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चीन पर होगी एक और चोट, कीड़ा जड़ी के निर्यात पर लगेगी रोक - कीड़ा जड़ी की स्मगलिंग

गलवान घाटी विवाद के बाद भारत ने चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है. भारत चीन को हर वो सबक देना चाहता है जिससे उसके दिमाग ठिकाने आ जाएंगे. उत्तराखंड भी चीन को तगड़ा झटका देने जा रहा है. उत्तराखंड में पाई जाने वाली कीड़ा-जड़ी के निर्यात पर रोक लगाकर सरकार चीन को तगड़ा झटका देने जा जा रही है.

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कीड़ा जड़ी की तस्करी पर लगेगी रोक
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Published : Jul 8, 2020, 10:33 AM IST

Updated : Jul 8, 2020, 6:56 PM IST

देहरादून: भारत और चीन की तनातनी के बीच ETV भारत आपको एक ऐसी जानकारी देने जा रहा है, जिसके बारे में शायद ही आपको पता होगा. उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में एक ऐसी जड़ी-बूटी पाई जाती है. जिसके लिए चीन कुछ भी करने को तैयार है और चीन द्वारा लगातार इसकी डिमांड की जाती है. कहा जाता है कि यह जड़ी-बूटी चीन के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. क्योंकि इस जड़ी-बूटी का व्यापार करके चीन हर साल करोड़ों रुपए कमाता है. कीड़ा जड़ी नाम की यह जड़ी-बूटी उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है.

चीन पर होगी एक और चोट.

उत्तराखंड को प्रकृति का तोहफा

उत्तराखंड को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है. हिमालयी क्षेत्रों में हजारों प्रकार की जड़ी-बूटियां भी पाई जाती हैं. बड़ी से बड़ी बीमारियों से निजात दिलाने और दवा बनाने में इनका उपयोग होता है. इन्हीं जड़ी-बूटियों में शामिल है कीड़ा जड़ी. जी हां, ये कीड़ा जड़ी 3,600 फीट से लेकर 5,000 फीट तक की ऊंचाई पर पाई जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी निकालने के लिए जाने वाले ग्रामीण ऊंची बुग्याल यानी घास के मैदानों का रुख कर लेते हैं और वहां तंबू बना कर रहते हैं. करीब 2 महीने तक वहीं रहकर कीड़ा जड़ी का चुगान करते हैं.

क्या है कीड़ा जड़ी ?

कीड़ा जड़ी उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाती है. कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फंगस है, जो उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़े के शरीर से बाहर निकलता है. हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली अन्य जड़ी-बूटियों के जड़ को खाकर कीड़े जीवित रहते हैं और इन्हीं कीड़ों में फंगस लग जाने के बाद यह फंगस धीरे-धीरे कीड़ों को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं. ये फंगस कीड़े को मार देता है और फिर जो कीड़े के ऊपर का हिस्सा बचता है तो वह कीड़ा-जड़ी कहलाता है. भारत में अभी तक दुर्गम क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़ों पर कोई रिसर्च नहीं की गई है, लेकिन इस जड़ी का चीन में बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है.

तिब्बत के ग्रंथों में भी कीड़ा-जड़ी से जुड़ी जानकारियां

कीड़ा-जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिली थी. इसमें कीड़ा-जड़ी को सभी बीमारियों के इलाज लिए उपयोगी बताया गया था. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का क्रेज चीन में बढ़ने लगा. चीन में इसका प्रयोग थकान खत्म करने और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवा के रूप में किया जाता रहा है. 1990 में चीन के एथलीटों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया था. जिसके बाद उनके कोच ने दावा किया था कि कीड़ा-जड़ी खाने की वजह से ही एथलीटों की परफॉर्मेंस बढ़ गई थी. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा-जड़ी का इस्तेमाल मेडिसिन के रूप में किया जाने लगा और सबसे अधिक इसका व्यापार चीन में बढ़ने लगा. यही वजह है कि कीड़ा-जड़ी चीन का सोना भी कहलाती है.

ये भी पढ़ें: कोरोना महामारी को देखते हुए देश में क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी

तिब्बत में मिलती है सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी

उत्तराखंड के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत समेत कुछ अन्य देश भी हैं, जहां कीड़ा-जड़ी पायी जाती है. वहीं, नेपाल, भूटान, तिब्बत में कीड़ा- जड़ी को लेकर तमाम रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं. उत्तराखंड सरकार ने भी कीड़ा जड़ी के दोहन के लिए नीति बनाई है और पंचायतों को इसका अधिकार दिया गया है. हालांकि, सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी तिब्बत में पायी जाती है. वहीं, भूटान और नेपाल में भी कीड़ा-जड़ी होती है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले में कीड़ा-जड़ी पायी जाती है.

