देहरादून: राज्य गठन के बाद 2003 से उत्तराखंड परिवहन निगम करीब लगभग 520 करोड़ रुपए से अधिक के राजस्व घाटे से जूझ रहा है. ऐसे में इस घाटे से ऊबरने के लिए निगम बोर्ड बेशकीमती संपत्तियों की निलामी की कवायद में जुट गया है. इसके लिए परिवहन निगम बोर्ड ने शासन को प्रस्ताव भेजा है.
नीलामी की कवायद: ऐसे में मामले पर शासन स्तर पर मुख्यमंत्री, कैबिनेट सहित अन्य संबंधित अधिकारियों की अगर आपसी सहमति बन जाती हैं तो नीलामी की तैयारियां शुरू हो सकती है. परिवहन निगम मुख्यतः अपनी 3 संपत्ति जो देहरादून शहर में बीचों बीच हैं, उन्हें बेचने का मन बना रहा है.
परिवहन की संपत्ति बेचने पर विचार: इसमें पहले नंबर पर देहरादून के हरिद्वार रोड स्थित कार्यशाला, जो लगभग 25 बीघे के आसपास है. वहीं, दूसरे नंबर पर देहरादून के गांधी रोड स्थित पुराना दिल्ली बस अड्डा, जो लगभग 8 बीघा हैं. तीसरे नंबर पर प्रिंस चौक के निकट मंडलीय प्रबंधक कार्यालय हैं.
ऑनलाइन नीलामी: ऐसे में अगर सब कुछ शासन स्तर पर हो जाता है, तो परिवहन निगम की इन बेशकीमती संपत्तियों की ऑनलाइन नीलामी की जा सकती है. ऐसे में अगर रोडवेज की इन संपत्तियां का विक्रय हो जाता है तो न सिर्फ निगम का घाटा पूरा होगा. बल्कि अच्छा खासा मुनाफे भी हो सकता है. उत्तराखंड रोडवेज की बेशकीमती प्रॉपर्टियों को बेचकर लगभग 600 सीएनजी बस खरीदने पर भी विचार कर रहा है.
सीएनजी बसें खरीदने पर विचार: ऐसे में इन सीएनजी बसों से ईंधन पर सालाना 50 से 60 करोड़ परिवहन निगम को बचत होने की उम्मीद है. उत्तराखंड से दिल्ली के लिए सबसे ज्यादा बसें संचालित होती है. अगर सीएनजी का 50% बेड़ा दिल्ली रूट पर लगाया जाता है तो इससे यात्रियों को अच्छी सुविधाएं और परिवहन निगम को अच्छी-खासी आमदनी भी हो सकती है.
यात्रियों को मिलेगी सुविधा: वर्तमान समय में उत्तराखंड परिवहन निगम में 1300 से अधिक बसों का बेड़ा है. इनमें अधिकांश बसें दिल्ली के लिए संचालित होती है. वहीं दूसरी ओर रोडवेज की संपत्तियों को विक्रय करने के बाद होने वाले मुनाफे से रोडवेज बसों में यात्रियों के लिए सुविधाएं बढ़ाने और बस स्टेशनों में यात्रियों की सुरक्षा सीसीटीवी कैमरे और जीपीएस जैसी अन्य हाईटेक सुविधाएं भी बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है.
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इतना ही नहीं देहरादून आईएसबीटी से लेकर राज्य के छोटे और बड़े बस स्टेशनों में यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाने के दृष्टिगत हाइटेक कंट्रोल रूम, हेल्पडेस्क और अन्य आवश्यक सुविधाओं को भी बढ़ाया जा सकता है.
कर्मचारी यूनियन महामंत्री अशोक चौधरी का कहना है कि संपत्तियों को बेचने से ज्यादा अच्छा, उन्हें व्यवसायिक कामों के लिए इस्तेमाल किया जाए. जिससे निगम की आमदनी भविष्य में बनी रहे. यूपी-उत्तराखंड राज्य बंटवारा के समय से 2003 में उत्तराखंड रोडवेज कॉर्पोरेशन बनने के बाद से लगभग 800 करोड़ की देनदारी यूपी रोडवेज की उत्तराखंड परिवहन निगम को बनती है, जो आज तक नहीं मिली. यही कारण है कि राज्य का परिवहन निगम 520 करोड़ के घाटे में चल रहा है.
इसकी सबसे बड़ी वजह वर्ष 2003 में यूपी रोडवेज द्वारा उस समय 7100 कर्मचारी उत्तराखंड परिवहन निगम के हिस्से में आए, जिनका सेवाकाल उस दरमियान 14 से 40 वर्ष का पूरा हो चुका था. ऐसे में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम ने उनके रिटायरमेंट धनराशि से लेकर सभी तरह के फंड का भुगतान नहीं दिया और यह सारा भुगतान उत्तराखंड परिवहन निगम के हिस्से में आया.
यही कारण है कि वर्ष 2003 से अब तक 520 करोड़ रुपए का घाटा निगम को हो चुका है. ऐसे में अगर यूपी रोडवेज संपत्ति बंटवारे सहित कर्मचारियों को देने वाला भुगतान लगभग 800 करोड़ रुपए उत्तराखंड परिवहन निगम को चुका देता है, तो न सिर्फ घाटे से उबरा जा सकता है. बल्कि मुनाफा भी राज्य के निगम को पटरी पर ला सकता है.