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पहाड़ की महिलाओं की सुंदरता में चार-चांद लगाती है पारंपरिक नथ, आज भी नहीं घटा क्रेज

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Published : Aug 16, 2019, 4:10 PM IST

Updated : Aug 17, 2019, 8:11 AM IST

उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास हैं. बात की जाए उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) की तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ का अपना अलग की महत्व है. गढ़वाल हो या कुमाऊं दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागिन महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं.

देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार- चांद लगाता है नथ.

देहरादून: देवभूमि की कला और विरासत किसी से छुपी नहीं है, जो अपने आप में अतीत को समेटे हुए है. वहीं, प्रदेश में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण भी उन्हें बेहद खास बनाते हैं. जिन्हें वे मांगलिक कार्यों में अकसर पहनी दिखाई देती है. जो उनकी खूबसूरती में भी चार-चांद लगा देती है.

गौर हो कि उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास है. अगर बात उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) हो तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ अपना अलग की महत्व रखती है. गढ़वाल हो या कुमाऊं दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागिन महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं.

देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार- चांद लगाती है नथ.

नथ सुहागिन होने का प्रतीक होने साथ ही संपन्नता का प्रतीक भी है. जिसके महत्व को देखते हुए देवभूमि के लोकगीतों पर जिनका जिक्र होता रहा है. महिलाओं के नाक में नथ पहनने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है और आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में अधिकतर महिलाएं नथ पहने दिखाई देती हैं. खासकर पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहने दिखाई देती है.

पढ़ें-चंपावत: देवीधुरा में खेली गई ऐतिहासिक बग्वाल, 122 बग्वालीवीर हुए घायल

उत्तराखंड की पारंपरिक नथ के संबंध में प्रदेश की जानी-मानी लोकगायिका पद्मश्री बसंती देवी बिष्ट ने बताया कि पुराने समय में सुहागिनों के लिए 24 घंटे नथ धारण करना अनिवार्य था. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में जहां नाथ के डिजाइन में परिवर्तन आया है. वहीं, महिलाओं ने भी इसे सिर्फ खास मौकों पर पहने जाने वाला आभूषण बना दिया है.

आजकल सुहागिन सिर्फ मांगलिक कार्यों और तीज-त्योहारों के अवसर पर ही नथ पहने दिखाई देती हैं. वहीं, प्रदेश की पारंपरिक नथ के डिजाइन में आए बदलाव के बारे में सर्राफा व्यापारियों बताते हैं कि सोने के दाम बढ़ने की वजह से अब गढ़वाल और कुमाऊं की पारंपरिक नथ पहले के मुकाबले आकार में छोटी हो चुकी हैं.

लेकिन अब भी इनकी काफी डिमांड है. यहां तक कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अभिनेत्रियां इस आभूषण को पहनी दिखाई दी हैं. जहां पहले गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 20-25 ग्राम तक कि नथ तैयार कराई जाती थी. वहीं, अब लोग गढ़वाल में 3 से 15 ग्राम की नथ और कुमाऊं में 10- 20 ग्राम तक की नथ बनवा रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो अब नथ का आकार छोटा हो चुका है.

बता दें कि गढ़वाल मंडल की टिहरी की नथ का आकार चौड़ा होता और इसमें सोने की तार में खूबसूरत मोतियों और नगों को पिरोया जाता है. वहीं, दूसरी तरफ कुमाऊं की नथ आकर में काफी बढ़ी होती है और इसमें मोतियों और नगों का काम भी कुछ अधिक किया जाता है. साथ ही कुमाऊं की नथ का आकार में बढ़ा और वजन भी कुछ ज्यादा होता है. सोने के बढ़ते दाम और समय के साथ अब कम वजन के नथ की डिमांड बढ़ गई है.

देहरादून: देवभूमि की कला और विरासत किसी से छुपी नहीं है, जो अपने आप में अतीत को समेटे हुए है. वहीं, प्रदेश में महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले आभूषण भी उन्हें बेहद खास बनाते हैं. जिन्हें वे मांगलिक कार्यों में अकसर पहनी दिखाई देती है. जो उनकी खूबसूरती में भी चार-चांद लगा देती है.

गौर हो कि उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास है. अगर बात उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ (नथुली) हो तो गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नथ अपना अलग की महत्व रखती है. गढ़वाल हो या कुमाऊं दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागिन महिलाएं नथ जरूर पहनती हैं.

देवभूमि की महिलाओं की सुंदरता में चार- चांद लगाती है नथ.

नथ सुहागिन होने का प्रतीक होने साथ ही संपन्नता का प्रतीक भी है. जिसके महत्व को देखते हुए देवभूमि के लोकगीतों पर जिनका जिक्र होता रहा है. महिलाओं के नाक में नथ पहनने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है और आज भी कुमाऊं और गढ़वाल में अधिकतर महिलाएं नथ पहने दिखाई देती हैं. खासकर पहाड़ की शादियों में दुल्हन शादी के दिन पारंपरिक नथ पहने दिखाई देती है.