चीन को एक और चोट पहुंचा सकती है कीड़ा-जड़ी

वहीं, उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार जय सिंह रावत बताते हैं कि प्रदेश में कीड़ा-जड़ी की तस्करी अधिक होती है और चीन में इसकी डिमांड सर्वाधिक है. ऐसे में जब भारत और चीन के बीच विवाद चल रहा है तो राज्य के पास एक अच्छा अवसर है कि वह कीड़ा-जड़ी की तस्करी पर अंकुश लगाए और इसका निर्यात भी बंद कर दे. वहीं, देश में ही कीड़ा जड़ी का सदुपयोग किया जा सकता है. राज्य सरकार को संघों के माध्यम से कीड़ा-जड़ी का चुगान करवाना चाहिए. राज्य सरकार को कीड़ा-जड़ी की तस्करी को रोकने के भी प्रयास करने चाहिए.

कीड़ा-जड़ी से राज्य की आर्थिकी होगी मजबूत

वहीं, पर्यावरणविद् अनिल जोशी ने बताया कि यह राज्य सरकार के लिए एक बड़ा अवसर भी है क्योंकि केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया का नारा लगाया है. ऐसे में इस बेशकीमती कीड़ा जड़ी की तस्करी पर अंकुश लगाने से राज्य सरकार को भी करोड़ों रुपए का मुनाफा होगा. मौजूदा समय में जो चीन और भारत के बीच विवाद चल रहा है अगर इस बीच कीड़ा-जड़ी के निर्यात पर रोक लगा दी जाए तो पर्वतीय क्षेत्रों को भी थोड़ा राहत मिलेगी. साथ ही कीड़ा-जड़ी का दोहन भी रुक सकेगा.

कैसे रुकेगी कीड़ा-जड़ी की तस्करी

वहीं, प्रमुख वन संरक्षक जय राज ने बताया कि चीन में हमेशा से ही कीड़ा-जड़ी की डिमांड रही है. वहीं, इसकी तस्करी न हो इसके लिए उत्तराखंड सरकार ने पॉलिसी बनाई है, जिसे रेगुलेट करने की कोशिश की जा रही है. इसको लेकर प्रशासन भी अलर्ट है. ऐसे में किसी भी सूरत में कीड़ा जड़ी की तस्करी नहीं होनी दी जाएगी.

वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि कीड़ा-जड़ी व्यापार गतिविधियों में शामिल है. ये उत्तराखंड राज्य से चाइना समेत अन्य देशों में भेजी जाती है, जो फिलहाल न के बराबर जा रही है.

देहरादून: भारत और चीन की तनातनी के बीच ETV भारत आपको एक ऐसी जानकारी देने जा रहा है, जिसके बारे में शायद ही आपको पता होगा. उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में एक ऐसी जड़ी-बूटी पाई जाती है. जिसके लिए चीन कुछ भी करने को तैयार है और चीन द्वारा लगातार इसकी डिमांड की जाती है. कहा जाता है कि यह जड़ी-बूटी चीन के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है. क्योंकि इस जड़ी-बूटी का व्यापार करके चीन हर साल करोड़ों रुपए कमाता है. कीड़ा जड़ी नाम की यह जड़ी-बूटी उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है.

चीन पर होगी एक और चोट.

उत्तराखंड को प्रकृति का तोहफा

उत्तराखंड को प्रकृति ने कई अनमोल तोहफों से नवाजा है. हिमालयी क्षेत्रों में हजारों प्रकार की जड़ी-बूटियां भी पाई जाती हैं. बड़ी से बड़ी बीमारियों से निजात दिलाने और दवा बनाने में इनका उपयोग होता है. इन्हीं जड़ी-बूटियों में शामिल है कीड़ा जड़ी. जी हां, ये कीड़ा जड़ी 3,600 फीट से लेकर 5,000 फीट तक की ऊंचाई पर पाई जाती है. पहाड़ी क्षेत्रों से कीड़ा जड़ी निकालने के लिए जाने वाले ग्रामीण ऊंची बुग्याल यानी घास के मैदानों का रुख कर लेते हैं और वहां तंबू बना कर रहते हैं. करीब 2 महीने तक वहीं रहकर कीड़ा जड़ी का चुगान करते हैं.

क्या है कीड़ा जड़ी ?

कीड़ा जड़ी उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाई जाती है. कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फंगस है, जो उच्च हिमालई क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़े के शरीर से बाहर निकलता है. हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली अन्य जड़ी-बूटियों के जड़ को खाकर कीड़े जीवित रहते हैं और इन्हीं कीड़ों में फंगस लग जाने के बाद यह फंगस धीरे-धीरे कीड़ों को अंदर से खाना शुरू कर देते हैं. ये फंगस कीड़े को मार देता है और फिर जो कीड़े के ऊपर का हिस्सा बचता है तो वह कीड़ा-जड़ी कहलाता है. भारत में अभी तक दुर्गम क्षेत्रों में पाए जाने वाले कीड़ों पर कोई रिसर्च नहीं की गई है, लेकिन इस जड़ी का चीन में बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता है.

