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कोरोना असर: अधर में नौनिहालों का भविष्य, शिक्षा महकमे के पास नहीं है कोई प्लान

कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से उत्तराखंड के नौनिहालों का भविष्य अधर में लटकता नजर आ रहा है. प्रदेश में बीते मार्च से स्कूल बंद हैं. वहीं, ऑनलाइन क्लास में कनेक्टिविटी को लेकर बड़ी समस्या आ रही है. इसकी वजह से छात्रों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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अधर में नौनिहालों का भविष्य
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Published : May 31, 2020, 2:13 PM IST

Updated : Jun 1, 2020, 10:16 AM IST

देहरादून: उत्तराखंड में खस्ताहाल सरकारी शिक्षा व्यवस्था लॉकडाउन के दौरान वेंटिलेटर पर आ गयी है. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों से आने वाले दिनों में भी नया शिक्षा सत्र समय से शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं है. उधर शिक्षा विभाग के पास स्कूली शिक्षा को बेहतर तरीके से जारी रखने के लिए कोई प्लान ही नहीं दिख रहा है. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

कोरोना महामारी की चपेट में इंसान का सिर्फ वर्तमान ही नहीं, बल्कि भविष्य पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं. इस महामारी की वजह से हर सेक्टर, हर तबका बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. इसका असर आने वाले दिनों में भी साफ-साफ देखने को मिलेगा. वहीं, तमाम सेक्टर्स के साथ नौनिहालों का भी भविष्य अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है. बीते मार्च महीने से लगे लॉकडाउन को 2 महीने से ज्यादा हो गए हैं और इस दौरान बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास ही सहारा बनी हुई हैं. लेकिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में ऑनलाइन क्लास पर निर्भरता बच्चों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है.

अधर में नौनिहालों का भविष्य

ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में कनेक्टिविटी की बेहद ज्यादा समस्या है और इसमें ऑनलाइन क्लास शिक्षा के क्षेत्र में सफल प्रयोग नहीं माना जा रहा है. खुद शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे भी यह बात मानते हैं कि कनेक्टिविटी को लेकर तमाम शिकायतें उनको मिल रही हैं. इसको लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अवगत कराया है. इसके साथ ही उनके द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से संपर्क कर इसमें सुधार की कोशिश की जा रही है.

ये भी पढ़े: कैबिनेट मंत्री की पत्नी कोरोना संक्रमित, मंत्रियों और अधिकारियों पर भी मंडराया खतरा, जानिए क्या कहते हैं नियम

उत्तराखंड में आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 7 से 8 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा से जुड़े हैं. इसमें 2,300 माध्यमिक सरकारी स्कूल स्थापित हैं, जबकि प्राथमिक विद्यालयों की संख्या तो कई हजारों में है. हालांकि, फिलहाल ये स्कूल क्वारंटाइन सेंटर का काम कर रहे हैं. साफ है कि जिस तरह से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है उससे नए सत्र में समय पर स्कूल खुलना नामुमकिन है. सामान्य तौर पर जून के अंतिम सप्ताह में स्कूल नए सत्र के साथ खोले जाते हैं, लेकिन राज्य में प्रवासियों के आने से बढ़ी संक्रमितों की संख्या ने स्कूलों के नए सत्र को समय से शुरू होेने की उम्मीद को खत्म कर दिया है.

शिक्षाविद एसपी सती बताते हैं कि ऑनलाइन क्लास बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए उपयुक्त विकल्प नहीं मानी जा सकती. ऐसे भी सरकार और शिक्षा विभाग को परिस्थितियों के लिहाज से एहतियात बरतते हुए बच्चों को कैंपस एजुकेशन के लिए व्यवस्था करने का कोई विकल्प ढूंढना चाहिए.

ऑनलाइन क्लास के दौरान बार-बार कनेक्टिविटी प्रॉब्लम, गरीब छात्रों के पास स्मार्टफोन न होना समेत बच्चों को पढ़ने में आने वाली कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यही नहीं शिक्षकों को भी बच्चों को पढ़ाने में परेशानी हो रही है. कई शिक्षकों का कहना है कि ऑनलाइन में बच्चे 50 प्रतिशत भी नहीं जुड़ पा रहे हैं. उधर पहली बार ऑनलाइन क्लास चलाये जाने से पूरी तरह इसको हैंडल करना भी बच्चों के लिए मुश्किल हो रहा है.

