी की तरह उनको मारने की फिराक में रहने लगा. एक दिन उसे खबर मिली कि विनोद बड़थ्वाल और सुभाष शर्मा करणपुर में सूर्यकांत धस्माना के घर आए हुए हैं. निक्कू अपनी पूरी गैंग के साथ हैंड ग्रेनेड और मशीन गन जैसे हथियारों से लैस करणपुर की तरफ बढ़ चला. इस हमले को अंजाम देने के लिये वो हरिद्वार रोड से होता हुआ रेसकोर्स से शहर में दाखिल हुआ.
काले शीशे लगी एक कार में वो रेसकोर्स से गुजर ही रहे थे कि कि उसकी नज़र मॉर्निग वॉक करते बड़े शराब व्यापारी गरीब दास पर ठहर गई. इतना बड़ा व्यापारी बिना किसी सुरक्षा के घूम रहा था. निक्कू को एहसास हुआ कि ऐसा मौक़ा शायद दोबारा न मिले. उसने अपने साथियों से बात की. हमले के कार्यक्रम को टालते हुए पहले गरीब दास का अपहरण करने की योजना बना डाली. रेसकोर्स का एक चक्कर तेजी से लगाने के बाद निक्कू ने गरीब दास जी के ठीक बगल में कार लगा कर उन पर स्टेनगन तान दी. वो बिना प्रतिरोध के गाड़ी में बैठ गए. निक्कू ने किसी अज्ञात स्थान की तरफ पूरी रफ़्तार से गाड़ी दौड़ा दी.
रेसकोर्स के सैकड़ों लोगों के साथ निक्कू का उठना बैठना था. वहां के लोग निक्कू की परछाई भी पहचानते थे. कई लोगों ने निक्कू को अपहरण करते हुए देखा भी, लेकिन किसी ने भी समय से जुबान न खोली. इस घटना से देहरादून के माहौल में अब नई तरह का भय और आतंक फैल गया. लोगों ने मॉर्निंग वॉक करना बन्द कर दिया. अंधेरा होने से पहले ही व्यापारी लोग अपने घर लौटने लगे. इसी माहौल के बीच देहरादून में नए एसएसपी अवस्थी ने पदभार ग्रहण किया.
उन्हें एक ईमानदार पुलिस अधिकारी के रूप में जाना जाता है. उन्होंने विनोद बड़थ्वाल, सूर्यकांत धस्माना और सुभाष शर्मा को पुलिस सुरक्षा दी. सुभाष शर्मा के दिमाग में अब कुछ और ही चल रहा था. एक ओर पुलिस निक्कू को खोजने में लगी हुयी थी. उधर पता चला कि निक्कू के गुर्गों ने देहरादून में विनोद बड़थ्वाल के भाई कैलाश की हत्या कर दी है. उस दिन कैलाश अपने एक-दो साथियों के साथ न्यू एम्पायर सिनेमा के सामने से गुजर रहे थे. तभी निक्कू के शूटरों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी.
कैलाश के नीचे गिरने पर उन्होंने इत्मीनान से कैलाश के सिर पर भी गोली दाग दी. विनोद बड़थ्वाल पर हमले के समय निक्कू से जो गलती हुई थी, वो उसे दोहराना नहीं चाहता था. इसी बीच वहां से चर्चित मनमोहन सिंह नेगी इत्तेफाकन गुजर रहे थे. उन्होंने तुरंत कैलाश बड़थ्वाल को अपनी कार में डालकर दून हॉस्पिटल पहुंचाया, लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी. बड़थ्वाल और धस्माना दून हॉस्पिटल पहुंचे. उनके लिए ये बहुत ही बड़ा आघात था.
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कैलाश की हत्या से नौजवानों और छात्रों में जबरदस्त आक्रोश था. हजारों की संख्या में छात्र सड़क पर उतर आये थे. कई जगह तो हिंसक प्रदर्शन भी हुए. कोतवाली का घेराव किया गया. एसएसपी ने तत्कालीन कोतवाल को सस्पेंड कर दिया. यह सब चल ही रहा था कि देहरादून की लक्खीबाग चौकी में सब इंस्पेक्टर महेंद्र सिंह नेगी की तैनाती हुई. उनके ही कार्यकाल में निक्कू के जीवन का अंतिम अध्याय लिखा गया.