तिब्बत के ग्रंथों में भी कीड़ा-जड़ी से जुड़ी जानकारियां

कीड़ा-जड़ी की जानकारी 15वीं शताब्दी में तिब्बत के ग्रंथों में मिली थी. इसमें कीड़ा-जड़ी को सभी बीमारियों के इलाज लिए उपयोगी बताया गया था. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा जड़ी का क्रेज चीन में बढ़ने लगा. चीन में इसका प्रयोग थकान खत्म करने और सेक्स पावर बढ़ाने वाली दवा के रूप में किया जाता रहा है. 1990 में चीन के एथलीटों ने जबरदस्त परफॉर्मेंस दिया था. जिसके बाद उनके कोच ने दावा किया था कि कीड़ा-जड़ी खाने की वजह से ही एथलीटों की परफॉर्मेंस बढ़ गई थी. इसके बाद धीरे-धीरे कीड़ा-जड़ी का इस्तेमाल मेडिसिन के रूप में किया जाने लगा और सबसे अधिक इसका व्यापार चीन में बढ़ने लगा. यही वजह है कि कीड़ा-जड़ी चीन का सोना भी कहलाती है.

ये भी पढ़ें: कोरोना महामारी को देखते हुए देश में क्लीनिकल ट्रायल की तैयारी

तिब्बत में मिलती है सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी

उत्तराखंड के अलावा नेपाल, भूटान, तिब्बत समेत कुछ अन्य देश भी हैं, जहां कीड़ा-जड़ी पायी जाती है. वहीं, नेपाल, भूटान, तिब्बत में कीड़ा- जड़ी को लेकर तमाम रिस्ट्रिक्शंस भी लगाए हैं. उत्तराखंड सरकार ने भी कीड़ा जड़ी के दोहन के लिए नीति बनाई है और पंचायतों को इसका अधिकार दिया गया है. हालांकि, सबसे ज्यादा कीड़ा-जड़ी तिब्बत में पायी जाती है. वहीं, भूटान और नेपाल में भी कीड़ा-जड़ी होती है. उत्तराखंड के पिथौरागढ़, बागेश्वर और चमोली जिले में कीड़ा-जड़ी पायी जाती है.

चीन को एक और चोट पहुंचा सकती है कीड़ा-जड़ी

वहीं, उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के जानकार जय सिंह रावत बताते हैं कि प्रदेश में कीड़ा-जड़ी की तस्करी अधिक होती है और चीन में इसकी डिमांड सर्वाधिक है. ऐसे में जब भारत और चीन के बीच विवाद चल रहा है तो राज्य के पास एक अच्छा अवसर है कि वह कीड़ा-जड़ी की तस्करी पर अंकुश लगाए और इसका निर्यात भी बंद कर दे. वहीं, देश में ही कीड़ा जड़ी का सदुपयोग किया जा सकता है. राज्य सरकार को संघों के माध्यम से कीड़ा-जड़ी का चुगान करवाना चाहिए. राज्य सरकार को कीड़ा-जड़ी की तस्करी को रोकने के भी प्रयास करने चाहिए.

कीड़ा-जड़ी से राज्य की आर्थिकी होगी मजबूत

वहीं, पर्यावरणविद् अनिल जोशी ने बताया कि यह राज्य सरकार के लिए एक बड़ा अवसर भी है क्योंकि केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया का नारा लगाया है. ऐसे में इस बेशकीमती कीड़ा जड़ी की तस्करी पर अंकुश लगाने से राज्य सरकार को भी करोड़ों रुपए का मुनाफा होगा. मौजूदा समय में जो चीन और भारत के बीच विवाद चल रहा है अगर इस बीच कीड़ा-जड़ी के निर्यात पर रोक लगा दी जाए तो पर्वतीय क्षेत्रों को भी थोड़ा राहत मिलेगी. साथ ही कीड़ा-जड़ी का दोहन भी रुक सकेगा.

कैसे रुकेगी कीड़ा-जड़ी की तस्करी

वहीं, प्रमुख वन संरक्षक जय राज ने बताया कि चीन में हमेशा से ही कीड़ा-जड़ी की डिमांड रही है. वहीं, इसकी तस्करी न हो इसके लिए उत्तराखंड सरकार ने पॉलिसी बनाई है, जिसे रेगुलेट करने की कोशिश की जा रही है. इसको लेकर प्रशासन भी अलर्ट है. ऐसे में किसी भी सूरत में कीड़ा जड़ी की तस्करी नहीं होनी दी जाएगी.

वहीं, शासकीय प्रवक्ता मदन कौशिक ने बताया कि कीड़ा-जड़ी व्यापार गतिविधियों में शामिल है. ये उत्तराखंड राज्य से चाइना समेत अन्य देशों में भेजी जाती है, जो फिलहाल न के बराबर जा रही है.

Last Updated : Jul 8, 2020, 6:56 PM IST
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