पढ़ें-चंपावत: देवीधुरा में खेली गई ऐतिहासिक बग्वाल, 122 बग्वालीवीर हुए घायल

उत्तराखंड की पारंपरिक नथ के संबंध में प्रदेश की जानी-मानी लोकगायिका पद्मश्री बसंती देवी बिष्ट ने बताया कि पुराने समय में सुहागिनों के लिए 24 घंटे नथ धारण करना अनिवार्य था. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में जहां नाथ के डिजाइन में परिवर्तन आया है. वहीं, महिलाओं ने भी इसे सिर्फ खास मौकों पर पहने जाने वाला आभूषण बना दिया है.

आजकल सुहागिन सिर्फ मांगलिक कार्यों और तीज-त्योहारों के अवसर पर ही नथ पहने दिखाई देती हैं. वहीं, प्रदेश की पारंपरिक नथ के डिजाइन में आए बदलाव के बारे में सर्राफा व्यापारियों बताते हैं कि सोने के दाम बढ़ने की वजह से अब गढ़वाल और कुमाऊं की पारंपरिक नथ पहले के मुकाबले आकार में छोटी हो चुकी हैं.

लेकिन अब भी इनकी काफी डिमांड है. यहां तक कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अभिनेत्रियां इस आभूषण को पहनी दिखाई दी हैं. जहां पहले गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 20-25 ग्राम तक कि नथ तैयार कराई जाती थी. वहीं, अब लोग गढ़वाल में 3 से 15 ग्राम की नथ और कुमाऊं में 10- 20 ग्राम तक की नथ बनवा रहे हैं. कुल मिलाकर देखा जाए तो अब नथ का आकार छोटा हो चुका है.

बता दें कि गढ़वाल मंडल की टिहरी की नथ का आकार चौड़ा होता और इसमें सोने की तार में खूबसूरत मोतियों और नगों को पिरोया जाता है. वहीं, दूसरी तरफ कुमाऊं की नथ आकर में काफी बढ़ी होती है और इसमें मोतियों और नगों का काम भी कुछ अधिक किया जाता है. साथ ही कुमाऊं की नथ का आकार में बढ़ा और वजन भी कुछ ज्यादा होता है. सोने के बढ़ते दाम और समय के साथ अब कम वजन के नथ की डिमांड बढ़ गई है.

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देहरादून- उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान और आभूषण अपने आप में बेहद ही खास हैं। बात की जाए उत्तराखण्ड की पारंपरिक नथ/ नाथुली की तो प्रदेश के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल की संस्कृति में नाथुली का अपना अलग की महत्व है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें की गढ़वाल हो या कुमाऊं प्रदेश के दोनों ही मंडलों में हर शुभ कार्य में सुहागनें नथुली जरूर धारण करती हैं । नथुली सुहागिन होने का प्रतीक होने साथ ही संपन्नता का भी प्रतीक है ।




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उत्तराखंड की पारंपरिक नथुली के संबंध में बात करते हुए प्रदेश की जानी-मानी लोक गायिका पद्मश्री बसंती देवी बिष्ट ने बताया कि पौराणिक समय में सुहागनों के लिए 24 घंटे नथ धारण करना अनिवार्य था । लेकिन आधुनिकता के इस दौर में जहां नाथुली के डिज़ाइन में परिवर्तन आया । वहीं महिलाओं ने भी इसे सिर्फ खास मौको पर पहने जाने वाला आभूषण बना दिया है । आज के दौर में सुहागनें सिर्फ शुभ मौको और तीज-त्योहारों के अवसर पर ही नथुली पहनती हैं ।

बाइट- बसंती देवी बिष्ट पद्मश्री लोकगायिका




Conclusion:वहीं प्रदेश की पारंपरिक नथुली के डिज़ाइन में आए बदलाव के बारे में सराफा व्यापारियों बताते हैं कि सोने के दाम बढ़ने की वजह से अब गढ़वाल और कुमाऊं की पारंपरिक नथे पहले के मुकाबले आकार में छोटी हो चुकी हैं। लेकिन अब भी इनकी काफी डिमांड है । यहां तक कि बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी अभिनेत्रियों ने इन्हें पहना है ।

जहां पहले गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 20 -25 ग्राम तक कि नथे तैयार कराई जाती थी । वही अब लोग गढ़वाल में 3 से 15 ग्राम की नथे और कुमाऊं में 10 - 20 ग्राम तक की नथे बनवा रहे हैं । कुल मिलाकर देखा जाए तो अब नथों का आकार छोटा हो चुका है ।

यहां आपको यह भी बता दें कि गढ़वाल मंडल की टिहरी की नथो का आकार चौड़ा होता और इसमें सोने की तार में खूबसूरत मोतियों और नगों का काम होता है। वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं की नथ आकर में काफी बढ़ी होती है और इसमें मोतियों और नगों का काम भी कुछ अधिक किया जाता है । जो कि एक बड़ा कारण है कुमाऊं की नथों का आकार में बढ़ा और वजन में भारी होने का।

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Last Updated : Aug 17, 2019, 8:11 AM IST
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