तत्कालीन यूपी मुख्यमंत्री हस्तक्षेप के बाद निक्कू का समय हुआ खत्म: उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार बन चुकी थी. यानी विनोद बड़थ्वाल, सूर्यकांत धस्माना और सुभाष शर्मा की पार्टी अब सत्ता में थी. खुद मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का हाथ इन सभी के सिर पर था. लिहाजा, पुलिस को स्पष्ट निर्देश दे दिए गए थे कि निक्कू के अपराधों का घड़ा अब भर चुका है. उस घड़े के टूटने का वक्त अब आ गया है.
23 दिसम्बर 1989 को खबरी ने सूचना दी कि देहरादून से एक आदमी निक्कू से मिलने दिल्ली जा रहा है. अपनी जिप्सी में वो निक्कू के लिए गैस के सिलिंडर, देहरादून की मशहूर कुमार स्वीट शॉप की मिठाइयां, एक बड़े स्टोर से कुछ गर्म कपड़े आदि भी ले जा रहा है. इसकी सूचना सब इंस्पेक्टर महेंद्र सिंह नेगी को भी दी गई. इस बात की पुष्टि के लिए सुभाष शर्मा और महेंद्र सिंह नेगी ख़ुद रात के अंधेरे में उस जिप्सी को चेक करने पहुंचे. बताया गया सभी सामान जिप्सी में मौजूद था.
मुखबिर की बात सही होने पर दोनों लोग सीधे एसएसपी अवस्थी के सरकारी आवास पहुंचे. तय हुआ कि दिल्ली जा रहे युवक का पीछा किया जाए. जब वो निक्कू से मिले तो उसे दबोच लिया जाए. एसएसपी ने दोनों के गेम प्लान पर हामी भरी. दोनों हथियार लेने शहर कोतवाली की जगह सीधा पुलिस लाइन पहुंचे. पुलिस लाइन इसलिए, क्योंकि उन्हें पता चल चुका था कि निक्कू का एक खबरी शहर कोतवाली में भी है जो पुलिस के हर मूवमेंट की खबर उस तक पहुंचा देता है. लिहाजा, इस बार पुलिस टीम ने वो गलती नहीं की, जिसका फायदा निक्कू को मिलता. सुबह साढ़े पांच बजे वो आदमी जिप्सी लेकर अपने घर से निकला. पुलिस की गाड़ी पहले से ही उसके घर के पास तैयार खड़ी थी. सब इंस्पेक्टर महेंद्र सिंह नेगी के नेतृत्व में ये टीम दिल्ली के लिये रवाना हुई.
मुठभेड़ में मार गिराया गया निक्कू : दिल्ली पहुंचने पर दून पुलिस की टीम के साथ दिल्ली क्राइम ब्रांच भी ऑपरेशन में शामिल हो गई. उस आदमी की जिप्सी सीधे दरियागंज के एक नामी होटल में जाकर रूकी. वहां होटल के एक कर्मचारी ने देहरादून से आए इस युवक का गर्मजोशी से स्वागत किया. मगर वहां निक्कू नहीं था. पुलिस ने पास के एक घर से होटल पर नजर रखना शुरू किया. पूरा एक दिन बीत जाने पर भी निक्कू वहां नहीं आया. पुलिस टीम अब हताश होने लगी.
इस बीच पुलिस को जानकारी मिली कि निक्कू दिल्ली में न होकर सहारनपुर में है. रात को देहरादून के लिये रवाना होगा. ये सुनते ही पूरी टीम आनन-फ़ानन में देहरादून लौटी. निक्कू को दबोचने के लिये एक नया प्लान बना. आशारोड़ी चेक-पोस्ट पर सघन चेकिंग अभियान शुरू कर दिया गया. सुबह लगभग पांच बजे नीली रंग की मारूति 800 में निक्कू अपने एक साथी के साथ पहुंचा.
पुलिस की कहानी के अनुसार उन्होंने कार को रुकने का इशारा किया, लेकिन निक्कू ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया. जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाई. जिसमें निक्कू की मौत हो गई. निक्कू की मौत के साथ ही देहरादून में संगठित अपराधों का अध्याय भी समाप्त हो गया. उसके बाद देहरादून शहर में कभी कोई इतना बड़ा कुख्यात पैदा नहीं हुआ. अब जबकि मामूली सी बात पर निक्कू के भतीजे विनीत अरोड़ा ने एक युवक की हत्या कर दी, जबकि गलती भी विनीत अरोड़ा की पत्नी की ही थी. इसके बाद भी विपिन ने उससे माफी मांगी. वहां से जाने लगा, लेकिन आवेशित विनीत ने विपिन की हत्या कर दी.