देहरादून: उत्तराखंड में खस्ताहाल सरकारी शिक्षा व्यवस्था लॉकडाउन के दौरान वेंटिलेटर पर आ गयी है. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों से आने वाले दिनों में भी नया शिक्षा सत्र समय से शुरू होने की कोई उम्मीद नहीं है. उधर शिक्षा विभाग के पास स्कूली शिक्षा को बेहतर तरीके से जारी रखने के लिए कोई प्लान ही नहीं दिख रहा है. देखिये स्पेशल रिपोर्ट...

कोरोना महामारी की चपेट में इंसान का सिर्फ वर्तमान ही नहीं, बल्कि भविष्य पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं. इस महामारी की वजह से हर सेक्टर, हर तबका बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. इसका असर आने वाले दिनों में भी साफ-साफ देखने को मिलेगा. वहीं, तमाम सेक्टर्स के साथ नौनिहालों का भी भविष्य अधर में लटका हुआ नजर आ रहा है. बीते मार्च महीने से लगे लॉकडाउन को 2 महीने से ज्यादा हो गए हैं और इस दौरान बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास ही सहारा बनी हुई हैं. लेकिन पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में ऑनलाइन क्लास पर निर्भरता बच्चों के भविष्य के लिए ठीक नहीं है.

अधर में नौनिहालों का भविष्य

ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य में कनेक्टिविटी की बेहद ज्यादा समस्या है और इसमें ऑनलाइन क्लास शिक्षा के क्षेत्र में सफल प्रयोग नहीं माना जा रहा है. खुद शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे भी यह बात मानते हैं कि कनेक्टिविटी को लेकर तमाम शिकायतें उनको मिल रही हैं. इसको लेकर उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अवगत कराया है. इसके साथ ही उनके द्वारा टेलीकॉम कंपनियों से संपर्क कर इसमें सुधार की कोशिश की जा रही है.

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उत्तराखंड में आंकड़ों पर गौर करें तो करीब 7 से 8 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा से जुड़े हैं. इसमें 2,300 माध्यमिक सरकारी स्कूल स्थापित हैं, जबकि प्राथमिक विद्यालयों की संख्या तो कई हजारों में है. हालांकि, फिलहाल ये स्कूल क्वारंटाइन सेंटर का काम कर रहे हैं. साफ है कि जिस तरह से कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है उससे नए सत्र में समय पर स्कूल खुलना नामुमकिन है. सामान्य तौर पर जून के अंतिम सप्ताह में स्कूल नए सत्र के साथ खोले जाते हैं, लेकिन राज्य में प्रवासियों के आने से बढ़ी संक्रमितों की संख्या ने स्कूलों के नए सत्र को समय से शुरू होेने की उम्मीद को खत्म कर दिया है.

शिक्षाविद एसपी सती बताते हैं कि ऑनलाइन क्लास बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए उपयुक्त विकल्प नहीं मानी जा सकती. ऐसे भी सरकार और शिक्षा विभाग को परिस्थितियों के लिहाज से एहतियात बरतते हुए बच्चों को कैंपस एजुकेशन के लिए व्यवस्था करने का कोई विकल्प ढूंढना चाहिए.

ऑनलाइन क्लास के दौरान बार-बार कनेक्टिविटी प्रॉब्लम, गरीब छात्रों के पास स्मार्टफोन न होना समेत बच्चों को पढ़ने में आने वाली कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. यही नहीं शिक्षकों को भी बच्चों को पढ़ाने में परेशानी हो रही है. कई शिक्षकों का कहना है कि ऑनलाइन में बच्चे 50 प्रतिशत भी नहीं जुड़ पा रहे हैं. उधर पहली बार ऑनलाइन क्लास चलाये जाने से पूरी तरह इसको हैंडल करना भी बच्चों के लिए मुश्किल हो रहा है.

Last Updated : Jun 1, 2020, 10:16 AM IST
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