डोईवाला: उत्तराखंड में बारिश का दौर जारी है. भारी बारिश के चलते हर साल सुसवा नदी अपना रौद्र रूप दिखाती है. बता दें कि, सुसवा नदी के आस पास 12 से अधिक गांव है. इन गांव के ग्रामीणों को हर साल बारिश के सीजन में सुसवा नदी से खतरा बना रहता है. बरिश में सुसवा नदी का पानी ग्रामीणों के घरों में घुस जाता है. जिससे उनके काफी नुकसान होता है. ग्रामीणों की कई मवेशियां भी नदी में बह जाते हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि जंगल और कई बड़े नालों का पानी इकट्ठा होकर सुसवा नदी में मिलता है. जिससे अचानक सुसवा नदी अपना रौद्र रूप दिखाने लगती है. ग्रामीणों को संभलने का मौका भी नहीं मिल पाता है. हर साल उनके मवेशी पानी के तेज बहाव में बह जाते हैं. ग्रामीण खतरे से बचने के लिए संबंधित विभागों से सुसवा नदी में सायरन लगाने की मांग कर रहे है. लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
सामाजिक कार्यकर्ता अजय कुमार ने बताया कि बारिश आने से पहले ही ग्रामीणों की नींद उड़ जाती है. नदी का रौद्र रूप नदी के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए तबाही बनकर आता है. कई गांव जिसमें दुधली, कैमरी, बड़कली, खट्टा पानी, शिमलास, कुड़का वाला नई बस्ती और खेरी आदि के लोग रात को डरे रहते हैं. उन्होंने कहा कि अगर नदी में सायरन लग जाएगा तो ग्रामीणों को खतरे का तुरंत पता चल जाएगा और ग्रामीण सुरक्षित स्थानों पर चले जाएगें. ग्रामीणों के मवेशी भी नहीं बहेंगे और जानमाल की हानि भी नहीं होगी.
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पूर्व राज्यमंत्री करण बोरा ने बताया कि सायरन लगवाने के प्रयास किए जा रहे हैं. आपदा प्रबंधन विभाग और अन्य विभागों से भी इस तरह की व्यवस्था के लिए कहा गया है. नदियों के किनारे जानमाल की सुरक्षा के लिए सायरन की तकनीक जरूरी है. जिससे सुसवा नदी के किनारे रहने वाले लोग सायरन बजने पर सचेत हो सके और सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं.